महीनों तक उत्पीड़न के बाद पुलिस अधिकारी बनने के चाह रखने वाली अहमदाबाद की 15 वर्षीय सानिया अंसारी ने मकान खरीदने के विवाद को लेकर आत्महत्या कर ली। उसकी मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं और यह उजागर किया है कि किस तरह गुजरात के अशांत क्षेत्र अधिनियम (Disturbed Areas Act) का कथित तौर पर मुस्लिम परिवारों को हाशिए पर डालने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।

15 वर्षीय सानिया अंसारी ने 9 अगस्त, 2025 को अहमदाबाद के गोमतीपुर में आत्महत्या कर ली। उसने एक सुसाइड नोट लिखा है। वह इस नोट के जरिए एक शोकाकुल परिवार और सांप्रदायिक भेदभाव की भयावह वास्तविकताओं से जूझता समुदाय छोड़ गईं। उसकी मृत्यु ने गुजरात अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1991 के लागू होने और कथित दुरुपयोग पर चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं, जो मूल रूप से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए बनाया गया एक कानून था।
यह मुश्किल अक्टूबर 2024 में शुरू हुई, जब सानिया की मां शाहजहां बानू खोसरो ने गोमतीपुर में एक हिंदू पड़ोसी सुमन सोनावड़े से 15.5 लाख रुपये में एक मकान खरीदा। दिसंबर तक पूरा भुगतान हो गया था, लेकिन औपचारिक हस्तांतरण से पहले ही सोनावड़े के पति का निधन हो गया।
पति के निधन के कुछ समय बाद संपत्ति हस्तांतरित करने के बजाय, सोनावड़े परिवार ने कथित तौर पर घर खाली करने से इनकार कर दिया। सुमन के बेटे दिनेश सोनावड़े और परिवार के अन्य सदस्यों ने गुजरात के अशांत क्षेत्र अधिनियम का हवाला देते हुए, लेन-देन रद्द करने की धमकी देते हुए, अंसारी परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सोनवड़े के बेटे ने परिवार को धमकाना शुरू कर दिया और अशांत क्षेत्र अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि वह इस सौदे को रद्द कर देगा। जो एक कानूनी लेन-देन होना चाहिए था, वह सांप्रदायिक और कानूनी दलदल में बदल गया।
सांप्रदायिक भेदभाव के हथियार के रूप में कानून: अशांत क्षेत्र अधिनियम
गुजरात में अशांत क्षेत्र अधिनियम (Gujarat Disturbed Areas Act) को पहली बार 1986 में लागू किया गया था, जिसे बाद में 1991 और 2019 में और सख्त बनाया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य दंगा प्रभावित या साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में संपत्ति की जबरन या मजबूरी में बिक्री को रोकना है। यह अंतर-धार्मिक संपत्ति लेनदेन के लिए जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति अनिवार्य करता है।
वास्तव में, यह अधिनियम कई बार मुस्लिम समुदाय के लोगों को हिंदू-बहुल इलाकों में बसने से रोकने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल होता है जिससे ghettoisation (एक समुदाय विशेष का सीमित इलाकों में सिमट जाना) और सांप्रदायिक विभाजन और गहराता है।
इस मामले पर नजर रख रहे सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी ने The Wire से बातचीत में कहा, "जो कानून कमजोर परिवारों की सुरक्षा के लिए बना था, वही अब उनके खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहा है।" उन्होंने आगे कहा, "यह कानून मुसलमानों को साफ संदेश देता है कि तुम्हारे पास पैसा हो सकता है, लेकिन यह तुम्हारी मर्जी नहीं कि तुम कहां रहोगे।"
पृष्ठभूमि
7 अगस्त को विवाद हिंसक रूप ले लिया। आरोप है कि सोनावड़े परिवार के सदस्य अंसारी परिवार के घर जबरन घुसे और उन पर हमला किया। सानिया को बाल पकड़कर घसीटा गया और उसे पीटा गया। उसके भाई मोहम्मद हुसैन को सिर में चोटें आईं, जबकि सानिया गंभीर रूप से जख्मी हो गई।
सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयानों के बावजूद, पुलिस ने शुरू में केवल एक व्यक्ति मानव सोनावड़े के खिलाफ मामला दर्ज किया। मानव को अगली ही दिन जमानत मिल गई।
सानिया की बहन रिफ़ात जहां ने The Wire से बात करते हुए कहा, "सानिया ने खुदकुशी कर ली क्योंकि वह किसी के हमारे लिए मदद करने या हमें बचाने का इंतजार करती रही।"
दो दिन बाद, सानिया ने एक आत्महत्या नोट छोड़ा जिसमें चार व्यक्तियों के नाम थे। उसने लिखा कि उन्होंने उसके परिवार से पैसे ले लिए थे लेकिन उन्हें मकान नहीं दिया और महीनों तक उनका उत्पीड़न करते रहे।
