मिड डे मील वर्कर्स क़रीब 6 महीने के बक़ाया मानदेय और अन्य मांगों को लेकर प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में संघर्षरत हैं।
हरियाणा में मिड डे मील वर्कर्स एक बार फिर सड़कों पर हैं। बीते लंबे समय से मानदेय न मिलने के चलते इन वर्कर्स को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते ये बार-बार सड़क पर उतरने को मज़बूर हैं। रविवार, 19 मार्च को हरियाणा के भिवानी में वर्कर्स ने करीब 6 महीने के बकाया वेतन मानदेय व अन्य मांगाें काे लेकर लघु सचिवालय के बाहर प्रदर्शन किया। साथ ही राज्य सरकार को ये चुनौती भी दी कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी जाती तो वे अपने आंदोलन को तेज़ करने पर मजबूर होंगे।
बता दें कि हरियाणा के अलग-अलग जिलों में मिड डे मील वर्कर्स बीते काफी समय से अपने बकाया मानदेय को जारी करने साथ ही मानदेय बढ़ाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इनकी अन्य मांगों में न्यूनतम मानदेय 26 हजार रुपये लागू करने से लेकर मिड डे मील वर्कर्स को पक्का करने, और पीएफ, ईएसआई बोनस लागू करने आदि की मांगे शामिल हैं।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के नेतृत्व में भिवानी में हुए प्रदर्शन में इन वर्कर्स ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए खट्टर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की। इन वर्कर्स के मुताबिक 5 अप्रैल को दिल्ली, मजदूर, किसान संघर्ष रैली में भाग लेने के लिए वे तहसीलदार के माध्यम से मुख्यमंत्री को नोटिस भी देंगे।
क्या है पूरा मामला?
प्रदेश में मिड डे मील वर्कर्स का प्रोटेस्ट आए दिन जोर पकड़ रहा है, इस पूरे मुद्दे पर न्यूज़क्लिक ने सीटू के प्रदेश महासचिव जय भगवान से बातचीत कर मामले को समझने की कोशिश की...
जय भगवान ने बताया कि हरियाणा में ये वर्कर्स अपनी सबसे बड़ी और जरूरी मांग मानदेय को लेकर इस वक्त प्रदर्शन कर रहे है। बीते सितंबर-अक्तूबर से इन कर्मियों को मानदेह नहीं मिला है, ऐसे में इनके पास सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।
जय भगवान बताते हैं कि सीटू ने इन मिड डे मील वर्कर्स की ओर से सभी संबंधित विभागों में ज्ञापन भी दिए, कई अधिकारियों को पत्र भी लिखे गए बावजूद इसके सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कभी किसी विभाग से कोई स्पष्ट जवाब या आश्वासन अभी तक इन कर्मियों को नहीं मिला है, जिसके चलते इन आर्थिक और मानसिक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।
भिवानी में मीड डे मील प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए सीटू के जिला कोषाध्यक्ष कुलदीप सिंह ने कहा कि आज के इस महंगाई के दौर में मिड डे मील वर्कर्स को मात्र 7 हजार रुपये मानदेय में गुजारा करना पड़ रहा है। वो भी इन्हें 6-6 माह तक नहीं मिलता, ये बेहद निराशाजनक बात है।
उन्होंने आगे बताया कि मौजूदा बीजेपी सरकार इन महिलाओं का आर्थिक शोषण कर रही है। 45वें श्रम सम्मेलन को सिफारिशों को लागू नहीं किया जा रहा है, जो मिड डे मील वर्कर्स के कर्मचारी बनाने, न्यूनतम वेतन लागू करने और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की बात करता है।
अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण
इस दौरान वर्कर्स ने भी सरकार के खिलाफ नाराज़गी जाहिर करते हुए अपने अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण का आरोप लगाया। उनका कहना है कि सरकार एक तो उन्हें मानदेय कम देती है, ऊपर से कई-कई महीने और कर देती है, जिसके चलते उनका गुजर-बसर मुश्किल हो जाता है। कई कर्मियों का कहना है कि उनके परिवार की जिम्मेदारी भी उनपर है, जो इस मानदेय के न मिलने से निर्वाह करने में असमर्थ हो जाती हैं। यही नहीं यहां कई ऐसी महिला कर्मी भी हैं, जो सालों साल से इसी पेशे में हैं और उन्हें रह-रह कर छटनी का डर भी सताता रहता है, क्योंकि ये कोई पक्का काम नहीं है।
गौरतलब है कि मिड डे मील केंद्र सरकार की योजना है, जिसका खर्च केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 60और 40 फीसदी के अनुपात में क्रमश: करती है। इस योजना का उद्देश्य स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों को खाने के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करना है। इस योजना की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को गई थी और सबसे पहले इसे 2000 से अधिक ब्लॉक के स्कूलों में लागू किया गया था। इसकी सफलता के बाद साल 2004 में यह योजना पूरे देश के सरकारी स्कूलों में लागू की गई थी। फिलहाल ये योजना देश के सभी सरकारी स्कूलों में चल रही है, जो कई बार विवादों में भी रही है। हालांकि फिर भी समय-समय पर तमाम राज्यों के मिड डे मील वर्कर्स सड़कों पर अपने मानदेय की शिकायत को लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं।
