गुजरात उच्च न्यायालय में तीस्ता सेतलवाड़ की स्थायी जमानत पर जिरह जारी

Published on: June 19, 2023
प्रथम दृष्ट्या सेतलवाड़ पर कोई भी धारा लागू नहीं होती : गुजरात उच्च न्यायालय में वकील ने कहा



2002 गुजरात दंगों के पीछे बड़े षडयंत्र की दोबारा जांच की मांग करती जकिया जाफरी की अपील का निपटारा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद  जून 2022 में तीस्ता सेतलवाड़ को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने साबरमती महिला जेल, अहमदाबाद में 70 दिनों की कैद के बाद 2 सितंबर 2022 को अंतरिम जमानत दी थी।

जमानत पर जारी सुनवाई पर विस्तृत नोट

मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ की जमानत याचिका पर गुजरात उच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। उन्होंने गलत प्रमाण प्रस्तुत करने के आरोपों से संबंधित मामले में स्थायी जमानत की मांग की है। उन्हें गुजरात के जेल में 70 दिन बिताने के बाद 2 सितंबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम जमानत मिली हुई है।

याचिककर्ता अपना पक्ष प्रस्तुत कर चुकी हैं और इस समय राज्य की तरफ से जिरह की जा रही है। याचिककर्ता के वकील मिहिर ठाकोर ने न्यायाधीश निर्जर देसाई के समक्ष 12 और 13 जून को विस्तार से जिरह की। राज्य का पक्ष रखे जाने के बाद, अगले सप्ताह वरिष्ठ वकील मिहिर ठाकोर सेतलवाड़ की तरफ से प्रत्युतर दिया जाएगा।  

पृष्ठभूमि 

लगभग एक साल पहले सेतलवाड़ को गुजरात एटीएस ने मुंबई आवास से जकिया जाफरी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद अपेक्षाकृत जल्दबाजी में गिरफ्तार किया था। उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 468 (फर्जीवाड़ा), 471 (नकली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ वास्तविक दस्तावेज़ दर्शाते हुए इस्तेमाल करना), 194 (अपराध में दोषसिद्धि प्राप्त करने उद्देश्य से झूठा प्रमाण गढ़ना या देना), 211 (चोट पहुंचाने के उद्देश्य से गलत आरोप लगाना), 218 (सरकारी कर्मचारी का व्यक्ति को दंड या संपत्ति जब्ती से बचाने के लिए गलत रिकार्ड बनाना या लिखना) और 120 बी (आपराधिक षड्यन्त्र) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

जकिया जाफरी ने सेतलवाड़ (सिटीजंस फॉर जस्टिस एण्ड पीस के जरिए) के साथ मिलकर अपील गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दाखिल की थी जिसके अनुसार निचली अदालत के जाफरी की याचिका को खारिज करने के फैसले पर मुहर लगाई गई थी। जाफरी ने विशेष जांच टीम (एसआईटी)  की क्लोज़र रिपोर्ट के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। एसआईटी को जाफरी की 2002 में गुजरात दंगों, जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिमों के साथ उनके पति अहसान जाफरी भी मारे गए थे, में बड़े षड्यन्त्र का आरोप लगते हुए 2006 में दी शिकायत की जांच का कार्य दिया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपील निपटारे के समय एक सामान्य टिप्पणी की थी ‘’जिन्होंने पिछले 16 साल से ‘‘गलत इरादे’’ से मामले को गरम रखा था को भुगतना चाहिए और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए”। इस संदर्भ को राजनीतिक ताकतों ने इस्तेमाल किया और गुजरात एटीएस ने जल्दबाजी में एक प्राथमिकी दर्ज कर सेतलवाड़ के आवास पर धावा बोला और उन्हें हिरासत में लिया।

