कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक की पुस्तक 'हार्ट लैंप' को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिलने के बाद भी पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से उन्हें बधाई नहीं मिली। इससे पहले रवीश कुमार को मैग्सेसे पुरस्कार और गीतांजलि श्री को इंटरनेशनल बुकर मिलने पर भी उनकी तरफ से कोई बधाई नहीं मिली थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग फील्ड्स में भारतीयों की कामयाबी को खुलकर सराहते हैं और खुशी व्यक्त करते हैं। लेकिन कुछ मौके ऐसे भी आए हैं जब उन्होंने चुप्पी साधे रखी, जो साफ नजर आई।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा ही एक ताजा मामला बानू मुश्ताक का है जिन्हें हाल ही में इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिला लेकिन पीएम मोदी की तरफ से उन्हें कोई बधाई नहीं दी गई।
आपको बता दें कि बानू को ये इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 उनके कन्नड़ शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन ‘हृदय दीपा’ (हार्ट लैंप) के लिए मिला है।
बानू ही नहीं, ऐसे कम से कम दो और मौके भी रहे हैं जब किसी इंडियन को इंटरनेशनल लेवल का बड़ा अवॉर्ड मिला, लेकिन पीएम मोदी ने पब्लिकली उनकी तारीफ नहीं की।
इन तीनों मामलों में चुप रहना थोड़ा हैरान करने वाला है, क्योंकि मोदी जी तो आम तौर पर खेल, साइंस और बाकी फील्ड्स में भारतीयों की जीत पर खूब तारीफ करते हैं।
लगता है ये चुप्पी खास लोगों के लिए है। संभवतः इसे पाने वालों की कथित राजनीतिक या वैचारिक स्थिति या उनके काम के विषयों से प्रभावित है, जिसमें अक्सर धार्मिक बहुसंख्यकवाद और विभाजन की आलोचना और भारत में बहुलवाद की वकालत शामिल होती है।
रवीश कुमार को मिले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार पर चुप्पी
वरिष्ठ हिंदी पत्रकार रवीश कुमार को 2019 में प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था, जिसे एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है। पूरे भारत के राजनीतिक धड़ों से उन्हें बधाई मिली, लेकिन पीएम मोदी की तरफ से रवीश कुमार को इस बड़ी उपलब्धि पर कोई सार्वजनिक बधाई नहीं मिली थी।
गीतांजलि श्री को मिले अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार पर खामोशी
साल 2022 में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला था। गीतांजलि श्री पहली भारतीय लेखिका हैं जिन्हें ये सम्मान मिला। लेकिन इस बड़ी उपलब्धि पर पीएम मोदी, सरकार और सत्ताधारी पार्टी खास तौर पर चुप रही, जबकि ये किताब साउथ एशिया की पहली ऐसी किताब थी जिसे ये पुरस्कार मिला।
जहां मोदी सरकार हिंदी को बढ़ावा देने और भारतीयों की अंतरराष्ट्रीय सफलताओं का खूब जश्न मनाती है, वहीं इस मामले में खास ध्यान नहीं दिया गया। गीतांजलि की ये किताब हिंदुस्तानी बहुलवाद और सरहदों की निरर्थकता पर एक साहसिक नजरिया पेश करती है, जिसमें एक मुस्लिम पाकिस्तानी पुरूष और एक हिंदू भारतीय महिला के मजबूत रिश्ते को दिखाया गया है।
बानू मुश्ताक- अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता
इसी हफ्ते लेखिका बानू मुश्ताक ने अपने कन्नड़ शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन ‘हृदय दीपा’ (हार्ट लैंप) के लिए 2025 का इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीता है। ये किताब मूलत: कन्नड़ में लिखी गई है और इसका अंग्रेजी अनुवाद दीपा भास्ति ने किया है। जहां विपक्षी नेता उन्हें बधाई देते रहे, वहीं पीएम मोदी ने इस बड़ी सफलता पर चुप्पी साधे रखी।
