संसद की एक समिति ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालयों और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) की स्थापना में लगातार हो रही देरी पर जनजातीय कार्य मंत्रालय को फटकार लगाई है। समिति ने चेतावनी दी है कि यदि स्पष्ट समयसीमा और राज्यों के लिए आवश्यक पूर्व-शर्तें तय नहीं की गईं, तो लागत बढ़ती रहेगी और इन महत्वपूर्ण योजनाओं का मूल उद्देश्य असफल हो सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : स्क्रॉल
संसद की एक समिति ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) की स्थापना में जारी देरी पर जनजातीय कार्य मंत्रालय की कड़ी आलोचना की है।
समिति ने आगाह किया कि यदि राज्यों के लिए पूर्व-शर्तें और स्पष्ट समयसीमाएं तय नहीं की गईं, तो लागत लगातार बढ़ती रहेगी और इन महत्वपूर्ण योजनाओं का मूल उद्देश्य अधूरा रह सकता है।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी कार्रवाई की समीक्षा पर अपनी रिपोर्ट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि 11 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों की धीमी प्रगति और ईएमआरएस के अधूरे बुनियादी ढांचे पर मंत्रालय के जवाब उसे ‘असंतोषजनक’ लगे। इसी कारण समिति ने इन मुद्दों को लेकर अपनी चार सिफारिशों को दोबारा दोहराने का निर्णय लिया है।
मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि समिति की पहले दी गई 14 सिफारिशों में से 9 को सरकार द्वारा मंज़ूरी मिल गई है, एक सिफारिश को बिना विचार के बंद कर दिया गया है, जबकि जनजातीय संग्रहालयों और ईएमआरएस के विस्तार व अपग्रेडेशन से संबंधित चार सिफारिशों को नई कार्रवाई के लिए दोबारा मंत्रालय को भेजा गया है।
समिति ने 10 राज्यों में 11 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करने के सरकारी निर्णय की सराहना की, ताकि ‘मुख्यधारा के इतिहास में अक्सर उपेक्षित रहे जनजातीय नायकों’ के योगदान को उचित सम्मान मिल सके। हालांकि, समिति ने इस परियोजना की जमीनी प्रगति को ‘धीमी’ बताते हुए चिंता भी जताई।
अब तक केवल तीन संग्रहालयों का उद्घाटन हो पाया है—रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्मारक स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, छिंदवाड़ा में बादल भोई राज्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय और जबलपुर में राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय।
शेष आठ संग्रहालय, जिन्हें 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, गुजरात और मिजोरम में स्थापित किए जाने की मंजूरी दी गई थी, अभी तक पूरे नहीं हो सके हैं। वहीं केरल, मणिपुर और गोवा में स्वीकृत परियोजनाएं अब भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) की तैयारी के चरण में अटकी हुई हैं।
समिति ने पहले निर्देश दिया था कि नवंबर 2025 तक तैयार होने वाले चार संग्रहालय तथा मई 2026 तक पूर्ण होने वाला एक संग्रहालय निर्धारित समयसीमा के भीतर ही पूरे किए जाएं।
लेकिन मंत्रालय की प्रतिक्रिया में केवल यह कहा गया कि भूमि, निविदा, परियोजना प्रबंधन और निर्माण की जिम्मेदारी राज्यों पर है तथा साइट विज़िट और समीक्षा बैठकों जैसे कदम जारी हैं। समिति ने इस उत्तर को अपर्याप्त माना और कहा कि मंत्रालय यह स्पष्ट आश्वासन देने में विफल रहा है कि ये पांचों संग्रहालय निर्धारित समय पर पूरे हो पाएंगे।
ईएमआरएस—जिन्हें 2025-26 के बजट का 47% आवंटित है—के संबंध में समिति ने तीन प्रमुख सिफारिशों को फिर दोहराया है:
स्कूलों की समग्र क्रियान्वयन स्थिति, किराए या अन्य सरकारी भवनों में चल रहे स्कूलों की स्थिति, और अनुच्छेद 275 के तहत स्थापित पुराने स्कूलों के अपग्रेडेशन को लेकर।
