पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता रूपेश ने जेल में रहते हुए हासिल की एमए की डिग्री, कई जेल ट्रांसफर पर भी नहीं हारी हिम्मत

Written by sabrang india | Published on: September 26, 2024
रूपेश ने जेल में रहते हुए 'इतिहास' विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। इससे पहले, उन्होंने 'गांधी के विचार' विषय में वर्ष 2012 में तिलका मांझी विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया था।


रूपेश की गिरफ्तारी के वक्त की तस्वीर

स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को जेल में 802 दिन यानी दो साल से अधिक का समय बीत चुका है। इस दौरान उन्हें कुल चार जेलों में रखा गया, जिनमें झारखंड की दो और बिहार की दो जेलें शामिल हैं। वर्तमान में रूपेश बिहार के भागलपुर में 'शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा' में बंद हैं। उन्होंने जेल ट्रांसफर होने के बावजूद पढ़ाई जारी रखी और हिम्मत नहीं हारी। उनकी मेहनत के परिणामस्वरूप उन्होंने अब एमए की डिग्री हासिल की है।

रूपेश ने जेल में रहते हुए 'इतिहास' विषय में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। इससे पहले, उन्होंने 'गांधी के विचार' विषय में वर्ष 2012 में तिलका मांझी विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया था। अब 2024 में जेल से ही उन्होंने इग्नू से इतिहास में स्नातकोत्तर पूरा कर लिया है, और उन्हें इसका प्रोविजनल सर्टिफिकेट तथा मार्कशीट भी मिल गई है।

जेल ट्रांसफर पर एग्जाम सेंटर्स बदलने पड़े

हालांकि यह सब आसानी से संभव नहीं हुआ। इग्नू सेंटर सहित कोर्ट में कई आवेदन लगाने के बाद यह पूरा हो सका। परेशानी का सबसे बड़ा कारण एडमिशन के बाद उनका दो बार जेल ट्रांसफर था। एडमिशन के समय अध्ययन और परीक्षा केंद्र अलग थे, लेकिन झारखंड से बिहार ट्रांसफर के कारण उनके परिवार और वकील को परीक्षा केंद्र बदलने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।

बाद में उन्हें बिहार के पटना के आदर्श केंद्रीय कारा, बेऊर से भागलपुर के 'शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा' में भेज दिया गया। इस स्थिति में फिर से इग्नू के केंद्रों और कोर्ट में आवेदन देने की जरूरत पड़ी। 'मास्टर्स इन हिस्ट्री' के पहले वर्ष की परीक्षा रूपेश ने पटना के 'आदर्श केंद्रीय कारा' बेऊर से दी, जबकि दूसरे वर्ष की परीक्षा भागलपुर के 'शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा' से दी।

कोर्ट का रूख सकारात्मक रहा

उनके लिए अच्छी बात यह रही कि इस दौरान कोर्ट का रूख काफी सकारात्मक रहा। परिवार के सदस्यों के साथ-साथ कोर्ट ने भी परीक्षा केंद्रों को बदलने के लिए ई-मेल भेजा। परिवार के सदस्यों को जेल में किताबें देने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा, और कई बार एनएचआरसी और एसएचआरसी की मदद लेनी पड़ी।

इस डिग्री के साथ रूपेश ने डबल एम.ए. पूरा कर लिया है और अभी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके परिवार का कहना है कि अब यह कहना मुश्किल है कि रूपेश को कितने समय तक जेल में रखा जाएगा, लेकिन पढ़ाई और लड़ाई जारी रहेगी।

संसाधनों के दोहन के खिलाफ लिखते रहे

17 जुलाई 2022 को झारखंड पुलिस ने रूपेश को उनके गृहनगर रामगढ़ से गिरफ्तार किया था। वह आदिवासी इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के खिलाफ लगातार लिख रहे थे, जिससे वह सत्ता के लिए चुनौती बन गए थे। उन्हें चुप कराने के प्रयास में पहली बार 2019 में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया। बिहार पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल न करने के कारण उन्हें दिसंबर 2019 में जमानत मिली। लेकिन 2022 में फिर से गिरफ्तार किया गया और उन पर आईपीसी की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए। अब तक उनके खिलाफ यूएपीए समेत चार मामले दर्ज किए जा चुके हैं।

फोन को सर्विलांस पर रखा गया

रूपेश ने आरोप लगाया कि उनके फोन को पेगासस (स्पाइवेयर) के जरिए सर्विलांस पर रखा गया था। उन्होंने कहा कि जब भी वह किसी आदिवासी इलाके में रिपोर्टिंग के लिए जाते, वहां पहले से ही कुछ अज्ञात लोग मौजूद होते, जो स्थानीय लोगों को उनके खिलाफ भड़काने की कोशिश करते। उन्होंने इस निगरानी के खिलाफ कुछ अन्य पत्रकारों के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा

सबरंग इंडिया ने पिछले साल एक रिपोर्ट में लिखा कि आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की गैर मौजूदगी में उनके परिवार को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी पत्नी इप्सा शताक्षी को एक निजी स्कूल से नौकरी से निकाल दिया गया है, फिर भी वह अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए दृढ़ हैं। परिवार की बुनियादी जरूरतों के साथ-साथ उन्हें अपने छह साल के बेटे अग्रिम की पढ़ाई का खर्च भी उठाना है। आर्थिक संकट के बावजूद वह निजी ट्यूशन पढ़ा रही हैं और इस कठिन समय में कानून की पढ़ाई कर रही हैं, साथ ही डिस्टेंस मोड में पत्रकारिता का कोर्स भी कर रही हैं। इससे पहले उन्होंने बी.कॉम और एम.कॉम किया और बैचलर ऑफ एजुकेशन की डिग्री हासिल की है।

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