कोरोना की महामारी के बाद देश में संकट के हालात हैं. देश की अर्थव्यवस्था गोते खा रही है. हालाँकि कुछ साल पहले से ही गलत सरकारी नीतियों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था संकटों से घिरी हुई थी. वैश्विक संस्थाओं की तरफ़ से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जो प्रतिक्रियाएं आ रही है वो भारत में वितीय संकट की और इशारा करता है. सुप्रीम कोर्ट में सेंट्रल फॉर अकाउंटेंबिलिटी एंड सिस्टमैटिक चेंज (सीएएससी) नें 26 मार्च को एक याचिका दायर की जिसमें मांग की गयी कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में वितीय आपात काल घोषित किया जाना चाहिए. इस याचिका के बाद यह माना जा रहा था कि शायद देश में आर्थिक आपातकाल घोषित किया जा सकता है.
2021 की पहली तिमाही में सरकार द्वारा कोरोना महामारी पर विजय पा लेने का डंका बज रहा था. हालाँकि जनवरी से मार्च के महीने के बीच कोरोना के मामले में गिरावट आई थी. इसने साल भर के संकट से बाहर आने का इशारा जरुर दिया था और फिर इसलिए ही सरकार द्वारा संकट के समय के लिए बनाए गए सारी सुविधाओं को बंद कर दिया गया था. अस्थायी कर्मचारियों को हटा दिया गया, फार्मा कंपनियों द्वारा उत्पादित किए जा रहे टीकों का भी निर्यात किया जाने लगा, लॉक डाउन को वापस ले लिया गया, बाजार में सामानों के आवागमन में तेजी लायी गयी. यह सच है कि इस परिस्थिति नें कुछ समय के लिए लोगों में यह आत्म विश्वास की भावना पैदा कर दी कि एक राष्ट्र के रूप में कोरोना के हमले को रोकने में हम कामयाब हो गए. कोरोना की दूसरी लहर के बाद एक बार फिर प्रवासी मजदूर गाँव की और लौटने लगे. गाँव में काम की अनुपलब्धता के कारण मजदूरों को मज़बूरी में शहरों में आना पड़ता है. इन्होने शहरी कारखानों और उद्योगों में उत्पादन फिर से शुरू कर इनके आर्थिक हालत को सक्षम बनाया और बाजार की मांग को पूरा किया लेकिन वास्तविकता यह है कि विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन को सहारा देने के लिए जनता के पास कोई क्रय शक्ति ही नहीं बची थी.
आपातकाल क्या है?
देश की वह अवधि जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह पर संकटकालीन परिस्थितियों के दौरान भारत के राष्ट्रपति के द्वारा घोषित किया जाता है. आपातकाल देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता के लिए लगाया जाता है. इस समय देश की शासन व्यवस्था सीधे केंद्र सरकार के द्वारा चलायी जाती है. भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल का प्रावधान किया गया है.
आपातकाल के प्रकार:
राष्ट्रीय आपातकाल: इस आपत्काल का प्रावधान अनुच्छेद 352 के तहत किया गया है. इसकी घोषणा युद्ध, आक्रामकता और सशस्त्र विद्रोह या आंतरिक गड़बड़ी के समय की जाती है. इस समय देश केंद्र के अधीन होता है और जनता के मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं. देश में अब तक तीन बार इसकी घोषणा हो चुकी है. अक्तूबर 1962 –जनवरी 1968, दिसंबर 1971 और जून 1775 से मार्च 1977 में आपातकाल लगाया गया था. 1962 में चीन के साथ युद्ध, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और 1975 में आन्तरिक गड़बड़ी का हवाला देकर राष्ट्रीय आपातकाल को लगाया गया.
संवैधानिक आपातकाल: राज्यों की संवैधानिक विफ़लता के मामले में अनुच्छेद 356 के अंतर्गत इस आपातकाल को लगाया जाता है. इसके तहत अगर किसी भी राज्य में संवैधानिक मशीनरी ठीक से काम नहीं कर पाती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. पिछले कई वर्षों के दौरान कई राज्यों में इसका इस्तेमाल किया गया है. राज्य में निर्वाचित सरकार के गठन के साथ ही इसे हटा लिया जाता है.