समिति के अनुसार, 728 के लक्ष्य के मुकाबले 720 ईएमआरएस को मंजूरी दी जा चुकी है और 722 स्थानों का चयन हो चुका है। लेकिन इनमें से केवल 477 स्कूल ही संचालित हो रहे हैं और इनमें से भी सिर्फ 341 अपने स्थायी भवनों में चल रहे हैं। शेष स्कूल किराए या सरकारी इमारतों में कार्यरत हैं, जहां आवश्यक शैक्षणिक सुविधाओं के अभाव की आशंका जताई गई है।
समिति ने अपनी पिछली रिपोर्टों में 2023-24 और 2024-25 के दौरान ईएमआरएस बजट के कम खर्च होने पर चिंता जताई थी और भूमि की कमी, भर्ती संबंधी दिक्कतें, क्षमता निर्माण की चुनौतियां तथा डिजिटल लर्निंग में कमियों को प्रमुख बाधाओं के रूप में चिह्नित किया था।
मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 में संशोधित 2,471.81 करोड़ रुपये में से 99.98% राशि उपयोग की गई, जबकि 2024-25 में संशोधित 4,748.92 करोड़ रुपये में से 99.34% राशि खर्च हुई।
द वायर ने लिखा कि मंत्रालय ने बताया कि उसने 2024-25 में 67 भूमि विवादों का समाधान किया, अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाया, दैनिक श्रम निगरानी और गुणवत्ता जांच की, और अखिल भारतीय परीक्षा के माध्यम से 9,878 कर्मचारियों की भर्ती की।
हालांकि, समिति ने कहा कि भूमि की उपलब्धता ‘एक गंभीर मुद्दा’ है, जिसे राज्यों के साथ प्राथमिकता पर सुलझाया जाना चाहिए। समिति ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि भविष्य में ईएमआरएस के प्रस्ताव तभी स्वीकार किए जाएं जब राज्य पहले से भूमि उपलब्धता सुनिश्चित करें, और इस पर मंत्रालय से तत्काल विचार-विमर्श तथा अंतिम रिपोर्ट की मांग की।
पुराने ईएमआरएस अपग्रेडेशन पर चिंता
किराए की इमारतों से संचालित ईएमआरएस के मुद्दे पर मंत्रालय ने स्वीकार किया कि यह एक वास्तविक समस्या है और इसके समाधान के लिए स्पष्ट समयसीमा तय किया जाना आवश्यक है।
अनुच्छेद 275 के तहत पहले से स्थापित पुराने ईएमआरएस (प्रति स्कूल 5 करोड़ रुपये की लागत से) की समीक्षा में समिति ने पाया कि कई स्कूलों में चारदीवारी, प्रयोगशाला, खेल सुविधाएं, अतिरिक्त कक्षाएं, स्टाफ क्वार्टर, हॉस्टल और फर्नीचर जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। एक सर्वे में ऐसे 211 स्कूल चिन्हित किए गए, जिनमें से 167 स्कूलों के उन्नयन को उस समय मंजूरी दी गई थी।
मंत्रालय ने अपने जवाब में समिति की चिंताओं को स्वीकार किया और बताया कि 211 में से 192 स्कूलों के उन्नयन प्रस्ताव अब जनजातीय छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सोसाइटी (NESTS) द्वारा स्वीकृत कर दिए गए हैं।
मंत्रालय ने कहा कि बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करने के लिए राज्यों को आवश्यक धनराशि प्रदान की जा चुकी है और आगे की जरूरतों का पता लगाने के लिए एक ‘समग्र आकलन’ किया जा रहा है। साथ ही, नए ईएमआरएस के समान स्तर की फंडिंग प्राप्त करने के लिए वित्त मंत्रालय से योजना भी बनाई जा रही है।
इसके अतिरिक्त, यह भी बताया गया कि राज्यों की समितियों और विद्यालयों को दैनिक निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने में सक्षम बनाने के लिए परिपत्र और दिशानिर्देश जारी किए जाने की योजना है।
इन उपायों का स्वागत करते हुए समिति ने चेतावनी दी कि ‘स्पष्ट समयसीमा के अभाव में सर्वोत्तम इरादे भी अत्यधिक देरी का रूप ले सकते हैं।’
साथ ही समिति ने कहा कि ऐसी प्रणालीगत देरी ईएमआरएस के निर्माण के ‘मूल उद्देश्य को ही असफल’ कर देगी।
