लेखक शुद्धता, परिवर्तन, त्याग, प्रेम और करुणा में भगवान राम के अर्थ को खोजता है और अफसोस जताता है कि उनका नाम हिंसा के लिए इस्तेमाल हो रहा है। लेखक आत्मनिरीक्षण करने व प्यार और करुणा की तरफ लौटने को कहता है।
तस्वीर सौजन्य : सतीश आचार्य
18 अप्रैल 2023
प्रिय राम, नरपति, मर्यादा पुरषोत्तम
मुझे आपको पत्र लिखने का कारण नजर नहीं आता, क्योंकि आप तो सर्वत्र उपस्थित हैं। आप सर्वजन (सब जानते) हैं। लेकिन तब मैं आपको लिख रहा हूँ, मैं अपनी स्थिति, पाखंड और अपने समुदाय में आत्मनिरीक्षण के अभाव पर विचार करता हूँ।
छात्र के रूप में एक निबंध में एक बार मैंने एक कहावत सुनी, “जो रमता है वही राम है।” मैंने अपने शिक्षक से पूछा कि क्या इसका अयोध्या के राजकुमार राम से कोई संबंध है। शिक्षक ने बड़े सब्र से मुझे समझाया कि निबंधकार ने ‘राम’ का प्रयोग निर्गुण में शुद्धता के प्रतिनिधि के रूप में किया है। उन्होंने परिवर्तन (रमता) को चिन्हित करने के लिए वस्तुत: और प्रतीकात्मक रूप में यात्रा के विचार पर चर्चा की। उन्होंने कबीर और सूरदास की भी बात की। उस निबंध और चर्चा ने मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। मैंने महसूस किया कि राम का विचार किसी अकेली चीज की संकीर्ण धारणा नहीं है बल्कि शुद्धता का मानवीय आदर्श है।
बाद के वर्षों में, मैंने आपके और “राम के विचार” के बारे में अपनी मां, बहन और दोस्तों से और भी सुना। मां के लिए आप मर्यादा थे, बहन के लिए अडिग और मेरे लिए “रमता” (परिवर्तन)।
जब मैं आपको खोज रहा था उसी समय मेरे बाहर एक नाटकीय परिवर्तन हो रहा था: 1990 में रथ-यात्रा ने आपके नाम और अस्तित्व, राम को मर्यादा के विचार से सिंह नाद में बदल दिया था। सिंह नाद का इस्तेमाल उन हिंदुओं, जिन्हें आपके गौरवशाली अतीत के बारे में और ऐतिहासिक “अन्यायों” को कैसे ठीक किया जाए के बारे में बताया गया था, को उकसाने के लिए किया गया।
शाली अतीत के बारे में बताया गया और यह भी कि ऐतिहासिक “अन्यायों” को कैसे ठीक किया जाए।
भगवान राम,
तस्वीर सौजन्य : सतीश आचार्य
18 अप्रैल 2023
प्रिय राम, नरपति, मर्यादा पुरषोत्तम
मुझे आपको पत्र लिखने का कारण नजर नहीं आता, क्योंकि आप तो सर्वत्र उपस्थित हैं। आप सर्वजन (सब जानते) हैं। लेकिन तब मैं आपको लिख रहा हूँ, मैं अपनी स्थिति, पाखंड और अपने समुदाय में आत्मनिरीक्षण के अभाव पर विचार करता हूँ।
छात्र के रूप में एक निबंध में एक बार मैंने एक कहावत सुनी, “जो रमता है वही राम है।” मैंने अपने शिक्षक से पूछा कि क्या इसका अयोध्या के राजकुमार राम से कोई संबंध है। शिक्षक ने बड़े सब्र से मुझे समझाया कि निबंधकार ने ‘राम’ का प्रयोग निर्गुण में शुद्धता के प्रतिनिधि के रूप में किया है। उन्होंने परिवर्तन (रमता) को चिन्हित करने के लिए वस्तुत: और प्रतीकात्मक रूप में यात्रा के विचार पर चर्चा की। उन्होंने कबीर और सूरदास की भी बात की। उस निबंध और चर्चा ने मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। मैंने महसूस किया कि राम का विचार किसी अकेली चीज की संकीर्ण धारणा नहीं है बल्कि शुद्धता का मानवीय आदर्श है।
बाद के वर्षों में, मैंने आपके और “राम के विचार” के बारे में अपनी मां, बहन और दोस्तों से और भी सुना। मां के लिए आप मर्यादा थे, बहन के लिए अडिग और मेरे लिए “रमता” (परिवर्तन)।
जब मैं आपको खोज रहा था उसी समय मेरे बाहर एक नाटकीय परिवर्तन हो रहा था: 1990 में रथ-यात्रा ने आपके नाम और अस्तित्व, राम को मर्यादा के विचार से सिंह नाद में बदल दिया था। सिंह नाद का इस्तेमाल उन हिंदुओं, जिन्हें आपके गौरवशाली अतीत के बारे में और ऐतिहासिक “अन्यायों” को कैसे ठीक किया जाए के बारे में बताया गया था, को उकसाने के लिए किया गया।
शाली अतीत के बारे में बताया गया और यह भी कि ऐतिहासिक “अन्यायों” को कैसे ठीक किया जाए।
भगवान राम,
