भारतीय कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस (सीबीसीआई) ने ओडिशा के जलेश्वर में कथित रूप से भीड़ द्वारा दो कैथोलिक पादरियों और एक कैटेकिस्ट पर किए गए हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है।

भारतीय कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस (सीबीसीआई) ने ओडिशा के जलेश्वर में कथित रूप से भीड़ द्वारा दो कैथोलिक पादरियों और एक कैटेकिस्ट (धर्मशिक्षक) पर किए गए हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है।
सीबीसीआई ने अपने एक बयान में कहा कि यह हालिया घटना कोई अलग मामला नहीं है, बल्कि यह देश में बढ़ती असहिष्णुता की पृष्ठभूमि में ईसाई अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हो रही हिंसा की एक चिंताजनक प्रवृत्ति का हिस्सा है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीसीआई के बयान में आगे कहा गया है कि ख़बरों के अनुसार, यह हमला उस समय हुआ जब जलेश्वर स्थित सेंट थॉमस चर्च के पैरिश पादरी फादर लिजो, एक अन्य पादरी, दो नन और एक कैटेकिस्ट के साथ पास के एक गांव में एक कैथोलिक घर में अंतिम संस्कार की प्रार्थना सभा आयोजित करने के बाद लौट रहे थे.
सीबीसीआई के बयान में कहा गया है कि “हालांकि स्थानीय ग्रामीण महिलाओं ने ननों को बचा लिया, लेकिन पादरियों और कैटेकिस्ट को रोका गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, मारपीट की गई और उन पर जबरन धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाया गया। फादर लिजो का मोबाइल फोन बलपूर्वक छीन लिया गया और उन्हें वापस नहीं किया गया। कैटेकिस्ट दुर्ज्योधन के साथ बेरहमी से मारपीट की गई और उनकी मोटरसाइकिल को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया। लगभग 70 लोगों की उस भीड़ में कई लोग बाहरी थे।
साउथ फर्स्ट ने इस घटना को लेकर सोशल मीडिया एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा कि बजरंग दल से जुड़े लगभग 70 लोगों के एक समूह ने कथित तौर पर दो कैथोलिक पादरियों, दो ननों और एक कैटेकिस्ट पर हमला किया और बिना किसी सबूत के उन पर जबरन धर्मांतरण में शामिल होने का आरोप लगाया।
पोस्ट में आगे कहा गया कि “हमले के शिकार, विशेष रूप से फादर लिजो और फादर जोजो, इस घटना से स्तब्ध और बेहद निराश हैं। पुलिस द्वारा समय पर कार्रवाई न किए जाने और चोरी हुई संपत्ति-जैसे फादर लिजो का मोबाइल फोन-की बरामदगी न होने से समुदाय की पीड़ा और भी बढ़ गई है। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, अब तक कोई औपचारिक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और चर्च के अधिकारी स्थिति का आकलन करने के लिए बिशप वर्गीस थोट्टमकारा के आने का इंतजार कर रहे हैं।
सीबीसीआई ने अपने बयान में कहा कि इस प्रकार की घटनाएं न केवल अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों, बल्कि उनकी मानवीय गरिमा का भी गंभीर उल्लंघन हैं। भीड़ हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति सभी समुदायों की सुरक्षा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। सीबीसीआई ने ओडिशा सरकार से मांग की है कि वह दोषियों की शीघ्र पहचान कर उनके खिलाफ कठोर और निर्णायक कार्रवाई करे, तथा राज्य में सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए।
सीबीसीआई ने अपने बयान में कहा, “हम प्रशासन से आग्रह करते हैं कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे ताकि प्रत्येक नागरिक भयमुक्त होकर अपने धर्म का पालन कर सके।”
सीबीसीआई ने कहा कि वह इस स्थिति पर निरंतर निगरानी रखेगा और सभी नागरिकों-विशेषकर ईसाई समुदाय-के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ता से कायम रहेगा।
ज्ञात हो कि हाल ही में केरल पुलिस ने दक्षिणपंथी समूह द्वारा कथित तौर पर एक पादरी को धर्म परिवर्तन के आरोप में धमकाने के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर FIR दर्ज की है।
रिपोर्ट केे अनुसार, पुलिस ने यह कार्रवाई बिना किसी औपचारिक शिकायत के शुरू की है।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब छत्तीसगढ़ में दो ननों की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है।
वायनाड पुलिस ने शनिवार 2 अगस्त को सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो के आधार पर नया मामला दर्ज किया है। ऐसा माना जा रहा है कि यह घटना कुछ महीने पहले हुई थी।
उधर जनवरी से जुलाई 2025 के बीच भारत में ईसाइयों को निशाना बनाए जाने की 334 घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह खुलासा इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है।
संगठन का कहना है कि ये मामले एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें हर महीने घटनाएं होती हैं और 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ईसाई समुदायों को प्रभावित करती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार की घटनाओं में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। उत्तर प्रदेश में 95 और छत्तीसगढ़ में 86 घटनाएं दर्ज की गईं, जो कुल घटनाओं का लगभग 54% हिस्सा हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस प्रकार की हिंसा का फैलना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। विशेष रूप से कुछ राज्य बार-बार ऐसे 'हॉटस्पॉट' के रूप में सामने आ रहे हैं, जहां ईसाई परिवारों को न केवल तात्कालिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, बल्कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत लंबे समय तक कानूनी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कानूनों का दुरुपयोग अब डराने-धमकाने के एक प्रमुख हथियार के रूप में किया जा रहा है। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच दर्ज की गई घटनाओं में से दो-तिहाई मामलों में धमकियां, उत्पीड़न और झूठे आरोप शामिल हैं।
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भारतीय कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस (सीबीसीआई) ने ओडिशा के जलेश्वर में कथित रूप से भीड़ द्वारा दो कैथोलिक पादरियों और एक कैटेकिस्ट (धर्मशिक्षक) पर किए गए हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है।
सीबीसीआई ने अपने एक बयान में कहा कि यह हालिया घटना कोई अलग मामला नहीं है, बल्कि यह देश में बढ़ती असहिष्णुता की पृष्ठभूमि में ईसाई अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हो रही हिंसा की एक चिंताजनक प्रवृत्ति का हिस्सा है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सीबीसीआई के बयान में आगे कहा गया है कि ख़बरों के अनुसार, यह हमला उस समय हुआ जब जलेश्वर स्थित सेंट थॉमस चर्च के पैरिश पादरी फादर लिजो, एक अन्य पादरी, दो नन और एक कैटेकिस्ट के साथ पास के एक गांव में एक कैथोलिक घर में अंतिम संस्कार की प्रार्थना सभा आयोजित करने के बाद लौट रहे थे.
