रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पांडेय और अन्य एक्टिविस्ट पैदल मार्च में भाग लेने वाले थे, जिसका शीर्षक था 'बिलकिस बानो से माफी'
Image Courtesy: The Hindu
पुलिस ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई और अपने परिवार के सात सदस्यों को खोने वाली बिलकिस बानो के साथ एकजुटता व्यक्त करने जा रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया है। ये सभी 26 सितंबर से एक पैदल मार्च निकालने जा रहे थे।।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पांडे और अन्य कार्यकर्ता पैदल मार्च में भाग लेने वाले थे, जिसका शीर्षक था 'बिलकिस बानो से माफी'। इस पैदल मार्च को 'हिंदू-मुस्लिम एकता समिति' के बैनर तले सोमवार को दाहोद जिले के बिलकिस बानो के पैतृक गांव रंधिकपुर से निकालने की योजना थी।
मार्च का समापन 4 अक्टूबर को अहमदाबाद में होना था।
बी-डिवीजन पुलिस थाने के एक अधिकारी ने कहा, "संदीप पांडे और तीन अन्य को रविवार रात करीब साढ़े दस बजे गोधरा (पंचमहल जिले में) से हिरासत में लिया गया। वे अभी भी हिरासत में हैं।"
हिंदू-मुस्लिम एकता समिति ने एक बयान में पुलिस कार्रवाई की निंदा की।
इसने कहा कि बिलकिस बानो से माफी मांगने के लिए पैदल मार्च का आयोजन किया गया था, क्योंकि इस साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने बलात्कार और लूट मामले में सजा काट रहे 11 दोषियों को अपनी छूट नीति के तहत रिहा कर दिया था।
ये दोषी बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और गोधरा कांड के बाद हुए दंगा मामले में उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में गोधरा उप-जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे।
संगठन ने बयान में कहा, "हम केवल बिलकिस से जो कुछ भी हुआ है उसके लिए माफी मांगना चाहते हैं और चाहते हैं कि इस तरह के जघन्य कृत्य गुजरात के शांतिपूर्ण राज्य में न हों।"
3 मार्च 2002 को दाहोद के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। उस समय पांच महीने की गर्भवती बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई।
मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को हत्या और सामूहिक बलात्कार के मामले में 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा।
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक समय तक जेल में बिताए हैं, जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
गुजरात सरकार ने बाद में अपनी छूट नीति के तहत सभी 11 दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी किया, जिसके बाद वे 15 अगस्त को जेल से बाहर आ गए।
बता दें कि गुजरात सरकार द्वारा इन दोषियों की रिहाई के बाद से ही बिलकिस बानो के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। विभिन्न तरीकों से इन दोषियों की रिहाई का विरोध किया जा रहा है। विभिन्न संगठनों द्वारा हस्ताक्षर अभियान चलाकर हस्ताक्षरित पत्र भारत के मुख्य न्यायधीश को भेजा गया था। हस्ताक्षर, कुछ संगठनों द्वारा आमने-सामने की बातचीत, कम्युनिटी, ट्रेनों, सड़क के किनारे, उद्यान, समुद्र तट और विरोध प्रदर्शनों सहित विभिन्न स्थानों पर एकत्र किए गए थे। ऐरोली, मुंब्रा, चर्चगेट, चरनी रोड, दादर वेस्ट में फैले इस अभियान में लगभग 50 लोग शामिल थे, जिसमें सभी वेस्टर्न, सेंट्रल और हार्बर लाइन ट्रेनें शामिल थीं। तीन अलग-अलग भाषाओं में पर्चे बांटे गए, नागरिकों से आग्रह किया गया कि वे उन पर हस्ताक्षर करके छूट को रद्द करने की मांग करें।
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पुलिस ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई और अपने परिवार के सात सदस्यों को खोने वाली बिलकिस बानो के साथ एकजुटता व्यक्त करने जा रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया है। ये सभी 26 सितंबर से एक पैदल मार्च निकालने जा रहे थे।।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पांडे और अन्य कार्यकर्ता पैदल मार्च में भाग लेने वाले थे, जिसका शीर्षक था 'बिलकिस बानो से माफी'। इस पैदल मार्च को 'हिंदू-मुस्लिम एकता समिति' के बैनर तले सोमवार को दाहोद जिले के बिलकिस बानो के पैतृक गांव रंधिकपुर से निकालने की योजना थी।
मार्च का समापन 4 अक्टूबर को अहमदाबाद में होना था।
बी-डिवीजन पुलिस थाने के एक अधिकारी ने कहा, "संदीप पांडे और तीन अन्य को रविवार रात करीब साढ़े दस बजे गोधरा (पंचमहल जिले में) से हिरासत में लिया गया। वे अभी भी हिरासत में हैं।"
हिंदू-मुस्लिम एकता समिति ने एक बयान में पुलिस कार्रवाई की निंदा की।
इसने कहा कि बिलकिस बानो से माफी मांगने के लिए पैदल मार्च का आयोजन किया गया था, क्योंकि इस साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने बलात्कार और लूट मामले में सजा काट रहे 11 दोषियों को अपनी छूट नीति के तहत रिहा कर दिया था।
ये दोषी बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और गोधरा कांड के बाद हुए दंगा मामले में उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में गोधरा उप-जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे।
संगठन ने बयान में कहा, "हम केवल बिलकिस से जो कुछ भी हुआ है उसके लिए माफी मांगना चाहते हैं और चाहते हैं कि इस तरह के जघन्य कृत्य गुजरात के शांतिपूर्ण राज्य में न हों।"
3 मार्च 2002 को दाहोद के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। उस समय पांच महीने की गर्भवती बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई।
मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को हत्या और सामूहिक बलात्कार के मामले में 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा।
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक समय तक जेल में बिताए हैं, जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
गुजरात सरकार ने बाद में अपनी छूट नीति के तहत सभी 11 दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी किया, जिसके बाद वे 15 अगस्त को जेल से बाहर आ गए।
बता दें कि गुजरात सरकार द्वारा इन दोषियों की रिहाई के बाद से ही बिलकिस बानो के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। विभिन्न तरीकों से इन दोषियों की रिहाई का विरोध किया जा रहा है। विभिन्न संगठनों द्वारा हस्ताक्षर अभियान चलाकर हस्ताक्षरित पत्र भारत के मुख्य न्यायधीश को भेजा गया था। हस्ताक्षर, कुछ संगठनों द्वारा आमने-सामने की बातचीत, कम्युनिटी, ट्रेनों, सड़क के किनारे, उद्यान, समुद्र तट और विरोध प्रदर्शनों सहित विभिन्न स्थानों पर एकत्र किए गए थे। ऐरोली, मुंब्रा, चर्चगेट, चरनी रोड, दादर वेस्ट में फैले इस अभियान में लगभग 50 लोग शामिल थे, जिसमें सभी वेस्टर्न, सेंट्रल और हार्बर लाइन ट्रेनें शामिल थीं। तीन अलग-अलग भाषाओं में पर्चे बांटे गए, नागरिकों से आग्रह किया गया कि वे उन पर हस्ताक्षर करके छूट को रद्द करने की मांग करें।
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