SIR: यूपी-राजस्थान में बीएलओ की मौत, EC ने जारी किए प्रेरित करने वाले वीडियो

Written by sabrang india | Published on: December 2, 2025
पिछले तीन दिनों में उत्तर प्रदेश से दो और राजस्थान से एक बीएलओ की मौत के मामले सामने आए हैं। उनके परिवार के लोगों ने मौत का कारण एसआईआर संबंधी काम के दबाव को बताया है।


साभार : द हिंदू

पिछले तीन दिनों में उत्तर प्रदेश के दो और राजस्थान के एक बूथ-लेवल ऑफिसर (बीएलओ) की मृत्यु हो गई। उनके परिवारों का कहना है कि जारी मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के दौरान बढ़ते काम के बोझ ने उनकी जान ले ली।

पिछले कुछ महीनों में बीएलओ की मौत के कई मामले सामने आए हैं। विपक्षी दलों ने इन घटनाओं के आधार पर सरकार और चुनाव आयोग पर जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों की स्थिति के प्रति उनकी लापरवाही को लेकर सवाल उठाए हैं।

यूपी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रविवार 30 नवंबर की सुबह यूपी के मुरादाबाद में 46 वर्षीय सर्वेश सिंह ने आत्महत्या कर ली। सिंह ने सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने एसआईआर प्रक्रिया के अत्यधिक दबाव का जिक्र किया और कहा कि उन्हें सौंपे गए काम को पूरा करने के लिए समय की कमी के कारण वह ‘घुटन’ महसूस कर रहे थे। उन्हें 7 अक्टूबर, 2025 को बीएलओ के तौर पर नियुक्त किया गया था।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सर्कल ऑफिसर (ठाकुरद्वारा) आशीष प्रताप सिंह ने कहा, “बीएलओ सर्वेश सिंह ने आत्महत्या कर ली है और एक सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमें लिखा है कि वह बीएलओ ड्यूटी का बोझ नहीं उठा पा रहे थे। उनके शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है।”

इसी तरह का मामला धामपुर में सामने आया, जहां एक बूथ पर तैनात बिजनौर की 56 वर्षीय शोभारानी भी कथित तौर पर एसआईआर के दबाव में आ गईं। शुक्रवार रात 28 नवंबर को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।

उनके पति ने बताया कि वह कुछ समय से बीमार चल रही थीं, फिर भी शुक्रवार देर रात तक एसआईआर फॉर्म ऑनलाइन अपलोड करने का काम करती रहीं। उसी रात उन्हें अचानक सीने में तेज दर्द होने लगा। उन्हें तुरंत मुरादाबाद के अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

जिला कार्यक्रम अधिकारी विमल कुमार चौबे ने कहा कि शोभारानी, जो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी थीं, पर काम से संबंधित किसी प्रकार का दबाव नहीं था।

राजस्थान

राजस्थान के धौलपुर में 40 वर्षीय बीएलओ अनुज गर्ग की रविवार सुबह हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनके परिजनों का कहना है कि वह लगातार देर रात तक काम में जुटे हुए थे।

उनकी बहन वंदना ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “रात 1 बजे भी वह एसआईआर का काम कर रहे थे। अत्यधिक काम के दबाव के कारण वह तनाव में थे और बेचैनी महसूस कर रहे थे। उन्होंने मुझसे चाय मांगी, लेकिन मैं चाय लेकर लौट पाती उससे पहले ही वह अचानक गिर पड़े।”

उनके सुपरवाइज़र लोकेंद्र कुमार क्षोत्रिय ने मीडिया को बताया कि गर्ग अपना काम अच्छी तरह कर रहे थे और अपने क्षेत्र के लगभग 1,100 मतदाताओं में से करीब 80% को कवर कर चुके थे। गर्ग के साथ काम करने वाले एक अन्य बीएलओ ने बताया कि सभी कर्मचारी भारी तनाव में हैं।

सुपरवाइज़र ने कहा, “उन्होंने काम को लेकर कभी शिकायत नहीं की और हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया। हमें भरोसा था कि वह इसे जल्द ही पूरा कर लेंगे। हम नियमित संपर्क में थे और दो दिन पहले एसडीएम ने भी एक बैठक की थी, जिसमें गर्ग ने कहा था कि वह जल्द ही अपना काम समाप्त कर देंगे।”

