नई दिल्ली। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किसी के अपना नाम बदलने को अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा माना है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसके नाम बदलने से रोका नहीं जा सकता है। यूपी सरकार के धर्मांतरण रोधी अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से 4 जनवरी तक जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी।

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को उसके नाम बदलने से रोका नहीं जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा है कि नाम बदलना अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है। जिसकी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में गारंटी दी गई है। अभिव्यक्ति की आजादी के तहत किसी व्यक्ति को उसका नाम बदलने से नहीं रोका जा सकता है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने कहा कि, ''व्यक्तिगत 'नाम' भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) रिड विद अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति के अधिकार का एक पहलू है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने प्रभाव क्षेत्र में अभिव्यक्ति के सभी प्रकार को शामिल करती है और वर्तमान दुनिया में नाम स्पष्ट रूप से एक मजबूत अभिव्यक्ति है।''
यह अवलोकन एक कबीर जायसवाल की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए किए गए हैं, जो सीबीएसई की ग्यारहवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में रिशु जायसवाल के रूप में उपस्थित हुआ था। याचिकाकर्ता ने अपना नाम रिशु जायसवाल से कबीर जायसवाल में बदलने के लिए भारत के राजपत्र में नोटिस प्रकाशित करवाया था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड में भी अपना नाम बदल लिया है और यहां तक कि आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना भी प्राप्त कर ली है। लेकिन जब उसने अपने सीबीएसई प्रमाणपत्रों में नाम बदलने की कोशिश की, तो बोर्ड ने इस अनुरोध को इस आधार पर खारिज कर दिया कि स्कूल के रिकॉर्ड में नाम परिवर्तन को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था।

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को उसके नाम बदलने से रोका नहीं जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा है कि नाम बदलना अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है। जिसकी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में गारंटी दी गई है। अभिव्यक्ति की आजादी के तहत किसी व्यक्ति को उसका नाम बदलने से नहीं रोका जा सकता है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने कहा कि, ''व्यक्तिगत 'नाम' भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) रिड विद अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति के अधिकार का एक पहलू है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने प्रभाव क्षेत्र में अभिव्यक्ति के सभी प्रकार को शामिल करती है और वर्तमान दुनिया में नाम स्पष्ट रूप से एक मजबूत अभिव्यक्ति है।''
यह अवलोकन एक कबीर जायसवाल की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए किए गए हैं, जो सीबीएसई की ग्यारहवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में रिशु जायसवाल के रूप में उपस्थित हुआ था। याचिकाकर्ता ने अपना नाम रिशु जायसवाल से कबीर जायसवाल में बदलने के लिए भारत के राजपत्र में नोटिस प्रकाशित करवाया था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड में भी अपना नाम बदल लिया है और यहां तक कि आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना भी प्राप्त कर ली है। लेकिन जब उसने अपने सीबीएसई प्रमाणपत्रों में नाम बदलने की कोशिश की, तो बोर्ड ने इस अनुरोध को इस आधार पर खारिज कर दिया कि स्कूल के रिकॉर्ड में नाम परिवर्तन को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था।