पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में पत्रकारों के उत्पीड़न और दमन का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। ताजा मामले में पत्रकार और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया है कि उन्होंने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था कि गोमूत्र और गोबर कोरोना का इलाज नहीं है। उन्होंने यह पोस्ट कोरोना संक्रमण से प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष टिकेंद्र सिंह के निधन के बाद लिखी थी। पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लगा दिया गया है। तमाम पत्रकार संगठनों ने इस गिरफ्तारी की आलोचना की है। भड़ास 4 मीडिया के एडिटर यशवंत के अनुसार, यूपी में ही नहीं ये आपातकाल तो देशव्यापी है।
भड़ास 4 मीडिया के एडिटर यशवंत ने लिखा कि अभी अभी मुझे ये ट्वीट किसी ने forward किया। भयानक मामला है ये तो। लिखने बोलने पर पाबंदी सिर्फ़ यूपी में ही नहीं है। ये आपातकाल तो देशव्यापी है। एक पत्रकार को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया जाता है कि वह लिख देता है कि गोमूत्र गोबर कोविड का इलाज नहीं है।
कहा इस प्रकरण पर विस्तार से लिखा जाना चाहिए। गिरफ़्तार पत्रकार को क़ानूनी मदद मिलनी चाहिए। मुंबई प्रेस क्लब उठ खड़ा हुआ है। बाक़ी संगठन/प्रेस क्लब किसलिए हैं? सबको आगे आना चाहिए। गिरफ़्तार पत्रकार के सपोर्ट में सब लोग सोशल मीडिया पर लिखो कि “हां, मैं भी कहता हूँ गोमूत्र गोबर कोविड का इलाज नहीं है। मैं इम्फ़ाल के पत्रकार के. वांगखेम की गिरफ़्तारी की निंदा करता हूँ"।
DW.कॉम की खबर के अनुसार, बीते सप्ताह मणिपुर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सैखोम टिकेंद्र सिंह की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई थी। उसके बाद पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, गोबर और गोमूत्र काम नहीं आया। यह दलील निराधार है। कल मैं मछली खाऊंगा। इसी तरह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता एरेंड्रो लिचोम्बम ने लिखा था, गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है। विज्ञान से ही इलाज संभव है और यह सामान्य ज्ञान की बात है प्रोफेसर जी RIP।
इसके बाद प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष उषाम देबन और महासचिव पी प्रेमानंद मीतेई ने इन दोनों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसके आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत उनको गिरफ्तार कर लिया। वैसे, पत्रकार किशोर चंद्र और लिचोम्बम से सरकार की परेशानी कोई नई नहीं है। इससे पहले भी उनको दो बार फेसबुक के कथित आपत्तिजनक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है। किशोर चंद्र को तो मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि रानी लक्ष्मीबाई का मणिपुर से कोई लेना देना नहीं था।
उन्होंने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए उनको केंद्र की कठपुतली करार दिया था। वांगखेम ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि क्या झांसी की रानी ने मणिपुर के उत्थान में कोई भूमिका निभाई थी? उस समय तो मणिपुर भारत का हिस्सा भी नहीं था। वांगखेम ने अपनी पोस्ट में कहा था कि वे मुख्यमंत्री को यह याद दिलाना चाहते हैं कि रानी का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं था, "अगर आप उनकी जयंती मना रहे हैं, तो आप केंद्र के निर्देश पर ऐसा कर रहे हैं। इसके बाद उनको देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब उनको लगभग छह महीने जेल में रहना पड़ा था और मणिपुर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वे अप्रैल 2019 में जेल से रिहा हो सके। इसके बाद उनको फेसबुक की एक पोस्ट की वजह से बीते साल 29 सितंबर को ही दोबारा गिरफ्तार किया गया था।
