भीमा कोरेगांव केस में छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व वकील सुधा भारद्वाज दो साल से बिना ट्रायल जेल में बंद हैं। वे बीमार हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका से इंकार कर दिया है। उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित परिजनों ने एक ओपन लेटर लिखा है, पढ़िए...
भीमा कोरेगांव केस के झूठे मुकदमे में रखी गई, छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व वकील सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य के आधार पर दायर की गई अंतरिम बेल याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि आप मेरिट के आधार पर बेल मांगिये। इससे हम परिवार और मित्रों में सर्वोच्च न्यायालय के मानवीय आधार को लेकर पुनः प्रश्न उठा है। कोविड-19 के समय पर सर्वोच्च न्यायालय ने 58 वर्षीय विभिन्न बीमारियों से पीड़ित सुधा भारद्वाज को फिलहाल स्वास्थ्य संबंधी खतरनाक परिस्थिति में रहने पर मजबूर कर दिया है।
सुधा जी डायबिटीज मिलिटियस और स्टेमिक हार्ट डिजीज (जो कि जेल की कैद के दौरान हुई है) से पीड़ित हैं। वे कोरोना जैसी भयानक बीमारी के लिए एक आसान शिकार बनी हुई हैं।सुधा भारद्वाज को अर्थराइटिस गठिया और टीनिया कॉरपोरिस( फंगल इंफेक्शन) की बीमारी है। गठिया के कारण उनके हाथ से लेकर कंधे तक और कमर के निचले हिस्से तक दर्द रहता है। जिस वजह से वे अपने दैनिक कार्य करने में और अन्य क्रियाकलापों में परेशानी झेलने लिए भी मजबूर हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले अंतरिम स्वास्थ्य बेल को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के विशेष अदालत ने खारिज किया था। मुंबई उच्च न्यायालय ने भी उसी फैसले को सुरक्षित रखा जबकि उसमें भयंकर खामियां थी। इन्ही खामियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मुंबई हाई कोर्ट के 28 अगस्त के आदेश को चुनौती दी गई थी। 28 अगस्त के आदेश में ऊपर बताई बीमारियों को भी अदालत ने नजरअंदाज किया था। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने वादी का पक्ष माननीय अदालत में रखा।
पिछले 2 वर्षों से सुधा भारद्वाज बिना किसी ट्रायल के बिना दोष सिद्ध हुए झूठी सजा झेल रही हैं।
सुधा भारद्वाज के परिवार को जेल में दो मेडिकल रिपोर्ट दी गयी थी। 21 जुलाई की रिपोर्ट में कहा गया था कि उनको स्कैनिया ह्रदय बीमारी है। इस बीमारी में हृदय की धमनिया पतली होनी शुरू हो जाती हैं। जिससे खून का दौरा कम होता है और हृदय घात की संभावना बढ़ जाती है। आश्चर्यजनक रूप से 21 अगस्त की रिपोर्ट में सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य स्थिति संतोषजनक और स्थिर बताई जाती है। इसमें ह्रदय संबंधी बीमारी का कहीं कोई जिक्र नहीं था।
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने सर्वोच्च अदालत के सामने इस मुद्दे को भी रखा की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की विशेष अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के 23 मार्च को दिए गए कैदियों संबंधी आदेश को पूरी तरह से नजरअंदाज किया था। जिसमें इस तरह के कैदियों को छूट मिलनी चाहिए। एनआईए की विशेष अदालत ने जानबूझकर अपने आदेश में यह लिखा कि अनलॉफुल एक्टिविटी एंड प्रीवेंशन एक्ट (UAPA) में गिरफ्तार किए गए लोग स्वास्थ्य संबंधी बेल के हकदार नहीं होते।
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने यह भी तर्क रखा कि सुधा भारद्वाज एक कानून को मानने वाली नागरिक है। बेल के दौरान उनसे कोई खतरा नहीं पैदा होता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पिछले वर्ष में वे अपने पिता के अंतिम संस्कार में बेंगलुरु भी भेजी गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने ही दिए गए आदेशों की बारीकी को नहीं देखा इस बात का हमें बहुत खेद है।
सुधा भारद्वाज पूरे जीवन आदिवासियों और समाज के पिछड़े लोगों के हक में, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और वकील के रूप में गांव देहात से लेकर अदालतों में भी लड़ती रही हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के हजारों हजार परिवार आज रोज सड़क पर उतरकर और सोशल मीडिया के द्वारा जगह जगह अपनी दीदी सुधा भारद्वाज के स्वास्थ्य के लिए चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं।
सुधा भारद्वाज को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, यूएस की जानी मानी वकील स्वर्गीय रूथ बदर गिन्सबर्ग के समकक्ष छह वकीलों में से एक माना जाता है। हम सुधा भारद्वाज के परिवार के सदस्य और मित्र इन सभी तथ्यों को सामने रखते हुए अदालत के फिलहाल के दुखद आदेशों से अचंभित हैं। हम उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता रखते हुए चाहते हैं कि:-
1-उनके स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पूरा और विस्तृत चेकअप किया जाए।
2-मेडिकल परीक्षण के समय अस्पताल में उनके परिवार के एक व्यक्ति उपस्थित रहने की इजाजत मिले।
3-जेल अधिकारियों से अपील है कि जेल में भीड़ कम की जाये व सभी रहने वालों का टेस्ट हो और कोरोना बीमारी से बचने के सभी उपायों का जेल में पालन किया जाए।
