संसद भवन के बाहर लगी सामानांतर किसान संसद ऐतिहासिक है

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: July 28, 2021
26 जुलाई 2021 को दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलनरत किसानों के संघर्ष को 8 महीने पुरे हो चुके हैं. साथ ही देश के अन्नदाताओं के लिए सरकार की उदासीनता, वैमनस्यता और तानाशाही उभर कर सामने आ चुकी है. प्रचंड ठंड, चिलचिलाती गर्मी और भयावह तूफानी बरसात को झेलते हुए किसान अपने सैकड़ों साथियों की कुर्बानी दिल्ली बॉर्डर के संघर्ष में दे चुके हैं. तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ अपनी लडाई को अगले पड़ाव पर ले जाते हुए 22 जुलाई से 13 अगस्त 2021 तक किसानों ने देश की संसद सत्र के सामानांतर किसान संसद की शुरुआत कर दी है जो दिल्ली के जंतर-मंतर पर चलायी जा रही है. किसान संसद शांतिपूर्ण तरीके से चलाई जा रही है जिसमें कई सांसदों ने भी अपनी एकजुटता दिखाई है हालाँकि किसान संसद में किसी भी सांसद को मंच पर संबोधित करने की मनाही रही और उनसे अनुरोध किया गया है कि संसद के अन्दर किसानों की आवाज को मजबूती प्रदान करें. विपक्षी दलों के सांसदों द्वारा एकजुट होकर किसानों के समर्थन में आवाज उठाई भी जा रही है. 

संसद लोकतंत्र का मंदिर होता है और इस मंदिर परिसर से ही लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है. संसद के मूल्यों को फेल किया जा चुका है जिसके पटल से जनविरोधी नीतियाँ बनायीं जा रही हैं. मीडिया या सवाल पूछने वाले लोगों पर सरकारी नकेल कसी जा रही है. नौकरशाही रेंगने लगी है, न्यायपालिका सत्ता के इशारे का इन्तजार करने लग गयी है. ऐसे समय में संयुक्त किसान मोर्चा ने समान्तर किसान संसद का आयोजन कर यह बताया है कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा चलाया जा सकता है. 

समान्तर किसान संसद रूपी विरोध प्रदर्शन में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा हर रोज 200 प्रदर्शनकारियों के पहुँचने का फैसला किया गया है ताकि यह आयोजन शांतिपूर्ण तरीके से किया जा सके. 26 जुलाई के बाद 9 अगस्त को महिलाओं के द्वारा यह संसद चलायी जाएगी जिसमें पूर्वोतर की महिलाऐं सहित देश भर की महिलाएं शिरकत करेंगी. इस किसान संसद में कुल 22 देशों के किसान भाग लेंगे जो आन्दोलन में मजबूती प्रदान करेगा.  

आठ महीने से चला आ रहा किसानों का यह संघर्ष अब किसानों को सियासी राजनीति में भागीदारी करने को मजबूर कर चुका है. संयुक्त किसान मोर्चा ने खुल कर भाजपा हराओ का नारा बुलंद कर दिया है जिसकी झलक बंगाल के चुनाव में भी देखने को मिल चुकी है. किसानों के समर्थन में आज कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी दिल्ली की सड़कों पर ट्रैक्टर चलाते नज़र आए. वे मानसून सत्र में भागीदरी के लिए ट्रैक्टर से संसद भवन जा रहे थे. मकसद यह था कि कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ सरकारी संवेदनहीनता की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया जाए. दिल्ली घेरेबंदी के बाद किसानों का यह ऐतिहासिक आन्दोलन अब बीजेपी के मंत्रियों, नेताओं और सरकार के खुलकर विरोध करने पर उतर आया है. मिशन यूपी के तहत किसानों के जत्थे उतरप्रदेश के गाँव-गाँव में जाकर बीजेपी को हारने की अपील करेंगे. 

