भारत के आत्मघाती व्यापारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के कोयला खदानों को निजी पूंजीपतियों के हाथों बेचने का अध्यादेश लाकर इससे जुड़े किसानों और उस क्षेत्र की आम जनता को एक नई मुसीबत में डालने का रास्ता प्रशस्त कर दिया है। एनडीए की यह पुरानी आदत है। यह जब भी सत्ता में आई इसने देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने का काम ही किया है। अटल जी की सरकार ने देश बेचने के लिए एक मंत्रालय "विनिवेश मंत्रालय" बनाया गया था। वर्तमान सरकार में एक व्यक्ति महत्वपूर्ण हो गया है इसलिए इसे किसी मंत्रालय की जरूरत ही नहीं है। इस निर्णय का देश की जनता, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।
1. किसानों और जनता पर प्रभाव :- भारत में बेरोजगारी को रोकने का सबसे अच्छा और कारगर तरीका कृषि ही है। यह अभी भी 60 से 65 प्रतिशत जनता को रोजगार दिया है। सरकारों की गलत नीतियों के कारण किसानों की हालत दयनीय हो गई है। इस कमर्शियल माइनिंग के निर्णय से किसानों या भू- रैयतों की लूट बेतहाशा बढ़ेगी और देश निकट वर्षों में घोर खाद्यान्न समस्याओं से जुझेगा। लोग बेरोजगारी और भूख से बेहाल होंगे। निजी कंपनियां जमीन हथियाने के लिए गांव में दलाल पैदा करेंगे जो किसानों को क्षणिक लाभ दिखाकर उनसे उनकी जमीन छीन लेंगे और उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
जब कोई व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति को बेच कर चल संपत्ति बनाता है तो वह चल संपत्ति भी उसके हाथ से दूसरे हाथों में चली जाती है।
आज तक का अनुभव तो यही कहता है। एक-दो वर्षों के लिए किसान को लगेगा कि उसके पास बहुत पैसे हो गए पर उसके सारे पैसे अच्छा मकान बनाने और दो पहिया , चार पहिया वाहन की ख़रीदगी के माध्यम से दूसरे पूंजी पतियों के पास चला जाता है।
इन खेतों में जो अन्न उपजता है वह भी बंद हो जाएगा। इसका परिणाम आने वाले समय में भयंकर होगा ।लोग सरकारों द्वारा दी जाने वाली सड़ी गली राशन को खाकर कितना मजबूत होंगे यह सोचा जा सकता है । सार्वजनिक वितरण प्रणाली का भ्रष्टाचार आज किसी से छुपा नहीं है। भूख से मौतों की संख्या भी भयावह होगी। निया में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जब कोई व्यक्ति अपनी सारी अचल संपत्ति बेच दिया हो और वह बहुत अमीर की श्रेणी में आ गया हो, अर्थात सरकार का यह निर्णय किसानों के लिए आत्मघाती होगा।
2. पर्यावरण पर प्रभाव :- अधिकांश वन भूमि के नीचे कोयला , लोहा, बॉक्साइट मैग्नीसियाम, सोना, यूरेनियम इत्यादि खनिजो का भंडार है । सभी खनिजों को निजी हाथों में खनन अधिकार देने पर जल्दी लाभ कमाने के लालच में अंधाधुंध खनन की जाएगी । इस प्रक्रिया से लाखों हेक्टेयर वन भूमि और उसमें स्थित पेड़ पौधों को समाप्त किया जाएगा। कंपनियां बड़े पेड़ों को काटकर उसके स्थान पर झाडियाँ लगाने को वृक्षारोपण की संज्ञा देती है।
पर्यावरण में ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बुरी तरह प्रभावित होगा। तापमान में वृद्घि होगी । वायुमंडल में मिथेन , सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड ,धूलकण के अनुपात में बेतहाशा वृद्धि होगी। वनों से वन्यजीव समाप्त हो जाएंगे। इनका बुरा असर पूरे इकोसिस्टम पर पड़ेगा।
3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:- इस कमर्शियल माइनिंग से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे ऐसा तर्क प्रधानमंत्री और उनके भक्त देते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि निजी पूंजीपतियों कामूल उद्देश्य मुनाफा कमाना है जनसेवा नहीं। वे न्यूनतम रोजगार देकर अधिकतम उत्पादन करेगी। पूर्व के विस्थापन से भी इसे समझा जा सकता है। अगर किसी परियोजना में 10000 एकड़ जमीन जाती है तो उससे 30 से 35 हजार की आबादी प्रभावित होती है ।अगर देखा जाए तो वह कंपनी मात्र 2 से 3 हज़ार लोगों को रोजगार दे पाती है। तो यह विकास रोजगार पैदा करेगा कि बेरोजगारी यह तुलना करके देखा जा सकता है। इन कामों में होता यह है कि स्थानीय किसानों की जमीन छीनकर उन्हें बेरोजगार कर उस इलाके के बाहर के लोगों को थोड़ा रोजगार दिया जाता है और उसका ढिंढोरा पूरे देश में पीटा जाता है।