याचिककर्ता तीस्ता सेतलवाड़ कि जिरह 

12 जून और 13 जून 2023 को गुजरात उच्च न्यायालय न्यायाधीश निर्जर देसाई के समक्ष 

हलफनामे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष थे

वकील मिहिर ठाकोर ने प्राथमिकी में सेतलवाड़ के खिलाफ लगाये हर आरोप पर बात की और न्यायालय के समक्ष हर अपराध की परिभाषा बताते हुए जोर दिया कि कैसे उनके खिलाफ एक भी आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है। वकील ने कहा कि हलफनामे जिनके कि गलत या फर्जी होने का दावा कर रही है, वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल किए गए थे न कि पुलिस के समक्ष। यह हलफनामे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरफ से एक स्थानांतरण याचिका में दाखिल किए गए थे, जाफरी की 2006 में शिकायत के चार साल पहले। इस तरह, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 के तहत “उस अदालत की लिखित में शिकायत या अदालत के अधिकारी या अदालत की तरफ से इस संदर्भ में लिखित में नियुक्त अधिकारी या किसी और अदालत जिसके मातहत यह अदालत है कि लिखित शिकायत’’ को छोड़कर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती थी।

इसके अलावा, एसआईटी की तरफ से दर्ज किसी बयान या एसआईटी के समक्ष दाखिल किसी हलफनामे का जाफरी की शिकायत (2006) या विरोध याचिका में जिक्र नहीं किया गया था। हलफनामों का इस्तेमाल जाफरी के सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अवकाश याचिका में इस्तेमाल नहीं किया गया था और केवल एनएचआरसी के स्थानांतरण याचिका के समर्थन में दाखिल किए गए था, जो जाफरी की 2006 की शिकायत से काफी पहले था।

इस संदर्भ में, वकील ने इकबाल सिंह मरवाह और अन्य बनाम मीनाक्षी मरवाह (2005) 4 एससीसी 370 का हवाला दिया, सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि एक शिकायत तभी टिकने योग्य है जब दस्तावेज़ कानून के पास और अदालत में दाखिल किया जाना है लेकिन एक बार यह अदालत में दाखिल कर दिया गया तो 195-340 दंड प्रक्रिया संहिता में निर्दिष्ट प्रक्रिया का पालन जो 195(1)(बी)(i) के तहत मामले आते हैं पर लागू नहीं होगा। इसका मतलब है गलत प्रमाण या गढ़ा हुआ प्रमाण अदालत में या न्यायिक कार्रवाई में दाखिल करने के पहले या बाद में दिया गया हो, कार्रवाई सक्षम अदालत के शिकायत दर्ज करने पर होगी जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 और धार 340 में बताया गया है। इस प्रक्रिया का पालन करने के बजाय गुजरात एटीएस सीधे सेतलवाड़ के घर पर बिना वॉरन्ट के पहुंची और उन्हें जबरन अहमदाबाद ले गई जहां उन्हें 26 जून तक पुलिस हिरासत में भेजा गया। उसके बाद 2 जुलाई 2022 को उन्हें न्यायिक हिरासत में अहमदाबाद के साबरमती महिला जेल में भेज गया।

प्रथम दृष्ट्या मामला नहीं बनता 

वकील ने आईपीसी की धारा 467, 469 और 194 पर कहा, “यह अपराध लागू होते, यदि आरोप होता कि सेतलवाड़ ने जकिया पर 2006 में शिकायत करने के लिए दबाव डाला होता। लेकिन शिकायत जकिया ने दाखिल की थी, सेतलवाड़ ने नहीं।” उन्होंने कहा कि धारा 467, 469 और 471 लगाई गई ताकि मामला दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 195 के दायरे से बाहर रहे क्योंकि एक भी दस्तावेज़, सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिका के सिवा, पर सेतलवाड़ के हस्ताक्षर नहीं हैं।

वकील ने कहा कि आईपीसी की धारा 194 और 211 लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से शिकायत आना जरूरी था जैसा कि है नहीं, इस तरह सेतलवाड़ के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या कोई मामला नहीं बनता है।

वकील ने अदालत के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 (4) (गैर जमानती अपराध के मामले में जमानत दिए जाने) और 439 (उच्च न्यायालय अथवा सत्र न्यायालय के जमानत देने के विशेष अधिकार) के प्रावधानों को भी रखा कि इस मामले में क्यों जमानत दी जानी चाहिए।

