अखलाक हत्याकांड: कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आरोप वापस लेने की यूपी सरकार की याचिका खारिज की

Written by sabrang india | Published on: December 23, 2025
अतिरिक्त जिला जज सौरभ द्विवेदी ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले को “सबसे महत्वपूर्ण” श्रेणी में रखा जाए और इसकी रोजाना सुनवाई की जाए।



उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका देते हुए सूरजपुर की एक अदालत ने मंगलवार को मोहम्मद अखलाक की 2015 की लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप वापस लेने की राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही अदालत ने ट्रायल को तेज़ी से आगे बढ़ाने और रोजाना सुनवाई करने का निर्देश दिया।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, “गौतम बुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त और ग्रेटर नोएडा के उप-पुलिस आयुक्त को एक पत्र भेजा जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि साक्ष्यों को हर तरह की सुरक्षा प्रदान की जाए।”

अतिरिक्त जिला जज सौरभ द्विवेदी ने यह भी आदेश दिया कि इस मामले को “सबसे महत्वपूर्ण” श्रेणी में रखा जाए और इसकी प्रतिदिन सुनवाई की जाए। अदालत ने अभियोजन पक्ष को यह भी निर्देश दिया कि मामले में साक्ष्य जल्द से जल्द दर्ज किए जाएं।

मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को निर्धारित की गई है।

अखलाक (50) को दादरी के बिसाड़ा गांव में कथित गोहत्या और उनके घर में गोमांस रखने की अफवाहों के बाद भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था।

15 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में अभियोजन वापस लेने के लिए एक आवेदन दाखिल किया था। इसमें यह तर्क दिया गया था कि अखलाक के परिजनों द्वारा आरोपियों के नाम लेने में कथित असंगतियां हैं, आरोपियों से कोई धारदार हथियार बरामद नहीं हुआ और आरोपियों तथा पीड़ित के बीच किसी प्रकार की पुरानी दुश्मनी या शत्रुता का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

द इंडियन एक्सप्रेस ने सोमवार को रिपोर्ट किया था कि अखलाक की लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने की अपनी अर्जी में राज्य सरकार ने मूलतः वही तर्क दिए हैं, जो दो आरोपियों ने आठ वर्ष पहले जमानत के लिए आवेदन करते समय दिए थे।

28 सितंबर 2015 को गांव के मंदिर से यह घोषणा किए जाने के बाद कि अखलाक ने एक गाय की हत्या की है, उनके घर के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई। अखलाक और उनके बेटे दानिश, जो बीच-बचाव करने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें घर से बाहर घसीट लिया गया और तब तक पीटा गया जब तक वे बेहोश नहीं हो गए। अखलाक की बाद में नोएडा के एक अस्पताल में मौत हो गई, जबकि दानिश गंभीर सिर की चोटों के कारण बड़ी सर्जरी के बाद बच पाए।

अखलाक की पत्नी इकरामन की शिकायत के आधार पर पुलिस ने जारचा थाने में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा), 323 (मारपीट), 504 (जानबूझकर अपमान कर शांति भंग करना) सहित अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की थी।

पुलिस ने 23 दिसंबर 2015 को सूरजपुर की मजिस्ट्रेट अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें लिंचिंग के मामले में एक नाबालिग सहित 15 लोगों के नाम शामिल थे। सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर हैं। चार्जशीट में विशेष रूप से गोमांस का उल्लेख नहीं किया गया था, क्योंकि उस समय अंतिम फॉरेंसिक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थी।

ज्ञात हो कि इसी वर्ष 15 अक्टूबर को अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 321 के तहत ट्रायल कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ अभियोजन वापस लेने के लिए आवेदन किया था। यह धारा लोक अभियोजक को अदालत की अनुमति से मुकदमे से पीछे हटने की इजाजत देती है।

राज्य सरकार ने जिन आधारों पर मुकदमा समाप्त करने की मांग की, वे लगभग वही थे, जिनका सहारा आरोपियों ने वर्ष 2017 में लिया था—यानी मुख्य गवाहों के बयानों में कथित विसंगतियां और विरोधाभास, जिनके आधार पर पुलिस ने मामला तैयार किया था।

अभियोजन पक्ष ने अपनी वापसी याचिका में कहा, “चश्मदीद गवाह—इकरामन और अस्करी (अखलाक की मृत मां)—के लिखित बयान CrPC की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए थे, जिनमें आरोपियों की संख्या दस बताई गई थी। जांच के दौरान 13.10.2015 को इकरामन और शाइस्ता के बयान दर्ज किए गए, जिनमें किसी भी आरोपी का नाम नहीं लिया गया।”

शाइस्ता की गवाही के संबंध में याचिका में कहा गया, “26.11.2015 को चश्मदीद गवाह शाइस्ता का बयान CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया। इस बयान में पहले बताए गए दस आरोपियों के अलावा उसने छह अन्य व्यक्तियों के नाम भी लिए, जिससे अरुण, पुनीत, भीम, हरिओम, सोनू और रवीण के नाम सामने आए।”

गवाहों के बयानों में कथित विसंगतियों को रेखांकित करते हुए अभियोजन पक्ष की याचिका में कहा गया, “चश्मदीद गवाहों—अस्करी, इकरामन, शाइस्ता और दानिश—के बयानों में आरोपियों की संख्या में बदलाव देखा गया है। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष के गवाह और आरोपी सभी एक ही गांव बिसाड़ा के निवासी हैं। इसके बावजूद, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में आरोपियों की संख्या अलग-अलग बताई है।”

रिकॉर्ड से यह भी सामने आया है कि पुनीत और अरुण को जमानत मिलने के बाद अन्य सभी आरोपियों ने भी समानता (parity) के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में जमानत याचिकाएं दाखिल कीं, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया। जमानत पाने वालों में शिवम, गौरव, संदीप, भीम, सौरभ, हरिओम, विशाल, श्रीओम, विवेक और रूपेंद्र शामिल थे।

पुनीत और अरुण के मामलों की तरह ही राज्य सरकार ने इन आरोपियों की जमानत याचिकाओं का भी विरोध किया था, लेकिन अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार बाद में “समानता के आधार पर सहमति जताई गई।”

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