झारखंड के स्कूलों में शिक्षकों और शौचालय समेत बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी : रिपोर्ट

Written by sabrang india | Published on: June 28, 2025
मनिका के 40 सरकारी स्कूलों में किए गए सर्वे पर आधारित रिपोर्ट में झारखंड की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की भयावह स्थिति उजागर हुई है। सर्वे के दौरान 87.5% स्कूलों में कोई पढ़ाई नहीं हो रही थी, साथ ही शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थी।


साभार : इंडिया डॉट कॉम (प्रतीकात्मक तस्वीर)

लातेहार के मनिका स्थित नरेगा सहायता केंद्र की ताजा रिपोर्ट ने झारखंड के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की बदहाल स्थिति को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

'एकल शिक्षक स्कूलों का संकट' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि झारखंड में 8,000 से ज्यादा एकल-शिक्षक विद्यालय राइट टू एजुकेशन (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम के मानकों का स्पष्ट उल्लंघन कर रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य में वर्ष 2016 के बाद से अब तक किसी भी नए शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गई है।

चौंकाने वाले आंकड़े

मनिका प्रखंड के 40 विद्यालयों में कराए गए सर्वे के दौरान चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई जहां 87.5 प्रतिशत स्कूलों में किसी प्रकार का शिक्षण कार्य नहीं हो रहा था, जबकि 82.5 प्रतिशत विद्यालयों में बच्चों के लिए शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी।

रिपोर्ट के अनुसार, इन स्कूलों में औसतन 59 छात्रों की पढ़ाई की जिम्मेदारी केवल एक शिक्षक पर है, जबकि राइट टू एजुकेशन अधिनियम के मानदंडों के अनुसार इन 40 विद्यालयों में कम से कम 99 शिक्षकों की आवश्यकता है। सबसे गंभीर स्थिति बिचलीडाग गांव के स्कूल की है, जहां 144 छात्रों की पूरी पढ़ाई मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रही है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले 84 प्रतिशत बच्चे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिनके पास निजी शिक्षण संस्थानों का कोई विकल्प नहीं है। एक और चौंकाने वाली जानकारी यह है कि इन विद्यालयों में कार्यरत 77.5 प्रतिशत शिक्षक 40 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं, जबकि महिला शिक्षकों की संख्या बेहद कम यानी केवल 15 प्रतिशत है।

रिपोर्ट में यह भी उजागर हुआ है कि शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। APAAR ID जैसे प्रशासनिक कार्यों में उलझे शिक्षक कक्षा में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। सर्वेक्षण के दौरान एक ग्रामीण ने चिंता जाहिर करते हुए बताया कि 'पांचवीं कक्षा के बच्चे अभी तक ठीक से पढ़-लिख नहीं पाते', जो शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

सर्वे में शामिल 33 में केवल 7 स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था

बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो राज्य सरकार के UDISE प्लस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस) डेटा के अनुसार झारखंड के 98 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की सुविधा होने का दावा किया जाता है, लेकिन मनिका ब्लॉक की हकीकत इसके उलट है। यहां 33 में से केवल 7 स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था है

इसी तरह, कई स्कूलों में न तो बिजली की व्यवस्था है, न ही साफ पेयजल और न ही बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त सुविधाएं। ऐसे हालात में छात्रों को जमीन पर बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर होना पड़ता है।

मध्याह्न भोजन योजना की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है। बच्चों को पौष्टिक आहार और अंडे के नियमित वितरण के बजाय केवल नाममात्र का खाना परोसा जा रहा है। वहीं, रसोइयों की स्थिति और भी दयनीय है-उन्हें अक्टूबर 2024 से अब तक वेतन तक नहीं मिला है।

सबसे चौंकाने वाला मामला चार स्कूलों में सामने आया, जहां शिक्षक कक्षा के दौरान शराब के नशे में पाए गए। यह स्थिति यूपीजी-पीएस बेटला, पीएस एजामार, यूपीएस बखरटोला और यूपीजी-पीएस रखत में देखी गई है, जो शिक्षा व्यवस्था की भारी गिरावट को दर्शाती है।

शिक्षकों के 95,897 पद खाली

झारखंड हाई कोर्ट ने हाल ही में इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए शिक्षकों की तत्काल नियुक्ति का निर्देश दिया है। इसके जवाब में राज्य सरकार ने सितंबर 2025 तक 26,000 शिक्षकों की भर्ती का वादा किया है। हालांकि, शिक्षा मंत्रालय के 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में कुल 95,897 शिक्षक पद खाली हैं, जिससे यह साफ होता है कि प्रस्तावित संख्या भी पर्याप्त नहीं होगी।

रिपोर्ट की सह-लेखिका पल्लवी कुमारी ने कहा, ‘जब तक शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने के बजाय रिपोर्ट बनाने और दिवाली पूजा पर 15,000 रुपये खर्च करने में लगे रहेंगे, तब तक बदलाव की उम्मीद बेकार है।’ उनके सहयोगी सारंग गायकवाड़ ने इस सर्वे को शिक्षा के अधिकार की पूरी तरह विफलता करार देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चे इस व्यवस्था की सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि केवल शिक्षक भर्ती से इस गहरे संकट का समाधान संभव नहीं है। बुनियादी ढांचे में सुधार, शिक्षकों के कार्यभार में कमी और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए समग्र और सुदृढ़ नीति बनाने की जरूरत है। जब तक शिक्षा व्यवस्था में ये मूलभूत बदलाव नहीं होंगे, तब तक झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का भविष्य अंधकारमय बना रहेगा। तत्काल सुधार के रूप में स्थायी शिक्षकों की भर्ती, शौचालयों का निर्माण और मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है।

Related

दलित महिला मुख्य रसोइया नियुक्त होने पर अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल से निकाला

बाकी ख़बरें