दिल्ली AIIMS में एक तिहाई से ज्यादा फैकल्टी पद खाली: आरटीआई से खुलासा

Written by sabrang india | Published on: April 8, 2025
आरटीआई कार्यकर्ता एम एम शुजा ने इस साल जनवरी में एम्स दिल्ली के कामकाज के बारे में जानकारी मांगी थी। संस्थान ने आवेदक को 18 मार्च को जानकारी दी।



दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में लगभग 35 प्रतिशत फैकल्टी पद खाली हैं। इसने एक आरटीआई के जवाब में खुलासा किया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत एक सवाल का जवाब देते हुए, एम्स-दिल्ली के संकाय प्रकोष्ठ के प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि संस्थान में 1,235 स्वीकृत पदों के मुकाबले 430 संकाय सीटें खाली हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता एम एम शुजा ने इस साल जनवरी में एम्स दिल्ली के कामकाज के बारे में जानकारी मांगी थी। संस्थान ने आवेदक को 18 मार्च को जानकारी दी।

संस्थान ने खुलासा किया कि उसने 2019 में सहायक प्रोफेसरों के 172 पदों के लिए विज्ञापन दिया था, लेकिन केवल 110 उम्मीदवार ही शामिल हुए।

2021 और 2022 में कॉलेज ऑफ नर्सिंग में केवल 173 सहायक प्रोफेसर और तीन एसोसिएट प्रोफेसर ही संस्थान में शामिल हुए, जबकि 270 रिक्त पदों के लिए विज्ञापन दिया गया था।

इसमें कहा गया है कि 2020, 2023, 2024 और चालू वर्ष के पहले तीन महीनों में नियमित संकाय पदों के लिए कोई भर्ती नहीं हुई।

ज्ञात हो कि द वायर हिंदी ने दिल्ली के कामकाज पर सवालों को लेकर एक श्रृंखला ‘एम्स के स्याह गलियारे’ प्रकाशित की है, जिसमें संस्थान में हुई विभिन्न अनियमितताओं को दर्ज किया गया है।

इसके पहले भाग में एम्स में सर्जिकल ग्लव्स की खरीद में हुई अनियमितताओं के बारे में बताया गया है। आरोप है कि एम्स प्रशासन ने सस्ती दरों पर उपलब्ध दस्तानों को नज़रअंदाज किया और कहीं ऊंचे दाम पर उनकी आपूर्ति की अनुमति दी, जिससे सरकारी खजाने को काफी नुकसान पहुंचा।

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय पिछले पंद्रह महीनों में दो बार एम्स को ग्लव्स की इस खरीद को लेकर पत्र लिख चुका है, लेकिन निदेशक ने कोई जवाब तक नहीं दिया है।

श्रृंखला के दूसरे भाग में ऐसे प्रकरण की पड़ताल है, जहां एम्स के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर ने सरकार को करीब पचास लाख रुपये का नुकसान पहुंचाया, एम्स के एक वरिष्ठ अधिकारी पर ‘रिश्वत’ मांगने और ‘बदले की भावना’ से प्रेरित होकर काम करने के आरोप लगे, लेकिन इस बार भी एम्स ने स्वास्थ्य मंत्रालय के नोटिस का जवाब नहीं दिया।

तीसरी रिपोर्ट एम्स की महिला स्टाफ के यौन उत्पीड़न पर केंद्रित है, जिन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला।

मामला एम्स-झज्जर में कार्यरत हरियाणा की एक दलित फार्मासिस्ट से जुड़ा था, जिन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। संस्थान की जांच समिति ने आरोपी के कृत्यों की पुष्टि की, पर एम्स ने कार्रवाई करने की बजाय उन्हें प्रमोशन दे दिया। अब महिला के पिता इंसाफ के लिए दर-दर भटक रहे हैं, स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग भी एम्स के निदेशक से जवाब मांग रहे हैं, लेकिन देश का प्रमुख चिकित्सा संस्थान खामोश है।

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