राजस्थान पुलिस ने कोटा में कथित जबरन धर्म परिवर्तन के लिए दो ईसाई मिशनरियों पर मामला दर्ज किया

Written by sabrang india | Published on: November 22, 2025
यह केस BNS की धारा 299 के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और राजस्थान धर्म परिवर्तन निषेध एक्ट, 2025 की धारा 3 और 5 के तहत दर्ज किया गया है। राज्य सरकार द्वारा 29 अक्टूबर, 2025 को नोटिफाई किया गया यह कानून धर्म परिवर्तन को गैर-जमानती अपराध बनाता है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।



कोटा में पुलिस ने हाल ही में लागू हुए राजस्थान प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलिजन एक्ट, 2025 के तहत कथित धर्म परिवर्तन के लिए दो ईसाई मिशनरियों के खिलाफ केस दर्ज किया है। आरोपी, दिल्ली के चांदी वर्गीस और कोटा के अरुण जॉन को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के अधिकारियों की शिकायत के बाद हिरासत में लिया गया।

द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, कोटा के बोरखेड़ा पुलिस स्टेशन ऑफिसर देवेश भारद्वाज ने कहा कि शिकायत में आरोप लगाया गया है कि मिशनरियों ने 4 से 6 नवंबर के बीच कैनाल रोड पर बीरशेबा चर्च में लोगों को स्प्रिचुएल डिस्कोर्स के बहाने बुलाया और कथित तौर पर उनका धर्म परिवर्तन कराया। उन्होंने कहा, "कुछ वीडियो और दूसरे सबूत भी पेश किए गए और इस कार्यक्रम का सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण किया गया।"

यह केस BNS की धारा 299 के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और राजस्थान धर्म परिवर्तन निषेध एक्ट, 2025 की धारा 3 और 5 के तहत दर्ज किया गया है। राज्य सरकार द्वारा 29 अक्टूबर, 2025 को नोटिफाई किया गया यह कानून धर्म परिवर्तन को गैर-जमानती अपराध बनाता है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।

ज्ञात हो कि राजस्थान में ईसाइयों के खिलाफ जो शुरुआत में केवल कुछ धमकियाँ थीं, वे अब सुनियोजित उत्पीड़न में बदल गईं, जहां दक्षिणपंथी ताकतें और पुलिस एक साथ मिलकर धार्मिक नियंत्रण लागू कर रहे हैं।

सितंबर 2025 में भारत के ईसाई समुदाय के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न और नफरत-आधारित हमलों में तेज़ी आई है। ये घटनाएं विशेष रूप से राजस्थान में अधिक देखी गईं। जो कुछ छापों और पुलिस चेतावनियों के रूप में शुरू हुआ था, वह जल्द ही एक संगठित उत्पीड़न अभियान में बदल गया, जिसे “धर्मांतरण-विरोधी निगरानी” के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह कोई संयोग नहीं था।

हाल ही में पेश किए गए राजस्थान धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 के बाद, विश्व हिंदू परिषद (विहिप), बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे दक्षिणपंथी संगठन अत्यंत सक्रिय हो गए। कई बार ये संगठन पुलिस से पहले या उसके साथ मिलकर कार्रवाई करते देखे गए।

चर्चों, हॉस्टलों और प्रार्थना सभाओं पर छापे मारे गए; पादरियों को हिरासत में लिया गया; अनुयायियों को यह लिखने के लिए मजबूर किया गया कि वे न तो प्रार्थना सभाओं में शामिल होंगे और न किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि में भाग लेंगे — और यह सब “धर्मांतरण की जांच” के नाम पर हुआ।

सोशल मीडिया पर झूठे दावे किए गए कि कहीं “जबरन धर्मांतरण” या “धार्मिक गड़बड़ी” हो रही है। इसके बाद तथाकथित सतर्कता समूह सक्रिय हो गए और पुलिस ने हस्तक्षेप किया — लेकिन कार्रवाई हमलावरों के बजाय उन पर की गई जिन पर दूसरों का धर्म बदलवाने का आरोप लगाया गया था।