सीबीसीआई के बयान में कहा गया है कि “हालांकि स्थानीय ग्रामीण महिलाओं ने ननों को बचा लिया, लेकिन पादरियों और कैटेकिस्ट को रोका गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, मारपीट की गई और उन पर जबरन धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाया गया। फादर लिजो का मोबाइल फोन बलपूर्वक छीन लिया गया और उन्हें वापस नहीं किया गया। कैटेकिस्ट दुर्ज्योधन के साथ बेरहमी से मारपीट की गई और उनकी मोटरसाइकिल को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया। लगभग 70 लोगों की उस भीड़ में कई लोग बाहरी थे।
साउथ फर्स्ट ने इस घटना को लेकर सोशल मीडिया एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा कि बजरंग दल से जुड़े लगभग 70 लोगों के एक समूह ने कथित तौर पर दो कैथोलिक पादरियों, दो ननों और एक कैटेकिस्ट पर हमला किया और बिना किसी सबूत के उन पर जबरन धर्मांतरण में शामिल होने का आरोप लगाया।
पोस्ट में आगे कहा गया कि “हमले के शिकार, विशेष रूप से फादर लिजो और फादर जोजो, इस घटना से स्तब्ध और बेहद निराश हैं। पुलिस द्वारा समय पर कार्रवाई न किए जाने और चोरी हुई संपत्ति-जैसे फादर लिजो का मोबाइल फोन-की बरामदगी न होने से समुदाय की पीड़ा और भी बढ़ गई है। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, अब तक कोई औपचारिक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और चर्च के अधिकारी स्थिति का आकलन करने के लिए बिशप वर्गीस थोट्टमकारा के आने का इंतजार कर रहे हैं।
सीबीसीआई ने अपने बयान में कहा कि इस प्रकार की घटनाएं न केवल अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों, बल्कि उनकी मानवीय गरिमा का भी गंभीर उल्लंघन हैं। भीड़ हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति सभी समुदायों की सुरक्षा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। सीबीसीआई ने ओडिशा सरकार से मांग की है कि वह दोषियों की शीघ्र पहचान कर उनके खिलाफ कठोर और निर्णायक कार्रवाई करे, तथा राज्य में सभी अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए।
सीबीसीआई ने अपने बयान में कहा, “हम प्रशासन से आग्रह करते हैं कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे ताकि प्रत्येक नागरिक भयमुक्त होकर अपने धर्म का पालन कर सके।”
सीबीसीआई ने कहा कि वह इस स्थिति पर निरंतर निगरानी रखेगा और सभी नागरिकों-विशेषकर ईसाई समुदाय-के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ता से कायम रहेगा।
ज्ञात हो कि हाल ही में केरल पुलिस ने दक्षिणपंथी समूह द्वारा कथित तौर पर एक पादरी को धर्म परिवर्तन के आरोप में धमकाने के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर FIR दर्ज की है।
रिपोर्ट केे अनुसार, पुलिस ने यह कार्रवाई बिना किसी औपचारिक शिकायत के शुरू की है।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब छत्तीसगढ़ में दो ननों की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है।
वायनाड पुलिस ने शनिवार 2 अगस्त को सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो के आधार पर नया मामला दर्ज किया है। ऐसा माना जा रहा है कि यह घटना कुछ महीने पहले हुई थी।
उधर जनवरी से जुलाई 2025 के बीच भारत में ईसाइयों को निशाना बनाए जाने की 334 घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह खुलासा इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है।
संगठन का कहना है कि ये मामले एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें हर महीने घटनाएं होती हैं और 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ईसाई समुदायों को प्रभावित करती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार की घटनाओं में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। उत्तर प्रदेश में 95 और छत्तीसगढ़ में 86 घटनाएं दर्ज की गईं, जो कुल घटनाओं का लगभग 54% हिस्सा हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस प्रकार की हिंसा का फैलना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। विशेष रूप से कुछ राज्य बार-बार ऐसे 'हॉटस्पॉट' के रूप में सामने आ रहे हैं, जहां ईसाई परिवारों को न केवल तात्कालिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, बल्कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत लंबे समय तक कानूनी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कानूनों का दुरुपयोग अब डराने-धमकाने के एक प्रमुख हथियार के रूप में किया जा रहा है। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच दर्ज की गई घटनाओं में से दो-तिहाई मामलों में धमकियां, उत्पीड़न और झूठे आरोप शामिल हैं।
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