कश्मीर में मौलिक अधिकारों के हनन का विरोध करते हुए IAS कन्नन गोपीनाथन ने दिया इस्तीफ़ा

Written by Anuj Shrivastava | Published on: August 25, 2019
केरल काडर के IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथान ने कश्मीर में लोगों की आज़ादी छिनने और वहां मानव अधिकारों के हनन की घटनाओं का विरोध करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।



पिछले लोकसभा चुनाव के वक़्त गोपीनाथन जब सिलवासा में कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे तब उन्होंने चुनाव आयोग से मौजूदा प्रशासन के बड़े अधिकारियों की शिकायत भी की थी। गोपीनाथन का आरोप था कि चुनाव परिणामों में फेरबदल करने के लिए उनपर दबाव बनाया जा रहा है। पर बजाए इसके कि चुनाव आयोग उनकी शिकायत पर ज़रूरी कदम उठाता और चुनाव ने निष्पक्ष होने पर ज़ोर देता, गोपीनाथन को ही उनके पद से हटा दिया गया। सिलवासा कलेक्टर के पद से हटाकर उन्हें एक कम महत्त्व के विभाग की ज़िम्मेदारी दे दी गई।

गोपीनाथन कन्नन तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने 2018 में केरल में आई भीषण बाढ़ के दौरान राहत सामग्री अपने कंधे पर रखकर लोगों तक पहुंचाई थी। उन्हें रिलीफ और रेस्क्यू ऑपरेशन में एक्टिव तरीके से मदद करते देखा गया था। उन्होंने प्रशासन की तरफ से केरल सीएम डिजास्टर रिलीफ फंड को एक करोड़ रुपये का चेक भी दिया था।

वे रिलीफ कैंप में आम आदमी की तरह सामान पहुंचाते नजर आए थे। एक साथी अफसर ने उनकी पहचान मीडिया से शेयर की थी। इसके बाद वे खबरों की हेडलाइन्स बने थे। उस दौरान पूरे देश में उनके इस कार्य की सराहना हुई थी। कन्नन ने केरल राज्य में कई अहम पदों पर काम किया है। वे पॉवर और अपरंपरागत ऊर्जा स्त्रोत विभाग के सचिव रहे हैं। कश्मीर काडर के शाह फैसल के बाद सबसे कम उम्र में इस्तीफा देने वाले दूसरे आईएएस अधिकारी हैं।

द क्विंट की ख़बर के मुताबिक़ एक मलियाली वेबसाईट को दिए इंटरव्यू में गोपीनाथन ने अपने इस्तीफ़े के बारे में विस्तार से बात की है। जिन बातों को गोपीनाथन ने अपने इस्तीफ़े का कारण बताया है वो बातें सारे देश को सौ-सौ बार पढ़नी चाहिये  

गोपीनाथान के कहा कि, "सवाल ये नहीं है कि मैं क्यों अपनी नौकरी से इस्तीफा दे रहा हूं, दरअसल पूछा ये जाना चाहिए कि मैं कैसे इस वक्त अपनी नौकरी में बना रहूं।"

"कोई पूछेगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जब एक पूरे राज्य पर प्रतिबंध लगा दिया, लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए, तब आप क्या कर रहे थे। तब मैं कह सकूंगा कि इसके विरोध में मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दिया था"

"मुझे नहीं लगता कि मेरे इस्तीफ़े से कोई फ़र्क पड़ेगा, पर सवाल उठेगा कि जब देश इतने कठिन दौर से गुज़र रहा था, तब आप क्या कर रहे थे। मैं ये नहीं कहना चाहता कि मैंने छुट्टी ली और पढ़ने अमेरिका चला गया। बेहतर है कि मैं नौकरी छोड़ दूं"

"मैंने सिविल सर्विस इसलिए जॉइन की थी ताकि मैं ख़ामोश किए जा चुके लोगों की आवाज़ बन सकूं, लेकिन यहां तो मैंने खुद अपनी ही आवाज़ खो दी"

"अगर मैं एक दिन के लिए भी जी सकूं, तो भी मैं आज़ाद रहकर सिर्फ ख़ुद की पसंद से रहना चाहूंगा"

गोपीनाथन के इस्तीफ़े और इस्तीफ़े के कारण में कही उनकी बातें मानव अधिकार हनन के मुद्दों पर हावी होती जा रही फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद की धूल को एक झटके में झाड़ देती हैं। 

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