बांग्लादेश से आए कथित नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई के बीच सैकड़ों बंगाली और असमिया प्रवासी मजदूरों को गुरुग्राम पुलिस ने हिरासत में लेकर ‘होल्डिंग सेंटर्स’ में रखा है।

फोटो साभार : द वायर
गुड़गांव की एक दुकान के बाहर 19 जुलाई को सफाईकर्मी के तौर पर अपनी शिफ्ट पूरी करने के बाद 41 वर्षीय हफजुर शेख को पुलिस ने रोका और पूछताछ करने लगी। उन्होंने सभी सवालों के जवाब दिए, लेकिन फिर उनसे ‘नागरिकता की पुष्टि’ के लिए पहचान पत्र दिखाने को कहा गया।
हालांकि उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य जरूरी दस्तावेज फोन में मौजूद थे लेकिन पुलिस ने उन्हें मानने से इनकार कर दिया। उनके भाई अमनुर ने द वायर को बताया, "पुलिस फिजिकल कॉपी की मांग कर रही थी। मेरे भाई ने कहा कि वह घर से दस्तावेज लाकर दिखा सकता है या पुलिस उसके साथ चलकर खुद देख सकती है, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं सुनी और उसे हिरासत में ले लिया।"
हफिजुर पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रहने वाले हैं और उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं जिन्हें हरियाणा के गुड़गांव में पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया है। इनमें ज्यादातर मुस्लिम पुरुष शामिल हैं, जो गुड़गांव की बड़ी कंपनियों में सफाईकर्मी, कचरा चुनने वाले, पब्लिक सेनिटेशन कर्मचारी, घरेलू सहायक और डिलीवरी एजेंट जैसे काम करते हैं।
सिर्फ 19 जुलाई को ही पुलिस ने कम से कम 74 मजदूरों को हिरासत में लिया, जिनमें 11 पश्चिम बंगाल से और 63 असम से थे।
पुलिस को संदेह है कि ये सभी लोग बांग्लादेश से आए 'अवैध प्रवासी' हैं, इसी कारण उन्हें 'होल्डिंग सेंटर्स' में रखा गया है, जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्थायी डिटेंशन कैंप के रूप में बता रहे हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) [सीपीआई-एमएल] के सदस्य और वकील सुपंता सिन्हा ने बताया कि गुड़गांव के सेक्टर 10 में स्थित इस कैंप में 200 से ज्यादा लोगों को बंद रखा गया है।
'नागरिकता सत्यापन' के नाम पर प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिए जाने की खबर सामने आने के बाद, 21 जुलाई को सीपीआई-एमएल की दो सदस्यीय टीम ने गुड़गांव के सेक्टर 10 में बनाए गए एक अस्थायी डिटेंशन सेंटर का दौरा किया। सुपंता सिन्हा इस टीम का हिस्सा थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि मजदूरों को ‘अमानवीय परिस्थितियों’ में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सीपीआई-एमएल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि गुड़गांव के अन्य इलाकों में भी इसी तरह की कार्रवाई जारी है और कुछ क्षेत्रों में 200 से ज्यादा लोगों को हिरासत में रखा गया है।
सिन्हा का कहना है कि यह कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के तहत की जा रही है और यह देशभर में अवैध प्रवासियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा है। हालांकि, कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इन कार्रवाइयों का सबसे ज्यादा प्रभाव बांग्लाभाषी मुस्लिम प्रवासियों पर पड़ रहा है, खासकर उन पर जो पश्चिम बंगाल और असम से आते हैं।
हाल ही में कोलकाता में किए गए एक विरोध प्रदर्शन के दौरान ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने दिल्ली (जय हिंद कॉलोनी), एनसीआर और ओडिशा में प्रवासी मजदूरों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज उठाई। इस दौरान ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देते हुए कहा, “अगर हिम्मत है तो मुझे डिटेंशन सेंटर में डालो।”