सानिया ने लिखा, "मेरे घर में इनकी वजह से 10 महीने से कोई खुशी नहीं है, सिर्फ रोना-धोना और लड़ाई-झगड़ा चलता रहा है।"
न्याय में देरी और पुलिस की उदासीनता
परिवार ने आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस ने आत्महत्या का नोट और वीडियो सबूत होने के बावजूद FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया। पुलिस अधिकारियों ने शुरुआत में इस मौत को “दुर्घटना” बताया और नोट की फोरेंसिक जांच की मांग की। The Wire के अनुसार, पुलिस कमिश्नर जी.एस. मलिक के हस्तक्षेप के बाद ही आत्महत्या के उकसावे और अन्य आरोपों के तहत छह व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। हालांकि, महीनों तक चले उत्पीड़न और हमलों जैसे कई अहम तथ्य मामले से बाहर रह गए।
परिवार के वकील अधिवक्ता सत्या लेउवा ने कहा, "पुलिस से FIR दर्ज करवाना भी हमारे लिए एक बड़ी जद्दोजहद रही। शुरुआती FIR में आत्महत्या का जिक्र तो था, लेकिन महीनों तक चले उत्पीड़न और बर्बर पिटाई का उल्लेख नहीं किया गया था।"
खामोशी और विरोध
FIR दर्ज होने के बाद से सोनावड़े परिवार लापता है और बताया जा रहा है कि वे फरार हो गए हैं। इसी बीच, सानिया का मामला गुजरात भर के नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और मुस्लिम परिवारों के लिए एक मजबूत आवाज बन गया है।
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ के राष्ट्रीय सचिव प्रसाद चाको ने The Wire से बातचीत में कहा, "वह युवती जिसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया, वह हिंदुत्ववादी अतिवादी तत्वों का और शिकार है, जिन्होंने एक मुस्लिम परिवार को आतंकित किया, जो घर खरीदने का वैध सौदा कर रहा था।"
संस्थागत भेदभाव और ghettoisation
माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमेटी (MCC) जैसे नागरिक समाज संगठनों के लिए सानिया की मौत केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और संरचनात्मक उत्पीड़न का प्रतीक है।
माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमेटी (MCC) के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा, "डिस्टर्ब्ड एरियाज एक्ट उनके लिए एक बड़ा हथियार बन गया है। उन्हें समाज या सामाजिक ताने-बाने की कोई परवाह नहीं है। अहमदाबाद में जो घटना हुई, वह इस कानून की गंभीर स्थिति है।" उन्होंने आगे कहा, "यह कानून उत्पीड़न और ghettoisation को और गहरा करता है। यह मुसलमानों को साफ संदेश देता है कि वे कुछ इलाकों में स्वागत योग्य नहीं हैं, चाहे उनके पास अधिकार या संसाधन कुछ भी हों।"
आज भी अंसारी परिवार उसी मकान के सामने रहता है, जिसका वे भुगतान तो कर चुके हैं लेकिन जो उन्हें कभी नहीं मिला। पिछले 10 महीनों में उन्होंने 15.5 लाख रुपये गंवा दिए, कानून पर अपना विश्वास खो दिया और अपनी बेटी को भी। रिफत ने बताया, "हम लगातार पुलिस के पास जाते रहे, लेकिन उन्हें कहते रहे कि कानून हमारे पक्ष में नहीं है। हमें निराशा और बेबसी महसूस होती रही।"
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यह मुश्किल अक्टूबर 2024 में शुरू हुई, जब सानिया की मां शाहजहां बानू खोसरो ने गोमतीपुर में एक हिंदू पड़ोसी सुमन सोनावड़े से 15.5 लाख रुपये में एक मकान खरीदा। दिसंबर तक पूरा भुगतान हो गया था, लेकिन औपचारिक हस्तांतरण से पहले ही सोनावड़े के पति का निधन हो गया।
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द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सोनवड़े के बेटे ने परिवार को धमकाना शुरू कर दिया और अशांत क्षेत्र अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि वह इस सौदे को रद्द कर देगा। जो एक कानूनी लेन-देन होना चाहिए था, वह सांप्रदायिक और कानूनी दलदल में बदल गया।
सांप्रदायिक भेदभाव के हथियार के रूप में कानून: अशांत क्षेत्र अधिनियम
गुजरात में अशांत क्षेत्र अधिनियम (Gujarat Disturbed Areas Act) को पहली बार 1986 में लागू किया गया था, जिसे बाद में 1991 और 2019 में और सख्त बनाया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य दंगा प्रभावित या साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में संपत्ति की जबरन या मजबूरी में बिक्री को रोकना है। यह अंतर-धार्मिक संपत्ति लेनदेन के लिए जिला कलेक्टर की पूर्व अनुमति अनिवार्य करता है।
