एपीसीआर व कारवान-ए-मुहब्बत के प्रतिनिधिमंडल ने असम में बड़े पैमाने पर मुसलमानों के हुए बेदखली अभियान की जांच कर प्रशासनिक लापरवाही और मानवाधिकार उल्लंघन को उजागर किया।

साभार : पीटीआई (फाइल फोटो)
असम में बीते दो महीनों में बड़े पैमाने पर चलाए गए बेदखली अभियानों की वास्तविक स्थिति का आकलन करने के लिए 23 और 24 अगस्त 2025 को एक उच्चस्तरीय जांच दल ने गुवाहाटी, ग्वालपाड़ा और कामरूप जिलों का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, राज्यसभा सांसद और प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार, पूर्व योजना आयोग सदस्य सैयदा हमीद, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, शोधकर्ता ऋतुंब्रा मनुवी और फवाज़ शाहीन शामिल थे।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, इस जांच का उद्देश्य उन परिवारों से मिलना था जिन्हें हाल ही में राज्य सरकार की ओर से चलाए गए बेदखली अभियानों में घरों से उजाड़ दिया गया है।
दौरे में बाधा व डर का माहौल
प्रतिनिधिमंडल ने मीडिया को बताया कि ग्वालपाड़ा जिले में धारा 144 लागू है, जिसके चलते पांच से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है। स्थानीय सूत्रों ने टीम को बताया कि जिले में प्रवेश करने वाले वाहनों की तलाशी ली जा रही है और प्रभावित इलाकों में जाने की प्रशासन इजाजत नहीं दे रहा।
हालांकि टीम को जिले में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, लेकिन प्रशासन ने स्पष्ट कहा कि बेदखली स्थलों या राहत शिविरों का दौरा नहीं करने दिया जाएगा। इससे यह संकेत मिला कि प्रशासन ने सुनियोजित ढंग से डर और दबाव का माहौल बनाकर प्रभावित परिवारों से स्वतंत्र तरीके से मिलने से रोकने की कोशिश की।
ग्वालपाड़ा जिले में बड़े स्तर पर बेदखली
इस दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले दो महीनों में तीन बड़े बेदखली अभियान चलाए गए-
1. हसीला बील (बलीजाना सर्किल) -16 जून 2025
● करीब 667 परिवारों के घर उजाड़ दिए गए। [स्रोत]
● स्कूल, आंगनवाड़ी और मस्जिदें भी तोड़ी गईं।
● बारिश के मौसम में लोग तिरपाल और अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।
● किसी परिवार को व्यक्तिगत नोटिस नहीं दिया गया।
● ग्रामीणों ने एनआरसी, वोटर लिस्ट, जमीनी कागजात और पहचान पत्र जैसे दस्तावेज दिखाए।
● परिवारों का कहना है कि वे वर्ष 1948 से इस इलाके में रह रहे हैं।
2. अशुडुबी गांव (माटिया सर्किल) - 12 जुलाई 2025
● 1084 परिवार उजाड़ दिए गए।
● लोगों के पास 1951 NRC और 1962 से पुराने जमीन के पट्टे मौजूद थे।
● 5 आंगनवाड़ी, 3 प्राथमिक विद्यालय, 1 मिडिल स्कूल, 1 पानी की योजना, 8 मस्जिदें और 2 मदरसे तोड़े गए।
● राहत और सड़क खोलने की मांग कर रहे लोगों पर 17 जुलाई को पुलिस ने लाठीचार्ज व गोलीबारी की।
● 19 साल के सकोवर अली की मौके पर ही मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।
● अब तक इस घटना की न्यायिक जांच नहीं हुई।
3. राख्यासिनी इलाका (ग्वालपाड़ा नगरपालिका के पास) - 23 अगस्त 2025
● अचानक कार्रवाई में 105 दुकानें व प्रतिष्ठान तोड़ दिए गए।
● कोई नोटिस नहीं दिया गया।
● स्थानीय लोगों के अनुसार, मामला गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित है और स्टे ऑर्डर भी मौजूद था।
● 2007 में इस इलाके को ग्वालपाड़ा विकास प्राधिकरण में शामिल किया गया था, इसलिए इसे संरक्षित वन क्षेत्र बता कर की गई कार्रवाई को दल ने अवैध बताया।
प्रशासन की नाकामी और संवैधानिक उल्लंघन
प्रतिनिधिमंडल ने कहा-
● किसी भी परिवार को कानूनी नोटिस या सुनवाई का मौका नहीं मिला।
● बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, बुज़ुर्गों की देखभाल और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं की गई।
● पूरी कार्रवाई अल्पसंख्यक मुस्लिम परिवारों को निशाना बना कर की गई।
● सकोवर अली की मौत के बाद न तो जांच हुई और न ही मुआवजा दिया गया।
जांच दल और APCR ने निम्नलिखित मांगें की हैं-
● हसीला बील और अशुडुबी के परिवारों की जमीनी दावेदारी की न्यायिक जांच हो।
● सकोवर अली की मौत और पुलिस फायरिंग की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
● विस्थापित परिवारों के लिए तत्काल राहत, पुनर्वास और मुआवजे की व्यवस्था हो।
● अदालत में लंबित मामलों को नजरअंदाज कर बेदखली करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो।
● असम सरकार सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी नागरिक को बिना वैधानिक प्रक्रिया के बेघर न किया जाए।
इंसाफ की अपील
एपीसीआर (APCR) ने कहा है कि वह असम में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रहेगी। संगठन ने न्यायप्रिय नागरिकों और सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वे इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करें।
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साभार : पीटीआई (फाइल फोटो)
असम में बीते दो महीनों में बड़े पैमाने पर चलाए गए बेदखली अभियानों की वास्तविक स्थिति का आकलन करने के लिए 23 और 24 अगस्त 2025 को एक उच्चस्तरीय जांच दल ने गुवाहाटी, ग्वालपाड़ा और कामरूप जिलों का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, राज्यसभा सांसद और प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार, पूर्व योजना आयोग सदस्य सैयदा हमीद, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, शोधकर्ता ऋतुंब्रा मनुवी और फवाज़ शाहीन शामिल थे।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, इस जांच का उद्देश्य उन परिवारों से मिलना था जिन्हें हाल ही में राज्य सरकार की ओर से चलाए गए बेदखली अभियानों में घरों से उजाड़ दिया गया है।
दौरे में बाधा व डर का माहौल
प्रतिनिधिमंडल ने मीडिया को बताया कि ग्वालपाड़ा जिले में धारा 144 लागू है, जिसके चलते पांच से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है। स्थानीय सूत्रों ने टीम को बताया कि जिले में प्रवेश करने वाले वाहनों की तलाशी ली जा रही है और प्रभावित इलाकों में जाने की प्रशासन इजाजत नहीं दे रहा।
हालांकि टीम को जिले में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, लेकिन प्रशासन ने स्पष्ट कहा कि बेदखली स्थलों या राहत शिविरों का दौरा नहीं करने दिया जाएगा। इससे यह संकेत मिला कि प्रशासन ने सुनियोजित ढंग से डर और दबाव का माहौल बनाकर प्रभावित परिवारों से स्वतंत्र तरीके से मिलने से रोकने की कोशिश की।
ग्वालपाड़ा जिले में बड़े स्तर पर बेदखली
इस दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले दो महीनों में तीन बड़े बेदखली अभियान चलाए गए-
1. हसीला बील (बलीजाना सर्किल) -16 जून 2025
● करीब 667 परिवारों के घर उजाड़ दिए गए। [स्रोत]
● स्कूल, आंगनवाड़ी और मस्जिदें भी तोड़ी गईं।
● बारिश के मौसम में लोग तिरपाल और अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।
● किसी परिवार को व्यक्तिगत नोटिस नहीं दिया गया।
● ग्रामीणों ने एनआरसी, वोटर लिस्ट, जमीनी कागजात और पहचान पत्र जैसे दस्तावेज दिखाए।
● परिवारों का कहना है कि वे वर्ष 1948 से इस इलाके में रह रहे हैं।
2. अशुडुबी गांव (माटिया सर्किल) - 12 जुलाई 2025
● 1084 परिवार उजाड़ दिए गए।
● लोगों के पास 1951 NRC और 1962 से पुराने जमीन के पट्टे मौजूद थे।
● 5 आंगनवाड़ी, 3 प्राथमिक विद्यालय, 1 मिडिल स्कूल, 1 पानी की योजना, 8 मस्जिदें और 2 मदरसे तोड़े गए।
● राहत और सड़क खोलने की मांग कर रहे लोगों पर 17 जुलाई को पुलिस ने लाठीचार्ज व गोलीबारी की।
● 19 साल के सकोवर अली की मौके पर ही मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।
● अब तक इस घटना की न्यायिक जांच नहीं हुई।
3. राख्यासिनी इलाका (ग्वालपाड़ा नगरपालिका के पास) - 23 अगस्त 2025
● अचानक कार्रवाई में 105 दुकानें व प्रतिष्ठान तोड़ दिए गए।
● कोई नोटिस नहीं दिया गया।
● स्थानीय लोगों के अनुसार, मामला गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित है और स्टे ऑर्डर भी मौजूद था।
● 2007 में इस इलाके को ग्वालपाड़ा विकास प्राधिकरण में शामिल किया गया था, इसलिए इसे संरक्षित वन क्षेत्र बता कर की गई कार्रवाई को दल ने अवैध बताया।
प्रशासन की नाकामी और संवैधानिक उल्लंघन
प्रतिनिधिमंडल ने कहा-
● किसी भी परिवार को कानूनी नोटिस या सुनवाई का मौका नहीं मिला।
● बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, बुज़ुर्गों की देखभाल और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं की गई।
● पूरी कार्रवाई अल्पसंख्यक मुस्लिम परिवारों को निशाना बना कर की गई।
● सकोवर अली की मौत के बाद न तो जांच हुई और न ही मुआवजा दिया गया।
जांच दल और APCR ने निम्नलिखित मांगें की हैं-
● हसीला बील और अशुडुबी के परिवारों की जमीनी दावेदारी की न्यायिक जांच हो।
● सकोवर अली की मौत और पुलिस फायरिंग की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
● विस्थापित परिवारों के लिए तत्काल राहत, पुनर्वास और मुआवजे की व्यवस्था हो।
● अदालत में लंबित मामलों को नजरअंदाज कर बेदखली करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो।
● असम सरकार सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी नागरिक को बिना वैधानिक प्रक्रिया के बेघर न किया जाए।
इंसाफ की अपील
एपीसीआर (APCR) ने कहा है कि वह असम में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रहेगी। संगठन ने न्यायप्रिय नागरिकों और सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वे इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज मुखर करें।
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