वकीलों का मानना है कि संजीव सान्याल द्वारा देश की न्यायिक प्रणाली और कानूनी ढांचे को विकसित भारत की राह में "सबसे बड़ी बाधा" बताने के लिए उन्हें फटकार लगाई जानी चाहिए।

साभार : आईटीजी (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट के दो वकीलों ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से अनुरोध किया है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दें।
दरअसल, हाल ही में संजीव सान्याल ने बयान दिया था कि भारतीय न्यायपालिका, वर्ष 2047 तक भारत को 'विकसित राष्ट्र' बनाने की भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'विकसित भारत' के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बन रही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुरोध सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व सचिव अधिवक्ता रोहित पांडे और एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता उज्ज्वल गौड़ द्वारा किया गया है।
गौरतलब है कि न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत, किसी निजी व्यक्ति द्वारा अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वकीलों का मानना है कि संजीव सान्याल द्वारा देश की न्यायिक प्रणाली और कानूनी ढांचे को विकसित भारत की राह में "सबसे बड़ी बाधा" बताने के लिए उन्हें फटकार लगाई जानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 20 सितंबर को आयोजित न्याय निर्माण 2025 सम्मेलन में संबोधित करते हुए संजीव सान्याल ने कहा था, "भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए प्रभावी रूप से 20 से 25 वर्षों का समय मिला है।"
उन्होंने आगे कहा, "मेरे विचार से, न्यायिक प्रणाली और कानूनी ढांचा - विशेष रूप से न्यायिक व्यवस्था - वर्तमान में भारत के तेजी से विकास और 'विकसित भारत' के लक्ष्य की दिशा में सबसे बड़ी बाधा बन चुके हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने विवादों के धीमे निपटारे और अनुबंधों को समय पर लागू करने या न्याय प्रदान करने में न्यायपालिका की असमर्थता को प्रमुख समस्याओं के रूप में रेखांकित किया। उनका कहना था कि ये खामियां नीति निर्माताओं को बार-बार नियमों में अनावश्यक बदलाव करने के लिए बाध्य करती हैं।
अवमानना याचिका से संबंधित पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने सान्याल की न्यायपालिका पर की गई अन्य टिप्पणियों - जिनमें न्यायाधीशों की लंबी छुट्टियों का उल्लेख भी शामिल है - को भी रेखांकित किया है।
सान्याल ने कथित रूप से टिप्पणी की थी, "न्यायपालिका भी राज्य की अन्य शाखाओं की तरह एक सार्वजनिक सेवा है। कल्पना कीजिए, यदि डॉक्टर यह तय करें कि वे गर्मी, दशहरा और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान अस्पताल बंद रखेंगे... तो क्या यह स्वीकार्य होगा? फिर अदालतों के लिए यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है?"
अटॉर्नी जनरल को भेजे गए पत्र में यह भी जिक्र किया गया है कि सान्याल ने कानूनी पेशे की तुलना "स्तरीकरण वाली जाति व्यवस्था जैसे मध्ययुगीन ढांचे" से की। उन्होंने न केवल वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अधिवक्ताओं की भूमिका पर सवाल उठाए, बल्कि यहां तक कहा कि अदालत में मुकदमे की पैरवी के लिए कानून की डिग्री अनिवार्य होने की आवश्यकता पर भी सवाल किया।
पत्र में आगे कहा गया है कि, "हालांकि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायिक प्रक्रिया की सम्मानजनक और रचनात्मक आलोचना न केवल स्वीकार्य है, बल्कि आवश्यक भी मानी जाती है, लेकिन उपरोक्त टिप्पणियां-विशेष रूप से न्यायपालिका को राष्ट्रीय प्रगति की 'सबसे बड़ी बाधा' कहना और बार को 'मध्ययुगीन संघ' बताकर खारिज करना-पूरे न्यायिक तंत्र पर एक व्यापक और अस्वीकार्य हमला लगता है।"
मालूम हो कि अपने विवादास्पद बयानों के चलते अक्सर सुर्खियों में रहने वाले संजीव सान्याल हाल ही में एक ऑनलाइन विवाद में उलझ गए थे। इस महीने की शुरुआत में, उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में अमेरिका में चार्ली किर्क की हत्या के बाद पैदा हुई राजनीतिक तनाव की तुलना अमेरिकी गृहयुद्ध से पहले के दौर से कर दी, जिससे विवाद खड़ा हो गया।