जमानत के लिए दर्शाये गए मामले

उन्होंने कल्याण चंद्र सरकार बनाम राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (अपील (आपराधिक)) 324-2004, 12 मार्च 2004 को निर्णीत) का हवाला दिया जहां सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “जमानत देने या मना करने के संदर्भ में कानून स्पष्ट है। जमानत देने वाली अदालत को अपने विवेक का इस्तेमाल सोच समझकर करना चाहिए  न कि अनिवार्य मानकर.. यह भी आवश्यक है कि जमानत देने वाली अदालत अन्य परिस्थितियों के अलावा निम्नलिखित कारकों पर गौर करे :

(अ) आरोप का प्रकार और दोष सिद्धि होने की सूरत में सजा की कठोरता और प्रमाण का प्रकार

(ब) गवाहों से छेड़छाड़ की आशंका अथवा शिकायतकर्ता को खतरे की आशंका

(स) आरोप के पक्ष में अदालत का प्रथम दृष्ट्या संतुष्ट होना

अदालत से सेतलवाड़ की जमानत को लेकर मानवीय आधार पर विचार करने की अपील करते हुए वकील ने सतेन्दर  कुमार अंतिल बनाम केन्द्रीय जांच ब्यूरो (मिसलेनियस आवेदन क्रमांक 1849 - 2021, 11 जुलाई 2022 को निर्णीत) का हवाला दिया जहां सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “समय आ गया है कि हमारी संसद महसूस करे कि आर्थिक नुकसान ही न्याय से भागने से रोकने का एक जरिया नहीं है बल्कि और भी कारक हैं जो किसी को भागने से रोकते हैं.. अन्य प्रासंगिक स्थितियाँ जैसे पारिवारिक संबंध, समुदाय में जड़ें, नौकरी की सुरक्षा, स्थिर संगठनों की सदस्यता आदि जमानत दिए जाने में निर्णायक कारक होने चाहिये और आरोपी उचित मामलों में निजी मुचलके पर बिना आर्थिक दायित्व के रिहा किया जाना चाहिए.. यदि अदालत संतुष्ट है, सामने रखी गई जानकारी के आधार पर कि आरोपी की समुदाय में जड़ें हैं और वह भागेगा नहीं, आरोपी को निजी मुचलके पर छोड़ा जा सकता है।

अदालत ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 437 के अनुसार, “महिलाओं के मामले में अदालत को संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।”

वकील ने इस पर भी जोर दिया कि अब तक उनके खिलाफ दर्ज मामलों में, उन्होंने कभी अदालतों की तरफ से जमानत के रूप में दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया और उन मामलों में से कई खारिज किए जा चुके हैं।

पहले के आरोप खारिज किए जा चुके हैं

उल्लेखनीय है कि यह पहली बार नहीं है कि सेतलवाड़ को परेशान करने का प्रयास किया जा रहा है। यहाँ क्रमिक सूची दी गई है जो दर्शाती है कि कैसे सेतलवाड़ को शासन परेशान करता रहा है और उनके खिलाफ लगाए गए सभी बेबुनियाद आरोपों का बिन्दुवार जवाब भी दिया गया है। वास्तव में न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों और फ्रन्टलाइन डिफेन्डर्स जैसे संगठनों ने भी प्रतिशोधकारी शासन की तरफ से उनकी लगातार प्रताड़ना के बारे में लिखा है।

वास्तव में, अदालतों ने अतीत में गवाहों को ‘’सिखाने-पढ़ाने’ जैसे आरोपों समेत अन्य बेबुनियाद आरोपों को खारिज किया है।

सरदारपुर विशेष सत्र न्यायालय फैसले में, जिस दौरान सीजेपी के एक पूर्व कर्मचारी रईस खान ने सिखाने-पढ़ाने के आरोप लगाए थे, अदालत ने कहा, “गवाहों ने स्पष्ट तौर पर इनकार किया है कि तीस्ता सेतलवाड़ ने उन्हें बताया था कि अदालत में क्या गवाही देनी है। प्रमाणों और तथ्यों पर गौर करने पर देखा जाए तो यह तथ्य कि मामले के बारे में चर्चा करना गवाह पढ़ाना नहीं माना जाएगा। अदालत ने आगे कहा, “यह स्वीकार्य मान्यता नहीं है कि गवाहों से कोई भी संपर्क नहीं करेगा या बात नहीं करेगा उस मामले के बारे में जिनमें उन्हें गवाही देनी है। गवाह को कई बातें काही जा सकती हैं जैसे घबराना नहीं, उनके सामने रखे सवालों को गौर से सुनना है, अदालत के सामने तथ्य बिना डरे रखने हैं, इसलिए यह नैतिक या कानूनी रूप से आपत्तिजनक नहीं लगता।”

