“यह स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के ज़बरदस्त प्रभाव को दर्शाता है। हमें प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करके प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय उपाय करने की आवश्यकता है और इसे दूर करना चाहिए।"
साभार : बिजनेस स्टैंडर्ड
हाल ही में "लैंसेट प्लैनेट हेल्थ" में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पीएम2.5 के उच्च स्तरों से हर साल 1.5 मिलियन यानी 15 लाख मौतें होती हैं। देश का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां वार्षिक औसत प्रदूषण स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित स्तरों से कम हो।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वास्तव में, भारत की 81.9% आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही थी, जहां वायु की गुणवत्ता देश के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के अनुसार भी PM2.5 के 40 µg/m³ को पूरा नहीं करती थी जो WHO द्वारा निर्धारित 5µg/m³ के मानक से कहीं ज्यादा है। इस अध्ययन में पाया गया कि यदि वायु की गुणवत्ता इन मानकों को पूरा भी करती, तो भी वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक संपर्क से 0.3 मिलियन यानी तीन लाख मौत होतीं।
इस शोधपत्र के एक लेखक डॉ. दोराईराज प्रभाकरन ने कहा, “यह स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के ज़बरदस्त प्रभाव को दर्शाता है। हमें प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करके प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय उपाय करने की आवश्यकता है और इसे दूर करना चाहिए। ये श्रोत चाहे निर्माण, वाहन प्रदूषण या फसल जलाना हो। अगर हम पार्टिकुलेट मैटर के स्तर को NAAQS तक लाने में सफल भी हो जाते हैं, तो इससे मौतों की संख्या में कमी आएगी, हालांकि यह संख्या WHO के स्तर पर लाने की तुलना में कम होगी।"
वायु प्रदूषण, खास तौर पर PM2.5, न केवल श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, बल्कि दिल के दौरे और स्ट्रोक के जोखिम को भी बढ़ाता है, रक्तचाप में वृद्धि करता है और बच्चों में विकास संबंधी देरी का कारण बनता है।
इस अध्ययन में खास तौर से पाया गया कि PM2.5 के स्तर में हर 10 µg/m³ की वृद्धि से किसी भी कारण से मृत्यु का जोखिम 8.6% बढ़ जाता है। देश में प्रदूषण का स्तर 2019 में अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में 11·2 µg/m³ से लेकर 2016 में गाजियाबाद और दिल्ली में 119 µg/m³ तक था।
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार दिवाली के बाद से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया था। इससे दिल्लीवासियों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर में दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर रहा जहां औसत पीएम 2.5 सांद्रता 111 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी।
स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण से पता चला है कि अक्टूबर में भारत के सभी शीर्ष 10 प्रदूषित शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के ही हैं। इन शहरों में गाजियाबाद (110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), मुजफ्फरनगर (103), हापुड़ (98), नोएडा (93), मेरठ (90), चरखी दादरी (86), ग्रेटर नोएडा (86), गुरुग्राम (83) और बहादुरगढ़ (83) शामिल था।
वहीं, दिल्ली का अक्टूबर माह का औसत, सितम्बर माह के औसत 43 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 2.5 गुना अधिक था। सीआरईए विश्लेषण से यह भी पता चला कि अक्टूबर में दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम थी। पीएम 2.5 की बढ़ी हुई सांद्रता मुख्य रूप से साल भर के स्रोतों के योगदान के कारण हुई।
साभार : बिजनेस स्टैंडर्ड
हाल ही में "लैंसेट प्लैनेट हेल्थ" में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पीएम2.5 के उच्च स्तरों से हर साल 1.5 मिलियन यानी 15 लाख मौतें होती हैं। देश का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां वार्षिक औसत प्रदूषण स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित स्तरों से कम हो।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वास्तव में, भारत की 81.9% आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही थी, जहां वायु की गुणवत्ता देश के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के अनुसार भी PM2.5 के 40 µg/m³ को पूरा नहीं करती थी जो WHO द्वारा निर्धारित 5µg/m³ के मानक से कहीं ज्यादा है। इस अध्ययन में पाया गया कि यदि वायु की गुणवत्ता इन मानकों को पूरा भी करती, तो भी वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक संपर्क से 0.3 मिलियन यानी तीन लाख मौत होतीं।
इस शोधपत्र के एक लेखक डॉ. दोराईराज प्रभाकरन ने कहा, “यह स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के ज़बरदस्त प्रभाव को दर्शाता है। हमें प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करके प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय उपाय करने की आवश्यकता है और इसे दूर करना चाहिए। ये श्रोत चाहे निर्माण, वाहन प्रदूषण या फसल जलाना हो। अगर हम पार्टिकुलेट मैटर के स्तर को NAAQS तक लाने में सफल भी हो जाते हैं, तो इससे मौतों की संख्या में कमी आएगी, हालांकि यह संख्या WHO के स्तर पर लाने की तुलना में कम होगी।"
वायु प्रदूषण, खास तौर पर PM2.5, न केवल श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, बल्कि दिल के दौरे और स्ट्रोक के जोखिम को भी बढ़ाता है, रक्तचाप में वृद्धि करता है और बच्चों में विकास संबंधी देरी का कारण बनता है।
इस अध्ययन में खास तौर से पाया गया कि PM2.5 के स्तर में हर 10 µg/m³ की वृद्धि से किसी भी कारण से मृत्यु का जोखिम 8.6% बढ़ जाता है। देश में प्रदूषण का स्तर 2019 में अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में 11·2 µg/m³ से लेकर 2016 में गाजियाबाद और दिल्ली में 119 µg/m³ तक था।
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार दिवाली के बाद से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया था। इससे दिल्लीवासियों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर में दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर रहा जहां औसत पीएम 2.5 सांद्रता 111 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी।
स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण से पता चला है कि अक्टूबर में भारत के सभी शीर्ष 10 प्रदूषित शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के ही हैं। इन शहरों में गाजियाबाद (110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), मुजफ्फरनगर (103), हापुड़ (98), नोएडा (93), मेरठ (90), चरखी दादरी (86), ग्रेटर नोएडा (86), गुरुग्राम (83) और बहादुरगढ़ (83) शामिल था।
वहीं, दिल्ली का अक्टूबर माह का औसत, सितम्बर माह के औसत 43 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 2.5 गुना अधिक था। सीआरईए विश्लेषण से यह भी पता चला कि अक्टूबर में दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम थी। पीएम 2.5 की बढ़ी हुई सांद्रता मुख्य रूप से साल भर के स्रोतों के योगदान के कारण हुई।