2020 दिल्ली दंगे: उमर खालिद, शरजील इमाम सहित सभी आरोपियों की जमानत याचिका खारिज

Written by sabrang india | Published on: September 2, 2025
खंडपीठ ने यूएपीए के तहत नौ आरोपियों की अपील खारिज की। न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने कहा कि, “सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।” वहीं दंगा होने के पांच साल बाद भी मामला आरोप तय करने के चरण में है।



दिल्ली हाई कोर्ट ने आज 2020 के दिल्ली दंगों की "बड़ी साजिश" से जुड़े मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य सात आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने यह फैसला दोपहर 2:30 बजे सुनाया, जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली को झकझोर देने वाले दंगों के लगभग पांच साल बाद आया है।

यह फैसला उमर खालिद, शरजील इमाम, अतहर खान, खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की जमानत याचिकाओं को लेकर सुनाया गया है।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर वाली दूसरी कोओर्डिनेट बेंच ने सह-आरोपी तस्लीम अहमद की जमानत याचिका पर दोपहर 2:30 बजे अलग आदेश सुनाते हुए उसे खारिज कर दिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को तस्लीम अहमद द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया। तस्लीम अहमद 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को अंजाम देने की बड़ी साजिश के आरोप में दर्ज यूएपीए (UAPA) मामले में आरोपी हैं।

इन सभी आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट के उन आदेशों को चुनौती दी थी, जिनमें लगातार उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था। ये मामले दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज एफआईआर संख्या 59/2020 के तहत दर्ज किए गए थे।

मामले की पृष्ठभूमि

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह हिंसा अपने आर नहीं हुई थी, बल्कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी एक “गहरी साजिश” का परिणाम थी।

● एफआईआर संख्या 59/2020, 6 मार्च 2020 को स्पेशल सेल द्वारा दर्ज की गई थी।
● सितंबर 16, 2020 से जून 7, 2023 के बीच कुल पांच आरोप पत्र दायर किए गए।
● अभियोजन ने भारतीय दंड संहिता, 1860 और अनैतिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) की धाराओं का इस्तेमाल किया।
● शुरुआत में गिरफ्तार किए गए 18 में से 12 आरोपी अभी भी हिरासत में हैं। यह मामला वर्तमान में आरोपों पर जेरे बहस है, जिसमें 897 से अधिक गवाहों को पेश किया गया है।

दिल्ली पुलिस का मामला निम्नलिखित आधारों पर टिका है:

1. व्हाट्सएप ग्रुप चैट्स (विशेष रूप से मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू (MSJ), जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी (JCC), और दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (DPSG))।

2. संरक्षित गवाहों के बयान।

3. सीसीटीवी फुटेज और डिजिटल रिकॉर्ड।

स्पेशल सेल के अनुसार, आरोपियों ने मुस्लिम-बहुल इलाकों में मस्जिदों और मुख्य सड़कों के आसपास 23 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन का किया, जो कथित तौर पर भारत को वैश्विक स्तर पर शर्मसार करने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फरवरी 2020 के दौरे के दौरान एक “चक्का जाम” में बदलने वाले थे।

आरोपी और प्रमुख जमानत तर्क

उमर खालिद

● वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पैस पेश हुए।
● यह कहा कि केवल व्हाट्सएप समूहों का हिस्सा होना, बिना कोई संदेश पोस्ट किए, अपराध नहीं है।
● तर्क दिया कि उनसे कोई जब्ती (recovery) नहीं हुई और 23-24 फरवरी को कथित "गुप्त" बैठक कोई छिपी हुई बैठक नहीं थी।
● बताया कि किसी गवाह के बयान में विशेष रूप से उनसे जुड़े आतंकवाद संबंधी कृत्यों का उल्लेख नहीं है।
● सह-आरोपियों के साथ बराबरी का दावा किया, जिन पर गंभीर आरोप थे लेकिन उन्हें जमानत मिल गई थी।

