पीयूसीएल यानी पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने हाथरस कांड पर 16 पन्नों की जांच रिपोर्ट जारी की है। अपनी रिपोर्ट में पीयूसीएल की जांच कमेटी ने आरोप लगाया कि पीड़िता को बेहतर इलाज के नाम पर अलीगढ़ से दिल्ली भेजना एक साजिश का हिस्सा था।
लखनऊ: हाथरस कांड की एक तरफ सीबीआई जांच की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ लोक अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था पीयूसीएल ने भी हाथरस कांड पर जांच रिपोर्ट तैयार की है। पीयूसीएल ने हाथरस कांड की जांच रिपोर्ट जारी की है।
पीयूसीएल यानी पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने हाथरस कांड पर 16 पन्नों की जांच रिपोर्ट जारी की है। अपनी रिपोर्ट में पीयूसीएल की जांच कमेटी ने आरोप लगाया कि पीड़िता को बेहतर इलाज के नाम पर अलीगढ़ से दिल्ली भेजना एक साजिश का हिस्सा था। पीड़िता अलीगढ़ के सरकारी अस्पताल में रिकवर कर रही थी लेकिन अचानक से दिल्ली भेजना और वहां उसकी हालत बिगड़ने के बाद हुई मौत सवाल खड़े करती है।
जांच कमेटी ने कहा कि पीएफआई का कनेक्शन मामले को भ्रमित करने की कोशिश है। जेल से आरोपियों की चिट्ठी वायरल की गई जिससे गांव में पुलिस, दबंग आरोपियों और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से मामला प्रेम प्रसंग के तरफ डायवर्ट कर सकें।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने कुछ पुलिसकर्मियों को हटाकर सस्पेंड कर दिया ये काफी नहीं है। पुलिस कर्मियों की तरफ से पहले घटना से जुड़े साक्ष्य मिटाने और फिर पीड़िता का शव रात में जलाने का अपराध हुआ है लिहाजा उन तमाम अफसरों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। पीयूसीएल की जांच कमेटी ने मांग की है दंगा भड़काने और साजिशों से संबंधित दर्ज हुए मुकदमों की जांच भले ही एसटीएफ कर रही हो लेकिन सीबीआई जांच की तरह इस जांच को भी कोल्डप्ले पर्यवेक्षण में ले।
पीयूसीएल के सदस्यों ने कहा कि इस मामले में कुछ अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई है, लेकिन जिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले बनते हैं उसका संज्ञान नहीं लिया गया। सदस्यों के मुताबिक सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में कार्रवाई हुई लेकिन जिस तरह जबरिया शव जलवाया गया और परिवार के सदस्यों को आखिरी बार देखने भी नहीं दिया गया, उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पीएफआई के चार सदस्यों को गिरफ्तार कर यह आरोप लगाया कि वे वहां माहौल खराब करने जा रहे थे। फरमान नकवी ने कहा कि इन सदस्यों को हिरासत में लिया जाना गलत है। पीयूसीएल की टीम ने इसे सिर्फ आरोपियों का पक्ष मजबूत करने व पीड़िता का पक्ष कमजोर करने की साजिश का आरोप लगाया है।
बता दें कि हाथरस जिले के एक गांव में बीते 14 सितंबर को एक दलित युवती के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और मौत के मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में पीड़ित परिवार पर ही मामला थोपने की साजिशें रचे जाने का आरोप भी लगाया गया है।
नागरिक जांच के निष्कर्ष
* परिवादी की सुरक्षा के अतिरिक्त निर्भया फंड से वादीगण के पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।
* पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये तो मिल गये हैं लेकिन एक सरकारी नौकरी का वादा अभी पूरा नहीं हुआ है इसे अविलंब पूरा किया जाए।
* सीबीआई और प्रदेश सरकार को निर्देशित किया जाए, मृतका के चरित्र पर लांछन लगाने वाली अफवाहों और दुष्प्रचार को अविलंब रोके तथा इसे आपराधिक कृत्य मान करके कार्रवाई की जाए।
* कर्तव्य में लापरवाही बरतने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर विभागीय कार्यवाही के साथ आपराधिक प्रावधानों के अंतर्गत अभियोग पंजीकृत करके कार्रवाई की जाए।
* जिलाधिकारी और उच्च अधिकारियों के बयान जिनमें कहागया है, "पीड़िता का बलात्कार नहीं हुआ है", अन्वेषण में दखलंदाजी मानते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए।
* राजद्रोह सहित सरकार की छवि खराब करने और हाथरस कांड के नाम पर जातिगत दंगा की साजिश के आरोप में मथुरा जेल में बंद चार आरोपियों सहित हाथरस बलात्कार मामले से संबंधित अन्य जिन मामलों में एसटीएफ जांच कर रही है, उन्हें उच्च न्यायालय की निगरानी में जारी सीबीआई जांच के दायरे में लाया जाए।
* जस्टिस जे। एस। वर्मा कमेटी की समग्र अनुशंसाओं के अनुसार पीड़ित परिवार को राहत, सामाजिक सुरक्षा व पुनर्वास की नीतियों को लागू किया जाए।
