ग्राउंड रिपोर्टः बहराच के महराजगंज में दंगे की पटकथा क्या पहले ही लिखी जा चुकी थी? पार्ट-01

Written by विजय विनीत | Published on: October 26, 2024
कभी गंगा-जमुनी तहजीब और भाईचारे के लिए मशहूर इस इलाके में आज किसी के चेहरे पर मुस्कान नजर नहीं आती। 13 अक्टूबर  की उस काली शाम ने यहां की हर गली और हर घर में गहरा जख्म छोड़ दिया है, जब दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान रामगोपाल मिश्रा की बेरहमी से हत्या कर दी गई।


हीरो शोरूम में जली हुई बाइक

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के महराजगंज कस्बे में प्रवेश करते ही आपका इस्तकबाल करता है एपीजे अब्दुल कलाम स्मृति द्वार। इसी के ठीक बगल में एक रास्ता एक इंटर कालेज की ओर जाता है, जो राम-रहीम के नाम पर है। जाहिर है कि ये दोनों बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि महराजगंज कस्बे में भाई-चारा और इंसानियत है। 13 अक्टूबर 2024 को हुई हिंसक वारदात के बाद अगर यहां कुछ टूटा है तो भाईचारा और विश्वास। कस्बे में पसरा सन्नाटा लोगों के दिलों में बसे डर और दर्द को गहराई को साफ-साफ बयां करता है।

कभी गंगा-जमुनी तहजीब और भाईचारे के लिए मशहूर इस इलाके में आज किसी के चेहरे पर मुस्कान नजर नहीं आती। 13 अक्टूबर  की उस काली शाम ने यहां की हर गली और हर घर में गहरा जख्म छोड़ दिया है, जब दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान रामगोपाल मिश्रा की बेरहमी से हत्या कर दी गई। अगले दिन 14 अक्टूबर को इस कस्बे में जमकर उपद्रव हुआ और बाइक बेचने वाली हीरो के शोरूम और एक अस्पताल आग लगा दी गई। सड़कों के किनारे खड़ी आठ गाड़ियां भी भी फूंक दी गईं। सभी प्रतिष्ठान और गाड़ियां मुसलमानों के थे।

महराजगंज की गलियों में पसरा सन्नाटा और जले हुए घर व दुकानों के खंडहर, इस दर्दनाक मंजर की कहानी खुद बयान कर रहे हैं। पुलिस और प्रशासन के निकम्मेपन के चलते लगातार दो दिनों तक हुई हिंसक वारदात ने इस कस्बे को बुरी तरह से झकझोर दिया। हिंसा के बाद यहां के कई घर सूने हो गए – कुछ पर ताले लटक गए, तो कुछ लोग बगैर ताला लगाए ही घर छोड़कर भाग गए। महराजगंज की गलियों में अब केवल पुलिस की सायरन और डर का साया नजर आता है। पुलिस की मौजूदगी इतनी भारी है कि कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

महराजगंज कस्बे में हीरो के शोरूम की राख में तबाह हुईं लगभग 35 बाइकों का ढांचा, इस घटना की भयावहता का मूक गवाह बना हुआ है। इस हिंसा के बाद फैली अफवाहों पर कड़ी नजर रखते हुए पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ला ने चेतावनी जारी की है कि सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही झूठी खबरों के लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि रामगोपाल मिश्रा की मौत गोली लगने से हुई है, और अन्य झूठे दावों पर ध्यान न दें।

हिंसा की जड़ें दुर्गा विसर्जन के दौरान डीजे पर बजाए गए गानों से जुड़ी हैं। मुस्लिम समुदाय की आपत्ति पर विवाद शुरू हुआ, जो धीरे-धीरे हिंसा में बदल गया। डीजे से पेन ड्राइव निकालने की छोटी सी बात ने मानो आग में घी का काम किया। दोनों पक्षों के बीच पथराव शुरू हो गया, और मौके पर मौजूद पुलिस मूकदर्शक बन कर रह गई। किसी ने भीड़ को रोकने की कोशिश नहीं की, न ही सख्त कदम उठाया। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि इस घटना के दौरान एएसपी पवित्र मोहन त्रिपाठी पर भी लापता होने के आरोप लगे। इस इलाके में पहले से तैनात पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को हटा दिया है।

बाजार और गलियों में सन्नाटा 

सांप्रदायिक हिंसा के बाद महराजगंज कस्बे में कई घरों में या तो ताला लगा हुआ है या फिर लोग ऐसे ही घर छोड़कर भाग गए हैं। महराजगंज में हालात अभी पूरी तरह नहीं सुधरे हैं। स्थिति तनावपूर्ण हैं और कस्बे में खामोशी पसरी हुई है। महराजगंज में पुलिस की गाड़ियां और जवान के बूटों की आवाजें सन्नाटे को चीरती हैं। डर का माहौल अब भी बरकरार है। ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों में ही रहे हैं, जबकि कुछ ही दुकानों ने हिम्मत करके शटर खोला है। महराजगंज कस्बा इस वक्त डर और खौफ में सिमटा हुआ है। लोगों की दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित है, बाजार में सन्नाटा है, और पुलिस की कड़ी निगरानी के बीच लोग अपने ही घरों में कैद जैसा महसूस कर रहे हैं।

पुलिस-प्रशासन ने महराजगंज कस्बे के हालात को सामान्य करने के लिए अफसरों ने दुकानदारों के साथ बैठक की। साथ ही मुस्लिम धर्मगुरुओं के जरिये शांति बनाए रखने के लिए कई बार अपीलें कराई गईं, लेकिन ज्यादातर लोग अपनी दुकानें खोलने से कतराते नजर आए। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए महराजगंज में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है। हिंसा का खौफनाक मंजर लोगों के जेहन में अब भी ताजा है।

