कवि और आदिवासी कार्यकर्ता जसिंता केरकेट्टा ने अमेरिकी पुरस्कार ठुकराया

Written by sabrang india | Published on: September 30, 2024
जसिंता ने इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ जारी युद्ध के पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए यूएसएआईडी और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया।


साभार : विकिपीडिया

आदिवासी अधिकारों की कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखक-कवि जसिंता केरकेट्टा ने यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से दिए जाने वाले पुरस्कार को ठुकरा दिया है। केरकेट्टा ने इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीन पर जारी हमलों के खिलाफ पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए यह कदम उठाया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उनके कविता संग्रह ‘जिरहुल’ को बाल साहित्य रचनाकारों के पुरस्कारों में ‘रूम टू रीड यंग ऑथर अवार्ड’ के लिए चुना गया है। पुरस्कार देने वाले संगठनों की ओर से इस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। इसकी वेबसाइट पर बताया गया है कि बच्चों के साहित्य पुरस्कारों के दूसरे संस्करण का समारोह आगामी 7 अक्टूबर को होना है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, केरकेट्टा ने कहा कि बच्चों के लिए किताबें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन बड़े उन बच्चों को बचाने में असमर्थ हैं, जिनमें से हजारों फ़िलिस्तीन में मारे जा रहे हैं।

उन्होंने द वायर से कहा, “मैंने देखा कि रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट बच्चों की शिक्षा के लिए बोइंग (कंपनी) के साथ भी जुड़ा हुआ है। जब बच्चों की दुनिया उन्हीं हथियारों से तबाह हो रही है, तो हथियारों का कारोबार और बच्चों की देखरेख एक साथ कैसे चल सकती है?”

एयरोस्पेस की दिग्गज कंपनी बोइंग का दावा है कि वह इज़रायली सेना के साथ ’75 साल’ से जुड़ी हुई है। पिछले साल, ट्रस्ट और बोइंग के बीच एक शिक्षा कार्यक्रम को लेकर साझेदारी का उल्लेख किया गया था, जिसे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हरी झंडी दिखाई थी।

केरकेट्टा ने पुरस्कार लेने से इनकार करने का कारण बताते हुए यूएसएआईडी और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट को पत्र लिखा है।

द वायर ने रूम टू रीड से प्रतिक्रिया मांगी है, जो खबर प्रकाशित होने तक प्राप्त नहीं हुई।

‘जिरहुल’ इस साल इकतारा ट्रस्ट, भोपाल के प्रकाशन संस्थान जुगनू प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई है। इस संग्रह में फूलों पर कविताएं हैं जो ‘आदिवासी क्षेत्रों के जंगलों में लोगों के जीवन से संबंधित हैं।’

जसिंता का कहना है कि, “इसे सामाजिक-राजनीतिक चेतना जगाने के लिए लिखा गया था, खासकर ऐसे समय में जब देश में बच्चे केवल गुलाब और कमल के बारे में पढ़कर बड़े हो रहे हैं।”

केरकेट्टा ने कहा, “साहित्य के क्षेत्र में विविधता को बनाए रखते हुए बच्चों के लिए बहुत कम काम किया जा रहा है। ऐसे में बच्चों के लिए लिखे गए कविता संग्रह को पुरस्कार मिलना अच्छा होता।”

लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उनके लिए बाल साहित्य के लिए यह पुरस्कार स्वीकार करना कठिन है।

केरकेट्टा ने ‘ईश्वर और बाजार’, ‘जसिंता की डायरी’ और ‘लैंड ऑफ द रूट्स’ सहित सात अन्य किताबें भी लिखी हैं।

पिछले वर्ष, केरकेट्टा को उनके कार्य के लिए इंडिया टुडे समूह द्वारा एक पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई थी, हालांकि उन्होंने मणिपुर में आदिवासियों को तवज्जो न दिए जाने के विरोध में इसे लेने से इनकार कर दिया था।

ज्ञात हो कि पिछले सप्ताह ही लेखक झुम्पा लाहिड़ी ने न्यूयॉर्क के नोगुची संग्रहालय से पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि इस संग्रहालय ने तीन कर्मचारियों को ‘केफियेह’ स्कार्फ पहनने के कारण नौकरी से निकाल दिया था। केफियेह फिलिस्तीनी एकजुटता का प्रतीक है।

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