कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने फिर से हिरासत में लेने से पहले जमानत आदेश को रद्द करने के लिए कभी अर्जी नहीं दी। चिरांग के एसपी (बॉर्डर) को फिर हिरासत में लेने से पहले की गई साप्ताहिक पुलिस रिपोर्टिंग की पुष्टि करने का निर्देश दिया।

अब तक हमे जो जानकारी है: 20 जून, 2025
एक रिट याचिका में, जिसमें हाल ही में उच्च न्यायालय द्वारा COVID बेल पर रिहा किए गए लोगों को दोबारा हिरासत में लेने से जुड़े गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 20 जून को विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को निर्देश दिया कि वे संबंधित न्यायालय का आदेश चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) को भेजें। इसका उद्देश्य यह सत्यापित करना है कि याचिकाकर्ता सनिदुल शेख के पिता अब्दुल शेख, ने अप्रैल 2021 में जमानत पर रिहाई के बाद से हर सप्ताह थाने में उपस्थिति देने की शर्तों का पालन किया है या नहीं।
अदालत का यह निर्देश उस समय आया जब याचिकाकर्ता के वकील, अधिवक्ता मृण्मय दत्ता ने पीठ को जानकारी दी कि कोकराझार होल्डिंग सेंटर में अदालत की अनुमति से मुलाक़ात हुई थी और याचिकाकर्ता इस आधार पर जमानत की मांग कर रहे थे कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने उच्च न्यायालय के 15 अप्रैल 2020 के रिहाई आदेश में निर्धारित शर्तों के अनुसार साप्ताहिक रूप से पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना जारी रखा है। इस मामले में CJP (सिटिज़ंस फॉर जस्टिस एंड पीस) याचिकाकर्ता को कानूनी सहायता दे रहा है।
पिछली सुनवाई का डिटेल यहां और यहां पढ़े जा सकते हैं।
अदालत: गिरफ्तारी को उचित ठहराने से पहले जमानत की शर्तों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
विरासत याचिका के पैरा 13 से पढ़ते हुए, अदालत ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से बताया था कि अब्दुल शेख नियमित रूप से निर्दिष्ट पुलिस स्टेशन में जा रहे थे और उनकी आखिरी रिपोर्टिंग 21 मई 2025 को दर्ज हुई थी, जो उनकी अचानक फिर से गिरफ्तारी के कुछ दिन पहले थी। याचिका में Annexure 6 पर निर्भरता जताई गई है, जिसमें उनकी रिपोर्टिंग का रिकॉर्ड शामिल है। डिवीजन बेंच की तरफ से बोलते हुए, न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराना, जिनके साथ न्यायमूर्ति मलस्री नंदी भी हैं, ने कहा कि राज्य की तरफ से एक बड़ी चूक हुई है:
“मुद्दा ये नहीं है कि विदेशी होने के दर्जे को चुनौती दी गई है या नहीं। बात ये है कि जमानत रद्द करने की कोई अर्जी दायर नहीं की गई थी। किसी ने शायद इस पर ध्यान ही नहीं दिया।”
इस बयान से साफ होता है कि राज्य सरकार की तरफ से वह जमानत आदेश रद्द करने या वापस लेने की कोई अर्जी दाखिल नहीं की गई थी, जिसके तहत अब्दुल शेख को दो साल से ज्यादा हिरासत में रहने के बाद 30 अप्रैल 2021 को रिहा किया गया था। यह रिहाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूओ मोटो WP(C) 1/2020 में निर्धारित और गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई COVID-19 व्यवस्था के अनुसार की गई।
इसके बावजूद, मई 2025 में उन्हें दोबारा उठा लिया गया, जबकि न तो जमानत की शर्तों के उल्लंघन का कोई संकेत था और न ही कोई नया न्यायिक आदेश जारी हुआ था।
याचिकाकर्ता ने जमानत बहाल करने की मांग की
वकील दास ने जोर देकर कहा कि यह रिट याचिका सिर्फ अब्दुल शेख का पता लगाने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी दोबारा हिरासत को भी कानूनी रूप से चुनौती दे रही है, क्योंकि जमानत की सभी शर्तों का पूरी तरह पालन किया गया था। याचिकाकर्ता ने मांग की कि उनके पिता की जमानत बहाल की जाए, क्योंकि न तो किसी शर्त का उल्लंघन हुआ था और न ही उनकी दोबारा गिरफ्तारी का कोई जायज कारण दिया गया है।
अदालत ने तुरंत जमानत पर कोई आदेश देने के बजाय, विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को निर्देश दिया कि वह अदालत का आदेश चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) को भेजें। इसके साथ यह साफ हिदायत भी दी गई कि अब्दुल शेख द्वारा अप्रैल 2021 में रिहाई के बाद से साप्ताहिक रिपोर्टिंग करने के दावे की पुष्टि की जाए।
अदालत का निर्देश: साप्ताहिक हाज़िरी की पुष्टि
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने निर्देश दिया कि:
● विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को अदालत का आदेश चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) तक पहुंचाना होगा।
