मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की खिंचाई की। दरअसल न्यायाधीश ने बलात्कार की पीड़िता की गवाही दर्ज करते समय और बाद में अपने फैसले में 'महिलाओं के प्रति पूरी तरह से अपमानजनक' मानी जाने वाली अशिष्ट भाषा और अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, ''ट्रायल कोर्ट ने 'F**' और ''F***'' शब्दों का इस्तेमाल किया है। इन शब्दों का इस्तेमाल अशिष्ट भाषा में किया जाता है, इसलिए इनको अश्लील शब्द माना जाता है और यह महिलाओं के प्रति पूरी तरह से अपमानजनक है।''
कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि पीड़िता की गवाही के मराठी संस्करण में उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए कुछ मराठी शब्दों का संकेत दिया गया है, फिर भी ट्रायल कोर्ट ने उसकी गवाही का अंग्रेजी में अनुवाद करते समय बार-बार आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
न्यायालय राज्य की तरफ से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था,जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोपरगाँव द्वारा सेशन केस नंबर 19/2010 में 14 अगस्त 2012 को दिए गए फैसले को चुनौती दी गई थी। प्रतिवादी अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 506 के तहत किए गए अपराध के मामले में बरी कर दिया गया था। पीड़िता की शिकायत यह थी कि आरोपी, जो उसका चचेरा ससुर है, उसने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपराध किया था।
न्यायालय ने 'एक विशेष शब्द का उपयोग करने के मामले में अपनी कड़ी नाराजगी' दर्ज की, जिसका उपयोग बार-बार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोपरगाँव (कोरमः एसवी रानपीसे) ने पीड़िता की गवाही दर्ज करते समय किया था और बाद में इस शब्द का इस्तेमाल सेशन जज द्वारा दिए गए फैसले में भी किया गया। इसके अलावा, न्यायालय ने स्वीकार्य सबूतों को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष निकाला कि चूड़ियां टूटने के कारण घायल होने के संबंध में पीड़िता द्वारा दिया गया बयान कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं होने के मद्देनजर झूठा पाया गया है और न ही अपराध के स्थान पर चूड़ी का कोई टुकड़ा मिला था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, ''ट्रायल कोर्ट ने 'F**' और ''F***'' शब्दों का इस्तेमाल किया है। इन शब्दों का इस्तेमाल अशिष्ट भाषा में किया जाता है, इसलिए इनको अश्लील शब्द माना जाता है और यह महिलाओं के प्रति पूरी तरह से अपमानजनक है।''
कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि पीड़िता की गवाही के मराठी संस्करण में उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए कुछ मराठी शब्दों का संकेत दिया गया है, फिर भी ट्रायल कोर्ट ने उसकी गवाही का अंग्रेजी में अनुवाद करते समय बार-बार आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
न्यायालय राज्य की तरफ से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था,जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोपरगाँव द्वारा सेशन केस नंबर 19/2010 में 14 अगस्त 2012 को दिए गए फैसले को चुनौती दी गई थी। प्रतिवादी अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 506 के तहत किए गए अपराध के मामले में बरी कर दिया गया था। पीड़िता की शिकायत यह थी कि आरोपी, जो उसका चचेरा ससुर है, उसने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत अपराध किया था।
न्यायालय ने 'एक विशेष शब्द का उपयोग करने के मामले में अपनी कड़ी नाराजगी' दर्ज की, जिसका उपयोग बार-बार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, कोपरगाँव (कोरमः एसवी रानपीसे) ने पीड़िता की गवाही दर्ज करते समय किया था और बाद में इस शब्द का इस्तेमाल सेशन जज द्वारा दिए गए फैसले में भी किया गया। इसके अलावा, न्यायालय ने स्वीकार्य सबूतों को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष निकाला कि चूड़ियां टूटने के कारण घायल होने के संबंध में पीड़िता द्वारा दिया गया बयान कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं होने के मद्देनजर झूठा पाया गया है और न ही अपराध के स्थान पर चूड़ी का कोई टुकड़ा मिला था।