इन कार्रवाइयों की कड़ी निंदा करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "देश में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बांग्ला है, जो असम की भी दूसरी प्रमुख भाषा है। यदि कोई नागरिक शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है और अपनी भाषा व धर्म का सम्मान करता है, तो उसे धमकाना असंवैधानिक है।"
राज्यसभा सांसद और बंगाली प्रवासी बोर्ड के प्रमुख समीरुल इस्लाम ने भाजपा पर बंगालियों के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इन गिरफ्तारियों को ‘ग़ैरकानूनी अपहरण’ बताया है।
‘हिरासत में नहीं, सिर्फ अस्थायी है’
द वायर ने गुड़गांव पुलिस प्रवक्ता संदीप कुमार से पूछा कि इन प्रवासियों को किन धाराओं में गिरफ्तार किया गया है, तो उन्होंने जवाब दिया, "उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है। गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार कुछ 'होल्डिंग सेंटर्स' बनाए गए हैं, जहां संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को रखा गया है। इन सेंटर्स में सभी बुनियादी सुविधाएं और चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।"
इस साल मई में, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किया था कि वे देशभर में गैरकानूनी अप्रवासियों की पहचान करें, उन्हें हिरासत में लेकर उनकी वापसी उनके अपने देश भेजें।
विऑन की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने राज्यों को 30 दिनों के भीतर दस्तावेज सत्यापन और प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। साथ ही जिला स्तर पर डिटेंशन सेंटर बनाने को भी कहा गया था।
कुमार ने बताया कि ‘संदिग्ध प्रवासियों’ को सरकार के निर्देशों के अनुसार ‘होल्डिंग सेंटर’ में रखा गया है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि ये निर्देश क्या हैं।
कुमार ने बताया कि गुड़गांव में फिलहाल चार होल्डिंग सेंटर्स हैं, लेकिन उन्होंने इन सेंटरों में बंद लोगों की संख्या बताने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति खुद को भारतीय नागरिक बताता है, तो हम संबंधित जिला मजिस्ट्रेट से उसकी नागरिकता की पुष्टि करवाते हैं। यदि पुष्टि हो जाती है, तो उसे छोड़ दिया जाता है और जिनकी पुष्टि नहीं हो पाती, उनके खिलाफ डिपोर्टेशन प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।”
उन्होंने बताया कि अब तक केवल 5-6 लोगों को ही छोड़ा गया है, जिनकी नागरिकता की पुष्टि हुई है।
सैकड़ों प्रवासी गुड़गांव छोड़कर भागे
द वायर ने गुड़गांव के खटोला गांव की एक बस्ती का दौरा किया जहां बड़ी संख्या में असम के मुस्लिम प्रवासी रहते हैं। सड़क के एक तरफ ऊंची-ऊंची इमारतें हैं, जिनमें बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के कार्यालय हैं, जबकि दूसरी तरफ झुग्गियों में रहने वाले असमिया प्रवासी मजदूर हैं, जो इन्ही कार्यालयों में सफाईकर्मी के तौर पर काम करते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस बस्ती में पहले लगभग 2,000 लोग रहते थे। लेकिन जब द वायर की टीम वहां पहुंची, तो बस्ती लगभग खाली पाई गई। सिर्फ 10–12 महिलाएं ही थीं, जो डिटेंशन सेंटर में बंद अपने अपने पति और रिश्तेदारों से मिलने के लिए जा रही थीं।
महिलाओं ने बताया कि 19 जुलाई को पुलिस ने इलाके से 40 से ज्यादा पुरुषों को हिरासत में ले लिया था। इस कार्रवाई के बाद लगभग पूरी बस्ती के लोग असम लौट गए हैं।
रोहिमा के पति नजरुल इस्लाम मोंडल को 19 जुलाई को पुलिस उनके घर से उठाकर ले गई थी। उनसे जब पूछा गया कि वह अब तक असम क्यों नहीं लौटीं तो उन्होंने जवाब दिया, “हम कैसे लौट जाएं जब हमारे पति डिटेंशन सेंटर में सड़ रहे हैं? कौन जानता है, पुलिस उनके साथ क्या कर रही होगी?”