समिति ने मंत्रालय से अनुरोध किया है कि पुराने स्कूलों के नवीनीकरण के लिए स्पष्ट समयसीमा निर्धारित की जाए, चल रहे मूल्यांकन को पूरा किया जाए और अंतिम कार्रवाई रिपोर्ट के चरण में आकलन के निष्कर्षों के साथ-साथ समयसीमा की जानकारी भी समिति को उपलब्ध कराई जाए।
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प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : स्क्रॉल
संसद की एक समिति ने जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) की स्थापना में जारी देरी पर जनजातीय कार्य मंत्रालय की कड़ी आलोचना की है।
समिति ने आगाह किया कि यदि राज्यों के लिए पूर्व-शर्तें और स्पष्ट समयसीमाएं तय नहीं की गईं, तो लागत लगातार बढ़ती रहेगी और इन महत्वपूर्ण योजनाओं का मूल उद्देश्य अधूरा रह सकता है।
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी कार्रवाई की समीक्षा पर अपनी रिपोर्ट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि 11 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों की धीमी प्रगति और ईएमआरएस के अधूरे बुनियादी ढांचे पर मंत्रालय के जवाब उसे ‘असंतोषजनक’ लगे। इसी कारण समिति ने इन मुद्दों को लेकर अपनी चार सिफारिशों को दोबारा दोहराने का निर्णय लिया है।
मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि समिति की पहले दी गई 14 सिफारिशों में से 9 को सरकार द्वारा मंज़ूरी मिल गई है, एक सिफारिश को बिना विचार के बंद कर दिया गया है, जबकि जनजातीय संग्रहालयों और ईएमआरएस के विस्तार व अपग्रेडेशन से संबंधित चार सिफारिशों को नई कार्रवाई के लिए दोबारा मंत्रालय को भेजा गया है।
समिति ने 10 राज्यों में 11 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करने के सरकारी निर्णय की सराहना की, ताकि ‘मुख्यधारा के इतिहास में अक्सर उपेक्षित रहे जनजातीय नायकों’ के योगदान को उचित सम्मान मिल सके। हालांकि, समिति ने इस परियोजना की जमीनी प्रगति को ‘धीमी’ बताते हुए चिंता भी जताई।
अब तक केवल तीन संग्रहालयों का उद्घाटन हो पाया है—रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्मारक स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, छिंदवाड़ा में बादल भोई राज्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय और जबलपुर में राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय।
शेष आठ संग्रहालय, जिन्हें 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, गुजरात और मिजोरम में स्थापित किए जाने की मंजूरी दी गई थी, अभी तक पूरे नहीं हो सके हैं। वहीं केरल, मणिपुर और गोवा में स्वीकृत परियोजनाएं अब भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) की तैयारी के चरण में अटकी हुई हैं।
समिति ने पहले निर्देश दिया था कि नवंबर 2025 तक तैयार होने वाले चार संग्रहालय तथा मई 2026 तक पूर्ण होने वाला एक संग्रहालय निर्धारित समयसीमा के भीतर ही पूरे किए जाएं।
लेकिन मंत्रालय की प्रतिक्रिया में केवल यह कहा गया कि भूमि, निविदा, परियोजना प्रबंधन और निर्माण की जिम्मेदारी राज्यों पर है तथा साइट विज़िट और समीक्षा बैठकों जैसे कदम जारी हैं। समिति ने इस उत्तर को अपर्याप्त माना और कहा कि मंत्रालय यह स्पष्ट आश्वासन देने में विफल रहा है कि ये पांचों संग्रहालय निर्धारित समय पर पूरे हो पाएंगे।
ईएमआरएस—जिन्हें 2025-26 के बजट का 47% आवंटित है—के संबंध में समिति ने तीन प्रमुख सिफारिशों को फिर दोहराया है:
स्कूलों की समग्र क्रियान्वयन स्थिति, किराए या अन्य सरकारी भवनों में चल रहे स्कूलों की स्थिति, और अनुच्छेद 275 के तहत स्थापित पुराने स्कूलों के अपग्रेडेशन को लेकर।