घटना के दस दिन गुजर जाने के बाद महराजगंज कस्बे के अलावा दूसरी सभी मस्जिदों में 25 अक्टूबर को भी जुमे की नमाज पढ़ी गई। पिछले जुमे के दिन इमामों की गैर-मौजूदगी चर्चा का विषय रही, लेकिन इलाके की मस्जिदों में पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा। पुलिस, पीएसी, एटीएस, और एसटीएफ के जवान मुस्लिम बहुल इलाकों में तैनात हैं और स्थिति समान्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

महसी तहसील के रमपुरवा चौकी, भगवानपुर, वाजपेई पुरवा, और रेहुवा मंसूरगंज जाने वाले सभी रास्तों पर पुलिस ने बैरिकेड्स लगाए हैं। हर आने-जाने वाले संदिग्ध लोगों के आधार कार्ड वगैरह जांचे जा रहे हैं। इसके चलते लोगों को आवाजाही में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। महसी तहसील इलाके में भी हालात धीरे-धीरे सामान्य होते दिख रहे हैं, लेकिन डर और तनाव के माहौल बना हुआ है।



पुलिस छावनी बना महराजगंज

महराजगंज कस्बा इन दिनों पूरी तरह पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है। हर गली-मुहल्ले में पुलिस का सख्त पहरा है, और लोगों के चेहरों पर एक अजीब सा डर साफ नजर आता है। घटना के बारे में पूछो, तो हर कोई चुप्पी साध लेता है, जैसे किसी अनजाने खौफ ने उनकी आवाजें छीन ली हों। इस कस्बे में दिन-रात पुलिस और पीएसी के जवान गश्त कर रहे हैं। मस्जिद के पास सड़क के किनारे दमकल की गाड़ियां भी तैनात हैं। बीच-बीच में कुछ दुकानें खुल रही हैं और यदा-कदा राहगीर गुजरते नजर आ रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग अब भी घरों में ही कैद हैं।

सांप्रदायिक हिंसा के बाद महराजगंज कस्बे में बीस मुसलमानों के अलावा कुल 23 लोगों के घरों और दुकानों पर बुल्डोजर चलाने के लिए नोटिसें चस्पा कराई गई हैं। प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के लिए एक मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए मकानों पर लाल निशान लगा दिए थे, और अब हिंसा की घटना के बाद लोग इसे अतिक्रमण से जोड़कर देख रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि जल्द ही यहां बुलडोजर चल सकता है। प्रशासन का कहना है कि ये निशान छह महीने पहले लगाए गए थे और इसका मकसद सड़क चौड़ीकरण के लिए अतिक्रमण हटाना है। डीएम मोनिका रानी के मुताबिक, हिंसा में हुए नुकसान का आकलन किया जा रहा है और जो दोषी हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

महराजगंज की इस घटना का असर बाजार पर भी दिखाई दे रहा है। दीपावली की आमद पर जहां हर साल बाजार में रौनक होती थी, इस बार बाजार खाली-खाली से नजर आ रहे हैं। स्टीलगंज तालाब मार्केट में कपड़े का कारोबार करने वाले इकराम ने कहा, ''इस समय दिवाली की खरीदारी के लिए लोग रात तक बाजार में रहते थे, लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि महराजगंज की घटना के बाद किसी ने बाजार की रौनक ही छीन ली है।'' घंटाघर चौक पर पटाखे की दुकान चलाने वाले असलम ने अपनी पीड़ा का इजहार किया। बोले, ''हमने अपनी दुकान तो सजा ली है, लेकिन ग्रामीण इलाकों से ग्राहक नहीं आए तो इस बार हमारी दिवाली फीकी रह जाएगी।'' हालांकि, कई दुकानदारों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हालात सुधर सकते हैं और ग्राहक लौट सकते हैं।

पीपल तिराहा, स्टीलगंज तालाब मार्केट, चौक बाजार, घंटाघर, छावनी, और गुरुनानक मार्केट जैसे बड़े बाजारों में दुकानें तो सज चुकी हैं, लेकिन ग्राहकों का इंतजार है। आमतौर पर दीपावली से एक हफ्ते पहले ही बाजारों में भीड़ उमड़ने लगती थी, पर इस बार माहौल अलग है। ग्रामीण इलाकों से लोग महराजगंज बाजार में खरीदारी करने नहीं आ रहे हैं। इसके चलते दुकानदारों की मायूसी बढ़ती जा रही है। महराजगंज की इस घटना ने न केवल गांवों के लोगों में भय का माहौल बना दिया है, बल्कि बहराइच शहर के व्यापार और बाजारों पर भी इसका गहरा असर पड़ा है। लोग अभी भी स्थिति के सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।

महराजगंज कस्बे में डर और खौफ का आलम यह है कि लोग मीडिया से कोई भी बात करने से कतरा हैं। कुछ महिलाओं ने धीरे-धीरे बात की और बताया कि रामगोपाल मिश्रा की हत्या के बाद से पुलिस हर रात किसी न किसी के घर में दबिश देने आ रही है। महिलाएं कहती हैं कि रात के वक्त पुलिस जब-तब दस्तक देती है,बच्चे थर्रा जाते हैं। खौफजदां सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, हिन्दू भी हैं। पुलिसिया कार्रवाई से नाराज अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद ने सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन देकर पुलिस पर रात में औरतों के साथ बदसलूकी करने का आरोप लगाया है। महसी तहसील के बार एसोसिएशन ने भी इस मामले में एसडीएम और सीओ से शिकायत की है, जिसमें पुलिस पर बिना किसी ठोस वजह के घरों में घुसने और अभद्रता का आरोप लगाया गया है।