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साभार : आईटीजी (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट के दो वकीलों ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से अनुरोध किया है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दें।
दरअसल, हाल ही में संजीव सान्याल ने बयान दिया था कि भारतीय न्यायपालिका, वर्ष 2047 तक भारत को 'विकसित राष्ट्र' बनाने की भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'विकसित भारत' के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बन रही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुरोध सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व सचिव अधिवक्ता रोहित पांडे और एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता उज्ज्वल गौड़ द्वारा किया गया है।
गौरतलब है कि न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत, किसी निजी व्यक्ति द्वारा अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वकीलों का मानना है कि संजीव सान्याल द्वारा देश की न्यायिक प्रणाली और कानूनी ढांचे को विकसित भारत की राह में "सबसे बड़ी बाधा" बताने के लिए उन्हें फटकार लगाई जानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 20 सितंबर को आयोजित न्याय निर्माण 2025 सम्मेलन में संबोधित करते हुए संजीव सान्याल ने कहा था, "भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए प्रभावी रूप से 20 से 25 वर्षों का समय मिला है।"
उन्होंने आगे कहा, "मेरे विचार से, न्यायिक प्रणाली और कानूनी ढांचा - विशेष रूप से न्यायिक व्यवस्था - वर्तमान में भारत के तेजी से विकास और 'विकसित भारत' के लक्ष्य की दिशा में सबसे बड़ी बाधा बन चुके हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने विवादों के धीमे निपटारे और अनुबंधों को समय पर लागू करने या न्याय प्रदान करने में न्यायपालिका की असमर्थता को प्रमुख समस्याओं के रूप में रेखांकित किया। उनका कहना था कि ये खामियां नीति निर्माताओं को बार-बार नियमों में अनावश्यक बदलाव करने के लिए बाध्य करती हैं।
अवमानना याचिका से संबंधित पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने सान्याल की न्यायपालिका पर की गई अन्य टिप्पणियों - जिनमें न्यायाधीशों की लंबी छुट्टियों का उल्लेख भी शामिल है - को भी रेखांकित किया है।
सान्याल ने कथित रूप से टिप्पणी की थी, "न्यायपालिका भी राज्य की अन्य शाखाओं की तरह एक सार्वजनिक सेवा है। कल्पना कीजिए, यदि डॉक्टर यह तय करें कि वे गर्मी, दशहरा और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान अस्पताल बंद रखेंगे... तो क्या यह स्वीकार्य होगा? फिर अदालतों के लिए यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है?"
अटॉर्नी जनरल को भेजे गए पत्र में यह भी जिक्र किया गया है कि सान्याल ने कानूनी पेशे की तुलना "स्तरीकरण वाली जाति व्यवस्था जैसे मध्ययुगीन ढांचे" से की। उन्होंने न केवल वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अधिवक्ताओं की भूमिका पर सवाल उठाए, बल्कि यहां तक कहा कि अदालत में मुकदमे की पैरवी के लिए कानून की डिग्री अनिवार्य होने की आवश्यकता पर भी सवाल किया।
पत्र में आगे कहा गया है कि, "हालांकि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायिक प्रक्रिया की सम्मानजनक और रचनात्मक आलोचना न केवल स्वीकार्य है, बल्कि आवश्यक भी मानी जाती है, लेकिन उपरोक्त टिप्पणियां-विशेष रूप से न्यायपालिका को राष्ट्रीय प्रगति की 'सबसे बड़ी बाधा' कहना और बार को 'मध्ययुगीन संघ' बताकर खारिज करना-पूरे न्यायिक तंत्र पर एक व्यापक और अस्वीकार्य हमला लगता है।"
मालूम हो कि अपने विवादास्पद बयानों के चलते अक्सर सुर्खियों में रहने वाले संजीव सान्याल हाल ही में एक ऑनलाइन विवाद में उलझ गए थे। इस महीने की शुरुआत में, उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में अमेरिका में चार्ली किर्क की हत्या के बाद पैदा हुई राजनीतिक तनाव की तुलना अमेरिकी गृहयुद्ध से पहले के दौर से कर दी, जिससे विवाद खड़ा हो गया।
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