CRPF कैंप पर हमले में 11 साल बाद बरी हुए मो. कौसर और गुलाब खान का छलका दर्द- कैसे हटेंगे 'आतंकवाद' के दाग?

Written by sabrang india | Published on: November 4, 2019
2008 में रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले के 11 साल बाद मोहम्मद कौसर और गुलाम खान बरी कर दिए गए हैं। हालांकि, अब वे इस बात को लेकर संशय में हैं क्या कोर्ट का आदेश उन पर लगा ‘आतंकी’ होने का दाग मिटा पाएगा? आतंक के आरोप में गिरफ्तार होने से पहले 48 साल के कौसर प्रतापगढ़ के कुंडा इलाके में एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाते थे। वहीं, 41 वर्षीय खान की बरेली के बहेड़ी इलाके में एक वेल्डिंग की दुकान थी।



दोनों के परिवारों ने मुकदमा लड़ने के लिए न केवल दुकानें बेच दीं बल्कि उनकी बचत भी खत्म हो चुकी है। दोनों का कहना है कि उनके लिए अब दोबारा से जिंदगी पटरी पर लाना आसान नहीं होगा। बता दें कि शनिवार को रामपुर की अदालत ने 2008 के हमलों के लिए चार आरोपियों को मौत की सजा सुनाई। इनमें दो पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल हैं। इस हमले में सीआरपीएफ के 7 जवान शहीद हो गए थे जबकि एक रिक्शाचालक की भी जान चली गई थी। पांचवें आरोपी को उम्रकैद की सजा दी गई है। वहीं, हमले से पहले अपराध में इस्तेमाल हथियार अपने घरों में छिपाने के आरोपी खान और कौसर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।

हमले के एक महीने बाद 9 फरवरी को कौसर को उसकी प्रतापगढ़ स्थित दुकान से गिरफ्तार किया गया। यह जगह रामपुर से 486 किमी दूर स्थित है। कौसर ने फोन पर द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया, ‘एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने मुझसे दो या तीन सवाल पूछे और फिर एक कमरे में ले गए। दो दिन बाद, मुझे कोर्ट में पेश किया गया, जहां से मुझे जेल भेज दिया गया। सीनियर पुलिस अधिकारी से हुए दो मिनट की बातचीत में मैं यही दोहराता रहा कि मैं बेकसूर हूं।’

कौसर ने 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह सऊदी अरब में एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर 10 साल काम कर चुके हैं। इसके बाद, वह 2005 में भारत लौटे थे। उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के बाद उनकी कुंडा स्थित दुकान को चलाने के लिए परिवार में कोई नहीं था और वो बंद हो गई। उन्होंने कहा, ‘माली संकट की वजह से मेरे तीन बच्चों को स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मेरी पत्नी सलमा बानो को आजीविका चलाने के लिए कपड़े सिलने पड़े। रिश्तेदारों ने मेरे घर आना बंद कर दिया। केस लड़ने के लिए पैसे जुटाने के लिए परिवार ने बाद में दुकान बेच दी।’

बरेली सेंट्रल जेल से 9 फरवरी को रिहा होने के बाद कौसर ने आशंका जताई कि उनकी तकलीफें फिलहाल खत्म नहीं होने वाली हैं। उन्होंने कहा, ‘लोग आसानी से उस शख्स पर भरोसा नहीं करते जिसने एक दशक का वक्त जेल में बिताया हो। कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया लेकिन यह नहीं मानेंगे कि मैं बेकसूर हूं। मुझे उनका भरोसा वापस पाने के लिए दोबारा से संघर्ष करना होगा।’

वहीं, खान की पत्नी नजारा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि वह ऊपरवाले का अपने पति की वापसी के लिए शुक्रिया करती हैं। उनके मुताबिक, उन्हें भरोसा था कि खान एक दिन जरूर वापस लौटेंगे क्योंकि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया था। बता दें कि खान को बरेली स्थित अपनी दुकान से 10 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। यह जगह रामपुर से 70 किमी दूर स्थित है। पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था। खान ने बताया कि उनकी परिवार को दुकान बंद करनी पड़ी क्योंकि किसी भी सदस्य को वेल्डिंग का काम नहीं आता था।

खान ने बताया कि उनकी पत्नी कपड़े सिलने का काम करने लगीं लेकिन इससे सिर्फ खाने पीने का ही इंतजाम हो पाता था। बिल न भरने की वजह से उनके घर का बिजली कनेक्शन तक काट दिया गया। खान के बड़े भाई कमाल खान ने बताया कि उनके तीन बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ा क्योंकि वे फीस चुकाने में सक्षम नहीं थे। वहीं, खान के बहनोई मोहम्मद शहीन ने बताया कि ये 11 साल बेहद मुश्किल भरे रहे।

खान ने अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई जेल के अंदर पूरी की है। हालांकि, उन्हें लगता है कि इस बात का कोई फायदा नहीं होने वाला। उन्होंने कहा, ‘मुझे देखना है कि समाज मुझे लेकर कैसी प्रतिक्रिया देता है। मैंने अपनी जिंदगी का बेशकीमती वक्त गंवा दिया।’

बता दें कि 1 जनवरी 2008 के तड़के रामपुर कैंप पर हमला हुआ था। यूपी स्पेशल टास्क फोर्स ने मोहम्मद शरीफ, जंग बहादुर को यूपी से जबकि सबाउद्दीन को बिहार से गिरफ्तार किया। इसके अलावा, दो कथित पाकिस्तानी और लश्कर आतंकी इमरान शहजाद व मोहम्मद फारूख को पकड़ा गया। पुलिस का कहना था कि बहादुर और सबाउद्दीन ने दोनों पाकिस्तानियों को सीआरपीएफ कैंप तक ले गए और जब उन्होंने हमला किया तो वे बाहर पहरेदारी कर रहे थे।

साभार- जनसत्ता

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