समिति के अनुसार, 728 के लक्ष्य के मुकाबले 720 ईएमआरएस को मंजूरी दी जा चुकी है और 722 स्थानों का चयन हो चुका है। लेकिन इनमें से केवल 477 स्कूल ही संचालित हो रहे हैं और इनमें से भी सिर्फ 341 अपने स्थायी भवनों में चल रहे हैं। शेष स्कूल किराए या सरकारी इमारतों में कार्यरत हैं, जहां आवश्यक शैक्षणिक सुविधाओं के अभाव की आशंका जताई गई है।
समिति ने अपनी पिछली रिपोर्टों में 2023-24 और 2024-25 के दौरान ईएमआरएस बजट के कम खर्च होने पर चिंता जताई थी और भूमि की कमी, भर्ती संबंधी दिक्कतें, क्षमता निर्माण की चुनौतियां तथा डिजिटल लर्निंग में कमियों को प्रमुख बाधाओं के रूप में चिह्नित किया था।
मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 में संशोधित 2,471.81 करोड़ रुपये में से 99.98% राशि उपयोग की गई, जबकि 2024-25 में संशोधित 4,748.92 करोड़ रुपये में से 99.34% राशि खर्च हुई।
द वायर ने लिखा कि मंत्रालय ने बताया कि उसने 2024-25 में 67 भूमि विवादों का समाधान किया, अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाया, दैनिक श्रम निगरानी और गुणवत्ता जांच की, और अखिल भारतीय परीक्षा के माध्यम से 9,878 कर्मचारियों की भर्ती की।
हालांकि, समिति ने कहा कि भूमि की उपलब्धता ‘एक गंभीर मुद्दा’ है, जिसे राज्यों के साथ प्राथमिकता पर सुलझाया जाना चाहिए। समिति ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि भविष्य में ईएमआरएस के प्रस्ताव तभी स्वीकार किए जाएं जब राज्य पहले से भूमि उपलब्धता सुनिश्चित करें, और इस पर मंत्रालय से तत्काल विचार-विमर्श तथा अंतिम रिपोर्ट की मांग की।
पुराने ईएमआरएस अपग्रेडेशन पर चिंता
किराए की इमारतों से संचालित ईएमआरएस के मुद्दे पर मंत्रालय ने स्वीकार किया कि यह एक वास्तविक समस्या है और इसके समाधान के लिए स्पष्ट समयसीमा तय किया जाना आवश्यक है।
अनुच्छेद 275 के तहत पहले से स्थापित पुराने ईएमआरएस (प्रति स्कूल 5 करोड़ रुपये की लागत से) की समीक्षा में समिति ने पाया कि कई स्कूलों में चारदीवारी, प्रयोगशाला, खेल सुविधाएं, अतिरिक्त कक्षाएं, स्टाफ क्वार्टर, हॉस्टल और फर्नीचर जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। एक सर्वे में ऐसे 211 स्कूल चिन्हित किए गए, जिनमें से 167 स्कूलों के उन्नयन को उस समय मंजूरी दी गई थी।
मंत्रालय ने अपने जवाब में समिति की चिंताओं को स्वीकार किया और बताया कि 211 में से 192 स्कूलों के उन्नयन प्रस्ताव अब जनजातीय छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सोसाइटी (NESTS) द्वारा स्वीकृत कर दिए गए हैं।
मंत्रालय ने कहा कि बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करने के लिए राज्यों को आवश्यक धनराशि प्रदान की जा चुकी है और आगे की जरूरतों का पता लगाने के लिए एक ‘समग्र आकलन’ किया जा रहा है। साथ ही, नए ईएमआरएस के समान स्तर की फंडिंग प्राप्त करने के लिए वित्त मंत्रालय से योजना भी बनाई जा रही है।
इसके अतिरिक्त, यह भी बताया गया कि राज्यों की समितियों और विद्यालयों को दैनिक निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने में सक्षम बनाने के लिए परिपत्र और दिशानिर्देश जारी किए जाने की योजना है।
इन उपायों का स्वागत करते हुए समिति ने चेतावनी दी कि ‘स्पष्ट समयसीमा के अभाव में सर्वोत्तम इरादे भी अत्यधिक देरी का रूप ले सकते हैं।’
साथ ही समिति ने कहा कि ऐसी प्रणालीगत देरी ईएमआरएस के निर्माण के ‘मूल उद्देश्य को ही असफल’ कर देगी।
समिति ने मंत्रालय से अनुरोध किया है कि पुराने स्कूलों के नवीनीकरण के लिए स्पष्ट समयसीमा निर्धारित की जाए, चल रहे मूल्यांकन को पूरा किया जाए और अंतिम कार्रवाई रिपोर्ट के चरण में आकलन के निष्कर्षों के साथ-साथ समयसीमा की जानकारी भी समिति को उपलब्ध कराई जाए।
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