13 और 14 अक्टूबर 2024 को हुई हिंसक वारदात के बाद उपद्रवियों ने जिन गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया था, उनके जले हुए मलबे साफ कर दिए गए हैं। हीरो कंपनी के शोरूम में जो आग लगी थी, वहां की 35 बाइक्स का जला ढांचा अब भी बर्बादी की कहानी बयान करता है। शोरूम पर ताला लगा हुआ है, और उस सन्नाटे में सिर्फ राख और धुएं की गंध बाकी रह गई है। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान दो समुदायों के बीच छोटी सी झड़प ने बड़ा रूप ले लिया था।  पहले दिन राम गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई, और फिर गुस्से का तूफान कई मुसलमानों के घरों और दुकानों पर टूट पड़ा। इस घटना ने मानो कस्बे की रगों में ही सन्नाटा भर दिया है, जैसे यहां अब कोई अपनी बात कहने से भी डरता हो।



झूठ फैला रहा मीडियाःएसपी

पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ला का कहना है कि सोशल मीडिया पर झूठे दावे फैलाए जा रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि राम गोपाल मिश्रा की मौत गोली लगने से हुई, और इसके इतर जो बातें—जैसे नाखून उखाड़ना—कही जा रही हैं, वो पूरी तरह गलत हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर इन झूठी बातों को कौन और क्यों फैला रहा है?

विवाद तो उस वक्त शुरू हुआ जब दुर्गा विसर्जन के दौरान डीजे पर कुछ भड़काऊ गाने बजने लगे। मुस्लिम पक्ष ने डीजे बंद करने की अपील की, लेकिन जब यह नहीं रुका, तो किसी ने डीजे से पेन ड्राइव निकाल दी। बस यहीं से हंगामा शुरू हुआ, और एक छोटी सी बात ने पूरे कस्बे को दंगों की आग में झोंक दिया।

कहा जा रहा है कि पुलिस ने सब कुछ अपनी आंखों के सामने होते हुए भी चुपचाप देखा। जब दोनों ओर से पत्थर चलने लगे, तो पुलिस ने किसी को समझाने की या हालात संभालने की कोशिश तक नहीं की। और यह भी सुनने में आया है कि हिंसा के बाद मौके पर मौजूद एएसपी पवित्र मोहन त्रिपाठी अचानक से गायब हो गए थे। सवाल ये है कि जब पुलिस के साये में यह सब हुआ, तो क्या यह सब रोकना नामुमकिन था?

कैसे शुरू हुआ विवाद?

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान डीजे पर बज रहे गाने को लेकर सरफराज अहमद नामक युवक ने आपत्ति जताई और पेन ड्राइव निकाल दी। इस पर विसर्जन जुलूस में शामिल युवक राम गोपाल मिश्रा गुस्से से सरफराज के घर की छत पर चढ़ गया और वहां लगे बारावफात के झंडे को उतारकर भगवा झंडा फहरा दिया। देखते ही देखते यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें राम गोपाल को छत पर भगवा झंडा फहराते हुए देखा जा सकता है।

इसके बाद, अचानक घर के अंदर से गोली चली और राम गोपाल की जिंदगी वहीं खत्म हो गई। आरोप है कि गोली चलाने वाला युवक सरफराज था, जिसे पुलिस ने एंकाउंटर के बाद गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उसके पैरों में गोली मारी है और सरफराज का पिता अब्दुल हमीद अब भी फरार है।

हरदी थाना के नवनियुक्त प्रभारी इंस्पेक्टर कमल किशोर चतुर्वेदी कहते हैं, ''हिंसक वारदात के बाद महराजगंज निवासी अब्दुल हमीद, सरफराज, फ़हीम, साहिर खान और ननकऊ सहित अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने हिंसा भड़काने के आरोप में करीब 85 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। इन सभी को सीसीटीवी कैमरों में दिखे सबूतों के आधार पर पकड़ा गया है, और अब भी बाकी उपद्रवियों की तलाश जारी है।''

महराजगंज में हुई हिंसक वारदात ने पूरे कस्बे में जैसे खामोशी और डर की लहर दौड़ा दी है। स्थानीय विधायक सुरेश्वर सिंह का कहना है कि जिस गाने को भड़काऊ बताया जा रहा है, वह दरअसल पाकिस्तान के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि जो लोग इस सांप्रदायिक हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा, लेकिन निर्दोषों को बेवजह परेशान नहीं किया जाएगा। कांग्रेस नेता राजेश तिवारी का कहना है कि डीजे पर सामान्य संगीत बज रहा था, न कि कोई भड़काऊ गाना।

विधायक सुरेश्वर सिंह ने पुलिस और खुफिया विभाग पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि महराजगंज में पिछले 40 सालों से मूर्ति विसर्जन का जुलूस इसी रास्ते से निकलता है, और हर बार पीएसी की कड़ी सुरक्षा रहती थी। इस बार गणेश पूजा के दौरान भी गानों को लेकर आपत्ति जताई गई थी, लेकिन पुलिस और पूजा समितियों ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।