● एसपी (बॉर्डर) यह जांच करेंगे कि क्या अब्दुल शेख ने 30 अप्रैल 2021 को रिहा होने के बाद से नियमित रूप से पुलिस स्टेशन में हाज़िरी दी है या नहीं।
● यह मामला अब 25 जून 2025 को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जहां जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे का आदेश दिया जाएगा।
● अदालत ने जमानत बहाल करने की याचिका पर फिलहाल कोई निर्णय नहीं दिया है, लेकिन यह जांच कि क्या पहले दी गई न्यायिक रिहाई की शर्तों का पालन हुआ है, अब इस पूरे मामले का मुख्य मुद्दा बन गया है।
पृष्ठभूमि: COVID जमानत पर रिहाई, और बिना सूचना के दोबारा हिरासत
विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा अब्दुल शेख को विदेशी घोषित किया गया था और उन्हें दो साल से ज्यादा समय तक एक हिरासत केंद्र में रखा गया। उन्हें 30 अप्रैल 2021 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 15 अप्रैल 2020 के आदेश के तहत रिहा किया गया था, जो सुप्रीम कोर्ट के COVID-19 संबंधी भीड़ कम करने के निर्देशों पर आधारित था।
कई ऐसे ही अन्य बंदियों की तरह, उन्होंने भी बिना किसी उल्लंघन के स्थानीय पुलिस स्टेशन में साप्ताहिक रिपोर्टिंग जारी रखी। फिर भी, मई 2025 में उन्हें अचानक फिर से गिरफ्तार कर कोकराझार होल्डिंग सेंटर में भेज दिया गया, जबकि उनकी जमानत रद्द नहीं की गई थी और न ही उन्हें किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
अब्दुल शेख के परिवार ने मई में एक रिट याचिका दायर की। 9 जून की सुनवाई में राज्य ने पुष्टि की कि अब्दुल शेख वर्तमान में कोकराझार होल्डिंग सेंटर में हैं। उच्च न्यायालय ने मुलाकात करने के अधिकार दिए, जिससे सनीदुल शेख और दो अन्य परिवार के सदस्य उनसे मिलने जा सकते हैं। अदालत ने परिवार को उनकी ओर से कानूनी प्रतिनिधित्व की औपचारिकता पूरी करने के लिए वकालतनामा पर उनके हस्ताक्षर लेने की भी अनुमति दी।
यह याचिका उन कई याचिकाओं में से एक है जो वर्तमान में उच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं, जिनमें COVID-काल में जमानत पाने वाले ऐसे बंदी शामिल हैं, जिन्होंने नियमित रूप से पुलिस में रिपोर्टिंग जारी रखी, लेकिन फिर बिना वारंट, बिना कोर्ट में पेश किए और बिना परिवार को जानकारी दिए, फिर से गिरफ्तार कर लिए गए।
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एक रिट याचिका में, जिसमें हाल ही में उच्च न्यायालय द्वारा COVID बेल पर रिहा किए गए लोगों को दोबारा हिरासत में लेने से जुड़े गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 20 जून को विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को निर्देश दिया कि वे संबंधित न्यायालय का आदेश चिरांग के पुलिस अधीक्षक (सीमा) को भेजें। इसका उद्देश्य यह सत्यापित करना है कि याचिकाकर्ता सनिदुल शेख के पिता अब्दुल शेख, ने अप्रैल 2021 में जमानत पर रिहाई के बाद से हर सप्ताह थाने में उपस्थिति देने की शर्तों का पालन किया है या नहीं।
अदालत का यह निर्देश उस समय आया जब याचिकाकर्ता के वकील, अधिवक्ता मृण्मय दत्ता ने पीठ को जानकारी दी कि कोकराझार होल्डिंग सेंटर में अदालत की अनुमति से मुलाक़ात हुई थी और याचिकाकर्ता इस आधार पर जमानत की मांग कर रहे थे कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने उच्च न्यायालय के 15 अप्रैल 2020 के रिहाई आदेश में निर्धारित शर्तों के अनुसार साप्ताहिक रूप से पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना जारी रखा है। इस मामले में CJP (सिटिज़ंस फॉर जस्टिस एंड पीस) याचिकाकर्ता को कानूनी सहायता दे रहा है।
पिछली सुनवाई का डिटेल यहां और यहां पढ़े जा सकते हैं।
अदालत: गिरफ्तारी को उचित ठहराने से पहले जमानत की शर्तों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
विरासत याचिका के पैरा 13 से पढ़ते हुए, अदालत ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से बताया था कि अब्दुल शेख नियमित रूप से निर्दिष्ट पुलिस स्टेशन में जा रहे थे और उनकी आखिरी रिपोर्टिंग 21 मई 2025 को दर्ज हुई थी, जो उनकी अचानक फिर से गिरफ्तारी के कुछ दिन पहले थी। याचिका में Annexure 6 पर निर्भरता जताई गई है, जिसमें उनकी रिपोर्टिंग का रिकॉर्ड शामिल है। डिवीजन बेंच की तरफ से बोलते हुए, न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराना, जिनके साथ न्यायमूर्ति मलस्री नंदी भी हैं, ने कहा कि राज्य की तरफ से एक बड़ी चूक हुई है:
“मुद्दा ये नहीं है कि विदेशी होने के दर्जे को चुनौती दी गई है या नहीं। बात ये है कि जमानत रद्द करने की कोई अर्जी दायर नहीं की गई थी। किसी ने शायद इस पर ध्यान ही नहीं दिया।”
इस बयान से साफ होता है कि राज्य सरकार की तरफ से वह जमानत आदेश रद्द करने या वापस लेने की कोई अर्जी दाखिल नहीं की गई थी, जिसके तहत अब्दुल शेख को दो साल से ज्यादा हिरासत में रहने के बाद 30 अप्रैल 2021 को रिहा किया गया था। यह रिहाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूओ मोटो WP(C) 1/2020 में निर्धारित और गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई COVID-19 व्यवस्था के अनुसार की गई।
इसके बावजूद, मई 2025 में उन्हें दोबारा उठा लिया गया, जबकि न तो जमानत की शर्तों के उल्लंघन का कोई संकेत था और न ही कोई नया न्यायिक आदेश जारी हुआ था।
याचिकाकर्ता ने जमानत बहाल करने की मांग की
वकील दास ने जोर देकर कहा कि यह रिट याचिका सिर्फ अब्दुल शेख का पता लगाने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी दोबारा हिरासत को भी कानूनी रूप से चुनौती दे रही है, क्योंकि जमानत की सभी शर्तों का पूरी तरह पालन किया गया था। याचिकाकर्ता ने मांग की कि उनके पिता की जमानत बहाल की जाए, क्योंकि न तो किसी शर्त का उल्लंघन हुआ था और न ही उनकी दोबारा गिरफ्तारी का कोई जायज कारण दिया गया है।
अदालत ने तुरंत जमानत पर कोई आदेश देने के बजाय, विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को निर्देश दिया कि वह अदालत का आदेश चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) को भेजें। इसके साथ यह साफ हिदायत भी दी गई कि अब्दुल शेख द्वारा अप्रैल 2021 में रिहाई के बाद से साप्ताहिक रिपोर्टिंग करने के दावे की पुष्टि की जाए।
अदालत का निर्देश: साप्ताहिक हाज़िरी की पुष्टि
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने निर्देश दिया कि:
● विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के वकील को अदालत का आदेश चिरांग जिले के एसपी (बॉर्डर) तक पहुंचाना होगा।
● एसपी (बॉर्डर) यह जांच करेंगे कि क्या अब्दुल शेख ने 30 अप्रैल 2021 को रिहा होने के बाद से नियमित रूप से पुलिस स्टेशन में हाज़िरी दी है या नहीं।
● यह मामला अब 25 जून 2025 को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जहां जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे का आदेश दिया जाएगा।
● अदालत ने जमानत बहाल करने की याचिका पर फिलहाल कोई निर्णय नहीं दिया है, लेकिन यह जांच कि क्या पहले दी गई न्यायिक रिहाई की शर्तों का पालन हुआ है, अब इस पूरे मामले का मुख्य मुद्दा बन गया है।
पृष्ठभूमि: COVID जमानत पर रिहाई, और बिना सूचना के दोबारा हिरासत
विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा अब्दुल शेख को विदेशी घोषित किया गया था और उन्हें दो साल से ज्यादा समय तक एक हिरासत केंद्र में रखा गया। उन्हें 30 अप्रैल 2021 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 15 अप्रैल 2020 के आदेश के तहत रिहा किया गया था, जो सुप्रीम कोर्ट के COVID-19 संबंधी भीड़ कम करने के निर्देशों पर आधारित था।
कई ऐसे ही अन्य बंदियों की तरह, उन्होंने भी बिना किसी उल्लंघन के स्थानीय पुलिस स्टेशन में साप्ताहिक रिपोर्टिंग जारी रखी। फिर भी, मई 2025 में उन्हें अचानक फिर से गिरफ्तार कर कोकराझार होल्डिंग सेंटर में भेज दिया गया, जबकि उनकी जमानत रद्द नहीं की गई थी और न ही उन्हें किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
अब्दुल शेख के परिवार ने मई में एक रिट याचिका दायर की। 9 जून की सुनवाई में राज्य ने पुष्टि की कि अब्दुल शेख वर्तमान में कोकराझार होल्डिंग सेंटर में हैं। उच्च न्यायालय ने मुलाकात करने के अधिकार दिए, जिससे सनीदुल शेख और दो अन्य परिवार के सदस्य उनसे मिलने जा सकते हैं। अदालत ने परिवार को उनकी ओर से कानूनी प्रतिनिधित्व की औपचारिकता पूरी करने के लिए वकालतनामा पर उनके हस्ताक्षर लेने की भी अनुमति दी।
यह याचिका उन कई याचिकाओं में से एक है जो वर्तमान में उच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं, जिनमें COVID-काल में जमानत पाने वाले ऐसे बंदी शामिल हैं, जिन्होंने नियमित रूप से पुलिस में रिपोर्टिंग जारी रखी, लेकिन फिर बिना वारंट, बिना कोर्ट में पेश किए और बिना परिवार को जानकारी दिए, फिर से गिरफ्तार कर लिए गए।
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