अलवर, डूंगरपुर और जयपुर सहित कई ज़िलों में ईसाइयों को प्रताड़ित करने वाले लोग पुलिस और अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर काम करते पाए गए, जो स्पष्ट रूप से मिलीभगत को दर्शाता है। नीचे दिए गए विवरण इस पूरे घटनाक्रम की कड़ी को उजागर करते हैं — अलवर और डूंगरपुर में हुई शुरुआती छापेमारी से लेकर जयपुर के प्रताप नगर में सामने आई हिंसा तक। यह सिलसिला इस बात की ओर संकेत करता है कि किस तरह एक पूरा महीना धार्मिक गतिविधियों पर संस्थागत निगरानी और समुदाय-विशेष के सामाजिक बहिष्कार में तब्दील हो गया।

गेलोटा, अलवर (एमआईए थाना, अलवर ज़िला)

3 सितंबर को अलवर जिले के गेलोटा (उद्योग नगर क्षेत्र) में बच्चों के एक छात्रावास पर पुलिस ने छापा मारा। यह छात्रावास एक मिशनरी द्वारा संचालित बताया गया, जहाँ लगभग 25 गरीब बच्चे रह रहे थे। कार्रवाई विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यकर्ता की शिकायत पर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वहाँ “धर्मांतरण” गतिविधि चल रही है।

पुलिस ने कुछ धार्मिक साहित्य जब्त किया और प्राथमिकी (FIR) दर्ज की। छात्रावास के दो कर्मचारियों — शिक्षक अमृत और सोनू राय (कुछ रिपोर्टों में सोनू सिंह या गरासिया) — को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। नागरिक समाज संगठनों का कहना है कि यह राजस्थान में प्रस्तावित धर्मांतरण-विरोधी विधेयक के बाद उत्पीड़न की श्रृंखला की पहली कड़ी है। स्थानीय स्तर पर संघ परिवार से जुड़े संगठनों (विहिप और बजरंग दल) द्वारा प्रशासन पर दबाव डालने की भी खबरें हैं।

खेतोलाई गाँव (भभरू थाना), कोटपुतली-बहरोड़ ज़िला

9 सितंबर को, विधानसभा में धर्मांतरण-विरोधी विधेयक पेश होने के लगभग एक घंटे बाद, पुलिस अधिकारी खेतोलाई गाँव में विक्रम और राजेंद्र कनव के घर पहुँचे। दोनों भाई नियमित रूप से अपने घर पर सत्संग और प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते हैं।

पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी कि वे अपने सत्संग में बाहरी लोगों को शामिल न करें। इसके बाद दोनों को थाने ले जाकर पूछताछ की गई और एक लिखित प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए, जिसमें यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि वे आगे सत्संग नहीं करेंगे।

इस घटना से स्पष्ट होता है कि स्थानीय संघ परिवार के कार्यकर्ता (जिन्हें “श्रीराम समिति” कहा गया है) लगातार इस परिवार को धमकाते रहे हैं। इस मामले में पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायतें दी गई हैं, और पीयूसीएल जैसे संगठनों को भी इसकी जानकारी दी गई है।

पाओटा (प्रगपुरा थाना), कोटपुतली-बहरोड़ ज़िला

9 सितंबर को पाओटा में भी इसी तरह की घटना हुई। अनुयायी गजानंद कुलदीप ने बताया कि बिल पारित होने के अगले दिन सुबह थानेदार ने उन्हें बुलाकर चेतावनी दी कि यदि उन्होंने फिर से प्रार्थना सभा या भोजन आयोजन किया, या बाहर के लोगों को बुलाया, तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। उन्हें एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर किया गया।

पीयूसीएल ने इस शिकायत को पुलिस अधीक्षक को भेजा और इसे बिल पारित होने के बाद बढ़ते उत्पीड़न का उदाहरण बताया।

झेलाना, बिचीवाड़ा, डूंगरपुर ज़िला

10 सितंबर को स्थानीय हिंदू संगठनों और एक “संत समाज” समूह ने एक अल्पसंख्यक संचालित स्कूल और उसके चर्च के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। आरोप लगाया गया कि यह स्कूल आदिवासी छात्रों और उनके अभिभावकों का धर्मांतरण कर रहा है।