“आप एक पूरे समाज के पोस्टर बॉय बन गए जो आपके लिए मंदिर बनाने के लिए सामाजिक, कानूनी, धार्मिक और राजनीतिक लड़ाई लड़ रहा था। उन्होंने आपके मंदिर के लिए हिंसा बिखेर दी पर उन्हें कभी नहीं लगा कि आपने अपने पिता के किए वायदे के लिए अपना राजपाट छोड़ दिया था, आपने कभी कैकयी के लिए बुरा नहीं बोला, आप भरत से एक बार गले लगकर अलग हो गए और उसका सफलता के लिए मार्गनिर्देशन किया। आपके जीवन ने सिखाया कि “त्याग” यानि कुछ छोड़ देने का विचार “तपस्या” का विचार है।
प्रिय रघुपति, मैंने मैथली शरण गुप्त की “कैकयी का अनुताप” फिर से पढ़ी। समूची कविता के दौरान, कैकयी अपने कृत्यों के लिए पछता रही थी और आपसे माफी मांग रही थी। आपने न सिर्फ उन्हें माफ किया, बल्कि प्रेम भी जताया। कैकयी के लिए और भरत के लिए आपका प्रेम अटूट था। मैं यहाँ स्वीकार करना चाहूँगा कि मैंने वर्षों कोशिश की है (और अक्सर असफल रहा हूँ) यह अटूट प्रेम अपनाने की।
मैं आपके जीवन से कितनी घटनाएं (हमारे पास आपके जीवन के कई संस्करण हैं) याद करता हूँ। मैं याद करता हूँ कैसे आपने बाली के आखिरी शब्दों को स्वीकार किया जब उन्होंने आपकी बाहों में दम तोड़ते हुए खुद को छला महसूस किया। आपने वादा किया कि कृष्ण के रूप में आपके अगले जनम में जरा नामक शिकारी गलती से घायल करेगा जो बाली का पुनर्जनम का रूप होगा।
दशरथ पुत्र, जटायु जिस समय आपकी बाहों में दम तोड़ रहा था, आपने उसके प्रति करुणा जताई। आपने शबरी के झूठे बेर स्वीकार किए। आपने उसमें भक्ति और प्रेम देखा। आपको विभीषण का शरण का अनुरोध मिला। सुग्रीव और लक्ष्मण ने विभीषण के इरादों के प्रति संदेह दर्शाया। आपने रावण के बारे में भी सम्मान से बात की, आपने युद्ध नहीं चाहा और हनुमान को शांति के लिए भेजा। और अंत में आपने लंका जीतने के लिए नहीं सीता के प्यार के लिए लड़ाई लड़ी। आपने विभीषण से लंका पर शासन के लिए कहा। आपने सोचा कि विभीषण न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन करेगा। दुश्मनों को भी माफ करने और करुणा से पेश आने की आपकी महानता और क्षमता हमारे लिए एक सबक है।
“वनवास” की अवधि आत्मनिरीक्षण और प्रेम के लिए लड़ाई की अवधि थी। आप, “तपस्या” का जीवन जीने के बाद अयोध्या लौटे। आपने हमें सिखाया कि भक्ति क्या है, क्योंकि सच्चा प्यार स्वामित्व जताने में नहीं पर मोह के त्याग और खुद की खोज में है। वह वास्तव में आपको वनवास प्रिय कहते हैं और मैं इसे यूं समझता हूँ कि एक व्यक्ति जिसने विमोह का उत्सव मनाया (एक राजकुमार यह कैसे कर सकता है!!)
भगवान राम, मुझे एक घटना याद आती है जब हनुमान ने लव और कुश को आपके तीर से बचाया। हनुमान, जो आपके प्रति समर्पण और सम्मान का मूर्त रूप था, ने दिखाया कि आपकी भक्ति आपके तीर के असर को भी उलट सकती है।
भगवान राम का प्यार आपके गुस्से को भी जीत सकता है।
इसने राम मर्यादा के सम्मान, प्रेम और समर्पण के मूल्यों को पुनर्स्थापित किया और इसका महत्व समय के साथ बढ़ा ही है।
इसके बावजूद मैंने महसूस किया कि हमने आपको छला है जब मैंने लोगों को मारते और जी श्री राम का नारा लगाते देखा। हमें आपसे माफी माँगनी चाहिए। एक देश और एक धार्मिक समूह के रूप में, हमने सम्मान और मर्यादा दोनों खो दिए हैं। भगवान जो अपना राजपाट छोड़ सकता है और जिसने हमेशा तपस्या, भक्ति और प्रेम के लिए लड़ना सिखाया हो, हिंसा, प्रतिशोध और अधर्म के नारे तक सीमित कर दिया जाए।
कई कहेंगे कि आपको यह बुराइयाँ समाप्त करने के लिए लौटना होगा, पर आपने अपनी कहानी और सबक दे दिया है; आपके अनुयायी होने के नाते हमें आपकी दी भक्ति, प्रेम का विचार पुनर्प्राप्त करने होंगे।
हम आपके पास कैकयी की तरह आ रहे हैं। हम “अनुताप” (अफसोस और पछतावे) के साथ आ रहे हैं। सुधार का एक ही रास्ता है, आत्मनिरीक्षण से शुरुआत करना और प्रेम व करुणा के मूल्यों को अपनाने का जो आपने ही हमें सिखाए हैं।
भगवान राम, आपको “प्रेममय” भी कहा जाता है जिसका अर्थ है प्रेम से भरा हुआ। हम आपके नाम का नफरत के प्रतीक के रूप में दुरुपयोग नहीं होने देंगे।
प्रेम और ज्ञान का एक अनुयायी
वेंकट श्रीनिवासन
(लेखक वित्तीय पेशेवर हैं और कला, शिक्षा और विकास व मानवाधिकार से संबंधित सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय हैं।)