उधर, खास है कि डॉक्टरों ने भी इन ख़बरों पर चिंता जताई है कि किस तरह लोग गाय के गोबर या मूत्र को अपने शरीर पर मल रहे हैं। जिसे गाय के गोबर का उपचार कहा जा रहा है। इस विश्वास के साथ कि इससे उन्हें कोविड संक्रमण से बचने या ठीक होने में मदद मिलेगी। 'द प्रिंट' के अनुसार डॉक्टरों का कहना है कि ये तथाकथित इलाज संभावित रूप से ‘ब्लैक फंगस’ या म्यूकोरमाइकोसिस के मामलों की संख्या में इज़ाफा कर सकता है, जो कुछ ठीक हो गए ऐसे मरीज़ों में देखे जा रहे हैं, जिन्हें कोविड इलाज के दौरान स्टिरॉयड्स दिए गए थे।
ये चेतावनी उसके बाद जारी हुई, जब 12 मई को वायरल हुई रॉयटर्स की एक वीडियो रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में कुछ लोग ‘हफ्ते में एक बार गौशालाओं में जाते हैं और अपने शरीर पर गौमूत्र तथा गोबर का लेप करते हैं, इस उम्मीद में कि इससे उनकी इम्यूनिटी बढ़ेगी, जिससे उन्हें कोरोना से बचने या उससे ठीक होने में सहायता मिलेगी। गुजरात उन राज्यों में से है जहां से म्यूकोरमाइकोसिस के मामले सामने आ रहे हैं, ख़ासकर उन लोगों में, जिनका डायबिटीज़ का इतिहास रहा है। इस तरह के मामले महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और ओडिशा में भी देखे गए हैं।
13 मई को एक ट्वीट में अमेरिका स्थित डॉ फहीम यूनुस ने जो कोविड-19 पर एक अहम आवाज़ बनकर उभरे हैं, ने इस बात का संकेत दिया कि भारत में घातक ब्लैक फंगस बीमारी (म्यूकोरमाइकोसिस) के पीछे एक कारण गाय के गोबर का कोविड इलाज के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है। कहा- मैं इसे साबित तो नहीं कर सकता लेकिन इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है। अपने जोखिम को देखिए’, ये ट्वीट करते हुए उन्होंने अमेरिका की शीर्ष स्वास्थ्य इकाई, सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (सीडीसी) एंड प्रिवेंशन की वेबसाइट से एक लिंक साझा किया जिसमें कहा गया है कि जानवरों के गोबर में, म्यूकोरमाइसिटीज़ मौजूद होते हैं। सीडीसी के अनुसार म्यूकोरमाइसिटीज़ जो म्यूकोरमाइकोसिस पैदा करने वाले फंगी का समूह होते हैं, पूरे वातावरण में मौजूद होते हैं ख़ासकर मिट्टी में और ये पत्तियों, खाद के ढेर और जानवरों के गोबर जैसे सड़ने-गलने वाले कार्बनिक पदार्थ में खूब पाए जाते हैं।
भड़ास 4 मीडिया के एडिटर यशवंत ने लिखा कि अभी अभी मुझे ये ट्वीट किसी ने forward किया। भयानक मामला है ये तो। लिखने बोलने पर पाबंदी सिर्फ़ यूपी में ही नहीं है। ये आपातकाल तो देशव्यापी है। एक पत्रकार को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया जाता है कि वह लिख देता है कि गोमूत्र गोबर कोविड का इलाज नहीं है।
कहा इस प्रकरण पर विस्तार से लिखा जाना चाहिए। गिरफ़्तार पत्रकार को क़ानूनी मदद मिलनी चाहिए। मुंबई प्रेस क्लब उठ खड़ा हुआ है। बाक़ी संगठन/प्रेस क्लब किसलिए हैं? सबको आगे आना चाहिए। गिरफ़्तार पत्रकार के सपोर्ट में सब लोग सोशल मीडिया पर लिखो कि “हां, मैं भी कहता हूँ गोमूत्र गोबर कोविड का इलाज नहीं है। मैं इम्फ़ाल के पत्रकार के. वांगखेम की गिरफ़्तारी की निंदा करता हूँ"।
DW.कॉम की खबर के अनुसार, बीते सप्ताह मणिपुर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सैखोम टिकेंद्र सिंह की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई थी। उसके बाद पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, गोबर और गोमूत्र काम नहीं आया। यह दलील निराधार है। कल मैं मछली खाऊंगा। इसी तरह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता एरेंड्रो लिचोम्बम ने लिखा था, गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है। विज्ञान से ही इलाज संभव है और यह सामान्य ज्ञान की बात है प्रोफेसर जी RIP।
