सोनिया गांधी का मोदी सरकार पर हमला, कहा- मनरेगा पर राजनीति नहीं, इससे गरीबों की मदद करें

Written by sabrang india | Published on: June 9, 2020
नई दिल्ली। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 2005  क्रांतिकारी और तार्किक बदलाव का उदाहरण है। इस कानून ने गरीब से गरीब शख्स को हाथों का काम और आर्थिक ताकत देकर भूख और गरीबी को मिटाने का काम किया है। सोनिया ने कहा कि यह तार्किक इसलिए है कि यह पैसा सीधा उन लोगों के हाथ में जाता है, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।  अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे गए लेख में मोदी सरकार को नसीहत देते हुए सोनिया ने कहा कि 'यह भारतीय जनता पार्टी बनाम कांग्रेस का मुद्दा है ही नहीं। भारत के जनता की मदद करने के लिए मनरेगा का इस्तेमाल करिए।'



सोनिया गांधी ने लिखा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, 2005 (मनरेगा) एक क्रांतिकारी और तर्कसंगत परिवर्तन का जीता जागता उदाहरण है। यह क्रांतिकारी बदलाव का सूचक इसलिए है क्योंकि इस कानून ने गरीब से गरीब व्यक्ति के हाथों को काम व आर्थिक ताकत दे भूख व गरीबी पर प्रहार किया। यह तर्कसंगत है क्योंकि यह पैसा सीधे उन लोगों के हाथों में पहुंचाता है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। विरोधी विचारधारा वाली केंद्र सरकार के छः साल में व उससे पहले भी, लगातार मनरेगा की उपयोगिता साबित हुई है।

उन्होंने कहा कि मनरेगा की उपयोगिता बार बार साबित हुई है क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान इसमें निरंतर सुधार व बढ़ोत्तरी हुई। यह पूरी दुनिया में गरीबी उन्मूलन के एक मॉडल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। अनिच्छा से ही सही, मोदी सरकार इस कार्यक्रम का महत्व समझ चुकी है। मेरा सरकार से निवेदन है कि यह वक्त देश पर छाए संकट का सामना करने का है, न कि राजनीति करने का। यह वक्त भाजपा बनाम कांग्रेस का नहीं। आपके पास एक शक्तिशाली तंत्र है, कृपया इसका उपयोग कर आपदा के इस वक्त भारत के नागरिकों की मदद कीजिए।

गांधी ने कहा कि संकट के इस वक्त केंद्र सरकार को पैसा सीधा लोगों के हाथों में पहुंचाना चाहिए तथा सब प्रकार की बकाया राशि, बेरोजगारी भत्ता व श्रमिकों का भुगतान लचीले तरीके से बगैर देरी के करना चाहिए। मोदी सरकार ने मनरेगा के तहत कार्यदिवसों की संख्या बढ़ाकर 200 करने तथा कार्यस्थल पर ही पंजीकरण कराने की अनुमति देने की मांगों को नजरंदाज कर दिया है। मनरेगा के तहत ओपन-एंडेड फंडिंग सुनिश्चित होनी चाहिए, जैसा पहले होता था।

गांधी ने आगे लिखा, "मोदी सरकार ने इसकी आलोचना की, इसे कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन अंत में मनरेगा के लाभ व सार्थकता को स्वीकारना पड़ा। कांग्रेस सरकार द्वारा स्थापित की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ मनरेगा सबसे गरीब व कमजोर नागरिकों को भूख तथा गरीबी से बचाने के लिए अत्यंत कारगर है। खासतौर से कोरोना महामारी के संकट के दौर में यह और ज्यादा प्रासंगिक है।"

सोनिया गांधी ने लिखा कि पद संभालने के बाद, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी समझ आया कि मनरेगा को बंद किया जाना व्यवहारिक नहीं। इसीलिए उन्होंने आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला और इस योजना को ‘कांग्रेस पार्टी की विफलता का एक जीवित स्मारक’ तक कह डाला। पिछले सालों में मोदी सरकार ने मनरेगा को खत्म करने, खोखला करने व कमजोर करने की पूरी कोशिश की। लेकिन मनरेगा के सजग प्रहरियों, अदालत एवं संसद में विपक्षी दलों के भारी दबाव के चलते सरकार को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा। इसके बाद केंद्र सरकार ने मनरेगा को स्वच्छ भारत तथा प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से जोड़कर इसका स्वरूप बदलने की कोशिश की, जिसे उन्होंने सुधार कहा। लेकिन, वास्तव में यह कांग्रेस पार्टी की योजनाओं का नाम बदलने का एक प्रयास मात्र था। यह और बात है कि मनरेगा श्रमिकों को भुगतान किए जाने में अत्यंत देरी की गई तथा उन्हें काम तक दिए जाने से इंकार कर दिया गया।

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