मानवाधिकार संगठनों की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट लद्दाख की मांगों का समर्थन करती है

Written by sabrang india | Published on: October 16, 2025
मानवाधिकार संगठनों द्वारा हाल ही में किए गए एक फैक्ट-फाइंडिंग मिशन के अनुसार, भारत सरकार को लद्दाख की चारों मांगों को पूरा करना चाहिए, जिनमें छठी अनुसूची का कार्यान्वयन भी शामिल है, क्योंकि यह पारिस्थितिक अस्तित्व, सांस्कृतिक गरिमा और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


साभार : पीटीआई (स्क्रीनशॉट)

लद्दाख के प्रमुख राजनीतिक संगठन — करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) और लेह एपेक्स बॉडी — ने 14 अक्टूबर को कहा कि वे राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के कार्यान्वयन सहित अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखेंगे। हाल ही में मानवाधिकार समूहों, जैसे नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (NAPM) आदि द्वारा प्रस्तुत फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट ने इन प्रदर्शनों के दौरान लद्दाखवासियों द्वारा उठाई गई मांगों का समर्थन किया है।

फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स और “हम भारत के लोग” (एक गांधीवादी संगठन) के प्रतिनिधिमंडल द्वारा तैयार की गई थी, जिन्होंने 10 से 14 सितंबर के बीच लद्दाख का दौरा किया। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि भारत सरकार के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह लद्दाख के लोगों की सभी चारों मांगों को पूरा करे।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, लद्दाख के लोगों की एक प्रमुख मांग है कि क्षेत्र में छठी अनुसूची लागू की जाए। दूसरी मांग है राज्य का दर्जा, जिससे लद्दाख की मुख्य रूप से जनजातीय आबादी को स्थानीय शासन में अधिक भागीदारी मिल सके। तीसरी मांग है कि लद्दाख का अपना लोक सेवा आयोग (Public Service Commission) स्थापित किया जाए, ताकि दिल्ली से नियुक्त प्रशासकों के बजाय स्थानीय लोग प्रशासनिक निर्णय ले सकें। चौथी मांग है कि केंद्र सरकार दो लोकसभा सीटें आवंटित करे — एक करगिल और दूसरी लेह के लिए — ताकि क्षेत्र को पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सके।

इन मांगों के अलावा, लद्दाखवासी अब यह भी मांग कर रहे हैं कि 24 सितंबर को लेह में हुई गोलीबारी की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए। इस घटना में चार लोगों की मौत हुई और कम से कम 80 लोग घायल हुए। इसके साथ ही जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को तत्काल रिहा किया जाए, जिन्हें 26 सितंबर से हिरासत में रखा गया है। वे यह भी मांग कर रहे हैं कि गिरफ्तार किए गए अन्य 45 लोगों को भी रिहा किया जाए।

रिपोर्ट के अनुसार, इस आंदोलन की चार प्रमुख मांगें “सिर्फ राजनीतिक बातचीत के मुद्दे नहीं हैं, बल्कि ये लद्दाख के भविष्य के लिए मौलिक और अपरिहार्य स्तंभ हैं, ताकि वह एक विशिष्ट सांस्कृतिक और पारिस्थितिक इकाई के रूप में अस्तित्व बनाए रख सके।”

रिपोर्ट में कहा गया कि केंद्र सरकार को इन मांगों को पूरा करना चाहिए, क्योंकि 2019 में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A हटाए जाने के बाद “नियंत्रण समाप्त होते ही बाहरी हस्तक्षेप और शोषण शुरू हो गया है।”

रिपोर्ट में कहा गया, “लद्दाख के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन — जैसे हिमनद, जल स्रोत और विशाल खनिज भंडार (ग्रेनाइट, चूना पत्थर और यहां तक कि यूरेनियम) — बाहरी व्यावसायिक हितों के लिए अंधाधुंध शोषण हेतु खोल दिए गए हैं, और इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की भागीदारी नगण्य या बिलकुल नहीं है।”

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स और हम भारत के लोग के प्रतिनिधिमंडल ने इस फैक्ट-फाइंडिंग अभियान के तहत लद्दाख का दौरा किया। इस दल में देशभर के कार्यकर्ता, शोधकर्ता और नागरिक शामिल थे। “लद्दाख को समझना” नामक इस अभियान में विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोगों और स्थानीय नेताओं से बातचीत की गई। प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला, कुलगाम से माकपा विधायक यूसुफ तारिगामी, KDA के सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई, लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष और लद्दाख बौद्ध संघ के प्रमुख छेरिंग दोरजे लाकारुक सहित कई अन्य से मुलाकात की।