शरजील इमाम

● अधिवक्ता तालिब मुस्तफा पेश हुए।
● बताया कि वह सह-आरोपियों से हट गए थे और साजिश की बैठकों का हिस्सा नहीं थे।
● उनके खिलाफ आखिरी आरोप एक भाषण का है, जो उन्होंने 23 जनवरी 2020 को बिहार में दिया था, जो दंगों से पहले हुआ था।
● यह तर्क दिया कि उन्हें धारा 436A क्रिमिनल प्रोसेस कोड (CrPC) के तहत कानूनी जमानत का हक है, क्योंकि वह पहले ही 4 साल से ज्यादा समय हिरासत में बिता चुके हैं (यूएपीए धारा 13 के 7 साल की अधिकतम सजा के आधे समय से ज्यादा का वक्त)।

खालिद सैफी

● वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने उनका प्रतिनिधित्व किया।
● यूएपीए के तहत नुकसान न पहुंचाने वाले संदेशों पर भरोसा करने पर सवाल उठाया।
● जून 2021 में जमानत मिलने वाले तीन सह-आरोपियों के साथ बराबरी का हवाला दिया।
● दलील दी कि चक्का जाम आम विरोध का तरीका था, आतंकवाद नहीं।

शिफा-उर-रहमान

● बताया कि वह पहले ही 5 साल से ज्यादा समय हिरासत में बिता चुके हैं।
● यह कहा कि विरोध प्रदर्शन या बैठकों में हिस्सा लेना अपराध नहीं माना जा सकता।
● मुकदमे में देरी और गवाहों के बयानों में विरोधाभासों को भी उजागर किया।

गुलफिशा फातिमा

● यह दावा किया कि उनकी कथित साजिश में कोई सक्रिय भागीदारी नहीं थी।
● उन लोगों के साथ बराबरी के आधार पर जमानत की मांग की जो पहले ही रिहा हो चुके हैं।

मीरान हैदर

● समानता और मुकदमे में देरी के तर्क दोहराए।
● कहा कि संरक्षित गवाहों के बयान केवल विरोध प्रदर्शन में भागीदारी ही दर्शाते हैं।

मोहम्मद सलीम खान

● समानता और लंबे समय तक हिरासत में रहने के आधार पर जमानत की दलील दी।

अतहर खान

● सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर जमानत की दलील दी, जो पहले ही रिहा हो चुके हैं।


तस्लीम अहमद

● अधिवक्ता महमूद प्राचा ने प्रतिनिधित्व किया।

● मुकदमे में देरी का तर्क दिया; बिना कोई स्थगन (adjournment) मांगे 5 साल से ज्याद समय हिरासत में।

शादाब अहमद

● जमानत याचिका अलग से सुनी गई; गवाहों के बयानों में विरोधाभास और अन्य जमानत आदेशों के साथ समानता का तर्क दिया।


अभियोग पक्ष का मामला (दिल्ली पुलिस)

● सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, राज्य ने सभी जमानत याचिकाओं का विरोध किया।

● मेहता ने इस जांच को "सबसे बेहतरीन जांचों" में से एक बताया।

● दावा किया कि दंगे "पूर्व-निर्धारित, सुव्यवस्थित और खतरनाक" थे, जिनका मकसद देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करना था।

● आरोप लगाया कि आरोपियों का मकसद ट्रंप के दौरे के दौरान हिंसा भड़काकर भारत को वैश्विक स्तर पर शर्मसार करना था।

● शरजील इमाम के भाषणों का हवाला दिया, जिसमें विरोध प्रदर्शन तेज करने का समय तय किया गया था।

● जोर दिया कि यह केवल "दंगे" का मामला नहीं बल्कि देश की संप्रभुता पर पूर्व नियोजित हमला है।

● हिंसात्मक तैयारी के प्रमाण के रूप में एक बड़े लोहे के “गुलेल” (कैटापल्ट) के इस्तेमाल को बताया।

● आरोप लगाया गया कि सिम कार्ड के लिए नकली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया और वित्तीय गड़बड़ियों का भी उल्लेख किया गया।

● इस बात पर जोर दिया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े यूएपीए मामलों में लंबी हिरासत जमानत का औचित्य नहीं बनाती।

लाइव लॉ के अनुसार, सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि, “अगर आप देश के खिलाफ कुछ कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप जेल में ही रहें जब तक आपको बरी नहीं किया जाता या दोषी नहीं ठहराया जाता।”

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