बीजेपी की भूमिका पर सवाल

महराजगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा में उस वक्त एक नया मोड़ आ गया, जब महसी विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपने ही पार्टी के नगर अध्यक्ष सहित सात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। इस घटना ने न केवल कस्बे में, बल्कि राज्य में भी हलचल मचा दी है। इनमें नामजद लोगों में बीजेपी नगर अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव के अलावा एक शिक्षक और कई अन्य शामिल हैं।

विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपनी शिकायत में बताया कि 13 अक्टूबर की रात जब मृतक रामगोपाल के शव को अस्पताल के सामने रखकर प्रदर्शन हो रहा था, तो वे अपने सहयोगियों के साथ प्रदर्शनकारियों को समझाने पहुंचे थे। उसी वक्त अचानक भीड़ ने उनके काफिले पर पथराव और फायरिंग कर दी। विधायक सुरेश्वर सिंह का कहना था कि वह डीएम और अन्य अधिकारियों के साथ मौके पर गए थे ताकि मृतक के परिवार को सांत्वना दी जा सके। जैसे ही वे शव को मोर्चरी ले जाने लगे, कुछ उपद्रवियों ने—जिनमें नगर अध्यक्ष अर्पित श्रीवास्तव, अनुज सिंह रैकवार, शुभम मिश्रा, कुशमेंद्र चौधरी, मनीष चंद्र शुक्ल, पुंडरीक पांडेय (शिक्षक), और सुंधाशु सिंह राणा शामिल हैं। इन्होंने नारेबाजी और गाली-गलौज शुरू कर दी।

विधायक का यह  भी कहना था कि कि जब वह डीएम के साथ गाड़ी में बैठने लगे, तभी भीड़ ने उनकी कार को रोकने की कोशिश की और पत्थरबाजी के साथ फायरिंग भी शुरू कर दी। इस हमले में विधायक की कार का शीशा टूट गया, और उनका बेटा अखंड प्रताप सिंह बाल-बाल बचा। विधायक का दावा है कि यह पूरा घटनाक्रम सीसीटीवी कैमरों में कैद हो चुका है, जिससे साफ है कि उपद्रवी कौन थे और उन्होंने क्या किया। पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ दंगा करने, घातक हथियार से हमला, हत्या का प्रयास, और अन्य गंभीर आरोपों में मामला दर्ज किया है।

विधायक पर सवालों की बौछार

अपने विवादित बयान पर घिरे महसी के विधायक सुरेश्वर सिंह ने बाद में सफाई दी कि और कहा, ''घटना के दिन जुलूस में कोई भड़काऊ गाना नहीं बजाया गया था, बल्कि वह गाना पाकिस्तान के खिलाफ था। उनका कहना है कि जो लोग इस हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा, लेकिन निर्दोषों को परेशान नहीं किया जाएगा। वहीं, कांग्रेस के नेता राजेश तिवारी का कहना है कि डीजे पर सामान्य संगीत ही बज रहा था, न कि कोई भड़काऊ गीत। इस पूरे विवाद की जड़ में डीजे का गाना नहीं, बल्कि वह झंडा था जिसे सरफराज के घर से हटाकर भगवा झंडा फहराया गया था। यह झंडा बदलने की घटना ही दोनों समुदायों के बीच झड़प का कारण बनी।''

हालांकि बहराइच हिंसा के लिए कांग्रेस और सपा ने योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने घटनास्थल का दौरा किया और कहा कि यह दंगा सरकार की देन है। इसके लिए सीधे तौर पर बीजेपी और उनके विधायक दोषी हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी कहा है कि यह सरकारपोषित सांप्रदायिक हिंसा थी। संवेदनशील कस्बे में पर्याप्त पुलिस फोर्स होती तो यह घटना नहीं होती।

महराजगंज की इस हिंसा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं—क्या यह घटना रोकी जा सकती थी? क्या झंडा फहराने जैसी कार्रवाई को भड़काऊ समझा जा सकता है? और सबसे बड़ा सवाल, जब खुद बीजेपी विधायक को अपनी ही पार्टी के नगर अध्यक्ष पर संदेह हो, तो क्या इस हिंसा की जड़ें पार्टी के भीतर तक फैली हैं?

महराजगंज की सड़कों पर पसरे सन्नाटे के बीच हर किसी के मन में एक ही सवाल है—क्या सच में राम गोपाल मिश्रा की मौत का यही कारण था, जो पुलिस कह रही है? महसी थाने के रोजनामचे में दर्ज मुकदमे के अनुसार, राम गोपाल मिश्रा जब अब्दुल हामिद के घर की सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था, तभी अब्दुल हामिद ने नजदीक से गोली चला दी, जिससे राम गोपाल की वहीं मौत हो गई?

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी साफ बताया गया है कि राम गोपाल की मौत गोली लगने से हुई है। लेकिन जब मीडिया में इस मामले पर तरह-तरह की अफवाहें फैलीं—जैसे कि उसे करंट दिया गया, तलवार से मारा गया, और यहां तक कि उसके नाखून उखाड़े गए—तो बहराइच पुलिस ने इन खबरों का खंडन किया।

पुलिस ने बयान जारी करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए कई झूठे दावे किए जा रहे हैं। पुलिस ने साफ किया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में राम गोपाल की मौत का कारण गोली लगना पाया गया है, और इन मनगढ़ंत कहानियों में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रहे ऐसे झूठे दावों को फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात भी कही है।