वितीय आपातकाल: अनुच्छेद 360 के अंतर्गत देश में वितीय आपातकाल की घोषणा की जाती है. अगर राष्ट्रपति को लगता है देश की आर्थिक स्थिरता को ख़तरा है तो उनके द्वारा देश में वितीय आपातकाल लगाया जा सकता है. इस तरह के फैसले को लेने के पहले संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है और दो महीने के भीतर इस प्रस्ताव पर मंजूरी लेनी होती है. इसके प्रावधानों के तहत केंद्र ख़ुद पर और सभी राज्य सरकारों पर वितीय स्वामित्व के मानक लागू कर सकता है. इस समय राज्यों के बजट भी केंद्र द्वारा ही पारित किए जाते हैं. अब तक किसी भी सरकार नें देश में वितीय आपातकाल नहीं लगाया है.
कोरोना महामारी के दुसरे स्ट्रेन जो 2021 की दूसरी तिमाही में अपनी भयावहता के साथ सामने आया है. वह न केवल पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ रही है बल्कि हर दिन, हर क्षेत्र और हर स्तर पर नए रिकोर्ड को कायम कर रही है. आर्थिक दृष्टिकोण से भी कोरोना महामारी ने युद्ध से भी बदतर स्थिति पैदा कर दी है. युद्ध में भी दो सेनाएं लडती है और बाकि आबादी अपने घरों और कामों में व्यस्त रहते हैं आज पूरी आबादी असुरक्षित है. जनता बेबस और सरकार लाचार है. ऐसे समय में जहाँ राजकीय, प्रशासनिक और संवैधानिक मूल्य टूटते नजर आ रहे हैं वहीँ ऐसे विकट समय में मानवीय मूल्य उभर कर समाज के सामने आए हैं. इस बदलते भयावह सामाजिक परिदृश्य और स्थिति के लिए सरकार को जरुरी सुझुबुझ दिखाने की जरुरत है जहाँ भारत की सरकार विफ़ल होती नजर आ रही है. देश में सरकारी आपातकाल लागू हो या न हो समाज में आपातकाल सी स्थिति वर्तमान में मौजूद हो चुकी है.
2021 की पहली तिमाही में सरकार द्वारा कोरोना महामारी पर विजय पा लेने का डंका बज रहा था. हालाँकि जनवरी से मार्च के महीने के बीच कोरोना के मामले में गिरावट आई थी. इसने साल भर के संकट से बाहर आने का इशारा जरुर दिया था और फिर इसलिए ही सरकार द्वारा संकट के समय के लिए बनाए गए सारी सुविधाओं को बंद कर दिया गया था. अस्थायी कर्मचारियों को हटा दिया गया, फार्मा कंपनियों द्वारा उत्पादित किए जा रहे टीकों का भी निर्यात किया जाने लगा, लॉक डाउन को वापस ले लिया गया, बाजार में सामानों के आवागमन में तेजी लायी गयी. यह सच है कि इस परिस्थिति नें कुछ समय के लिए लोगों में यह आत्म विश्वास की भावना पैदा कर दी कि एक राष्ट्र के रूप में कोरोना के हमले को रोकने में हम कामयाब हो गए. कोरोना की दूसरी लहर के बाद एक बार फिर प्रवासी मजदूर गाँव की और लौटने लगे. गाँव में काम की अनुपलब्धता के कारण मजदूरों को मज़बूरी में शहरों में आना पड़ता है. इन्होने शहरी कारखानों और उद्योगों में उत्पादन फिर से शुरू कर इनके आर्थिक हालत को सक्षम बनाया और बाजार की मांग को पूरा किया लेकिन वास्तविकता यह है कि विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन को सहारा देने के लिए जनता के पास कोई क्रय शक्ति ही नहीं बची थी.