किसान संसद पूरी तरह से अनुशासित और व्यवस्थित तरीके से चलायी जा रही है जिसे शुरुआत में रास्ते में रोकने और मीडिया को इस संसद तक न पहुँचने देने तक की नाकाम कोशिश भी की जा चुकी है. इस संसद में संबोधन के दौरान किसानों ने भारत सरकार के मंत्रियों के द्वारा किए गए खोखले दावे कि किसान तीनों कानूनों को लेकर स्पष्ट नहीं हैं का खंडन किया है. एपीएमसी बाइपास अधिनियम पर चर्चा करते हुए किसान संसद में भाग लेने वालों ने कानून की असंवैधानिक प्रकृति, भारत सरकार की अलोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और कृषि आजीविका पर इस कानून के प्रभाव का विस्तार से वर्णन किया है. दुनिया के सामने उन्होंने इस काले कानून के बारे में अपने विस्तृत ज्ञान को प्रदर्शित किया है कि ये कानून क्यूँ त्रुटिपूर्ण है और क्यूँ किसी भी हालत में इसे नहीं स्वीकार किया जा सकता है?
 
किसान संसद में एक तरफ़ आन्दोलन में शहीद हुए किसानों की श्रद्धांजलि दी गयी तो दूसरी तरफ़ किसानों के कड़े तेवर ने सरकार को आगाह करने का भी काम किया है. जंतर-मंतर पर इस संसद को संबोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि “आठ महीने के बाद सरकार ने हमें किसान माना है. किसान खेती करना भी जानता है और संसद चलाना भी जानता है. संसद में किसानों की आवाज को दबाया जा रहा है. जो सांसद किसानों की आवाज नहीं उठाएगा हम उसका विरोध करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि किसान अपनी संसद बैठाएंगे. सदन में अगर किसानों की आवाज नहीं उठाई जाएगी तो सांसदों के क्षेत्र में ही उनकी निंदा की जाएगी चाहे वो किसी भी पार्टी के हो.” हालाँकि मानसून सत्र के शुरुआत से ही किसानों के समर्थन में विपक्षी पार्टियों के सांसदों की एकता देखने को मिली है. किसान नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि “ब्रिटेन की संसद हमारे मुद्दों पर बहस कर रही है लेकिन हमारी सरकार नहीं कर रही. हम जंतर मंतर पर सरकार को यह दिखने के लिए आए हैं कि किसान मूर्ख नहीं हैं.”



इस साल मानसून सत्र के शुरुआत से ही संसद के दोनों सदनों में विपक्षी पार्टियों द्वारा और दिल्ली की सड़कों पर किसान संसद के द्वारा काले कृषि कानून को ख़त्म करने का नारा ज़ोर-शोर से बुलंद किया जा रहा है. साथ ही ये नारे देश के उन नागरिकों के लिए और उनकी तरफ़ से भी हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में सरकार के क़ानूनों तथा उनकी नीतियों के जनविरोधी व् असंवैधनिक हमलों का सामना कर रहे हैं. संसद में एमएसपी कानून की गारंटी सहित कृषि कानून वापस लेने, चार मजदुर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने करने, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने और ईंधन की कीमतों को कम से कम आधा करने की मांग की गयी.  

इन आठ महीनों में सरकार द्वारा किसानों को आतंकवादी, देशविरोधी, मवाली, देशद्रोही सहित कई नामों से नवाज़ा जा चुका है. किसान इस देश के अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और यह बात किसानों ने सड़क पर रहते हुए भी कई बार साबित किया है. यह सच है कि वर्तमान में सरकार कॉर्पोरेट हितों में इस कदर लीन है कि वो किसानों और आम नागरिकों का हित नहीं चाहती लेकिन किसान आज भी देश की भलाई चाहते हैं. यही वजह है कि वो आठ महीने से एक ऐतिहासिक लड़ाई को अंजाम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. हालाँकि यह संघर्ष रोटी खाने वाले तमाम लोगों का है लेकिन इसे सरकार से सफलतापूर्वक जीतने की जिम्मेदारी देश के अन्न्न्दाताओं ने ले रखी है जिसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को इनका शुक्रगुजार होना चाहिए.

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