उलझे सवाल और दर्द से भरे लोग

इस हिंसा में बुरी तरह घायल सुधाकर तिवारी बताते हैं कि घटना के वक्त आसपास के घरों और मस्जिद से पथराव हो रहा था, जिससे उनके सिर में चोट लगी। उनकी बातों से साफ है कि उस समय पूरे माहौल में डर और भगदड़ का आलम था। प्रत्यक्षदर्शी प्रदीप मिश्रा भी बताते हैं कि डीजे पर गाने को लेकर विवाद शुरू हुआ और फिर अचानक से पथराव होने लगा। लोगों में अफरा-तफरी मच गई और भगदड़ का माहौल हो गया। पुलिस ने भीड़ को काबू में करने के लिए लाठी चार्ज किया, जिससे लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे।

हिंदू पक्ष का आरोप है कि पथराव के कारण दुर्गा प्रतिमा भी खंडित हो गई, जो उनके लिए बहुत ही भावुक क्षति है। प्रदीप मिश्रा का कहना है कि इस तरह की हिंसा का असर लोगों के दिलों पर गहरा है, खासकर जब पिछले साल भी इसी बाजार में मामूली झड़प हुई थी, लेकिन उस वक्त पुलिस की उपस्थिति काफी थी। इस बार, पुलिस की संख्या काफी कम थी, और ऐसा लग रहा था कि पुलिस के पास इतनी ताकत नहीं थी कि वे स्थिति को काबू में ला सकें।

13 अक्टूबर की घटना वाले दिन महराजगंज में पर्याप्त पुलिस बल क्यों नहीं था? जब स्थिति बिगड़ने लगी, तो पुलिस ने कार्रवाई करने में इतनी देरी क्यों की? लोगों का कहना है कि संख्या बल के हिसाब से भीड़ काफी बड़ी थी और पुलिस की मौजूदगी बहुत कम। जब हालात को काबू करने के लिए तत्काल अतिरिक्त पुलिस बल की जरूरत थी, तो प्रशासन ने क्यों नहीं पर्याप्त फोर्स भेजी? क्या सच में पुलिस ने यहां के लोगों की सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लिया?

महसी थाने पर तैनात एक मुंशी ने बताया कि थाना प्रभारी ने संवेदनशीलता का हवाला देते हुए पहले ही पुलिस उच्चाधिकारियों को अतिरिक्त फोर्स भेजने के लिए पत्र भेजा था, लेकिन अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और अतिरिक्त फोर्स नहीं भेजी गई। क्या अगर उस समय पर्याप्त पुलिस बल तैनात होता, तो यह सब रोका जा सकता था?

महराजगंज कस्बे में सांप्रदायिक हिंसा के कारण आम जनजीवन पूरी तरह से ठप है। सैकड़ों लोग अपने घरों को छोड़कर चले गए हैं, और जो बचे हैं, उनके दिलों में डर और आंखों में सवाल हैं। यहां के लोग जानना चाहते हैं कि आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ जो हालात इस कदर बेकाबू हो गए। लेकिन सबसे बड़े सवालों का जवाब देने को न तो सरकार तैयार है, न ही पुलिस-प्रशासन।

एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सरकार या स्थानीय प्रशासन ने ऐसे जुलूसों के लिए कोई गाइडलाइन जारी की थी? अगर डीजे पर भड़काऊ गाना बज रहा था, तो पुलिस ने उसे तुरंत क्यों नहीं रोका? कुछ साल पहले यूपी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे पर गाने बजाने को लेकर एक गाइडलाइन जारी की थी, लेकिन इस बार उसकी अनदेखी क्यों की गई?

14 अक्टूबर को राम गोपाल मिश्रा का शव जब उनके परिजनों को सौंपा गया, तो कस्बे में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं था? जब सैकड़ों लोग शव यात्रा में शामिल हो रहे थे, तो वहां अर्धसैनिक बल क्यों नहीं बुलाए गए? आखिर इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित करने का इंतजाम किसने किया था? क्या भीड़ को हिंसा करने की छूट किसी ने दी थी?



कौन कितन कुसूरवार?

सांप्रदायिक दंगे के बाद बहराइच के कई थानों की पुलिस की रात के समय छापेमारी कर रही है, जिससे लोग डरे हुए हैं। कई गांवों के लोग अब भी सहमे हुए हैं और बाजारों में सन्नाटा पसरा है। प्रशासन को चाहिए कि वे डर और अविश्वास की इस भावना को समाप्त करने के लिए कदम उठाएं, ताकि लोग अपने घरों में सुरक्षित महसूस कर सकें। लेकिन सौवीर का कहना है कि प्रशासन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। इस घटना के बाद महाराजगंज और आसपास के गांवों में अब भी सन्नाटा है।

सिर्फ महराजगंज ही नहीं समीप के गांव सिकंदरपुर, रमपुरवा, रेहुवा मंसूर, तीनकाना गांवों के लोग दहशत में हैं। इन गावों के लोग पहले सामान खरीदने महाराजगंज आते थे और अब वे बाजार में कदम रखने से भी कतराते हैं। दीपावली के त्योहार पर यह स्थिति बनी रहती है या नहीं, यह कहना मुश्किल है? ऐसा लगता है कि प्रशासन ने हालात को नजरअंदाज कर दिया है और लोगों के दिलों में बस चुके इस खौफ को कम करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

महराजगंज की सांप्रदायिक वारदात के बाद प्रशासनिक लापरवाही बार-बार उजागर होती रही। चाहे पर्याप्त फोर्स की तैनाती में देरी हो, मीडिया पर नियंत्रण की कोशिश, या फिर राम गोपाल की मौत के बाद सुरक्षा का इंतजाम-हर जगह प्रशासन ने जनता को निराश किया। इससे जनता में असुरक्षा की भावना गहरी हो गई है, और उनका विश्वास सरकार और पुलिस से डगमगाने लगा है।