आपातकाल क्या है?
देश की वह अवधि जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सलाह पर संकटकालीन परिस्थितियों के दौरान भारत के राष्ट्रपति के द्वारा घोषित किया जाता है. आपातकाल देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता के लिए लगाया जाता है. इस समय देश की शासन व्यवस्था सीधे केंद्र सरकार के द्वारा चलायी जाती है. भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल का प्रावधान किया गया है.
आपातकाल के प्रकार:
राष्ट्रीय आपातकाल: इस आपत्काल का प्रावधान अनुच्छेद 352 के तहत किया गया है. इसकी घोषणा युद्ध, आक्रामकता और सशस्त्र विद्रोह या आंतरिक गड़बड़ी के समय की जाती है. इस समय देश केंद्र के अधीन होता है और जनता के मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं. देश में अब तक तीन बार इसकी घोषणा हो चुकी है. अक्तूबर 1962 –जनवरी 1968, दिसंबर 1971 और जून 1775 से मार्च 1977 में आपातकाल लगाया गया था. 1962 में चीन के साथ युद्ध, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और 1975 में आन्तरिक गड़बड़ी का हवाला देकर राष्ट्रीय आपातकाल को लगाया गया.
संवैधानिक आपातकाल: राज्यों की संवैधानिक विफ़लता के मामले में अनुच्छेद 356 के अंतर्गत इस आपातकाल को लगाया जाता है. इसके तहत अगर किसी भी राज्य में संवैधानिक मशीनरी ठीक से काम नहीं कर पाती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. पिछले कई वर्षों के दौरान कई राज्यों में इसका इस्तेमाल किया गया है. राज्य में निर्वाचित सरकार के गठन के साथ ही इसे हटा लिया जाता है.
वितीय आपातकाल: अनुच्छेद 360 के अंतर्गत देश में वितीय आपातकाल की घोषणा की जाती है. अगर राष्ट्रपति को लगता है देश की आर्थिक स्थिरता को ख़तरा है तो उनके द्वारा देश में वितीय आपातकाल लगाया जा सकता है. इस तरह के फैसले को लेने के पहले संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है और दो महीने के भीतर इस प्रस्ताव पर मंजूरी लेनी होती है. इसके प्रावधानों के तहत केंद्र ख़ुद पर और सभी राज्य सरकारों पर वितीय स्वामित्व के मानक लागू कर सकता है. इस समय राज्यों के बजट भी केंद्र द्वारा ही पारित किए जाते हैं. अब तक किसी भी सरकार नें देश में वितीय आपातकाल नहीं लगाया है.
कोरोना महामारी के दुसरे स्ट्रेन जो 2021 की दूसरी तिमाही में अपनी भयावहता के साथ सामने आया है. वह न केवल पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ रही है बल्कि हर दिन, हर क्षेत्र और हर स्तर पर नए रिकोर्ड को कायम कर रही है. आर्थिक दृष्टिकोण से भी कोरोना महामारी ने युद्ध से भी बदतर स्थिति पैदा कर दी है. युद्ध में भी दो सेनाएं लडती है और बाकि आबादी अपने घरों और कामों में व्यस्त रहते हैं आज पूरी आबादी असुरक्षित है. जनता बेबस और सरकार लाचार है. ऐसे समय में जहाँ राजकीय, प्रशासनिक और संवैधानिक मूल्य टूटते नजर आ रहे हैं वहीँ ऐसे विकट समय में मानवीय मूल्य उभर कर समाज के सामने आए हैं. इस बदलते भयावह सामाजिक परिदृश्य और स्थिति के लिए सरकार को जरुरी सुझुबुझ दिखाने की जरुरत है जहाँ भारत की सरकार विफ़ल होती नजर आ रही है. देश में सरकारी आपातकाल लागू हो या न हो समाज में आपातकाल सी स्थिति वर्तमान में मौजूद हो चुकी है.