इसके बाद प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष उषाम देबन और महासचिव पी प्रेमानंद मीतेई ने इन दोनों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसके आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत उनको गिरफ्तार कर लिया। वैसे, पत्रकार किशोर चंद्र और लिचोम्बम से सरकार की परेशानी कोई नई नहीं है। इससे पहले भी उनको दो बार फेसबुक के कथित आपत्तिजनक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है। किशोर चंद्र को तो मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि रानी लक्ष्मीबाई का मणिपुर से कोई लेना देना नहीं था।
उन्होंने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आलोचना करते हुए उनको केंद्र की कठपुतली करार दिया था। वांगखेम ने मुख्यमंत्री से पूछा था कि क्या झांसी की रानी ने मणिपुर के उत्थान में कोई भूमिका निभाई थी? उस समय तो मणिपुर भारत का हिस्सा भी नहीं था। वांगखेम ने अपनी पोस्ट में कहा था कि वे मुख्यमंत्री को यह याद दिलाना चाहते हैं कि रानी का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं था, "अगर आप उनकी जयंती मना रहे हैं, तो आप केंद्र के निर्देश पर ऐसा कर रहे हैं। इसके बाद उनको देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब उनको लगभग छह महीने जेल में रहना पड़ा था और मणिपुर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वे अप्रैल 2019 में जेल से रिहा हो सके। इसके बाद उनको फेसबुक की एक पोस्ट की वजह से बीते साल 29 सितंबर को ही दोबारा गिरफ्तार किया गया था।
उधर, खास है कि डॉक्टरों ने भी इन ख़बरों पर चिंता जताई है कि किस तरह लोग गाय के गोबर या मूत्र को अपने शरीर पर मल रहे हैं। जिसे गाय के गोबर का उपचार कहा जा रहा है। इस विश्वास के साथ कि इससे उन्हें कोविड संक्रमण से बचने या ठीक होने में मदद मिलेगी। 'द प्रिंट' के अनुसार डॉक्टरों का कहना है कि ये तथाकथित इलाज संभावित रूप से ‘ब्लैक फंगस’ या म्यूकोरमाइकोसिस के मामलों की संख्या में इज़ाफा कर सकता है, जो कुछ ठीक हो गए ऐसे मरीज़ों में देखे जा रहे हैं, जिन्हें कोविड इलाज के दौरान स्टिरॉयड्स दिए गए थे।
ये चेतावनी उसके बाद जारी हुई, जब 12 मई को वायरल हुई रॉयटर्स की एक वीडियो रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में कुछ लोग ‘हफ्ते में एक बार गौशालाओं में जाते हैं और अपने शरीर पर गौमूत्र तथा गोबर का लेप करते हैं, इस उम्मीद में कि इससे उनकी इम्यूनिटी बढ़ेगी, जिससे उन्हें कोरोना से बचने या उससे ठीक होने में सहायता मिलेगी। गुजरात उन राज्यों में से है जहां से म्यूकोरमाइकोसिस के मामले सामने आ रहे हैं, ख़ासकर उन लोगों में, जिनका डायबिटीज़ का इतिहास रहा है। इस तरह के मामले महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और ओडिशा में भी देखे गए हैं।
13 मई को एक ट्वीट में अमेरिका स्थित डॉ फहीम यूनुस ने जो कोविड-19 पर एक अहम आवाज़ बनकर उभरे हैं, ने इस बात का संकेत दिया कि भारत में घातक ब्लैक फंगस बीमारी (म्यूकोरमाइकोसिस) के पीछे एक कारण गाय के गोबर का कोविड इलाज के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है। कहा- मैं इसे साबित तो नहीं कर सकता लेकिन इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है। अपने जोखिम को देखिए’, ये ट्वीट करते हुए उन्होंने अमेरिका की शीर्ष स्वास्थ्य इकाई, सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (सीडीसी) एंड प्रिवेंशन की वेबसाइट से एक लिंक साझा किया जिसमें कहा गया है कि जानवरों के गोबर में, म्यूकोरमाइसिटीज़ मौजूद होते हैं। सीडीसी के अनुसार म्यूकोरमाइसिटीज़ जो म्यूकोरमाइकोसिस पैदा करने वाले फंगी का समूह होते हैं, पूरे वातावरण में मौजूद होते हैं ख़ासकर मिट्टी में और ये पत्तियों, खाद के ढेर और जानवरों के गोबर जैसे सड़ने-गलने वाले कार्बनिक पदार्थ में खूब पाए जाते हैं।