अगर देश की सारी संपत्ति कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथों में कैद हो जाए तो शेष लोगों के पास क्रयशक्ति नष्ट हो जाएगी, जिससे बाजार में भारी मंदी आएगी। इसके कारण समाज में चोरी, डकैती, हत्या , लूटपाट में बेतहाशा वृद्धि होगी। अतः यह कमर्शियल माइनिंग का निर्णय देशहित और जनहित में नहीं है इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए।
1. किसानों और जनता पर प्रभाव :- भारत में बेरोजगारी को रोकने का सबसे अच्छा और कारगर तरीका कृषि ही है। यह अभी भी 60 से 65 प्रतिशत जनता को रोजगार दिया है। सरकारों की गलत नीतियों के कारण किसानों की हालत दयनीय हो गई है। इस कमर्शियल माइनिंग के निर्णय से किसानों या भू- रैयतों की लूट बेतहाशा बढ़ेगी और देश निकट वर्षों में घोर खाद्यान्न समस्याओं से जुझेगा। लोग बेरोजगारी और भूख से बेहाल होंगे। निजी कंपनियां जमीन हथियाने के लिए गांव में दलाल पैदा करेंगे जो किसानों को क्षणिक लाभ दिखाकर उनसे उनकी जमीन छीन लेंगे और उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
जब कोई व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति को बेच कर चल संपत्ति बनाता है तो वह चल संपत्ति भी उसके हाथ से दूसरे हाथों में चली जाती है।
आज तक का अनुभव तो यही कहता है। एक-दो वर्षों के लिए किसान को लगेगा कि उसके पास बहुत पैसे हो गए पर उसके सारे पैसे अच्छा मकान बनाने और दो पहिया , चार पहिया वाहन की ख़रीदगी के माध्यम से दूसरे पूंजी पतियों के पास चला जाता है।
इन खेतों में जो अन्न उपजता है वह भी बंद हो जाएगा। इसका परिणाम आने वाले समय में भयंकर होगा ।लोग सरकारों द्वारा दी जाने वाली सड़ी गली राशन को खाकर कितना मजबूत होंगे यह सोचा जा सकता है । सार्वजनिक वितरण प्रणाली का भ्रष्टाचार आज किसी से छुपा नहीं है। भूख से मौतों की संख्या भी भयावह होगी। निया में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जब कोई व्यक्ति अपनी सारी अचल संपत्ति बेच दिया हो और वह बहुत अमीर की श्रेणी में आ गया हो, अर्थात सरकार का यह निर्णय किसानों के लिए आत्मघाती होगा।
2. पर्यावरण पर प्रभाव :- अधिकांश वन भूमि के नीचे कोयला , लोहा, बॉक्साइट मैग्नीसियाम, सोना, यूरेनियम इत्यादि खनिजो का भंडार है । सभी खनिजों को निजी हाथों में खनन अधिकार देने पर जल्दी लाभ कमाने के लालच में अंधाधुंध खनन की जाएगी । इस प्रक्रिया से लाखों हेक्टेयर वन भूमि और उसमें स्थित पेड़ पौधों को समाप्त किया जाएगा। कंपनियां बड़े पेड़ों को काटकर उसके स्थान पर झाडियाँ लगाने को वृक्षारोपण की संज्ञा देती है।
पर्यावरण में ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात बुरी तरह प्रभावित होगा। तापमान में वृद्घि होगी । वायुमंडल में मिथेन , सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड ,धूलकण के अनुपात में बेतहाशा वृद्धि होगी। वनों से वन्यजीव समाप्त हो जाएंगे। इनका बुरा असर पूरे इकोसिस्टम पर पड़ेगा।
3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:- इस कमर्शियल माइनिंग से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे ऐसा तर्क प्रधानमंत्री और उनके भक्त देते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि निजी पूंजीपतियों कामूल उद्देश्य मुनाफा कमाना है जनसेवा नहीं। वे न्यूनतम रोजगार देकर अधिकतम उत्पादन करेगी। पूर्व के विस्थापन से भी इसे समझा जा सकता है। अगर किसी परियोजना में 10000 एकड़ जमीन जाती है तो उससे 30 से 35 हजार की आबादी प्रभावित होती है ।अगर देखा जाए तो वह कंपनी मात्र 2 से 3 हज़ार लोगों को रोजगार दे पाती है। तो यह विकास रोजगार पैदा करेगा कि बेरोजगारी यह तुलना करके देखा जा सकता है। इन कामों में होता यह है कि स्थानीय किसानों की जमीन छीनकर उन्हें बेरोजगार कर उस इलाके के बाहर के लोगों को थोड़ा रोजगार दिया जाता है और उसका ढिंढोरा पूरे देश में पीटा जाता है।
अगर देश की सारी संपत्ति कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथों में कैद हो जाए तो शेष लोगों के पास क्रयशक्ति नष्ट हो जाएगी, जिससे बाजार में भारी मंदी आएगी। इसके कारण समाज में चोरी, डकैती, हत्या , लूटपाट में बेतहाशा वृद्धि होगी। अतः यह कमर्शियल माइनिंग का निर्णय देशहित और जनहित में नहीं है इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए।