बिहार: बीएलओ की कार्डियक अरेस्ट से मौत, ‘एसआईआर के दबाव ने ली जान’

Written by sabrang india | Published on: September 12, 2025
आरा के एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक और बीएलओ सुपरवाइजर, राजेंद्र प्रसाद का 27 अगस्त को कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया। परिजनों का कहना है कि सेवानिवृत्ति से केवल चार महीने पहले, एसआईआर प्रक्रिया के चलते उन्हें अधिकारियों के दबाव और लगातार बढ़ते काम का सामना करना पड़ रहा था, जिससे उनकी जान चली गई।


साभार : द वायर

बिहार के भोजपुर जिले में ‘विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर)’ की कार्यवाही का दबाव एक शिक्षक की जिंदगी पर भारी पड़ गया। आरा के मौलाबाग स्थित एसबी स्कूल के प्रधानाध्यापक और बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) सुपरवाइज़र, 59 वर्षीय राजेंद्र प्रसाद का 27 अगस्त को कार्डियक अरेस्ट (हृदयगति रुकने) से निधन हो गया। परिजनों का आरोप है कि लगातार बढ़ते काम का बोझ, मतदाता सूची सुधारने की जिम्मेदारी और अधिकारियों की सख्त फटकार ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया था। उनकी रिटायरमेंट में केवल चार महीने बचे थे।

राजेंद्र प्रसाद के 28 वर्षीय बेटे आशीष राज अपने पिता को याद करते हुए भावुक हो उठे और कहा, “आमतौर पर मैं ही उन्हें स्कूल छोड़ने जाता था, लेकिन 23 अगस्त को मैं परीक्षा देने बनारस गया था। उस दिन उन्हें स्थानीय अस्पताल में दिखाया गया था। डॉक्टर ने उन्हें पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल रेफर कर दिया, लेकिन वहां भीड़ ज्यादा होने की वजह से परिवार ने उन्हें निजी अस्पताल ले जाना बेहतर समझा, जहां उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया।”

राजेंद्र प्रसाद इसी साल 31 दिसंबर को वे रिटायर होने वाले थे।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, आशीष ने बताया कि उनके पास बड़े अधिकारियों के फोन आते थे, ‘काम को लेकर ब्लॉक में आकर सफाई देने के लिये कहा गया था। उसके बाद उनकी तबियत खराब होने लगी थी। ऊपर से आ रहे दबाव को वे झेल नहीं पाये।’

बड़ी बेटी 26 वर्षीय दीपशिखा ने कहा, "पापा के स्कूल में उनसे मिलने गई थी। तभी उन्हें फोन पर किसी ने कहा कि पांच मिनट में ऑफिस नहीं पहुंचे तो बर्खास्त कर दिए जाएंगे। पापा ने जवाब दिया कि काम तो कर रहा हूं, आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं। उस फोन के बाद पापा काफी डर गये थे। और उस दिन से चुप रहने लगे।"

चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण ने न केवल मतदाताओं बल्कि बीएलओ और बीएलओ सुपरवाइजरों पर भी अत्यधिक दबाव डाला है। लगातार बढ़ता तनाव और काम का भारी बोझ राजेंद्र प्रसाद की सेहत पर गंभीर प्रभाव डाल गया।

प्रसाद की 58 वर्षीय पत्नी अनारकली बताती हैं, “वे घर पर कभी ऑफिस का काम साझा नहीं करते थे। लेकिन एसआईआर शुरू होने के बाद से वे काफी तनावग्रस्त रहने लगे थे। पिछले दो महीनों में जब भी बातचीत होती, तो वे चिड़चिड़ाहट से जवाब देते थे, जबकि आम तौर पर वे गुस्से वाले स्वभाव के नहीं थे।”

भोजपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर गंज गांव के निवासी राजेंद्र प्रसाद ने 1997 में शिक्षक के रूप में अपनी नौकरी शुरू की। उनकी पहली पोस्टिंग नोखा में हुई, इसके बाद बिहिया और फिर आरा में उन्हें पदस्थापित किया गया। अनारकली कहती हैं, “मैं बच्चों की पढ़ाई के लिए पटना में किराए के मकान में रहती थी, जबकि वे गांव में रहते थे।”

भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर करने वाली सबसे छोटी बेटी कल्पना रानी बताती हैं, “16 अगस्त को आखिरी बार पापा से बात हुई थी। मैंने उन्हें बताया था कि मैंने वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय की प्री-पीएचडी परीक्षा पास कर ली है। वे बहुत खुश थे, लेकिन उस समय ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई क्योंकि वे एसआईआर के काम में बेहद व्यस्त थे।” कल्पना आगे कहती हैं, “जब मैं उन्हें आईसीयू में मिलने गई थी, तब उनकी आवाज बिल्कुल खत्म हो चुकी थी।”

परिवार वालों के अनुसार 24 तारीख से ही उनकी आवाज बंद हो गयी थी।

राजेंद्र प्रसाद की 65 वर्षीय बहन शांति देवी बताती हैं, ‘वह चुनाव के काम में इतना बिजी हो गया था कि जब भी फोन करती थी तब वह कहता था हां, खाना खा लिया, अब फोन रखो, काम करना है।’

दीपशिखा कहती हैं, ‘पटना में रहते हुए पापा कभी-कभी आते थे, लेकिन पिछले ढाई महीनों से काम में व्यस्तता के कारण वे नहीं आये।’

अनारकली ने आरोप लगाया है, “शिक्षा विभाग, ब्लॉक या जिला प्रशासन की तरफ से कोई भी मिलने या हालचाल पूछने नहीं आया। न तो किसी तरह का मुआवजा दिया गया और न ही कोई मदद मिली। केवल स्कूल के सहकर्मी ही मिलने आए थे।”

आरा सदर प्रखंड विकास पदाधिकारी रवि रंजन ने द वायर हिंदी से कहा, “मैंने कभी भी उन्हें डांटा नहीं। अगर वे हमें स्वास्थ्य से जुड़ी कोई जानकारी देते, तो हम उनसे काम नहीं लेते।”

जिला शिक्षा पदाधिकारी मानवेंद्र ने द वायर हिंदी से कहा, “राजेंद्र प्रसाद के निधन की मुझे कोई जानकारी नहीं थी। आपने बताया तो अब मैं इसकी जानकारी मिली।”

सेवानिवृत्त शिक्षक और राजेंद्र प्रसाद के फुफेरे भाई तेजबहादुर का कहना है, “एसआईआर के काम के चलते बीएलओ का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। इतना बड़ा काम इतने कम समय में पूरा करवाना गलत है। बीएलओ को दिन-रात मीटिंग्स और दबाव सहना पड़ता है।”

आशीष राज ने आरोप लगाया है, “एसआईआर का काम ही मेरे पिता की मौत की वजह बना। अधिकारियों का दबाव सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों पर ही पड़ता है, जिससे उनकी जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है।”

कई बीएलओ ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि काम का दबाव बेहद भारी है। उन्होंने कहा, “दस मिनट में मीटिंग बुला ली जाती है। बाढ़ और खराब सड़कें होने के बावजूद भी समय पर पहुंचना होता है। यदि समय पर नहीं पहुंचते तो डांट पड़ती है। इस दौरान तबियत भी खराब हो जाती है। घर वाले भी ताने देते हैं कि ऐसी नौकरी क्यों कर रहे हो जिसमें परिवार के लिए समय ही नहीं मिलता।”

अधिकांश बीएलओ सिर्फ इसी शर्त पर बात करते हैं कि उनकी पहचान न उजागर हो. एक बीएलओ ने कहा, ‘एसडीओ मैडम का निर्देश है कि मीडिया से बात नहीं करनी है।’

सारण जिले के सोनपुर प्रखंड के बीएलओ सनोज कुमार बताते हैं, “एसआईआर के दौरान तनाव काफी अधिक था। बाढ़ की स्थिति में भी काम करना पड़ा। ऊपर से अधिकारियों का दबाव भी अलग था। इस वजह से परिवार में भी तनाव बढ़ गया।”

एक बीएलओ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “शिक्षक जैसे प्रतिष्ठित पद पर रहते हुए भी 50-55 साल की उम्र में अधिकारियों से डांट सुननी पड़ रही है।”

भोजपुर जिले के सहार प्रखंड के बीएलओ राजू कुमार ने बताया, “शुरुआत में जब 11 दस्तावेज मांगे गए तो मतदाता विरोध करने लगे। समय बहुत कम था। मतदाता सोचते थे कि नाम काटने-जोड़ने का काम बीएलओ का है, जबकि असल में बीएलओ केवल प्रक्रिया पूरी करता है।” 

Related

महाराष्ट्र भर में विरोध प्रदर्शन, जन सुरक्षा अधिनियम को असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी बताते हुए निंदा की गई

गुजरात : हिरासत में मुस्लिम नाबालिग के कथित टॉर्चर पर बवाल, मेवाणी ने की सख्त कार्रवाई की मांग

बाकी ख़बरें