कल सीरम इंस्टीट्यूट वाले अदार पूनावाला के ट्वीट पर जो लोग खुश हो रहे हैं कि भारत ने आक्सफोर्ड वाले टीके की 10 करोड़ डोज की एक्सक्लुसिव डील कर ली है। वह जान लें कि टीके की यह डोज 2021 की पहली छमाही तक यानी जून 2021 तक 'उत्पादन' की बात की जा रही है। वितरण में और भी समय लग सकता है।
इनका खेल तो दरअसल रूस ने खराब किया है। उसने अपना टीका सितंबर 2020 में ही अपने नागरिकों को देने की बात कर दी है, इससे बिल्लू जी का बना बनाया पूरा समीकरण उलट गया है। सीधी बात है जो पहले वैक्सीन बनाएगा वह बाजी मार लेगा। ट्रम्प को रूस की इस घोषणा से इतनी चिंता हुई कि वह भी फिर से अमेरिका नवम्बर में होने वाले चुनावों से पहले वैक्सीन आने की बात दोबारा से करने लगे हैं, जबकि उन्हीं के वैज्ञानिक सलाहकार और दुनिया में वायरस के सबसे बड़े डॉक्टर माने जाने वाले (बिल्लू जी को छोड़कर) एंथनी फाउसी कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि कोई भी टीका जनवरी 2020 से पहले आ ही नहीं सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी जुलाई में यह बात बोल चुका है कि 2021 से पहले टीका आना सम्भव नहीं है।
इस बार जो कोरोना के लिए टीके बनाए जा रहे हैं वह ऐसी तकनीकों पर भी आधारित हैं जो अब से पहले कभी सामने नहीं आई थीं, न्यूक्लिक एसिड और ब्लीडिंग एज ऐसी ही तकनीक है इसपर इस साल जनवरी से काम चल रहा है। अमेरिका की ज्यादातर वैक्सीन कम्पनियां Mrna तकनीक पर वैक्सीन निर्माण कर रही हैं। ऑक्सफोर्ड वाले एडीनो वायरस पर काम कर रहे हैं। यानी मूल रूप से कोई भी कोरोना वायरस पर काम नही कर रहा है!
इसलिए इनकी सफलता संदेहास्पद है। आपको अफ़सोस होगा जानकर कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोरोना वायरस स्पेशल एनवॉय टीम के डॉक्टर डेविड नेबैरो कह चुके हैं कि हमें उन बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए जिनमें इस बात का दावा किया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार हो चुकी है। यह बहुत मुश्किल बात है।
तो फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन बढ़ चढ़कर वैक्सीन के लिए फंड जुटाने में क्यो लगा है? यह सवाल पूछा जाना चाहिए, साथ ही यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि पिछली बार 2009-10 मे जिस महामारी H1N1 का डर बड़े पैमाने पर फैलाया गया था उसका क्या हुआ ?
'स्वाइन फ्लू अगले दो वर्षों में 40 प्रतिशत तक अमेरिकियों पर हमला कर सकता है और यदि टीका अभियान और अन्य उपाय सफल नहीं हुए तो कई सौ हजार लोगों की मौत हो सकती है।' (ओबामा प्रशासन का आधिकारिक वक्तव्य, एसोसिएटेड प्रेस, 24 जुलाई 2009)
तब भी टीके के लिए ऐसी ही मारामारी मचाई गयी थी। बिग फार्मा से राष्ट्रीय सरकारों द्वारा लाखों स्वाइन फ्लू वैक्सीन का ऑर्डर दिया गया था। लाखों वैक्सीन खुराक बाद में नष्ट कर दिए गए। यानी 2 अरब लोगों को प्रभावित करने वाली कोई महामारी नहीं थी।
इस मल्टीबिलियन धोखाधड़ी के पीछे कौन था, इसकी कोई जांच नहीं हुई। कई आलोचकों ने कहा कि H1N1 महामारी 'नकली' थी, महामारी विज्ञानी वोल्फगैंग वोडर, ने घोषणा की थी कि 'झूठी महामारी' 'सदी की सबसे बड़ी चिकित्सा घोटालों में से एक है।' (माइकल फोमेंटो, फोर्ब्स, 10 फरवरी, 2010)
अब आप ही बताइए क्या हम मल्टीबिलियन डॉलर की इस वैश्विक टीकाकरण परियोजना के पीछे बिल्लू भयंकर जैसे लोगो पर भरोसा कर सकते हैं? क्या हम विश्व स्वास्थ्य संगठन और इसके पीछे खड़े शक्तिशाली आर्थिक हित समूहों पर भरोसा कर सकते हैं ?
क्या हम उस पश्चिमी मीडिया पर भरोसा कर सकते हैं जिसने पैनिक मचाने वाले अभियान का नेतृत्व किया है? जो ग्लोबल वैक्सीन प्रोग्राम को लागू करने के लिए लगातार प्रचार अभियान चलाकर मिसइनफॉर्मेशन झूठ और फेब्रिकेशन को बनाए रखता है। क्या हम अपनी 'भ्रष्ट' सरकारों पर भरोसा कर सकते हैं?
इनका खेल तो दरअसल रूस ने खराब किया है। उसने अपना टीका सितंबर 2020 में ही अपने नागरिकों को देने की बात कर दी है, इससे बिल्लू जी का बना बनाया पूरा समीकरण उलट गया है। सीधी बात है जो पहले वैक्सीन बनाएगा वह बाजी मार लेगा। ट्रम्प को रूस की इस घोषणा से इतनी चिंता हुई कि वह भी फिर से अमेरिका नवम्बर में होने वाले चुनावों से पहले वैक्सीन आने की बात दोबारा से करने लगे हैं, जबकि उन्हीं के वैज्ञानिक सलाहकार और दुनिया में वायरस के सबसे बड़े डॉक्टर माने जाने वाले (बिल्लू जी को छोड़कर) एंथनी फाउसी कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि कोई भी टीका जनवरी 2020 से पहले आ ही नहीं सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी जुलाई में यह बात बोल चुका है कि 2021 से पहले टीका आना सम्भव नहीं है।
इस बार जो कोरोना के लिए टीके बनाए जा रहे हैं वह ऐसी तकनीकों पर भी आधारित हैं जो अब से पहले कभी सामने नहीं आई थीं, न्यूक्लिक एसिड और ब्लीडिंग एज ऐसी ही तकनीक है इसपर इस साल जनवरी से काम चल रहा है। अमेरिका की ज्यादातर वैक्सीन कम्पनियां Mrna तकनीक पर वैक्सीन निर्माण कर रही हैं। ऑक्सफोर्ड वाले एडीनो वायरस पर काम कर रहे हैं। यानी मूल रूप से कोई भी कोरोना वायरस पर काम नही कर रहा है!
इसलिए इनकी सफलता संदेहास्पद है। आपको अफ़सोस होगा जानकर कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोरोना वायरस स्पेशल एनवॉय टीम के डॉक्टर डेविड नेबैरो कह चुके हैं कि हमें उन बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए जिनमें इस बात का दावा किया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार हो चुकी है। यह बहुत मुश्किल बात है।
तो फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन बढ़ चढ़कर वैक्सीन के लिए फंड जुटाने में क्यो लगा है? यह सवाल पूछा जाना चाहिए, साथ ही यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि पिछली बार 2009-10 मे जिस महामारी H1N1 का डर बड़े पैमाने पर फैलाया गया था उसका क्या हुआ ?
'स्वाइन फ्लू अगले दो वर्षों में 40 प्रतिशत तक अमेरिकियों पर हमला कर सकता है और यदि टीका अभियान और अन्य उपाय सफल नहीं हुए तो कई सौ हजार लोगों की मौत हो सकती है।' (ओबामा प्रशासन का आधिकारिक वक्तव्य, एसोसिएटेड प्रेस, 24 जुलाई 2009)
तब भी टीके के लिए ऐसी ही मारामारी मचाई गयी थी। बिग फार्मा से राष्ट्रीय सरकारों द्वारा लाखों स्वाइन फ्लू वैक्सीन का ऑर्डर दिया गया था। लाखों वैक्सीन खुराक बाद में नष्ट कर दिए गए। यानी 2 अरब लोगों को प्रभावित करने वाली कोई महामारी नहीं थी।
इस मल्टीबिलियन धोखाधड़ी के पीछे कौन था, इसकी कोई जांच नहीं हुई। कई आलोचकों ने कहा कि H1N1 महामारी 'नकली' थी, महामारी विज्ञानी वोल्फगैंग वोडर, ने घोषणा की थी कि 'झूठी महामारी' 'सदी की सबसे बड़ी चिकित्सा घोटालों में से एक है।' (माइकल फोमेंटो, फोर्ब्स, 10 फरवरी, 2010)
अब आप ही बताइए क्या हम मल्टीबिलियन डॉलर की इस वैश्विक टीकाकरण परियोजना के पीछे बिल्लू भयंकर जैसे लोगो पर भरोसा कर सकते हैं? क्या हम विश्व स्वास्थ्य संगठन और इसके पीछे खड़े शक्तिशाली आर्थिक हित समूहों पर भरोसा कर सकते हैं ?
क्या हम उस पश्चिमी मीडिया पर भरोसा कर सकते हैं जिसने पैनिक मचाने वाले अभियान का नेतृत्व किया है? जो ग्लोबल वैक्सीन प्रोग्राम को लागू करने के लिए लगातार प्रचार अभियान चलाकर मिसइनफॉर्मेशन झूठ और फेब्रिकेशन को बनाए रखता है। क्या हम अपनी 'भ्रष्ट' सरकारों पर भरोसा कर सकते हैं?