कैदियों को आर्टिकल 21 के अनुसार अपनी मेडिकल रिकॉर्ड पाने का अधिकार- बॉम्बे हाई कोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: May 22, 2021
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी कैदी अपना मेडिकल रिकॉर्ड पाने का अधिकार रखते हैं। यह उनका मूलभूत अधिकार है। इस रिकॉर्ड में मेडिकल टेस्ट रिपोर्ट व दवाओं का समावेश है। कोर्ट ने भीम कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में आरोपी सुधा भारद्वाज को उनकी मेडिकल रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का निर्देश देते हुए उपरोक्त बात कही।



सुधा भारद्वाज की बेटी ने अपनी मां की सेहत ठीक न होने के आधार पर अंतरिम जमानत दिए जाने की मांग को लेकर कोर्ट में जमानत आवेदन दायर किया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति एस जे काथावाला व न्यायमूर्ति एसपी तावड़े की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी की बेटी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युग चौधरी ने कहा कि भारद्वाज को उपयुक्त उपचार मिल चुका है। लेकिन उनका मेडिकल रिकॉर्ड नहीं मिला है। यह संविधान के प्रावधान के तहत कैदी का अधिकार है। यदि यह रिकॉर्ड मिल जाए तो काफी हद तक मुकदमेबाजी भी कम हो जाएगी। 

वहीं राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड व जेल राज्य सरकार का विषय है। इसलिए वे इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड पाना कैदी का अधिकार है। यह अधिकार हर कैदी का है। खंडपीठ ने कहा कि अस्पताल जाने के बाद हर कैदी अस्पताल के नियमों के तहत अपने घर वालों से भी फोन पर बात करने का हक रखता है।  
 
अधिवक्ता युग चौधरी ने अदालत को सूचित किया कि याचिका दायर करने के बाद, भारद्वाज को चिकित्सा सहायता मिली थी, और इस प्रकार, वह अंतरिम जमानत के लिए दबाव नहीं डाल रहे थे। भारद्वाज की बेटी, मायशा सिंह ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि उनकी 60 वर्षीय मां को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, इस्केमिक हृदय रोग और फुफ्फुसीय तपेदिक का रिकॉर्ड रहा है और उनके 3 सह-कैदियों का कोविड-19 का परीक्षण पॉजीटिव आया था। परिवार ने यह भी शिकायत की थी कि उन्हें भारद्वाज के मेडिकल रिकॉर्ड तक पहुंच नहीं दी गई और न ही उन्हें अस्पताल के दौरे के बाद उनसे बात करने की अनुमति दी गई। 

चौधरी ने अदालत के संज्ञान में लाया कि सभी कैदियों को इस स्थिति का सामना करना पड़ा था, और यदि अनुरोध पर मेडिकल रिकॉर्ड प्रदान किए जाते हैं, तो इससे मुकदमेबाजी भी कम हो जाएगी। जबकि एनआईए की ओर से पेश एएसजी अनिल सिंह ने कहा कि यह राज्य सरकार को निर्णय लेना है, उन्होंने कहा कि ऐसी सुविधा केवल भारद्वाज को दी जानी चाहिए न कि सभी कैदियों को।

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