पुलिस बड़ी संख्या में मौके पर पहुँची, लेकिन किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। स्कूल ने सभी आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह एक अल्पसंख्यक संचालित शैक्षिक संस्थान है, जहाँ कोई धर्मांतरण गतिविधि नहीं होती। नागरिक समाज ने इसे एक सांप्रदायिक रूप से प्रेरित आंदोलन बताया।

इसी दिन, डूंगरपुर में एक आदिवासी महिला आयोजक — जो स्थानीय मज़दूर संगठन से जुड़ी हैं — को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने रास्ते में रोककर धमकाया। मकान मालिक ने भी उसे घर खाली करने की धमकी दी। उसने इस उत्पीड़न को “मनोबल तोड़ने वाला अनुभव” बताया और शिकायत दर्ज करने की तैयारी की।

सेंट पॉल्स हॉस्टल स्कूल, पाटेला, डूंगरपुर शहर

11 सितंबर को, वर्ष 2023 से लंबित शिकायतों और स्वास्थ्य निरीक्षणों के आधार पर, जिला प्रशासन ने ABVP सहित अन्य समूहों के दबाव में हॉस्टल/स्कूल को बंद करने का आदेश जारी किया। लगभग 230 बच्चों को बाल कल्याण समिति के सहयोग से उनके परिवारों के पास भेज दिया गया।

स्कूल प्रशासन ने कहा कि यह बंदी दक्षिणपंथी छात्र समूहों के दबाव का परिणाम है। अब स्कूल कानूनी रास्तों के ज़रिए संचालन बहाल करने की कोशिश कर रहा है।

चक-6पी हॉस्टल स्कूल, अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर ज़िला)

16 सितंबर की रात को अनाथ बच्चों के लिए संचालित एक हॉस्टल पर हमला हुआ। छात्र और शिक्षक इस अचानक हुए हमले से भयभीत हो गए। इसे जिले में ईसाई संस्थानों पर बढ़ते हमलों की श्रृंखला का हिस्सा माना जा रहा है।

वार्ड क्रमांक 14, अनूपगढ़ थाना (श्रीगंगानगर ज़िला)

17 सितंबर को एक व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि इलाके में “मिशनरी गतिविधियों” के तहत उसका धर्म परिवर्तन कराया गया है। विश्व हिंदू परिषद ने इस शिकायत का समर्थन किया।

पुलिस ने मिशनरी समूह से जुड़े पोलस बरजाओ और आर्यन नामक दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और मामले की जांच शुरू की। तीसरा व्यक्ति (मकान मालिक) फरार बताया गया। दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

प्रताप नगर, जयपुर (सेक्टर 08/82/625)

21 सितंबर को लगभग 40–50 बजरंग दल कार्यकर्ता एक निजी घर में घुस गए, जहाँ पादरी बोबास डैनियल लगभग 15–26 लोगों के साथ प्रार्थना कर रहे थे। हमलावरों ने दरवाज़े बंद कर दिए, सामान तोड़ दिया और श्रद्धालुओं पर हमला किया।

एक गर्भवती महिला और मकान मालकिन सहित पड़ोसियों ने बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी पीटा गया। आठ लोग घायल हुए। पुलिस ने प्राथमिकी तभी दर्ज की जब समुदाय के लोगों ने कड़ा विरोध किया। पुलिस की देरी और हमलावरों की गिरफ्तारी न होने पर स्थानीय लोगों ने चिंता जताई।

23 सितंबर 2025 – हिंदुस्तान बाइबल इंस्टीट्यूट (HBI), प्रताप नगर, जयपुर

HBI मुख्यालय में दो अतिथि कर्मचारियों के आगमन के बाद, लगभग 50 बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने परिसर को घेर लिया। उन्होंने “जबरन धर्मांतरण” के आरोप लगाकर संस्थान को निशाना बनाया।

पुलिस ने आगंतुकों और कुछ कर्मचारियों को थाने ले जाकर उनके मोबाइल, पहचान-पत्र और संपत्ति दस्तावेज़ जब्त कर लिए। नागरिक समाज के हस्तक्षेप के बाद उन्हें छोड़ा गया, लेकिन कुछ दस्तावेज़ अब भी नहीं लौटाए गए।

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