रोहिमा का कहना है कि नजरुल के पास सभी जरूरी दस्तावेज़ मौजूद थे और उनका नाम एनआरसी में भी शामिल था इसके बावजूद उन्हें उठा लिया।
उस दिन की घटना को याद करते हुए रोहिमा ने बताया, “पुलिस ने मुझसे पूछा कि मैं कहां की हूं। मैंने जवाब दिया असम से। लेकिन उन्होंने कहा, ‘तुम सब बांग्लादेशी हो, सबको उठाएंगे।’ इसके बाद वे हमारे मर्दों को उठाकर ले गए। जब हमने पूछा कि उन्हें कब छोड़ा जाएगा तो पुलिस ने कहा, ‘तुझे क्या मतलब? भाग यहां से।’”
महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने उनके पहचान पत्र देखने की ज़हमत तक नहीं उठाई और बिना दस्तावेज जांचे ही उनके लोगों को उठा ले गई, जबकि उन्होंने कई तरह के पहचान पत्र दिखाने की कोशिश की थी।
रोहिमा ने बताया कि डिटेंशन सेंटर से उनके पति ने फोन कर सभी दस्तावेज भेजने को कहा था। उन्होंने कहा, “मैंने सारे दस्तावेज भेज दिए, लेकिन उसके बाद से उनका फोन लगातार बंद आ रहा है।”
सायरा बानो के पति रोकिबुज़ हुसैन को भी हिरासत में लिया गया है। सायरा ने बताया, “पति के जाने के बाद से मैं ठीक से खाना नहीं खा सकी। हमारी 12 साल की बेटी भी स्कूल नहीं जा रही, क्योंकि उसे स्कूल छोड़ने की जिम्मेदारी उसके पिता की थी।”
सायरा और उनके पति दोनों ही पास के दफ्तरों में घरेलू सहायक के रूप में काम करते हैं।
जब इन महिलाओं से पूछा गया कि क्या वे अब भी यहां रहेंगी, तो अधिकांश ने कहा कि जैसे ही उनके पति रिहा होंगे, वे गुड़गांव छोड़कर वापस लौट जाएंगी।
सायरा बानो के साथ खड़ी एक महिला ने कहा, “ऐसे माहौल में कोई कैसे रह सकता है, जहां हर वक्त डर बना रहता है?”
द वायर ने हिरासत में रखे गए कई लोगों से फोन पर बातचीत की। उनमें से एक व्यक्ति ने बताया कि उसे पालम विहार से उस समय उठाया गया जब वह असम से आए दर्जनभर प्रवासियों के साथ स्वेच्छा से अपने दस्तावेज दिखाने वहां गया था।
एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘कुत्तों को भी हमसे अच्छा खाना मिलता है।’
‘हमें सिर्फ बांग्ला बोलने के लिए हिरासत में लिया गया है।’
पश्चिम बंगाल से आकर कचरा बीनने वाली बस्ती में रहने वाले अमानूर शेख ने कहा, “पुलिस हमें सिर्फ इसलिए उठाती है क्योंकि हम बांग्ला बोलते हैं। क्या इस देश में बांग्ला बोलना अपराध है? अगर ऐसा है, तो हमें इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।”
उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात ने उन्हें डर के साए में जीने पर मजबूर कर दिया है। “ऐसे माहौल बनाए गए हैं कि कोई भी हमें बांग्लादेशी कहकर धमका सकता है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर सरकार चाहती है कि बांग्लाभाषी लोग एनसीआर छोड़ दें, तो इसे साफ तौर पर कहना चाहिए। हम शांति से पश्चिम बंगाल लौट जाएंगे। लेकिन हमारे साथ इस तरह अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
शेख ने इसे एक राजनीतिक साजिश करार दिया। उन्होंने कहा, “भाजपा की बार-बार कोशिशों के बावजूद बंगाल में उनकी सरकार नहीं बन सकी है, इसलिए वे अब बंगाली लोगों को निशाना बना रहे हैं।”
पिछले 15 वर्षों से दिल्ली की एक फैक्ट्री में सफाईकर्मी हफिजुर की बुआ रूपा कहती हैं, “कुछ महीने पहले पुलिस अचानक मेरे घर आई और पूछा कि क्या मैं बांग्लादेशी हूं। जब मैंने इनकार किया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें शिकायत मिली है। मैंने उन्हें अपने दस्तावेज दिखाए, तभी वे माने।”
उन्होंने कहा, “भतीजे के हिरासत में लिए जाने के बाद से मैं रात भर सो नहीं पाई हूं। पति भी डर के कारण पिछले तीन दिन से काम पर नहीं गए हैं।”