PUCL की पूरी जांच रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं-
लखनऊ: हाथरस कांड की एक तरफ सीबीआई जांच की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ लोक अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था पीयूसीएल ने भी हाथरस कांड पर जांच रिपोर्ट तैयार की है। पीयूसीएल ने हाथरस कांड की जांच रिपोर्ट जारी की है।
पीयूसीएल यानी पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने हाथरस कांड पर 16 पन्नों की जांच रिपोर्ट जारी की है। अपनी रिपोर्ट में पीयूसीएल की जांच कमेटी ने आरोप लगाया कि पीड़िता को बेहतर इलाज के नाम पर अलीगढ़ से दिल्ली भेजना एक साजिश का हिस्सा था। पीड़िता अलीगढ़ के सरकारी अस्पताल में रिकवर कर रही थी लेकिन अचानक से दिल्ली भेजना और वहां उसकी हालत बिगड़ने के बाद हुई मौत सवाल खड़े करती है।
जांच कमेटी ने कहा कि पीएफआई का कनेक्शन मामले को भ्रमित करने की कोशिश है। जेल से आरोपियों की चिट्ठी वायरल की गई जिससे गांव में पुलिस, दबंग आरोपियों और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से मामला प्रेम प्रसंग के तरफ डायवर्ट कर सकें।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने कुछ पुलिसकर्मियों को हटाकर सस्पेंड कर दिया ये काफी नहीं है। पुलिस कर्मियों की तरफ से पहले घटना से जुड़े साक्ष्य मिटाने और फिर पीड़िता का शव रात में जलाने का अपराध हुआ है लिहाजा उन तमाम अफसरों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। पीयूसीएल की जांच कमेटी ने मांग की है दंगा भड़काने और साजिशों से संबंधित दर्ज हुए मुकदमों की जांच भले ही एसटीएफ कर रही हो लेकिन सीबीआई जांच की तरह इस जांच को भी कोल्डप्ले पर्यवेक्षण में ले।
पीयूसीएल के सदस्यों ने कहा कि इस मामले में कुछ अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई है, लेकिन जिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले बनते हैं उसका संज्ञान नहीं लिया गया। सदस्यों के मुताबिक सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में कार्रवाई हुई लेकिन जिस तरह जबरिया शव जलवाया गया और परिवार के सदस्यों को आखिरी बार देखने भी नहीं दिया गया, उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पीएफआई के चार सदस्यों को गिरफ्तार कर यह आरोप लगाया कि वे वहां माहौल खराब करने जा रहे थे। फरमान नकवी ने कहा कि इन सदस्यों को हिरासत में लिया जाना गलत है। पीयूसीएल की टीम ने इसे सिर्फ आरोपियों का पक्ष मजबूत करने व पीड़िता का पक्ष कमजोर करने की साजिश का आरोप लगाया है।
बता दें कि हाथरस जिले के एक गांव में बीते 14 सितंबर को एक दलित युवती के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और मौत के मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में पीड़ित परिवार पर ही मामला थोपने की साजिशें रचे जाने का आरोप भी लगाया गया है।
नागरिक जांच के निष्कर्ष
* परिवादी की सुरक्षा के अतिरिक्त निर्भया फंड से वादीगण के पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।
* पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये तो मिल गये हैं लेकिन एक सरकारी नौकरी का वादा अभी पूरा नहीं हुआ है इसे अविलंब पूरा किया जाए।
* सीबीआई और प्रदेश सरकार को निर्देशित किया जाए, मृतका के चरित्र पर लांछन लगाने वाली अफवाहों और दुष्प्रचार को अविलंब रोके तथा इसे आपराधिक कृत्य मान करके कार्रवाई की जाए।
* कर्तव्य में लापरवाही बरतने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर विभागीय कार्यवाही के साथ आपराधिक प्रावधानों के अंतर्गत अभियोग पंजीकृत करके कार्रवाई की जाए।
* जिलाधिकारी और उच्च अधिकारियों के बयान जिनमें कहागया है, "पीड़िता का बलात्कार नहीं हुआ है", अन्वेषण में दखलंदाजी मानते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए।
* राजद्रोह सहित सरकार की छवि खराब करने और हाथरस कांड के नाम पर जातिगत दंगा की साजिश के आरोप में मथुरा जेल में बंद चार आरोपियों सहित हाथरस बलात्कार मामले से संबंधित अन्य जिन मामलों में एसटीएफ जांच कर रही है, उन्हें उच्च न्यायालय की निगरानी में जारी सीबीआई जांच के दायरे में लाया जाए।
* जस्टिस जे। एस। वर्मा कमेटी की समग्र अनुशंसाओं के अनुसार पीड़ित परिवार को राहत, सामाजिक सुरक्षा व पुनर्वास की नीतियों को लागू किया जाए।
PUCL की पूरी जांच रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं-