पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा- एक साथ चुनाव का विधेयक चुनाव आयोग को असीमित शक्तियां देता है

Written by sabrang india | Published on: August 21, 2025
जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह विधेयक विभिन्न राज्यों और लोकसभा के भिन्न-भिन्न चुनाव चक्रों से पैदा होने वाले नीतिगत गतिरोध को दूर करने के अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम नहीं है।


फोटो साभार : मिंट (फायल फोटो)

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मंगलवार 19 अगस्त 2025 को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने संबंधी प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग को 'असीमित विवेकाधिकार' प्रदान करता है।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ भाजपा नेता और सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता में गठित समिति संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 -जिसे आमतौर पर 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक के नाम से जाना जाता है- की समीक्षा कर रही है।

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) संजीव खन्ना ऐसे पांचवें पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं जिन्होंने प्रस्तावित विधेयक से जुड़े मुद्दों को उजागर किया है। उनसे पहले न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ भी इस विधेयक में मौजूद विभिन्न कानूनी कमियों की ओर ध्यान दिला चुके हैं।

समिति की तीन घंटे की बैठक हुई जिसमें सदस्यों ने जस्टिस खन्ना से विधेयक के सभी पहलुओं पर चर्चा की।

संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024, संविधान के अनुच्छेद 82A के साथ-साथ अनुच्छेद 83 और 172 में कुछ खंड जोड़ने का प्रस्ताव करता है।

जस्टिस खन्ना के अनुसार, प्रस्तावित अनुच्छेद 82ए की धारा 5 भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को यह तय करने का ‘असीमित विवेकाधिकार’ प्रदान करती है कि किन परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ नहीं कराए जा सकते।

उन्होंने अपने लिखित बयान में कहा कि यह प्रावधान मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जिससे यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन और अपमान माने जाने की दृष्टि से विवादास्पद बना रहेगा।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रस्तावित प्रावधान चुनाव आयोग और सरकार को संविधान के अनुच्छेद 356 की सीमाओं से परे अधिकार देता है। जस्टिस खन्ना के अनुसार, यदि आयोग चुनाव स्थगित करता है, तो इससे अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन जैसी स्थिति पैदा हो सकती है यानी केंद्र सरकार, राज्य सरकार की शक्तियां अपने हाथ में ले सकती है। उन्होंने इसे न्यायिक दृष्टिकोण से संदेहास्पद बताया, क्योंकि यह संविधान में निर्धारित संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि यह विधेयक विभिन्न राज्यों और लोकसभा के भिन्न-भिन्न चुनाव चक्रों से पैदा होने वाले नीतिगत गतिरोध को दूर करने के अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम नहीं है।

अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया कि उन्होंने यह तर्क दिया कि राज्य विधानसभाओं के समय से पूर्व विघटन की स्थिति में जैसे ही चुनाव कराए जाएंगे, आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। ऐसे में यह स्थिति उस उद्देश्य को विफल कर देती है, जिसके लिए यह विधेयक प्रस्तावित किया गया है।

समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने अखबार से कहा कि समिति अब प्रस्तावित कानून के वित्तीय प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए अर्थशास्त्रियों से चर्चा करेगी। सरकार का तर्क है कि इस कानून के लागू होने से खर्च में कमी आएगी।

गौरतलब है कि पिछले साल 17 दिसंबर को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पेश किया गया था, जिसे विपक्षी दलों ने कड़ी निंदा की थी। इस विधेयक का समर्थन 269 सांसदों ने किया, जबकि 198 सांसदों ने इसका विरोध किया। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संसदीय मामलों के मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव दिया।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में दो विधेयक प्रस्तुत किए थे-एक संविधान संशोधन विधेयक, जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करना है, और दूसरा विधेयक, जो केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संबंधित अधिनियमों में संशोधन करने के लिए है, ताकि वहां भी एक साथ चुनाव कराए जा सकें।"

‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत संविधान में 129वें संशोधन के जरिए तीन अनुच्छेदों में बदलाव और एक नया अनुच्छेद 82ए जोड़ने का प्रस्ताव है। इस संशोधन के अनुसार, राष्ट्रपति को लोकसभा के पहले सत्र के बाद एक ‘नियुक्त तिथि’ घोषित करनी होगी, जिसके बाद चुनी गई किसी भी राज्य विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के समापन के साथ समाप्त हो जाएगा।

इन प्रस्तावित संशोधनों की सिफारिशें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने की थीं, जिसने अपनी रिपोर्ट पिछले वर्ष मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी।

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