उनके पड़ोसी मिजानुर मोल्ला ने आरोप लगाया कि पुलिस ने पिछले महीने उनके ससुर सैयद मोल्ला (45) और पांच अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया था।
पिछले चार साल से दिल्ली में सफाईकर्मी मिजानुर ने बताया, “पुलिस ने मेरे ससुर को उनके कमरे से उठाया था। उन्होंने दस्तावेज भी दिखाए, लेकिन पुलिस ने उनके कागजात ले लिए और उन्हें दो-तीन दिन जेल में रखा, जहां उनको प्रताड़ित भी किया गया।”
उन्होंने कहा, ‘पुलिस मानती है कि बांग्ला बोलने वाला हर मुस्लिम बांग्लादेशी है।’
रूपा कहती हैं, ‘हमारे गांव में कोई हिंदी नहीं बोलता, सब बंगाली बोलते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम बांग्लादेशी हैं।’
‘ये ग़ैरकानूनी हिरासत है’
वकील सुपंता सिन्हा ने कहा, “पुलिस अधिकारियों से बातचीत के बाद हमें पता चला कि गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को उसकी पहचान की जांच के लिए 30 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है।”
इन हिरासतों को ग़ैरकानूनी बताते हुए उन्होंने कहा, “कानून के तहत हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को कानूनी सहायता का अधिकार प्राप्त है। बिना किसी ठोस कारण के किसी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता और अनिश्चितकालीन हिरासत पूरी तरह अस्वीकार्य है।”
उन्होंने कहा, “मुझे ये डिटेंशन पहचान पर आधारित लगती है। ज्यादातर लोग बांग्लाभाषी मुस्लिम हैं, जो पश्चिम बंगाल या असम के निवासी हैं।”
उन्होंने सवाल किया कि, “इनकी नागरिकता कौन तय कर रहा है? किन दस्तावेजों के आधार पर? क्या इन पर कोई सर्वेक्षण हुआ है? और किन मानकों के तहत इनके दस्तावेज संदिग्ध माने जा रहे हैं?”
इन सवालों पर सरकारी अधिकारी अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। सुपंता सिन्हा ने कहा कि सीपीआई-एमएल इस मामले को अदालत तक ले जाने की योजना बना रही है। “हम सभी कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।”
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फोटो साभार : द वायर
गुड़गांव की एक दुकान के बाहर 19 जुलाई को सफाईकर्मी के तौर पर अपनी शिफ्ट पूरी करने के बाद 41 वर्षीय हफजुर शेख को पुलिस ने रोका और पूछताछ करने लगी। उन्होंने सभी सवालों के जवाब दिए, लेकिन फिर उनसे ‘नागरिकता की पुष्टि’ के लिए पहचान पत्र दिखाने को कहा गया।
हालांकि उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य जरूरी दस्तावेज फोन में मौजूद थे लेकिन पुलिस ने उन्हें मानने से इनकार कर दिया। उनके भाई अमनुर ने द वायर को बताया, "पुलिस फिजिकल कॉपी की मांग कर रही थी। मेरे भाई ने कहा कि वह घर से दस्तावेज लाकर दिखा सकता है या पुलिस उसके साथ चलकर खुद देख सकती है, लेकिन उन्होंने कोई बात नहीं सुनी और उसे हिरासत में ले लिया।"
हफिजुर पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रहने वाले हैं और उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं जिन्हें हरियाणा के गुड़गांव में पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया है। इनमें ज्यादातर मुस्लिम पुरुष शामिल हैं, जो गुड़गांव की बड़ी कंपनियों में सफाईकर्मी, कचरा चुनने वाले, पब्लिक सेनिटेशन कर्मचारी, घरेलू सहायक और डिलीवरी एजेंट जैसे काम करते हैं।
सिर्फ 19 जुलाई को ही पुलिस ने कम से कम 74 मजदूरों को हिरासत में लिया, जिनमें 11 पश्चिम बंगाल से और 63 असम से थे।
