सौंवा भगवती जागरण समिति टाइप कोई समिति ट्रंप का कार्यक्रम आयोजित कर रही है, यह सुनकर विदेश मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकारों की हंसी रूकने का नाम नहीं ले रही। इस दौरे को लेकर मीडिया में इतनी ख़बरें चल रही थीं और किसी को पता भी नहीं था कि मोटेरा स्टेडियम का कार्यक्रम सरकारी नहीं है। पहली बार पता चला कि इसका आयोजन डॉनल्ड ट्रंप नागरिक अभिनंदन समिति कर रही है।
एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार की ज़ुबान फिसल गई और उन्होंने नागरिक अभिनंदन समिति का नाम ले लिया। हिन्दू अख़बार के महेश लांगा गुजरात से नियमित रिपोर्टिंग करते हैं। जब महेश ने वहाँ के अधिकारियों से पूछा तो उन्हें ही पता नहीं था कि यह समिति क्या है। सोचिए इतना बड़ा दौरा हो रहा है। सुरक्षा को लेकर कार्यक्रम के आयोजक से कुछ तो बात होती होगी कि कौन कहाँ बैठेगा और कार्यक्रम कैसे आगे बढ़ेगा? तो यह बात किससे हो रही थी? इतना रहस्यमयी क्यों है सब?
मुमकिन है दो चार लोगों को पकड़ कर इस संस्था का सदस्य पेश किया जाए और कहा जाए कि यह संस्था बाढ़ राहत कार्य से लेकर कन्या भ्रूण हत्या के मामले में वर्षों से काम करती रही है। नमस्ते ट्रंप के लिए गुजरात सरकार जनता के करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।
पिछले साल अक्तूबर में ख़बर आती है कि यूरोपियन सांसदों का दल श्रीनगर का दौरा करेगा। 27 सदस्यों का यह दल सरकारी बुलावे पर नहीं आया है बल्कि उनका निजी दौरा है। रहस्यमयी तरीक़े से एक NGO का नाम आता है। जिसके बारे में आज तक सरकार ने डीटेल नहीं बताया। सोचिए श्रीनगर में भारत के राजनेता नहीं जा सकते हैं और वहाँ पर एक एन जी ओ यूरोपीय सांसदों को लेकर चला जाता है। उनके आने जाने को लेकर सरकार के स्तर पर कुछ तो प्रक्रिया चली ही होगी।
इस NGO का नाम WESTT( Women’s Economic and Social Think Tank) है। इसके बुलावे पर आने वाले यूरोपियन सांसद प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल से भी मिलते हैं। एक एन जी ओ की इतनी पहुँच होती है। विदेश मंत्रालय अपना मुँह बंद कर लेता है। तब किसी मादी शर्मा का नाम आया था। प्रधानमंत्री के साथ उनकी तस्वीरें भी हैं। मादी शर्मा कभी मीडिया में नहीं आईं। शुरुआती छानबीन के बाद मीडिया मादी शर्मा की कहानी से आगे बढ़ गया।
कूटनीति का काम जटिल होता है। विदेश दौरे की ख़बरों में जान डालने के लिए इवेंट में बदला जाने लगा है। ट्रंप से पहले भी ओबामा आए तो पुराना क़िला देखने गए थे। लेकिन अब ऐसे इवेंट को भव्यता प्रदान की जाने लगी है। ऐसे इवेंट में नेताओं की सहजता को ही विदेश नीति की सफलता बताया जाने लगा है। इसके लिए सरकारी और अब ग़ैर सरकारी तौर पर सैंकड़ों करोड़ रुपये फूंके जा रहे हैं।
इस सफलता का आलम यह है कि भारत आने से पहले ही ट्रंप बोल चुके हैं कि भारत का व्यवहार ठीक नहीं है। ठसक ऐसी होनी चाहिए। आने से पहले भारत पर तंज भी करो और यहाँ आकर ताली भी बजवाओ। हिन्दी अख़बारों और हिन्दी चैनलों के ज़रिए इसे गाँव गाँव पहुँचा दो कि दुनिया में नाम हो गया है। आपको उन खबरों में सही नहीं मिलेगा कि डॉनल्ड ट्रंप अभिनंदन समिति के पास ऐसे कार्यक्रम के लिए पैसा कहाँ से आया? एक समिति के कार्यक्रम के लिए सरकार पैसा क्यों ख़र्च कर रही है?
यह सवाल तो बनता ही कि क्या अब विदेश मंत्रालय को पता भी रहता है कि विदेश नीति को लेकर क्या हो रहा है? या उसे भी एक NGO में बदल दिया गया है? और विदेश नीति का काम अब इस तरह के अनजाने NGO से कराए जाने लगे हैं?
जिसके बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का ही कुछ पता नहीं। पता होता तो तभी का तभी बता देते। है कि नहीं।
एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार की ज़ुबान फिसल गई और उन्होंने नागरिक अभिनंदन समिति का नाम ले लिया। हिन्दू अख़बार के महेश लांगा गुजरात से नियमित रिपोर्टिंग करते हैं। जब महेश ने वहाँ के अधिकारियों से पूछा तो उन्हें ही पता नहीं था कि यह समिति क्या है। सोचिए इतना बड़ा दौरा हो रहा है। सुरक्षा को लेकर कार्यक्रम के आयोजक से कुछ तो बात होती होगी कि कौन कहाँ बैठेगा और कार्यक्रम कैसे आगे बढ़ेगा? तो यह बात किससे हो रही थी? इतना रहस्यमयी क्यों है सब?
मुमकिन है दो चार लोगों को पकड़ कर इस संस्था का सदस्य पेश किया जाए और कहा जाए कि यह संस्था बाढ़ राहत कार्य से लेकर कन्या भ्रूण हत्या के मामले में वर्षों से काम करती रही है। नमस्ते ट्रंप के लिए गुजरात सरकार जनता के करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।
पिछले साल अक्तूबर में ख़बर आती है कि यूरोपियन सांसदों का दल श्रीनगर का दौरा करेगा। 27 सदस्यों का यह दल सरकारी बुलावे पर नहीं आया है बल्कि उनका निजी दौरा है। रहस्यमयी तरीक़े से एक NGO का नाम आता है। जिसके बारे में आज तक सरकार ने डीटेल नहीं बताया। सोचिए श्रीनगर में भारत के राजनेता नहीं जा सकते हैं और वहाँ पर एक एन जी ओ यूरोपीय सांसदों को लेकर चला जाता है। उनके आने जाने को लेकर सरकार के स्तर पर कुछ तो प्रक्रिया चली ही होगी।
इस NGO का नाम WESTT( Women’s Economic and Social Think Tank) है। इसके बुलावे पर आने वाले यूरोपियन सांसद प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल से भी मिलते हैं। एक एन जी ओ की इतनी पहुँच होती है। विदेश मंत्रालय अपना मुँह बंद कर लेता है। तब किसी मादी शर्मा का नाम आया था। प्रधानमंत्री के साथ उनकी तस्वीरें भी हैं। मादी शर्मा कभी मीडिया में नहीं आईं। शुरुआती छानबीन के बाद मीडिया मादी शर्मा की कहानी से आगे बढ़ गया।
कूटनीति का काम जटिल होता है। विदेश दौरे की ख़बरों में जान डालने के लिए इवेंट में बदला जाने लगा है। ट्रंप से पहले भी ओबामा आए तो पुराना क़िला देखने गए थे। लेकिन अब ऐसे इवेंट को भव्यता प्रदान की जाने लगी है। ऐसे इवेंट में नेताओं की सहजता को ही विदेश नीति की सफलता बताया जाने लगा है। इसके लिए सरकारी और अब ग़ैर सरकारी तौर पर सैंकड़ों करोड़ रुपये फूंके जा रहे हैं।
इस सफलता का आलम यह है कि भारत आने से पहले ही ट्रंप बोल चुके हैं कि भारत का व्यवहार ठीक नहीं है। ठसक ऐसी होनी चाहिए। आने से पहले भारत पर तंज भी करो और यहाँ आकर ताली भी बजवाओ। हिन्दी अख़बारों और हिन्दी चैनलों के ज़रिए इसे गाँव गाँव पहुँचा दो कि दुनिया में नाम हो गया है। आपको उन खबरों में सही नहीं मिलेगा कि डॉनल्ड ट्रंप अभिनंदन समिति के पास ऐसे कार्यक्रम के लिए पैसा कहाँ से आया? एक समिति के कार्यक्रम के लिए सरकार पैसा क्यों ख़र्च कर रही है?
यह सवाल तो बनता ही कि क्या अब विदेश मंत्रालय को पता भी रहता है कि विदेश नीति को लेकर क्या हो रहा है? या उसे भी एक NGO में बदल दिया गया है? और विदेश नीति का काम अब इस तरह के अनजाने NGO से कराए जाने लगे हैं?
जिसके बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का ही कुछ पता नहीं। पता होता तो तभी का तभी बता देते। है कि नहीं।