मायशा (सुधा भारद्वाज की बेटी)
कलादास डेहरिया और
विमल भाई
सुधा भारद्वाज के परिजन और सहयोगियो की ओर से प्रेस नोट: 25-9-2020
भीमा कोरेगांव केस के झूठे मुकदमे में रखी गई, छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व वकील सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य के आधार पर दायर की गई अंतरिम बेल याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि आप मेरिट के आधार पर बेल मांगिये। इससे हम परिवार और मित्रों में सर्वोच्च न्यायालय के मानवीय आधार को लेकर पुनः प्रश्न उठा है। कोविड-19 के समय पर सर्वोच्च न्यायालय ने 58 वर्षीय विभिन्न बीमारियों से पीड़ित सुधा भारद्वाज को फिलहाल स्वास्थ्य संबंधी खतरनाक परिस्थिति में रहने पर मजबूर कर दिया है।
सुधा जी डायबिटीज मिलिटियस और स्टेमिक हार्ट डिजीज (जो कि जेल की कैद के दौरान हुई है) से पीड़ित हैं। वे कोरोना जैसी भयानक बीमारी के लिए एक आसान शिकार बनी हुई हैं।सुधा भारद्वाज को अर्थराइटिस गठिया और टीनिया कॉरपोरिस( फंगल इंफेक्शन) की बीमारी है। गठिया के कारण उनके हाथ से लेकर कंधे तक और कमर के निचले हिस्से तक दर्द रहता है। जिस वजह से वे अपने दैनिक कार्य करने में और अन्य क्रियाकलापों में परेशानी झेलने लिए भी मजबूर हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले अंतरिम स्वास्थ्य बेल को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के विशेष अदालत ने खारिज किया था। मुंबई उच्च न्यायालय ने भी उसी फैसले को सुरक्षित रखा जबकि उसमें भयंकर खामियां थी। इन्ही खामियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मुंबई हाई कोर्ट के 28 अगस्त के आदेश को चुनौती दी गई थी। 28 अगस्त के आदेश में ऊपर बताई बीमारियों को भी अदालत ने नजरअंदाज किया था। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने वादी का पक्ष माननीय अदालत में रखा।
पिछले 2 वर्षों से सुधा भारद्वाज बिना किसी ट्रायल के बिना दोष सिद्ध हुए झूठी सजा झेल रही हैं।
सुधा भारद्वाज के परिवार को जेल में दो मेडिकल रिपोर्ट दी गयी थी। 21 जुलाई की रिपोर्ट में कहा गया था कि उनको स्कैनिया ह्रदय बीमारी है। इस बीमारी में हृदय की धमनिया पतली होनी शुरू हो जाती हैं। जिससे खून का दौरा कम होता है और हृदय घात की संभावना बढ़ जाती है। आश्चर्यजनक रूप से 21 अगस्त की रिपोर्ट में सुधा भारद्वाज की स्वास्थ्य स्थिति संतोषजनक और स्थिर बताई जाती है। इसमें ह्रदय संबंधी बीमारी का कहीं कोई जिक्र नहीं था।
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने सर्वोच्च अदालत के सामने इस मुद्दे को भी रखा की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की विशेष अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के 23 मार्च को दिए गए कैदियों संबंधी आदेश को पूरी तरह से नजरअंदाज किया था। जिसमें इस तरह के कैदियों को छूट मिलनी चाहिए। एनआईए की विशेष अदालत ने जानबूझकर अपने आदेश में यह लिखा कि अनलॉफुल एक्टिविटी एंड प्रीवेंशन एक्ट (UAPA) में गिरफ्तार किए गए लोग स्वास्थ्य संबंधी बेल के हकदार नहीं होते।
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ग्रोवर ने यह भी तर्क रखा कि सुधा भारद्वाज एक कानून को मानने वाली नागरिक है। बेल के दौरान उनसे कोई खतरा नहीं पैदा होता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पिछले वर्ष में वे अपने पिता के अंतिम संस्कार में बेंगलुरु भी भेजी गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने ही दिए गए आदेशों की बारीकी को नहीं देखा इस बात का हमें बहुत खेद है।
सुधा भारद्वाज पूरे जीवन आदिवासियों और समाज के पिछड़े लोगों के हक में, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और वकील के रूप में गांव देहात से लेकर अदालतों में भी लड़ती रही हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के हजारों हजार परिवार आज रोज सड़क पर उतरकर और सोशल मीडिया के द्वारा जगह जगह अपनी दीदी सुधा भारद्वाज के स्वास्थ्य के लिए चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं।
सुधा भारद्वाज को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, यूएस की जानी मानी वकील स्वर्गीय रूथ बदर गिन्सबर्ग के समकक्ष छह वकीलों में से एक माना जाता है। हम सुधा भारद्वाज के परिवार के सदस्य और मित्र इन सभी तथ्यों को सामने रखते हुए अदालत के फिलहाल के दुखद आदेशों से अचंभित हैं। हम उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता रखते हुए चाहते हैं कि:-
1-उनके स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पूरा और विस्तृत चेकअप किया जाए।
2-मेडिकल परीक्षण के समय अस्पताल में उनके परिवार के एक व्यक्ति उपस्थित रहने की इजाजत मिले।
3-जेल अधिकारियों से अपील है कि जेल में भीड़ कम की जाये व सभी रहने वालों का टेस्ट हो और कोरोना बीमारी से बचने के सभी उपायों का जेल में पालन किया जाए।
मायशा (सुधा भारद्वाज की बेटी)
कलादास डेहरिया और
विमल भाई
सुधा भारद्वाज के परिजन और सहयोगियो की ओर से प्रेस नोट: 25-9-2020