पुलिस को संदेह है कि ये सभी लोग बांग्लादेश से आए 'अवैध प्रवासी' हैं, इसी कारण उन्हें 'होल्डिंग सेंटर्स' में रखा गया है, जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्थायी डिटेंशन कैंप के रूप में बता रहे हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) [सीपीआई-एमएल] के सदस्य और वकील सुपंता सिन्हा ने बताया कि गुड़गांव के सेक्टर 10 में स्थित इस कैंप में 200 से ज्यादा लोगों को बंद रखा गया है।
'नागरिकता सत्यापन' के नाम पर प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिए जाने की खबर सामने आने के बाद, 21 जुलाई को सीपीआई-एमएल की दो सदस्यीय टीम ने गुड़गांव के सेक्टर 10 में बनाए गए एक अस्थायी डिटेंशन सेंटर का दौरा किया। सुपंता सिन्हा इस टीम का हिस्सा थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि मजदूरों को ‘अमानवीय परिस्थितियों’ में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सीपीआई-एमएल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि गुड़गांव के अन्य इलाकों में भी इसी तरह की कार्रवाई जारी है और कुछ क्षेत्रों में 200 से ज्यादा लोगों को हिरासत में रखा गया है।
सिन्हा का कहना है कि यह कार्रवाई केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के तहत की जा रही है और यह देशभर में अवैध प्रवासियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा है। हालांकि, कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इन कार्रवाइयों का सबसे ज्यादा प्रभाव बांग्लाभाषी मुस्लिम प्रवासियों पर पड़ रहा है, खासकर उन पर जो पश्चिम बंगाल और असम से आते हैं।
हाल ही में कोलकाता में किए गए एक विरोध प्रदर्शन के दौरान ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने दिल्ली (जय हिंद कॉलोनी), एनसीआर और ओडिशा में प्रवासी मजदूरों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज उठाई। इस दौरान ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देते हुए कहा, “अगर हिम्मत है तो मुझे डिटेंशन सेंटर में डालो।”
इन कार्रवाइयों की कड़ी निंदा करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "देश में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बांग्ला है, जो असम की भी दूसरी प्रमुख भाषा है। यदि कोई नागरिक शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है और अपनी भाषा व धर्म का सम्मान करता है, तो उसे धमकाना असंवैधानिक है।"
राज्यसभा सांसद और बंगाली प्रवासी बोर्ड के प्रमुख समीरुल इस्लाम ने भाजपा पर बंगालियों के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इन गिरफ्तारियों को ‘ग़ैरकानूनी अपहरण’ बताया है।
‘हिरासत में नहीं, सिर्फ अस्थायी है’
द वायर ने गुड़गांव पुलिस प्रवक्ता संदीप कुमार से पूछा कि इन प्रवासियों को किन धाराओं में गिरफ्तार किया गया है, तो उन्होंने जवाब दिया, "उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है। गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार कुछ 'होल्डिंग सेंटर्स' बनाए गए हैं, जहां संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को रखा गया है। इन सेंटर्स में सभी बुनियादी सुविधाएं और चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।"
इस साल मई में, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किया था कि वे देशभर में गैरकानूनी अप्रवासियों की पहचान करें, उन्हें हिरासत में लेकर उनकी वापसी उनके अपने देश भेजें।
विऑन की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने राज्यों को 30 दिनों के भीतर दस्तावेज सत्यापन और प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। साथ ही जिला स्तर पर डिटेंशन सेंटर बनाने को भी कहा गया था।