कन्नड़ साहित्य और भारत के लिए ये पुरस्कार काफी खास है, इसलिए इस चुप्पी पर लोग ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वैसे भी, ये कहानी संग्रह जेंडर की बात करता है और पितृसत्ता यानी पुरुष प्रधान सोच पर सवाल उठाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग फील्ड्स में भारतीयों की कामयाबी को खुलकर सराहते हैं और खुशी व्यक्त करते हैं। लेकिन कुछ मौके ऐसे भी आए हैं जब उन्होंने चुप्पी साधे रखी, जो साफ नजर आई।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा ही एक ताजा मामला बानू मुश्ताक का है जिन्हें हाल ही में इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिला लेकिन पीएम मोदी की तरफ से उन्हें कोई बधाई नहीं दी गई।
आपको बता दें कि बानू को ये इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 उनके कन्नड़ शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन ‘हृदय दीपा’ (हार्ट लैंप) के लिए मिला है।
बानू ही नहीं, ऐसे कम से कम दो और मौके भी रहे हैं जब किसी इंडियन को इंटरनेशनल लेवल का बड़ा अवॉर्ड मिला, लेकिन पीएम मोदी ने पब्लिकली उनकी तारीफ नहीं की।
इन तीनों मामलों में चुप रहना थोड़ा हैरान करने वाला है, क्योंकि मोदी जी तो आम तौर पर खेल, साइंस और बाकी फील्ड्स में भारतीयों की जीत पर खूब तारीफ करते हैं।
लगता है ये चुप्पी खास लोगों के लिए है। संभवतः इसे पाने वालों की कथित राजनीतिक या वैचारिक स्थिति या उनके काम के विषयों से प्रभावित है, जिसमें अक्सर धार्मिक बहुसंख्यकवाद और विभाजन की आलोचना और भारत में बहुलवाद की वकालत शामिल होती है।
रवीश कुमार को मिले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार पर चुप्पी
वरिष्ठ हिंदी पत्रकार रवीश कुमार को 2019 में प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था, जिसे एशिया का नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है। पूरे भारत के राजनीतिक धड़ों से उन्हें बधाई मिली, लेकिन पीएम मोदी की तरफ से रवीश कुमार को इस बड़ी उपलब्धि पर कोई सार्वजनिक बधाई नहीं मिली थी।
गीतांजलि श्री को मिले अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार पर खामोशी
साल 2022 में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला था। गीतांजलि श्री पहली भारतीय लेखिका हैं जिन्हें ये सम्मान मिला। लेकिन इस बड़ी उपलब्धि पर पीएम मोदी, सरकार और सत्ताधारी पार्टी खास तौर पर चुप रही, जबकि ये किताब साउथ एशिया की पहली ऐसी किताब थी जिसे ये पुरस्कार मिला।
जहां मोदी सरकार हिंदी को बढ़ावा देने और भारतीयों की अंतरराष्ट्रीय सफलताओं का खूब जश्न मनाती है, वहीं इस मामले में खास ध्यान नहीं दिया गया। गीतांजलि की ये किताब हिंदुस्तानी बहुलवाद और सरहदों की निरर्थकता पर एक साहसिक नजरिया पेश करती है, जिसमें एक मुस्लिम पाकिस्तानी पुरूष और एक हिंदू भारतीय महिला के मजबूत रिश्ते को दिखाया गया है।
बानू मुश्ताक- अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता
इसी हफ्ते लेखिका बानू मुश्ताक ने अपने कन्नड़ शॉर्ट स्टोरी कलेक्शन ‘हृदय दीपा’ (हार्ट लैंप) के लिए 2025 का इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीता है। ये किताब मूलत: कन्नड़ में लिखी गई है और इसका अंग्रेजी अनुवाद दीपा भास्ति ने किया है। जहां विपक्षी नेता उन्हें बधाई देते रहे, वहीं पीएम मोदी ने इस बड़ी सफलता पर चुप्पी साधे रखी।
कन्नड़ साहित्य और भारत के लिए ये पुरस्कार काफी खास है, इसलिए इस चुप्पी पर लोग ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वैसे भी, ये कहानी संग्रह जेंडर की बात करता है और पितृसत्ता यानी पुरुष प्रधान सोच पर सवाल उठाता है।