महराजगंज में 13 अक्टूबर को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा में पुलिस ने 26 और आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। इस हिंसा के मुख्य आरोपियों में अलताफ पुत्र असलम, अनवर हुसैन पुत्र अंसार अहमद, तालिब पुत्र जहिद, नफीस पुत्र रमजान, नौसाद पुत्र आमीन, सलाम बाबू पुत्र मुनऊ, गुलाम यश पुत्र दानिश, अनवार अशरत पुत्र मोहम्मद तुफैल, मोहम्मद एहशान पुत्र मोहम्मद अली, मोहम्मद अली पुत्र मोहम्मद शफी, दोस्त मोहम्मद पुत्र नजीर अहमद, मोहम्मद जाहिद पुत्र अब्दुल शाहिद, शुद आलम पुत्र गुलाम सैय्यद, मोहम्मद इमरान पुत्र मोहम्मद नसीम, जिशान अदिल पुत्र मोहम्मद नसीम, रिजवान पुत्र तलीफ, फुलकान पुत्र लतीफ, इमरान पुत्र लतीफ, समसुद्दीन पुत्र अयुब, इमरान पुत्र अनवर, मेराज पुत्र भग्गन, आमीर पुत्र पीर आमीर, शाहजादे पुत्र गुलाम, मोहम्मद मौसीन पुत्र मोहम्मद नसीम और शहजादे पुत्र मोहम्मद शमीम शामिल हैं।  इन सभी को हिंसा भड़काने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। हिन्दू पक्ष के कुछ लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तर करके जेल भेजा है, लेकिन इनकी संख्या काफी कम है।

स्टिंग ऑपरेशन, चौकाने वाले खुलासे

न्यूज़ पोर्टल भास्कर के स्टिंग ऑपरेशन में दो युवकों ने दावा किया कि उन्हें हिंसा के लिए सिर्फ दो घंटे का वक्त दिया गया था। उनका कहना था कि पुलिस ने उन्हें तोड़फोड़, आगजनी और उपद्रव करने का समय दिया, और फिर पुलिस वहां से हट गई। बेडवा गांव के रास्ते पर इन युवकों ने यह भी बताया कि हिंसा के दौरान महंगी-महंगी गाड़ियां फूंकी गईं, दुकानें जला दी गईं, और खास वर्ग के व्यवसायों को निशाना बनाया गया। इन युवकों के बयान ने एक बार फिर पुलिस और प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर क्यों और कैसे उपद्रवियों को खुली छूट दी गई?

स्टिंग में एक युवक ने कहा, "पुलिस ने वादा किया था कि हमे दो घंटे का समय मिलेगा। अगर कुछ लोग गद्दारी नहीं करते, तो महराजगंज का पूरा बाज़ार खाक हो जाता।" इन युवकों के अनुसार, उन्हें पुलिस ने हिंसा करने का आश्वासन दिया था और फिर पुलिस वहां से चली गई थी। इन बयानों ने लोगों के मन में शक पैदा कर दिया है कि कहीं यह सब कुछ एक साजिश तो नहीं थी?

14 अक्टूबर की घटना के बाद राम गोपाल मिश्रा की शव यात्रा निकाली गई, जिसमें आसपास के गांवों से भी सैकड़ों लोग शामिल हुए। जैसे ही शव यात्रा महराजगंज पहुंची, भीड़ ने विशेष वर्ग के घरों और दुकानों पर हमला बोल दिया। यहां की हीरो बाइक एजेंसी, जिसमें करीब 35 गाड़ियां थीं, पूरी तरह जलकर राख हो गई। इसके अलावा लखनऊ सेवा अस्पताल को भी फूंक दिया गया, जो मुस्लिम समुदाय का था। यह बात जानकर भीड़ और उग्र हो गई और इस हिंसा में कई निर्दोष लोगों का नुकसान हुआ।

करीब पांच हजार की आबादी वाले महराजगंज कस्बे में सांप्रदायिक तनाव के बाद 85% मुस्लिम और 15% हिंदू आबादी के बीच की दूरी और बढ़ गई है। इस घटना के बाद कस्बे में सन्नाटा पसरा है। किराना, आभूषण, दवा, और बर्तन की ज्यादातर दुकानें बंद पड़ी हैं, और लोग डर के साये में जी रहे हैं। कई लोग घायल हुए, लेकिन उन्हें इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि वे अस्पताल जाकर इलाज करवा सकें। लुक-छिपकर इलाज करवा रहे लोगों में विनोद कुमार मिश्रा, सरोज, सत्यवान मिश्र, सुधाकर त्रिपाठी, और लाल बढ़ई जैसे लोग शामिल हैं, जो इस हिंसा में बुरी तरह घायल हुए।

बहराइच के महराजगंज कस्बे में आजकल एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। जबसे जिला प्रशासन के निर्देश पर लोक निर्माण विभाग ने हिंसा में शामिल आरोपियों के 23 घरों और दुकानों पर नोटिस चस्पा किया है, तबसे लोगों के दिलों में खौफ का साया है। घटना के बाद से ही डर के मारे लोग अपने घरों और दुकानों से सामान समेट रहे हैं, और ट्रैक्टर-ट्राली में भरकर कहीं और ले जाने में जुटे हैं। महाराजगंज कस्बे का हर व्यक्ति असमंजस और दहशत में है। लोग अपनी घरों की टीन की छत, लकड़ी का फर्नीचर, और अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी के सामान को बचाने में लगे हैं। लेकिन उनके चेहरों पर गुस्सा और दिलों में दबा हुआ दर्द साफ झलकता है। बुलडोजर की धमकी ने इस कस्बे को एक भयावह सपने जैसा बना दिया है।