कुमार ने बताया कि ‘संदिग्ध प्रवासियों’ को सरकार के निर्देशों के अनुसार ‘होल्डिंग सेंटर’ में रखा गया है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि ये निर्देश क्या हैं।
कुमार ने बताया कि गुड़गांव में फिलहाल चार होल्डिंग सेंटर्स हैं, लेकिन उन्होंने इन सेंटरों में बंद लोगों की संख्या बताने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति खुद को भारतीय नागरिक बताता है, तो हम संबंधित जिला मजिस्ट्रेट से उसकी नागरिकता की पुष्टि करवाते हैं। यदि पुष्टि हो जाती है, तो उसे छोड़ दिया जाता है और जिनकी पुष्टि नहीं हो पाती, उनके खिलाफ डिपोर्टेशन प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।”
उन्होंने बताया कि अब तक केवल 5-6 लोगों को ही छोड़ा गया है, जिनकी नागरिकता की पुष्टि हुई है।
सैकड़ों प्रवासी गुड़गांव छोड़कर भागे
द वायर ने गुड़गांव के खटोला गांव की एक बस्ती का दौरा किया जहां बड़ी संख्या में असम के मुस्लिम प्रवासी रहते हैं। सड़क के एक तरफ ऊंची-ऊंची इमारतें हैं, जिनमें बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के कार्यालय हैं, जबकि दूसरी तरफ झुग्गियों में रहने वाले असमिया प्रवासी मजदूर हैं, जो इन्ही कार्यालयों में सफाईकर्मी के तौर पर काम करते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस बस्ती में पहले लगभग 2,000 लोग रहते थे। लेकिन जब द वायर की टीम वहां पहुंची, तो बस्ती लगभग खाली पाई गई। सिर्फ 10–12 महिलाएं ही थीं, जो डिटेंशन सेंटर में बंद अपने अपने पति और रिश्तेदारों से मिलने के लिए जा रही थीं।
महिलाओं ने बताया कि 19 जुलाई को पुलिस ने इलाके से 40 से ज्यादा पुरुषों को हिरासत में ले लिया था। इस कार्रवाई के बाद लगभग पूरी बस्ती के लोग असम लौट गए हैं।
रोहिमा के पति नजरुल इस्लाम मोंडल को 19 जुलाई को पुलिस उनके घर से उठाकर ले गई थी। उनसे जब पूछा गया कि वह अब तक असम क्यों नहीं लौटीं तो उन्होंने जवाब दिया, “हम कैसे लौट जाएं जब हमारे पति डिटेंशन सेंटर में सड़ रहे हैं? कौन जानता है, पुलिस उनके साथ क्या कर रही होगी?”
रोहिमा का कहना है कि नजरुल के पास सभी जरूरी दस्तावेज़ मौजूद थे और उनका नाम एनआरसी में भी शामिल था इसके बावजूद उन्हें उठा लिया।
उस दिन की घटना को याद करते हुए रोहिमा ने बताया, “पुलिस ने मुझसे पूछा कि मैं कहां की हूं। मैंने जवाब दिया असम से। लेकिन उन्होंने कहा, ‘तुम सब बांग्लादेशी हो, सबको उठाएंगे।’ इसके बाद वे हमारे मर्दों को उठाकर ले गए। जब हमने पूछा कि उन्हें कब छोड़ा जाएगा तो पुलिस ने कहा, ‘तुझे क्या मतलब? भाग यहां से।’”
महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने उनके पहचान पत्र देखने की ज़हमत तक नहीं उठाई और बिना दस्तावेज जांचे ही उनके लोगों को उठा ले गई, जबकि उन्होंने कई तरह के पहचान पत्र दिखाने की कोशिश की थी।
रोहिमा ने बताया कि डिटेंशन सेंटर से उनके पति ने फोन कर सभी दस्तावेज भेजने को कहा था। उन्होंने कहा, “मैंने सारे दस्तावेज भेज दिए, लेकिन उसके बाद से उनका फोन लगातार बंद आ रहा है।”
सायरा बानो के पति रोकिबुज़ हुसैन को भी हिरासत में लिया गया है। सायरा ने बताया, “पति के जाने के बाद से मैं ठीक से खाना नहीं खा सकी। हमारी 12 साल की बेटी भी स्कूल नहीं जा रही, क्योंकि उसे स्कूल छोड़ने की जिम्मेदारी उसके पिता की थी।”
सायरा और उनके पति दोनों ही पास के दफ्तरों में घरेलू सहायक के रूप में काम करते हैं।
जब इन महिलाओं से पूछा गया कि क्या वे अब भी यहां रहेंगी, तो अधिकांश ने कहा कि जैसे ही उनके पति रिहा होंगे, वे गुड़गांव छोड़कर वापस लौट जाएंगी।
सायरा बानो के साथ खड़ी एक महिला ने कहा, “ऐसे माहौल में कोई कैसे रह सकता है, जहां हर वक्त डर बना रहता है?”
द वायर ने हिरासत में रखे गए कई लोगों से फोन पर बातचीत की। उनमें से एक व्यक्ति ने बताया कि उसे पालम विहार से उस समय उठाया गया जब वह असम से आए दर्जनभर प्रवासियों के साथ स्वेच्छा से अपने दस्तावेज दिखाने वहां गया था।
एक अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘कुत्तों को भी हमसे अच्छा खाना मिलता है।’
‘हमें सिर्फ बांग्ला बोलने के लिए हिरासत में लिया गया है।’
पश्चिम बंगाल से आकर कचरा बीनने वाली बस्ती में रहने वाले अमानूर शेख ने कहा, “पुलिस हमें सिर्फ इसलिए उठाती है क्योंकि हम बांग्ला बोलते हैं। क्या इस देश में बांग्ला बोलना अपराध है? अगर ऐसा है, तो हमें इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।”
उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात ने उन्हें डर के साए में जीने पर मजबूर कर दिया है। “ऐसे माहौल बनाए गए हैं कि कोई भी हमें बांग्लादेशी कहकर धमका सकता है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर सरकार चाहती है कि बांग्लाभाषी लोग एनसीआर छोड़ दें, तो इसे साफ तौर पर कहना चाहिए। हम शांति से पश्चिम बंगाल लौट जाएंगे। लेकिन हमारे साथ इस तरह अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
शेख ने इसे एक राजनीतिक साजिश करार दिया। उन्होंने कहा, “भाजपा की बार-बार कोशिशों के बावजूद बंगाल में उनकी सरकार नहीं बन सकी है, इसलिए वे अब बंगाली लोगों को निशाना बना रहे हैं।”
पिछले 15 वर्षों से दिल्ली की एक फैक्ट्री में सफाईकर्मी हफिजुर की बुआ रूपा कहती हैं, “कुछ महीने पहले पुलिस अचानक मेरे घर आई और पूछा कि क्या मैं बांग्लादेशी हूं। जब मैंने इनकार किया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें शिकायत मिली है। मैंने उन्हें अपने दस्तावेज दिखाए, तभी वे माने।”
उन्होंने कहा, “भतीजे के हिरासत में लिए जाने के बाद से मैं रात भर सो नहीं पाई हूं। पति भी डर के कारण पिछले तीन दिन से काम पर नहीं गए हैं।”
उनके पड़ोसी मिजानुर मोल्ला ने आरोप लगाया कि पुलिस ने पिछले महीने उनके ससुर सैयद मोल्ला (45) और पांच अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया था।
पिछले चार साल से दिल्ली में सफाईकर्मी मिजानुर ने बताया, “पुलिस ने मेरे ससुर को उनके कमरे से उठाया था। उन्होंने दस्तावेज भी दिखाए, लेकिन पुलिस ने उनके कागजात ले लिए और उन्हें दो-तीन दिन जेल में रखा, जहां उनको प्रताड़ित भी किया गया।”
उन्होंने कहा, ‘पुलिस मानती है कि बांग्ला बोलने वाला हर मुस्लिम बांग्लादेशी है।’
रूपा कहती हैं, ‘हमारे गांव में कोई हिंदी नहीं बोलता, सब बंगाली बोलते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम बांग्लादेशी हैं।’
‘ये ग़ैरकानूनी हिरासत है’
वकील सुपंता सिन्हा ने कहा, “पुलिस अधिकारियों से बातचीत के बाद हमें पता चला कि गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को उसकी पहचान की जांच के लिए 30 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है।”
इन हिरासतों को ग़ैरकानूनी बताते हुए उन्होंने कहा, “कानून के तहत हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को कानूनी सहायता का अधिकार प्राप्त है। बिना किसी ठोस कारण के किसी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता और अनिश्चितकालीन हिरासत पूरी तरह अस्वीकार्य है।”
उन्होंने कहा, “मुझे ये डिटेंशन पहचान पर आधारित लगती है। ज्यादातर लोग बांग्लाभाषी मुस्लिम हैं, जो पश्चिम बंगाल या असम के निवासी हैं।”
उन्होंने सवाल किया कि, “इनकी नागरिकता कौन तय कर रहा है? किन दस्तावेजों के आधार पर? क्या इन पर कोई सर्वेक्षण हुआ है? और किन मानकों के तहत इनके दस्तावेज संदिग्ध माने जा रहे हैं?”
इन सवालों पर सरकारी अधिकारी अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। सुपंता सिन्हा ने कहा कि सीपीआई-एमएल इस मामले को अदालत तक ले जाने की योजना बना रही है। “हम सभी कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।”
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