Courtesy: Newsclick
हरियाणा में मिड डे मील वर्कर्स एक बार फिर सड़कों पर हैं। बीते लंबे समय से मानदेय न मिलने के चलते इन वर्कर्स को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते ये बार-बार सड़क पर उतरने को मज़बूर हैं। रविवार, 19 मार्च को हरियाणा के भिवानी में वर्कर्स ने करीब 6 महीने के बकाया वेतन मानदेय व अन्य मांगाें काे लेकर लघु सचिवालय के बाहर प्रदर्शन किया। साथ ही राज्य सरकार को ये चुनौती भी दी कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी जाती तो वे अपने आंदोलन को तेज़ करने पर मजबूर होंगे।
बता दें कि हरियाणा के अलग-अलग जिलों में मिड डे मील वर्कर्स बीते काफी समय से अपने बकाया मानदेय को जारी करने साथ ही मानदेय बढ़ाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इनकी अन्य मांगों में न्यूनतम मानदेय 26 हजार रुपये लागू करने से लेकर मिड डे मील वर्कर्स को पक्का करने, और पीएफ, ईएसआई बोनस लागू करने आदि की मांगे शामिल हैं।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के नेतृत्व में भिवानी में हुए प्रदर्शन में इन वर्कर्स ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए खट्टर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की। इन वर्कर्स के मुताबिक 5 अप्रैल को दिल्ली, मजदूर, किसान संघर्ष रैली में भाग लेने के लिए वे तहसीलदार के माध्यम से मुख्यमंत्री को नोटिस भी देंगे।
क्या है पूरा मामला?
प्रदेश में मिड डे मील वर्कर्स का प्रोटेस्ट आए दिन जोर पकड़ रहा है, इस पूरे मुद्दे पर न्यूज़क्लिक ने सीटू के प्रदेश महासचिव जय भगवान से बातचीत कर मामले को समझने की कोशिश की...
जय भगवान ने बताया कि हरियाणा में ये वर्कर्स अपनी सबसे बड़ी और जरूरी मांग मानदेय को लेकर इस वक्त प्रदर्शन कर रहे है। बीते सितंबर-अक्तूबर से इन कर्मियों को मानदेह नहीं मिला है, ऐसे में इनके पास सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।
जय भगवान बताते हैं कि सीटू ने इन मिड डे मील वर्कर्स की ओर से सभी संबंधित विभागों में ज्ञापन भी दिए, कई अधिकारियों को पत्र भी लिखे गए बावजूद इसके सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कभी किसी विभाग से कोई स्पष्ट जवाब या आश्वासन अभी तक इन कर्मियों को नहीं मिला है, जिसके चलते इन आर्थिक और मानसिक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।
भिवानी में मीड डे मील प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए सीटू के जिला कोषाध्यक्ष कुलदीप सिंह ने कहा कि आज के इस महंगाई के दौर में मिड डे मील वर्कर्स को मात्र 7 हजार रुपये मानदेय में गुजारा करना पड़ रहा है। वो भी इन्हें 6-6 माह तक नहीं मिलता, ये बेहद निराशाजनक बात है।
उन्होंने आगे बताया कि मौजूदा बीजेपी सरकार इन महिलाओं का आर्थिक शोषण कर रही है। 45वें श्रम सम्मेलन को सिफारिशों को लागू नहीं किया जा रहा है, जो मिड डे मील वर्कर्स के कर्मचारी बनाने, न्यूनतम वेतन लागू करने और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की बात करता है।
अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण
इस दौरान वर्कर्स ने भी सरकार के खिलाफ नाराज़गी जाहिर करते हुए अपने अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण का आरोप लगाया। उनका कहना है कि सरकार एक तो उन्हें मानदेय कम देती है, ऊपर से कई-कई महीने और कर देती है, जिसके चलते उनका गुजर-बसर मुश्किल हो जाता है। कई कर्मियों का कहना है कि उनके परिवार की जिम्मेदारी भी उनपर है, जो इस मानदेय के न मिलने से निर्वाह करने में असमर्थ हो जाती हैं। यही नहीं यहां कई ऐसी महिला कर्मी भी हैं, जो सालों साल से इसी पेशे में हैं और उन्हें रह-रह कर छटनी का डर भी सताता रहता है, क्योंकि ये कोई पक्का काम नहीं है।
गौरतलब है कि मिड डे मील केंद्र सरकार की योजना है, जिसका खर्च केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 60और 40 फीसदी के अनुपात में क्रमश: करती है। इस योजना का उद्देश्य स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों को खाने के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करना है। इस योजना की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को गई थी और सबसे पहले इसे 2000 से अधिक ब्लॉक के स्कूलों में लागू किया गया था। इसकी सफलता के बाद साल 2004 में यह योजना पूरे देश के सरकारी स्कूलों में लागू की गई थी। फिलहाल ये योजना देश के सभी सरकारी स्कूलों में चल रही है, जो कई बार विवादों में भी रही है। हालांकि फिर भी समय-समय पर तमाम राज्यों के मिड डे मील वर्कर्स सड़कों पर अपने मानदेय की शिकायत को लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं।
Courtesy: Newsclick