बुल्डोजर का खौफ

बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि नोटिस में मानकों का उल्लंघन किया गया है और जवाब देने के लिए सिर्फ तीन दिन का समय दिया गया है, जो बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया और बुलडोजर की कार्रवाई पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। अदालत ने इस दौरान जवाब देने का समय भी 15 दिन तक बढ़ा दिया है।

कस्बे के 23 लोगों को दिए गए नोटिस में तीन हिंदू और 20 मुसलमानों के घर शामिल हैं। इनमें से कुछ नाम हैं—हाजी भोलू उर्फ मसूद अहमद, मोहम्मद शरीफ, शमी उल्ला, मोहम्मद हुसैन, राजू खा, और ननकू। नोटिस मिलने के बाद से इन लोगों के लिए अपने घरों और दुकानों को खाली करना मानो जिंदगी और मौत का सवाल बन गया है। घरों और दुकानों से सामान हटाते वक्त इनकी आंखों में बेबसी और हाथों में कपकपाहट साफ देखी जा सकती है।

मामला अब हाईकोर्ट में पहुंच चुका है, और अदालत ने अगली सुनवाई चार नवंबर को तय की है। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के वकील सौरभ शंकर श्रीवास्तव का कहना है कि उनकी संस्था सामाजिक भलाई के लिए कार्यरत है और सरकारी प्रकोप के शिकार बने लोगों की सहायता के लिए याचिका दायर की है। अदालत ने इस पर सख्ती दिखाते हुए सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस प्रशासन की भी हिम्मत नहीं हो पा रही है कि वो मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चलाने की कोशिश करे।

हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद लोगों के दिलों में डर बना हुआ है। पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों पर भी इस मामले का असर पड़ा है। विशेष सचिव के आदेश से बहराइच श्रावस्ती सर्किल के अधीक्षण अभियंता का तबादला कर दिया गया है। इस कार्रवाई ने और भी सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर हिंसा के आरोपियों के घरों पर इतनी जल्दी नोटिस क्यों चस्पा किए गए और इस दौरान मानकों का ध्यान क्यों नहीं रखा गया?

इस वक्त महराजगंज के लोग बुलडोजर का खौफ अपने सिर पर महसूस कर रहे हैं। यहां के लोग खुद अपने घरों और दुकानों को खाली कर रहे हैं। डर के मारे किसी के पास जवाब देने का साहस नहीं है, लेकिन उनकी आंखों में ढेरों सवाल हैं। क्या ये सिर्फ एक कानूनी कार्रवाई है, या फिर इसका मकसद किसी खास समुदाय को डराना? हर घर में एक ही चर्चा है—क्या इस बार न्याय होगा या फिर यहां के लोग एक और दर्दनाक किस्से का हिस्सा बन जाएंगे?

मृतक की पत्नी रोली का दर्द

महराजगंज हिंसा में मारे गए राम गोपाल मिश्रा की पत्नी रोली मिश्रा ने 15 अक्टूबर 2024 को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की। इस मुलाकात में राम गोपाल के माता-पिता भी उनके साथ थे, जिनकी आंखों में बेटे को खोने का गहरा दर्द और दिल में न्याय की पुकार थी। राम गोपाल, जो अपनी छोटी-सी केटरिंग का काम करके परिवार का सहारा थे, दिवाली के बाद अपने काम को बढ़ाने के इरादे से दिल्ली जाने की योजना बना रहे थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मुलाकात के बाद एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, "इस कठिन समय में हम पीड़ित परिवार के साथ खड़े हैं। इस दुखद घटना के दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।" परंतु इस सरकारी आश्वासन के बावजूद, रोली मिश्रा के दिल में आशंका और न्याय के लिए तड़प बनी रही। कुछ ही दिनों बाद रोली ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन उन्हें न्याय देने में विफल रहे हैं। इस वीडियो के बाद उनके घर के चारों ओर पुलिस की मौजूदगी और कड़ी कर दी गई, जैसे कि किसी को वहां तक पहुंचने की इजाजत ही नहीं दी जाएगी।

अपने वीडियो संदेश में रोली ने टूटे हुए शब्दों में कहा, "मुझे इंसाफ चाहिए। मेरे पति के साथ जो हुआ, वैसा ही उन आरोपियों के साथ भी होना चाहिए।" इस वीडियो ने लोगों के दिलों को झकझोर दिया। एक युवा पत्नी जिसने अभी-अभी अपना नया जीवन शुरू किया था, अब अपने पति के लिए न्याय मांगते हुए पुलिस और प्रशासन के दरवाजे खटखटा रही थी।

रेहुवा मंसूर निवासी युवक राम गोपाल मिश्र की शादी इसी साल जुलाई महीने में हुई थी। मेहंदी के रंग भी नहीं उतरे थे कि रोली मिश्रा विधवा हो गईं। इनके परिवार में माता पिता के अलावा बड़े भाई हरमिलन मिश्र हैं, जिनके दो दो बच्चे अमरनाथ और शनि हैं। पिता कैलाशनाथ मिश्र की डिमांड है राम गोपाल का कत्ल करने वालों को उनके सामने एंकाउंटर किया जाए, ताकि उनके कलेजे को ठंडक मिले।

हरे हुए घाव और टूटी उम्मीदें

राम गोपाल के गांव, रेहुवा मंसूर में हर कोई इस घटना के बाद सहमा हुआ है। वहां की गलियों में खामोशी पसरी हुई है, और लोग कुछ कहने से पहले कई बार सोचते हैं। पुलिस की सख्ती और डर से हर किसी की जुबान जैसे बंद हो गई है। लोगों का कहना है कि पुलिस आधी रात को गांव में दबिश देती है, बिना इजाजत घरों में घुसकर लोगों को उठाकर ले जाती है, मारपीट करती है, और फिर थाने ले जाती है। वहां पर बिना कुछ कहे-सुने, सादे कागजों पर दस्तखत करवाकर उन्हें रिहा किया जाता है।

इस घटना के बाद गांव से कई युवा बाहर चले गए हैं। पुलिस की सख्ती और मनमानी कार्रवाई ने गांव के लोगों को डरा दिया है। इस समय गांव में सिर्फ बूढ़े, महिलाएं, और बच्चे ही बचे हैं। पुलिस ने हाल ही में ललित तिवारी, कुलभूषण अवस्थी, भालेंद्र भूषण, और आनंद मिश्रा उर्फ बाटा को रात के अंधेरे में उठाया, उनके साथ मारपीट की, और फिर कुछ कागजों पर दस्तखत करवाकर छोड़ दिया। यह घटना वहां के लोगों के दिलों में एक गहरी चोट की तरह बैठ गई है, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।

राम गोपाल का परिवार, जो इस घटना से बुरी तरह टूट चुका है, अब भी न्याय की उम्मीद में खड़ा है। रोली मिश्रा का चेहरा हर उस परिवार के दर्द का प्रतीक बन गया है, जो अपने अपनों को खो चुका है और न्याय की राह देख रहा है। महराजगंज के लोग इस दर्दनाक घटना के बाद असुरक्षित और बेसहारा महसूस कर रहे हैं। पुलिस की हर रात की दबिश, मारपीट, और मनमानी से उनका डर और गहरा हो गया है।

राम गोपाल की मौत ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे गांव को एक ऐसा घाव दिया है जो शायद ही कभी भर पाएगा। गांव के लोग सिर्फ एक चीज की उम्मीद करते हैं—इंसाफ, ताकि वे अपने खोए हुए अपनों की आत्मा को शांति दे सकें। दूसरी  ओर, सरकार से लोग सवाल कर रहे हैं कि ऐसी तबाही के बाद कब सच्चा न्याय मिलेगा, और क्या कभी फिर से यह इलाका अमन और भाईचारे की ओर लौट पाएगा?

कई गांवों से युवाओं का पलायन

रेहुवा मंसूर गांव का हर व्यक्ति राम गोपाल की दुखद घटना के बाद गहरे सदमे में है। गलियों में पसरी खामोशी और चेहरे पर झलकता भय अब गांव की सच्चाई बन चुके हैं। पुलिस की बेरहमी और अकारण दबिश से गांव वालों के होंठ जैसे सिल गए हैं। लोग कुछ कहने से पहले बार-बार इधर-उधर देखते हैं। हर रात पुलिस का अंधेरे में गांव में दाखिल होना, बिना इजाजत घरों में घुसना, लोगों को उठाकर ले जाना, मारपीट करना, और फिर थाने में उन्हें कागजों पर हस्ताक्षर करवाकर छोड़ देना गांववालों के लिए एक खौफनाक अनुभव बन गया है।

इस डर और असुरक्षा की वजह से गांव के अधिकतर युवा यहां से पलायन कर चुके हैं। अब यहां बस बुज़ुर्ग, महिलाएं, और बच्चे ही बचे हैं, जिनकी आंखों में डर और दिलों में पीड़ा घर कर गई है। पिछले हफ्ते पुलिस ने ललित तिवारी, कुलभूषण अवस्थी, भालेंद्र भूषण और आनंद मिश्रा उर्फ बाटा को अंधेरी रात में उठा लिया, उन पर अत्याचार किया और फिर कागज़ पर बिना कुछ बताए दस्तखत करवा लिए। गांववालों के लिए यह मंजर एक गहरे जख्म के समान है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

राम गोपाल का परिवार आज भी न्याय की आस में खड़ा है, जैसे उनकी आवाज में उम्मीद के आखिरी कतरे को बचाए रखना चाहते हों। रोली मिश्रा का चेहरा उन सभी परिवारों के दर्द की एक मिसाल बन गया है, जो अपने खोए हुए अपनों के न्याय की राह ताक रहे हैं। महराजगंज के लोग खुद को असुरक्षित और बेसहारा महसूस कर रहे हैं। पुलिस की रोज रात की दबिश, मारपीट और बेबुनियाद अत्याचार ने उनके भय को और गहरा कर दिया है।

राम गोपाल की मौत ने न केवल उसके परिवार को बल्कि पूरे गांव को ऐसा जख्म दिया है जो शायद कभी नहीं भर सकेगा। आज गांववालों की एकमात्र ख्वाहिश इंसाफ की है, ताकि वे अपने खोए हुए प्रियजनों की आत्मा को शांति दे सकें। साथ ही, सरकार से सवाल उठने लगे हैं कि इस बर्बादी के बाद कब सच्चा न्याय मिलेगा? क्या यह इलाका फिर कभी अमन और भाईचारे की राह पर लौट पाएगा? दरअसल, इस हिंसा ने महराजगंज कस्बे की आत्मा पर ऐसा घाव छोड़ा है जो जल्दी भरने वाला नहीं है। स्थानीय लोग डर और दहशत में जी रहे हैं, और उनके चेहरों पर इस बात का दर्द साफ झलकता है।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं और उन्होंने जीरो ग्राउंड से रिपोर्ट की है।)

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