रिपोर्ट में बताया गया है कि लाकारुक के अनुसार, अनुच्छेद 370 को कमजोर किया जाना लद्दाख के मौजूदा संकट का मुख्य कारण है। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि हालांकि लद्दाख के लोग कभी अपनी प्रगति के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा आवश्यक मानते थे और 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर खुशी मनाई थी, लेकिन अब लद्दाखवासियों को एहसास हो गया है कि अनुच्छेद 370 ने “उनकी जमीन, संसाधनों, नौकरियों और आजीविका के लिए एक आवश्यक सुरक्षा कवच का काम किया था।”

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पांच नए जिलों — शाम, नुब्रा, चांगथांग, ज़ांस्कर और द्रास — के निर्माण की घोषणा “बेहद चिंताजनक” थी और इसने “पूरे क्षेत्र में खलबली मचा दी।”

रिपोर्ट के अनुसार, “हालांकि इसे सतही तौर पर बेहतर प्रशासनिक सुधार के रूप में पेश किया गया है, लेकिन सभी वर्गों के स्थानीय लोग इसे एक रणनीतिक और पूर्वनियोजित चाल मानते हैं — जिसका उद्देश्य क्षेत्र में अराजकता फैलाना, संसाधनों तक कॉर्पोरेट पहुंच बढ़ाना और परिसीमन प्रक्रियाओं के जरिए क्षेत्र की जनसांख्यिकी में बदलाव लाना है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि चांगथांग (दुनिया के सबसे ऊंचे चरागाहों में से एक) में, जहां केंद्र सरकार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की योजना बना रही है, प्रस्तावित सौर पार्क और खनन परियोजनाएं अन्य क्षेत्रों से हजारों श्रमिकों को लाएंगी। रिपोर्ट के अनुसार, ये श्रमिक अंततः स्थायी निवास का दर्जा प्राप्त कर लेंगे, जिससे क्षेत्र की “जनसांख्यिकीय रूपरेखा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व” स्थायी रूप से बदल जाएगा।

रिपोर्ट ने चेताया, “इसे बहुत उचित कारणों से ‘जनसांख्यिकीय भीड़’ और ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में देखा जा रहा है — एक व्यवस्थित प्रक्रिया जो अंततः मूल निवासी पहचान, परंपराओं और आजीविका को कमजोर कर देगी और छठी अनुसूची के तहत संरक्षण की मांग को स्थायी रूप से कमजोर कर देगी, जो इस क्षेत्र की विशिष्ट जनजातीय आबादी पर आधारित है।”

रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला, “लद्दाख के लोगों की मांगें न्यायसंगत, आवश्यक, संवैधानिक रूप से ठोस और अत्यंत जरूरी हैं। उनकी लड़ाई पारिस्थितिक अस्तित्व, सांस्कृतिक गरिमा और भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत लोकतांत्रिक तथा संघीय अधिकारों की लड़ाई है।”

24 सितंबर को लेह में हुई गोलीबारी “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” थी, क्योंकि लद्दाखियों का विरोध शांतिपूर्ण था। मानवाधिकार संगठनों के सदस्यों ने 4 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी करते हुए यह बात कही।

डॉ. गुंजन जैन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पिछले चार वर्षों से लद्दाख के लोग अपनी मांगें शांतिपूर्ण तरीके से उठा रहे हैं।”

KDA के सदस्य सज्जाद कारगिली भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि लद्दाख के साथ मणिपुर जैसा ही व्यवहार किया जा रहा है। इसके अलावा, लद्दाख में अभी तक कोई लोक सेवा आयोग नहीं है। उन्होंने कहा कि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लद्दाख में बेरोजगारी का स्तर 28% बढ़ गया है।

कारगिली ने कहा, “यह सिर्फ बेरोजगारी दर नहीं, बल्कि हताशा का स्तर है। यह लद्दाख और केंद्र सरकार के बीच विश्वास की कमी का प्रतीक है — यह विश्वासघात का स्तर है।”

उन्होंने आगे कहा, “बंदूकों के जरिए राष्ट्रवाद सिखाने की सरकार की यह व्यवस्था दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। यह गांधी की धरती है... सरकार को यह समझना होगा। हम शांतिपूर्वक अपनी आवाज़ उठाते रहेंगे।”

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