वास्तव में, यह अधिनियम कई बार मुस्लिम समुदाय के लोगों को हिंदू-बहुल इलाकों में बसने से रोकने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल होता है जिससे ghettoisation (एक समुदाय विशेष का सीमित इलाकों में सिमट जाना) और सांप्रदायिक विभाजन और गहराता है।
इस मामले पर नजर रख रहे सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी ने The Wire से बातचीत में कहा, "जो कानून कमजोर परिवारों की सुरक्षा के लिए बना था, वही अब उनके खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहा है।" उन्होंने आगे कहा, "यह कानून मुसलमानों को साफ संदेश देता है कि तुम्हारे पास पैसा हो सकता है, लेकिन यह तुम्हारी मर्जी नहीं कि तुम कहां रहोगे।"
पृष्ठभूमि
7 अगस्त को विवाद हिंसक रूप ले लिया। आरोप है कि सोनावड़े परिवार के सदस्य अंसारी परिवार के घर जबरन घुसे और उन पर हमला किया। सानिया को बाल पकड़कर घसीटा गया और उसे पीटा गया। उसके भाई मोहम्मद हुसैन को सिर में चोटें आईं, जबकि सानिया गंभीर रूप से जख्मी हो गई।
सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयानों के बावजूद, पुलिस ने शुरू में केवल एक व्यक्ति मानव सोनावड़े के खिलाफ मामला दर्ज किया। मानव को अगली ही दिन जमानत मिल गई।
सानिया की बहन रिफ़ात जहां ने The Wire से बात करते हुए कहा, "सानिया ने खुदकुशी कर ली क्योंकि वह किसी के हमारे लिए मदद करने या हमें बचाने का इंतजार करती रही।"
दो दिन बाद, सानिया ने एक आत्महत्या नोट छोड़ा जिसमें चार व्यक्तियों के नाम थे। उसने लिखा कि उन्होंने उसके परिवार से पैसे ले लिए थे लेकिन उन्हें मकान नहीं दिया और महीनों तक उनका उत्पीड़न करते रहे।
सानिया ने लिखा, "मेरे घर में इनकी वजह से 10 महीने से कोई खुशी नहीं है, सिर्फ रोना-धोना और लड़ाई-झगड़ा चलता रहा है।"
न्याय में देरी और पुलिस की उदासीनता
परिवार ने आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस ने आत्महत्या का नोट और वीडियो सबूत होने के बावजूद FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया। पुलिस अधिकारियों ने शुरुआत में इस मौत को “दुर्घटना” बताया और नोट की फोरेंसिक जांच की मांग की। The Wire के अनुसार, पुलिस कमिश्नर जी.एस. मलिक के हस्तक्षेप के बाद ही आत्महत्या के उकसावे और अन्य आरोपों के तहत छह व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। हालांकि, महीनों तक चले उत्पीड़न और हमलों जैसे कई अहम तथ्य मामले से बाहर रह गए।
परिवार के वकील अधिवक्ता सत्या लेउवा ने कहा, "पुलिस से FIR दर्ज करवाना भी हमारे लिए एक बड़ी जद्दोजहद रही। शुरुआती FIR में आत्महत्या का जिक्र तो था, लेकिन महीनों तक चले उत्पीड़न और बर्बर पिटाई का उल्लेख नहीं किया गया था।"
खामोशी और विरोध
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पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ के राष्ट्रीय सचिव प्रसाद चाको ने The Wire से बातचीत में कहा, "वह युवती जिसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया, वह हिंदुत्ववादी अतिवादी तत्वों का और शिकार है, जिन्होंने एक मुस्लिम परिवार को आतंकित किया, जो घर खरीदने का वैध सौदा कर रहा था।"
संस्थागत भेदभाव और ghettoisation
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माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमेटी (MCC) के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा, "डिस्टर्ब्ड एरियाज एक्ट उनके लिए एक बड़ा हथियार बन गया है। उन्हें समाज या सामाजिक ताने-बाने की कोई परवाह नहीं है। अहमदाबाद में जो घटना हुई, वह इस कानून की गंभीर स्थिति है।" उन्होंने आगे कहा, "यह कानून उत्पीड़न और ghettoisation को और गहरा करता है। यह मुसलमानों को साफ संदेश देता है कि वे कुछ इलाकों में स्वागत योग्य नहीं हैं, चाहे उनके पास अधिकार या संसाधन कुछ भी हों।"
आज भी अंसारी परिवार उसी मकान के सामने रहता है, जिसका वे भुगतान तो कर चुके हैं लेकिन जो उन्हें कभी नहीं मिला। पिछले 10 महीनों में उन्होंने 15.5 लाख रुपये गंवा दिए, कानून पर अपना विश्वास खो दिया और अपनी बेटी को भी। रिफत ने बताया, "हम लगातार पुलिस के पास जाते रहे, लेकिन उन्हें कहते रहे कि कानून हमारे पक्ष में नहीं है। हमें निराशा और बेबसी महसूस होती रही।"
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