10 वर्ष कैद के बावजूद अपीलें लंबित हों तो दोषियों को जमानत देनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Written by Navnish Kumar | Published on: September 21, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राय दी कि 10 साल की सजा पूरी कर चुके सभी व्यक्ति, और जिनकी अपीलों पर निकट भविष्य में सुनवाई नहीं होनी है, उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए, जब तक कि उन्हें जमानत देने से इनकार करने के अन्य कोई कारण न हों। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय श्रीनिवास ओक की पीठ ने, जेल में बंद आजीवन कारावास के दोषियों, जिनकी अपील विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित है, की याचिकाओं पर विचार करते समय यह बात कही।


 
शीर्ष अदालत ने कहा, "हम सराहना कर सकते हैं यदि कोई पक्ष स्वयं जमानत में देरी कर रहा है, लेकिन उससे कम, हमारा विचार है, कि सभी व्यक्ति जिन्होंने 10 साल की सजा पूरी कर ली है, और अपील सुनवाई के करीब नहीं हैं, बिना किसी आकस्मिक परिस्थितियों के, उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि 10 साल से अधिक कारावास की सजा काट चुके दोषियों को जमानत पर रिहा करने के अलावा उन मामलों की पहचान करने की आवश्यकता है, जहां दोषियों ने 14 साल की कैद पूरी कर ली है। उन्हें निश्चित समय के भीतर समय पूर्व रिहाई पर विचार करने के लिए सरकार को मामला भेजा जा सकता है, भले ही अपील लंबित हो या नहीं।

लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राय दी कि वैसे दोषी जो 10 वर्ष जेल में बिता चुके हों और उनकी अपीलों पर निकट भविष्य में सुनवाई होने के आसार न हों तो उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए, बशर्ते उन्हें जमानत देने से इनकार करने के अन्य कोई कारण न हों। सुनवाई के दौरान, न्याय मित्र गौरव अग्रवाल ने पीठ को बताया कि पूर्व अदालती आदेश के आलोक में उम्रकैद के दोषियों की पहचान करने की कवायद के संबंध में छह हाईकोर्ट की ओर से हलफनामा दायर किया गया है।

यूपी में 385 दोषी 14 साल से ज्यादा समय से जेल में

न्याय मित्र ने छह हाईकोर्ट के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि 5,740 मामले हैं, जिनमें दोषी की अपील लंबित है। बिहार में लगभग 268 दोषी हैं, जिनके मामलों पर समय पूर्व रिहाई पर विचार किया जा रहा है। इसी तरह की कवायद उड़ीसा और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा भी की गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे अधिक संख्या में अपील लंबित हैं। यूपी में 385 दोषी हैं, जो 14 साल से अधिक समय से जेल में हैं। इसके बाद पीठ ने कहा कि अथॉरिटी द्वारा तत्काल इस संबंध में आवश्यक कदम उठाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, हमें जेलों को बंद रखने के उद्देश्य को ध्यान में रखना होगा। अपील की सुनवाई के बिना दोषी कैद में हैं। लिहाजा यह अभ्यास तत्काल आधार पर किया जाना चाहिए।

कहा "हमें जेलों के बंद करने के उद्देश्य को ध्यान में रखना होगा जहां अपील की सुनवाई के बिना, दोषी हिरासत में हैं। उपरोक्त अभ्यास तत्काल आधार पर किया जाना चाहिए ताकि ये परिदृश्य प्रबल न हो जहां दोषी सजा में छूट के लिए न्यूनतम सजा पूरी करता है। यह आवश्यकता केवल इस तथ्य के कारण बढ़ी है कि अपीलों को सुनवाई के लिए नहीं लिया गया है।"

अदालत ने इस अभ्यास को करने के लिए हाईकोर्ट और राज्य कानूनी सेवा समितियों को चार महीने का समय दिया तथा अनुपालन के लिए मामले को जनवरी के अंतिम सप्ताह में सुनने की बात कही। कोर्ट ने कहा कि ये निर्देश पटना हाईकोर्ट और इसी के आधार पर यहां तक ​​कि दूसरे हाईकोर्ट पर भी लागू होंगे। हालांकि, इस अभ्यास को करने के लिए क्रमशः 10 और 14 साल से अधिक समय से हिरासत में लिए गए लोगों के डेटा का अनुपालन करना होगा।

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