मणिपुर हिंसा: दो साल पूरे होने पर स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने राज्य में आवश्यक सेवाओं को शुरू करने और बढ़ाने की मांग की

Written by sabrang india | Published on: June 26, 2025
मणिपुर हिंसा और अशांति के दो साल पूरे होने पर भारत भर के स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं और आंदोलनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मी से मणिपुर की घाटी, पहाड़ियों और राहत शिविरों में सुरक्षा और उचित बजटीय आवंटन के साथ प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, कर्मियों, सेवाओं के तत्काल निर्माण/पुनर्स्थापन की अपील की है।


फोटो साभार : बीबीसी (फाइल फोटो)

24 जून 2025: जब देश और दुनिया कई अन्य बड़ी घटनाओं से निपटने में ‘आगे बढ़’ चुकी है, ऐसे में मणिपुर में दो साल पहले भड़की हिंसा का असर आज भी लाखों लोगों की जिंदगी को कई तरीके से प्रभावित कर रहा है। हिंसा और सामाजिक तनावों का बोझ झेल रहे लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए हाल ही में एक पहल की गई, जिसका उद्देश्य मणिपुर पर दोबारा ध्यान केंद्रित करना था। इस पहल ने स्वास्थ्य के अधिकार को जीवन के अधिकार और राज्य के लोगों की गरिमा के साथ जीने के अधिकार को जरूरी मुद्दा बनाया गया।

नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (NAPM) की देशव्यापी इनिशिएटिव्स नेशनल हेल्थ राइट्स अलायंस, ऑल इंडिया फेमिनिस्ट अलायंस (ALIFA) और नेशनल अलायंस फॉर जस्टिस, अकाउंटेबिलिटी एंड राइट्स (NAJAR) ने मिलकर मणिपुर में जारी संकट और वहां की गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य स्थिति को लेकर एकजुटता दिखाने का प्रयास किया। इन संगठनों ने राष्ट्रपति शासन के अधीन चल रहे राज्य को लेकर माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का ध्यान खींचा। देशभर के कई प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में राष्ट्रपति से तत्काल दखल देने की मांग की गई है, ताकि मणिपुर की घाटी, पहाड़ी क्षेत्रों और राहत शिविरों में एक मजबूत और सुरक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा, पर्याप्त मेडिकल स्टाफ, जरूरी सेवाएं और उचित बजट आवंटन सुनिश्चित किया जा सके। मुख्य मांगें नीचे दी गई हैं:

पत्र में यह कहा गया है कि मणिपुर में छिटपुट हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन 2023 से शुरू हुआ संघर्ष राज्य की बुनियादी सेवाओं की संरचना को गहराई से प्रभावित कर चुका है खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को। हिंसा के चलते कई अस्पताल और क्लीनिक क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं रुक गई हैं और संसाधनों की कमी हो गई है। स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा को लेकर खतरे बढ़ने के कारण कई जरूरी इलाकों में स्टाफ की भारी कमी हो गई है। इस हिंसा में हजारों लोग विस्थापित हुए हैं और उन्हें बेहद भीड़भाड़ वाले राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है, जहां साफ-सफाई की व्यवस्था बेहद खराब है और इलाज की सुविधाएं भी बहुत सीमित हैं। इससे बीमारियों के फैलने का खतरा और बढ़ गया है। पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य तंत्र अब पूरी तरह चरमरा चुका है, जिससे संकट के समय की सरकारी प्रतिक्रिया और बुनियादी ढांचे की कमजोरी साफ तौर पर उजागर हो गई है। इस हिंसा का सबसे ज्यादा असर महिलाओं, बच्चों, छात्रों और बुज़ुर्गों पर पड़ा है।

हस्ताक्षरकर्ताओं ने इस बात को उजागर किया है कि मणिपुर जैसे हिंसा-ग्रस्त क्षेत्र में एक न्यायपूर्ण, समान और लंबे समय तक बनी रहने वाली शांति स्थापित करने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य अधिकार सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। मौजूदा हालात में, एक तरफ जारी संकट की वजह से, और दूसरी तरफ खुद राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के असमान वितरण के कारण राज्य के कई हिस्सों में जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं गंभीर रूप से बाधित हैं। जहां अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएं केवल इंफाल में केंद्रित हैं, वहीं बाकी जिलों में बुनियादी ढांचे की भारी कमी है। इन इलाकों में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं, न ही जरूरी स्टाफ और न ही मौजूदा अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं मौजूद हैं।

इस याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों में कई जाने-माने स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता जैसे डॉ. वंदना प्रसाद, डॉ. वीना शत्रुग्ना, डॉ. मीरा शिवा, डॉ. सिल्विया कार्पगम, डॉ. ऋतु प्रिया, डॉ. सुहास कोलहेकार, डॉ. मोहन राव, डॉ. नरेंद्र गुप्ता, डॉ. स्वाथी एसबी, डॉ. रैंडल सेक्वेरा, डॉ. फुआद हलीम, डॉ. एकबाल, अखिला वासन, इंद्रनील आदि शामिल हैं। याचिका का समर्थन करने वाले कुछ वकीलों में एडवोकेट अल्बर्टिना, एडवोकेट गृजेश, एडवोकेट वनाजा, एडवोकेट रीमा, एडवोकेट शुभम, एडवोकेट अफसर जहां, एडवोकेट मृणालिनी, एडवोकेट शकील, एडवोकेट तानिया, एडवोकेट शालू निगम, एडवोकेट शादाब, एडवोकेट मिनी मैथ्यू, एडवोकेट सिलेनमांग हाओकिप, एडवोकेट जोसी मिलुन ज़ौ, एडवोकेट सुकुमारन आदि शामिल हैं।

याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं में कल्याणी मेनन सेन, हेचिन हाओकिप, सुनीथा अच्युत, नलिनी नायक, जॉन दयाल, अमनू अब्राहम, आनंद मैथ्यू, मांशी अशर, निशा बिस्वास, डॉ. बिट्टू, प्रोफेसर इंद्राणी दत्ता, कोनिनिका रे, डॉ. सागरी रामदास, अनीता चेरिया, एसआर दरापुरी, राजेश रामकृष्णन, सौम्या दत्ता, उसमंगनी शेरासिया, सुजाता गोथोस्कर, जे देविका, नरबिंदर, प्रसाद चाको, अनुराधा बनर्जी, मीरा संघमित्रा और कई अन्य कार्यकर्ता शामिल हैं।

इन हस्ताक्षरकर्ताओं ने राष्ट्रपति के सामने निम्नलिखित 10 मांगें रखी हैं, जिन पर तुरंत ध्यान देने के साथ-साथ उचित कार्रवाई भी आवश्यक है:

1. एक विशेष टास्क फोर्स तुरंत गठित की जाए, जिसका नेतृत्व एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाए जिसके पास कैबिनेट सचिव के समकक्ष अधिकार हों। इस टास्क फोर्स के लिए विशेष फंड भी आवंटित किया जाना चाहिए। इसका काम मणिपुर में वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य स्थिति की जांच करना होगा, जिसे 2 महीने के निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा करना होगा। टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर सरकार को मणिपुर में सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठाने और लागू करने चाहिए।

2. क्षेत्र के निष्पक्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक समिति बुलाई जाए, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास तथा जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए, उपरोक्त योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के तरीकों पर चर्चा करें।

3. सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में खाली पदों को तुरंत भरना और नर्सों, डॉक्टरों तथा अन्य मेडिकल स्टाफ की भर्ती करना।

4. केंद्र सरकार को अतिरिक्त धनराशि आवंटित करनी चाहिए, भले ही मणिपुर स्वास्थ्य सेवा पर कुछ अन्य राज्यों की तुलना में थोड़ा ज्यादा खर्च करता हो। चूंकि राज्य में बार-बार हिंसक संघर्ष हुए हैं, इसलिए अतिरिक्त फंड और उचित बजट आवंटन बेहद जरूरी हैं।

5. गृह विभाग, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, महिला एवं बाल कल्याण और सामाजिक कल्याण विभागों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि आदिवासी, स्थानीय समुदाय, बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे, विकलांग व्यक्ति, कामगार, छात्र, धार्मिक अल्पसंख्यक, ट्रांसजेंडर, क्वीयर लोगों सहित सबसे कमजोर नागरिकों और सामाजिक समूहों के अधिकार और सुविधाओं की पूरी देखभाल हो सके।

6. गांवों और राहत शिविरों में मानसून और बीमारी फैलने की संभावना को देखते हुए पहले से ही पूरी तैयारी सुनिश्चित की जाए।

7. यह सुनिश्चित किया जाए कि स्वास्थ्य सेवाओं में लिंग, धर्म और जातीयता के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।

8. मणिपुर के ज्यादा से ज्यादा जिलों में जितना संभव हो, सीमित समय सीमा के भीतर प्रभावी और विकेंद्रीकृत स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित की जाएं। सबसे जरूरी बात यह है कि लमका में, खासकर तुइबुआंग और सांगाइकोट क्षेत्रों में, फंक्शनल कम्युनिटी हेल्थ सेंटर बनाए जाएं।

9. सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए, जिला अस्पतालों के निजीकरण को रोका जाए, कॉरपोरेट और निजी स्वास्थ्य सेवाओं को विनियमित किया जाए, गुणवत्तापूर्ण दवाइयां मुफ्त उपलब्ध कराई जाएं और सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल किया जाए, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में यूनिवर्सल हेल्थ केयर सुनिश्चित की जाए।

10. राज्य सरकार को सभी नागरिकों के स्वास्थ्य अधिकार के लिए एक व्यापक कानून लाना चाहिए, जो सभी स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को निपटा सके।

इस पत्र में केंद्र और राज्य सरकार से सक्रिय कदम उठाने और उपरोक्त मांगों को लागू करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की मांग की गई है। हस्ताक्षरकर्ताओं ने राष्ट्रपति से भी अनुरोध किया है कि वे जल्द से जल्द मणिपुर का दौरा करें, पहाड़ों, घाटी और राहत शिविरों में जाकर सभी समुदायों की स्थिति को सीधे देखें और प्रभावी दखल दें ताकि मणिपुर के लोगों के स्वास्थ्य का अधिकार, जीवन का अधिकार, सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।

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