एक बार फिर आगाह कर रहा हूँ कि अमेरिकी डाटा विशेषज्ञों द्वारा भारत मे कोविड से हुई मौतों की संख्या बढाकर बताने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
कल जनसत्ता में खबर छपी है कि ग्लोबल एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत में कोरोना संक्रमितों के आंकड़े जुटाने में कोताही बरती जा रही है वह भारत मे अमेरिका से 20 गुना कम मौतों पर सवाल उठा रहे हैं जबकि ICMR द्वारा भारत मे मृत्यु दर WHO के निर्देश पर 10 मई के बाद से बढ़ा चढ़ाकर दिखाई जा रही हैं।
Johns Hopkins Institute for Applied Economics के फाउंडर और को -डायरेक्टर स्टीव एच हैनके कहते हैं कि खराब डेटा कलेक्शन प्रणाली और भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी के चलते सही आंकड़े सामने नहीं आ पाए हैं।
ओर यह सिर्फ कल की बात नही है 20 जुलाई को भारत की अनेक न्यूज़ वेबसाइट में खबर छपी कि अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने भारत में कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। अखबार ने इन आंकड़ों को 'रहस्य' करार दिया है अमेरिका और ब्राजील में जब कोरोना के कुल मामले 10 लाख थे तो मौत की संख्या करीब 50 हजार हो चुकी थी। लेकिन कुल 10 लाख मामलों पर भारत में कोरोना से मौत का आंकड़ा 25 हजार रहा। (मध्य जुलाई तक)
अब रोज लगभग 800 संक्रिमितो की मौत दर्ज की जा रही है मृत्यु की संख्या 40 हजार को क्रॉस कर गयी है अब भी अमेरिकी डेटा विशेषज्ञ को यह संख्या कम लग रही है।
आपने कभी ध्यान देने की कोशिश की है कि दरअसल मृतकों की संख्या ज्यादा दिखाने से डर फैलाने में आसानी होती है यदि केस अधिक निकलते हैं और रिकवरी भी अच्छी होती है तो तो उतना डर नही फैलेगा लेकिन यदि मृतकों की संख्या निरंतर बढ़ती हुई होगी तो बड़ा पैनिक क्रिएट करने में मदद मिलेगी।
जॉन हापकिंस यूनिवर्सिटी कुछ महीने पहले अपने लोगो का इस्तेमाल कर के कहती है कि भारत में इस महामारी से लाखों लोग मरेंगे, उस वक्त उसके ‘लोगो’ का दुरुपयोग करने के लिए उनकी निंदा की गई थी। ईरान के बारे में भी ऐसी खबरें फैलाई जा रही हैं कि वहाँ भी मौतें कम कर के बतलाई जा रही है रूस में तो बहुत ही कम मौतें दर्ज की गई है ब्रिटेन समेत यूरोप में पिछले दो महीने में मृत्यु दर में बहुत कमी आयी है।
इसलिए अब नए सिरे से डेथ रेट बढ़ता हुआ दिखाने का दबाव है दरअसल अमेरिकियों का यह पुराना खेल है एड्स के बारे में आप जानते है कि किस तरह 90 के दशक में इस बीमारी का भय फैलाया जा रहा था कि करोड़ों लोगों की मृत्यु हो जाएगी भारत मे भी एड्स रोगियो के डाटा को बढ़ाचढ़ा कर बतलाया गया 2007 की शुरुआत मे कहा गया भारत में एचआइवी के मरीजों की संख्या 57 लाख है और बढ़ती जा रही है।
दुनिया मे सबसे ज्यादा एड्स के मरीज भारत में होंगे लेकिन 2007 की गर्मियों में ‘लैंसेट’ में एक शोध आया तब अमेरिकी डाटा एक्सपर्ट की पोल खुली तब जाकर यूएनएड्स से लेकर डब्लूएचओ तक तमाम अमीर फाउंडेशन ने अपनी आंकड़े सुधारे और इसे 25 लाख कर दिया गया यानी साफ था कि पहलेभारत के मामले में 128 प्रतिशत की अतिश्योक्ति की गई थी।
आप जानते है कि ये आंकड़े क्यो बढाकर पेश किए जा रहे थे क्योकि उस वक्त बिल गेट्स एड्स नियंत्रण के लिए 10 करोड़ डॉलर के अनुदान के साथ भारत आए थे और आशंका जताई थी कि 2010 तक भारत में एड्स के 2-2.5 करोड़ मामले हो सकते हैं।
कृपया बहुत ध्यान से कोरोना की मृत्यु दर को बढाने वाले खेल को समझने का प्रयास कीजिए, मैं जानता हूँ इस पोस्ट पर एक भी कोरोना को लेकर हाय हाय मचाने वाला बुद्धिजीवी जवाब नही देगा, क्योंकि उनकी बुद्धि अभी और कुछ सोच नही पा रही है।
यह सब इसलिए सम्भव हो रहा क्योंकि हम पर वैज्ञानिक शब्दों और डेटा की इतनी अधिक बमबारी की जा रही है कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग बिलकुल हक्का बक्का रह गया है उसने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है।
