भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है। केंद्र और राज्य सरकार से निराश पीड़ितों ने अब राष्ट्रपति को खत लिखकर जल्द मुआवजा दिलाने की मांग की है। घटना पीड़ितों के चार संगठनों के नेताओं ने मीडिया से बातचीत भी की और कहा कि केंद्र और प्रदेश की सरकारों को अतिरिक्त मुआवजे के लिए की गई सुधार याचिका में सुधार करना होगा।
बीजेपी व कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने हादसे में पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को 5 लाख रुपए मुआवजा देने की बात कही है। परंतु कोर्ट में हादसे में मृत व बीमार लोगों के आंकड़े सुधारने के बाद ही यह राशि दी जा सकती है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने मीडिया से बातचीत की है। बातचीत के दौरान नवाब खान ने प्रदेश सरकार पर उनके लिखे खत का कोई उत्तर न देने का आरोप लगाया है। नवाब खान ने कहा कि "हमने अपनी चिट्ठी में उन दस्तावेजी सबूतों का जिक्र किया था, जो यह दिखाते हैं कि दिसंबर 1984 में मिथाइल आइसो सायनेट गैस की वजह से पीड़ितों को पहुंचे नुकसान की सही जानकारी प्रदेश सरकार जानबूझकर छिपा रही है और सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह कर रही है। हमने उनसे गुजारिश कर कहा कि वे सरकारी दस्तावेजों और अस्पतालों के रिकार्ड से गैस कांड की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के सही आंकड़े जुटाएं। लेकिन आज तक चिट्ठी का जवाब नहीं आया।"
वहीं भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने भी ऐसा ही आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया है। रचना ढींगरा ने कहा कि "इस साल जनवरी में हमने भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री को भी चिट्ठी लिखकर मौतों और बीमारियों के सही आंकड़े जुटाने के साथ साथ इन आंकड़ों को रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को उपलब्ध करने की मांग की थी। पर आज तक जवाब नहीं मिला। इस मुद्दे पर मंत्री की चुप्पी रहस्यमय है क्योंकि उनका यह दावा है कि विपक्ष में रहते हुए उन्होंने विधानसभा में हर गैस पीड़ित को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग हमेशा उठाई है।"
सरकार के इस बेपरवाह रुख से परेशान संगठन के प्रमुखों ने बताया कि वे केंद्र व राज्य सरकारों के विरुद्ध सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे और साथ ही कानूनी स्तर पर इस लड़ाई को ले जायेंगे।
आपको बता दें कि करीब 31 वर्ष पहले 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल के एक कारखाने मिथाइल आइसो सायनेट गैस के रिसाव होने से हजारों लोग जहरीली गैस की चपेट में आ गए थे। एक ओर सरकारी स्त्रोत बताते हैं कि रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर 5000 हजार लोगों की मौत हो गई थी। वहीं दूसरी ओर गैर-कानूनी स्त्रोत मौत का यह आंकड़ा सरकारी आंकड़े से 3 गुना अधिक बताते हैं। इस हादसे के आरोपियों को दो साल की सजा सुनाई गई थी पर बाद में बेल पर उन्हें रिहा भी कर दिया गया था। हादसे के बाद जन्म लिए बच्चे आज भी किसी न किसी शारीरिक अपंगता का शिकार होते हैं।
फिलहाल भोपाल गैस त्रासदी के 31 वर्ष बाद भी पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिल पाया है। यह बहुत ही शर्म की बात है कि सरकार इतने सालों में भी हादसे में मारे जाने लोगों का हिसाब नहीं लगा पा रही है। ऐसे में अब शायद राष्ट्रपति ही इन पीड़ितों की आखिरी आस हैं।
बीजेपी व कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने हादसे में पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को 5 लाख रुपए मुआवजा देने की बात कही है। परंतु कोर्ट में हादसे में मृत व बीमार लोगों के आंकड़े सुधारने के बाद ही यह राशि दी जा सकती है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने मीडिया से बातचीत की है। बातचीत के दौरान नवाब खान ने प्रदेश सरकार पर उनके लिखे खत का कोई उत्तर न देने का आरोप लगाया है। नवाब खान ने कहा कि "हमने अपनी चिट्ठी में उन दस्तावेजी सबूतों का जिक्र किया था, जो यह दिखाते हैं कि दिसंबर 1984 में मिथाइल आइसो सायनेट गैस की वजह से पीड़ितों को पहुंचे नुकसान की सही जानकारी प्रदेश सरकार जानबूझकर छिपा रही है और सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह कर रही है। हमने उनसे गुजारिश कर कहा कि वे सरकारी दस्तावेजों और अस्पतालों के रिकार्ड से गैस कांड की वजह से हुई मौतों और बीमारियों के सही आंकड़े जुटाएं। लेकिन आज तक चिट्ठी का जवाब नहीं आया।"
वहीं भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने भी ऐसा ही आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया है। रचना ढींगरा ने कहा कि "इस साल जनवरी में हमने भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री को भी चिट्ठी लिखकर मौतों और बीमारियों के सही आंकड़े जुटाने के साथ साथ इन आंकड़ों को रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को उपलब्ध करने की मांग की थी। पर आज तक जवाब नहीं मिला। इस मुद्दे पर मंत्री की चुप्पी रहस्यमय है क्योंकि उनका यह दावा है कि विपक्ष में रहते हुए उन्होंने विधानसभा में हर गैस पीड़ित को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग हमेशा उठाई है।"
सरकार के इस बेपरवाह रुख से परेशान संगठन के प्रमुखों ने बताया कि वे केंद्र व राज्य सरकारों के विरुद्ध सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे और साथ ही कानूनी स्तर पर इस लड़ाई को ले जायेंगे।
आपको बता दें कि करीब 31 वर्ष पहले 3 दिसम्बर 1984 को भोपाल के एक कारखाने मिथाइल आइसो सायनेट गैस के रिसाव होने से हजारों लोग जहरीली गैस की चपेट में आ गए थे। एक ओर सरकारी स्त्रोत बताते हैं कि रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर 5000 हजार लोगों की मौत हो गई थी। वहीं दूसरी ओर गैर-कानूनी स्त्रोत मौत का यह आंकड़ा सरकारी आंकड़े से 3 गुना अधिक बताते हैं। इस हादसे के आरोपियों को दो साल की सजा सुनाई गई थी पर बाद में बेल पर उन्हें रिहा भी कर दिया गया था। हादसे के बाद जन्म लिए बच्चे आज भी किसी न किसी शारीरिक अपंगता का शिकार होते हैं।
फिलहाल भोपाल गैस त्रासदी के 31 वर्ष बाद भी पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिल पाया है। यह बहुत ही शर्म की बात है कि सरकार इतने सालों में भी हादसे में मारे जाने लोगों का हिसाब नहीं लगा पा रही है। ऐसे में अब शायद राष्ट्रपति ही इन पीड़ितों की आखिरी आस हैं।