बीएलओ की मौत के अन्य मामले

ज्ञात हो कि बीते कई हफ्तों से चल रही इस प्रक्रिया के दौरान पहले भी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से बीएलओ द्वारा कथित आत्महत्याओं और विरोध प्रदर्शनों की खबरें सामने आई हैं। कई बीएलओ की अचानक हुई मौतों को भी एसआईआर अभियान से जुड़े तनाव और दबाव से जोड़ा गया है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले महीने उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक प्राइमरी स्कूल शिक्षक विपिन यादव और फतेहपुर के लेखपाल सुधीर कुमार ने आत्महत्या कर ली थी। यादव का मरने से पहले का वीडियो बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने एसडीएम, बीडीओ और लेखपालों पर उन्हें परेशान करने का आरोप लगाया था। उनके भाई का कहना था कि अधिकारी उन पर अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए दबाव बना रहे थे।

कुमार ने 25 नवंबर को अपने विवाह से एक दिन पहले आत्महत्या कर ली थी। बताया गया कि शादी की तैयारियों के कारण वह एसआईआर मीटिंग में शामिल नहीं हो पाए थे। इसके चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया था और एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें फटकार भी लगाई थी। कुमार की बहन का दावा था कि उस अधिकारी का उनके घर आना अत्यंत अपमानजनक था।

पश्चिम बंगाल में 52 वर्षीय एडहॉक शिक्षक और बीएलओ रिंकू तरफदार ने 22 नवंबर को आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने अपनी मौत का कारण एसआईआर अभियान के दौरान पड़ने वाले ‘अमानवीय दबाव’ को बताया था।

तरफदार की मौत से कुछ दिन पहले उत्तर बंगाल में एक और बीएलओ ने उसी हफ्ते की शुरुआत में इसी तरह के हालात में आत्महत्या की थी। इससे यह आशंका बढ़ गई है कि एसआईआर प्रक्रिया जमीनी स्तर के कर्मचारियों को मानसिक और शारीरिक रूप से टूटने की कगार पर पहुंचा रही है।

चुनाव आयोग की चुप्पी

बीएलओ जिस दबाव में काम कर रहे हैं उसकी लगातार आलोचना के बावजूद, और एसआईआर में लगे सरकारी कर्मचारियों की आत्महत्या जैसी घटनाओं के बावजूद, चुनाव आयोग ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि इस प्रक्रिया का बीएलओ पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा है।

हालांकि मौतों पर कोई टिप्पणी किए बिना, चुनाव आयोग ने इस बात पर अधिक जोर दिया है कि बीएलओ काम के दबाव से कैसे निपट रहे हैं, कैसे ब्रेक ले रहे हैं और अपने कार्य को पूरा करने के लिए खुद को प्रेरित कर रहे हैं।

रविवार को चुनाव आयोग ने दो वीडियो जारी किए, जिनमें केरल के बीएलओ एसआईआर के काम के दौरान ब्रेक लेते और डांस करते नजर आ रहे हैं।

आयोग ने तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के बीएलओ की ‘प्रेरणादायक’ कहानियों पर आधारित एक वीडियो सीरीज़ भी जारी की है, जिसमें दिखाया गया है कि वे अपनी चुनौतियों के बावजूद एसआईआर की समयसीमा को पूरा करने में जुटे हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने चुनाव आयोग पर ‘खून से सने हाथ’ होने का आरोप लगाया था। हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने अगस्त में जारी प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में चल रहे एसआईआर के दौरान बीएलओ का वेतन बढ़ा दिया गया था।

इसके बाद टीएमसी ने आरोप लगाया कि आयोग चार महीने पुरानी विज्ञप्ति का इस्तेमाल कर फर्जी उत्साह पैदा कर रहा है और खुद की छवि चमका रहा है।

इसी बीच रविवार को चुनाव आयोग ने घोषणा की कि एसआईआर प्रक्रिया की समयसीमा 4 दिसंबर से बढ़ाकर 12 दिसंबर कर दी गई है।

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