कल जनसत्ता में खबर छपी है कि ग्लोबल एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत में कोरोना संक्रमितों के आंकड़े जुटाने में कोताही बरती जा रही है वह भारत मे अमेरिका से 20 गुना कम मौतों पर सवाल उठा रहे हैं जबकि ICMR द्वारा भारत मे मृत्यु दर WHO के निर्देश पर 10 मई के बाद से बढ़ा चढ़ाकर दिखाई जा रही हैं।
Johns Hopkins Institute for Applied Economics के फाउंडर और को -डायरेक्टर स्टीव एच हैनके कहते हैं कि खराब डेटा कलेक्शन प्रणाली और भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी के चलते सही आंकड़े सामने नहीं आ पाए हैं।
ओर यह सिर्फ कल की बात नही है 20 जुलाई को भारत की अनेक न्यूज़ वेबसाइट में खबर छपी कि अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने भारत में कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। अखबार ने इन आंकड़ों को 'रहस्य' करार दिया है अमेरिका और ब्राजील में जब कोरोना के कुल मामले 10 लाख थे तो मौत की संख्या करीब 50 हजार हो चुकी थी। लेकिन कुल 10 लाख मामलों पर भारत में कोरोना से मौत का आंकड़ा 25 हजार रहा। (मध्य जुलाई तक)
अब रोज लगभग 800 संक्रिमितो की मौत दर्ज की जा रही है मृत्यु की संख्या 40 हजार को क्रॉस कर गयी है अब भी अमेरिकी डेटा विशेषज्ञ को यह संख्या कम लग रही है।
आपने कभी ध्यान देने की कोशिश की है कि दरअसल मृतकों की संख्या ज्यादा दिखाने से डर फैलाने में आसानी होती है यदि केस अधिक निकलते हैं और रिकवरी भी अच्छी होती है तो तो उतना डर नही फैलेगा लेकिन यदि मृतकों की संख्या निरंतर बढ़ती हुई होगी तो बड़ा पैनिक क्रिएट करने में मदद मिलेगी।
जॉन हापकिंस यूनिवर्सिटी कुछ महीने पहले अपने लोगो का इस्तेमाल कर के कहती है कि भारत में इस महामारी से लाखों लोग मरेंगे, उस वक्त उसके ‘लोगो’ का दुरुपयोग करने के लिए उनकी निंदा की गई थी। ईरान के बारे में भी ऐसी खबरें फैलाई जा रही हैं कि वहाँ भी मौतें कम कर के बतलाई जा रही है रूस में तो बहुत ही कम मौतें दर्ज की गई है ब्रिटेन समेत यूरोप में पिछले दो महीने में मृत्यु दर में बहुत कमी आयी है।
इसलिए अब नए सिरे से डेथ रेट बढ़ता हुआ दिखाने का दबाव है दरअसल अमेरिकियों का यह पुराना खेल है एड्स के बारे में आप जानते है कि किस तरह 90 के दशक में इस बीमारी का भय फैलाया जा रहा था कि करोड़ों लोगों की मृत्यु हो जाएगी भारत मे भी एड्स रोगियो के डाटा को बढ़ाचढ़ा कर बतलाया गया 2007 की शुरुआत मे कहा गया भारत में एचआइवी के मरीजों की संख्या 57 लाख है और बढ़ती जा रही है।
दुनिया मे सबसे ज्यादा एड्स के मरीज भारत में होंगे लेकिन 2007 की गर्मियों में ‘लैंसेट’ में एक शोध आया तब अमेरिकी डाटा एक्सपर्ट की पोल खुली तब जाकर यूएनएड्स से लेकर डब्लूएचओ तक तमाम अमीर फाउंडेशन ने अपनी आंकड़े सुधारे और इसे 25 लाख कर दिया गया यानी साफ था कि पहलेभारत के मामले में 128 प्रतिशत की अतिश्योक्ति की गई थी।
आप जानते है कि ये आंकड़े क्यो बढाकर पेश किए जा रहे थे क्योकि उस वक्त बिल गेट्स एड्स नियंत्रण के लिए 10 करोड़ डॉलर के अनुदान के साथ भारत आए थे और आशंका जताई थी कि 2010 तक भारत में एड्स के 2-2.5 करोड़ मामले हो सकते हैं।
कृपया बहुत ध्यान से कोरोना की मृत्यु दर को बढाने वाले खेल को समझने का प्रयास कीजिए, मैं जानता हूँ इस पोस्ट पर एक भी कोरोना को लेकर हाय हाय मचाने वाला बुद्धिजीवी जवाब नही देगा, क्योंकि उनकी बुद्धि अभी और कुछ सोच नही पा रही है।
यह सब इसलिए सम्भव हो रहा क्योंकि हम पर वैज्ञानिक शब्दों और डेटा की इतनी अधिक बमबारी की जा रही है कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग बिलकुल हक्का बक्का रह गया है उसने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है।