सबसे महत्वपूर्ण, अदालत ने स्पष्ट किया, “गवाह को सिखाना-पढ़ाना, उसके व्यवहार के बारे में मार्गनिर्देशन करने से अलग है, गवाह ऐसी मनःस्थिति में थे कि किसी के सक्रिय सहयोग के बिना वह अदालत के सामने आकर गवाही नहीं दे सकते थे। सिटीजंस फॉर पीस एण्ड जस्टिस की तरफ से यदि प्रोत्साहन और सलाह मुहैया कराई गई तो उसे सिखाना-पढ़ाना नहीं कह सकते और उसकी वजह से हम यह नहीं मान सकते कि गवाह को सिखाया पढ़ाया गया था।”

2002 की गुजरात हिंसा 

सिटीजंस फॉर जस्टिस एण्ड पीस (सीजेपी), जिसकी सेतलवाड़ सचिव हैं, ने 2002 के दंगों के पीड़ितों को 68 अदालती मामलों, ट्रायल अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक, में लड़ने में मदद की है। सांप्रदायिक हिंसा के मामले में 174 दोषियों को सजा सुनाई गई है और उनमें से 124 को उम्रकैद की सजा मिली है।

पिछला बदला 

सेतलवाड़ के खिलाफ पहले आठ मामले दर्ज किए गए हैं और उन्हें सभी मामलों में अग्रिम जमानत लेनी पड़ी है पहले मुंबई अदालत, जहां वह रहती हैं, से और फिर गुजरात से। एक मामले को छोड़कर सभी मामलों में गुजरात की अदालतों से भी उन्हें जमानत मिली है। पहला मामला बेस्ट बेकरी मामला था, जिसकी सुनवाई महाराष्ट्र स्थानांतरित की गई थी और प्रमुख गवाह जहीर शेख मुकर गई थीं और सेतलवाड़ के खिलाफ अपहरण आदि के आरोप लगाए थे। सेतलवाड़ ने खुद सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि मामले में सच लाने के लिए उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। एक उच्च स्तरीय सर्वोच्च न्यायालय के माह पंजीकार (बीएम गुप्ता) जांच रिपोर्ट अगस्त 2004 में प्रस्तुत की गई थी जिसमें सेतलवाड़ को दोषमुक्त किया था, सीजेपी के खाते सही पाए थे और वास्तव में जहीर शेख को झूठी गवाही देने और मधु श्रीवास्तव, भाजपा विधायक, को प्रमुख पीड़ित गवाह को 18 लाख रुपये का प्रलोभन देने का दोषी करार दिया था, जहीर शेख को बाद में झूठी गवाही देने के लिए एक साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी।

गुलबर्ग स्मारक प्राथमिकी (जनवरी 2014 में दर्ज) के मामले में सत्र न्यायालय के अग्रिम जमानत देने से इनकार करने और गुजरात उच्च न्यायालय के भी सेतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद को जमानत देने से इनकार करने पर उच्चतम न्यायालय ने दोनों को जमानत दी। नौ वर्षों से, प्रमाण के रूप में 20 हजार पृष्ठ अपने निजी और संगठन (सीजेपी) के बैंक खातों  (सभी खाते, वाउचर आदि) का विवरण देने के बावजूद, खाते फ्रीज़ हैं। नौ सालों में इसमें या किसी और मामले में आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया है।

जब यह मामला अप्रैल 2023 में आया, गुजरात के वकील ने अदालत से समय की मांग की और कहा कि दम्पत्ति ने जांच में सहयोग किया है।

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