यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है की देश की सेना के नाम पर वोट माँगे जा रहे हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद शायद यह पहला चुनाव हो रहा है जब कोई पार्टी भारतीय सेना का नाम अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) स्वतंत्रत भारत के इतिहास में पहली ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो सेना के बलिदान और आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्यवाहियों के नाम पर राजनीति कर रही है।
आम चुनाव 2019 में सत्तारूढ़ भाजपा के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिस पर वो चुनाव लड़ सकती। पिछले चुनाव में जो वादे किये थे, वो भी पूरे नहीं हुए थे। नौजवानों के लिए बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या हो गई है। दो करोड़ रोज़गार प्रति वर्ष का वादा सिर्फ़ एक जुमला साबित हुआ।
विमुद्रीकरण ने ग़रीब मज़दूर वर्ग को बेरोज़गार कर दिया और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने मध्यम और लघु उद्योग को ख़त्म कर दिया। काला धन भी वापस नहीं आया स्मार्ट सिटी बन नहीं सके। ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था इतनी ख़राब हो चुकी है कि रोज़ किसान आत्महत्या को मजबूर है।
पिछले चुनावों में हर रैली में विकास-विकास करने वाले नरेंद्र मोदी के पास जनता को दिखाने और बताने के लिए कुछ नहीं था। लेकिन भाजपा को चुनावों में जाने के लिए कोई मुद्दा तो चाहिए था। इस लिए नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने सेना का सहारा लिया और उसके नाम पर राजनीति शुरू कर दी।
पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ और केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के 40 जवान मारे गए।यह केंद्र सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता का नतीजा था। जिसकी वजह से भारत के 40 जवान आतंकवाद के शिकार हो गए। लेकिन सरकार ने अपनी सरकार की असफलता को स्वीकार नहीं किया, बल्कि इस हादसे को वोट हासिल करने का ज़रिया बना लिया।
भारतीय वायु सेना ने 26 फ़रवरी की सुबह पाकिस्तान के बलाकोट में आतंकी ठीकानो पर हवाई हमला किया। इसे पहले की इस हवाई हमले के बारे में वायु सेना के अधिकारियों की तरफ़ से कोई बयान आता, भारतीय मीडिया सक्रिय हो गया। सारी कोशिश यह की जाने लगी की सेना की कार्यवाही का श्रय मोदी को दे दिया जाए।
इसी के साथ भारतीय सेना का राजनीतिकरण शुरू हो गया। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मारे गए जवानो और सेना की कार्यवाहीयों के नाम पर वोट माँगने लगे!
पाकिस्तान में भारतीय वायुसेना के द्वारा की गए हवाई हमले के बाद प्रधानमंत्री ने पहली रैली को राजस्थान के चुरु में सम्बोधित किया। रैली के मंच पर पुलवामा में मारे गए जवानो की तस्वीरें थी। यह पहली बार हुआ की राजनीतिक मंच पर सेना के जवानो की तस्वीरें लगाई गई। मोदी ने बलाकोट हवाई हमले की बात करते हुए कहा की देश सुरक्षित हातो में है। इस तरह उन्होंने वायु सेना की कार्यवाही का श्रय लेने की कोशिश करी।
मोदी ने अप्रैल 09 को पहली बार वोट देने जा रहे युवाओं को महाराष्ट्र को सम्बोधित किया और उनसे पुलवामा में मारे गए जवानों के नाम पर वोट माँगे। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ की गई रैली में मोदी ने कहा की युवा अपना पहला वोट यादगार बनाए और अपना वोट सेना के उन जवानो को समर्पित करें जिन्होंने बलाकोट, पाकिस्तान में हवाई हमला किया और उन जवानों के नाम पर वोट करें जो पुलवामा में मारे गए हैं।
इस तरह मोदी ने सेना के बलिदान और आतंक विरोधी कार्यवाही दोनो के नाम पर वोट माँग कर सेना का अपने राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 31 मार्च को राजधानी दिल्ली के पास गाजियाबाद में एक रैली को संबोधित हुए बार-बार 'मोदीजी की सेना' शब्द का इस्तेमाल किया।योगी ने कहाँ “कांग्रेस के लोग आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते हैं और मोदी जी की सेना आतंकवादियों को गोली और गोला देती है”!
केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने अपने एक बयान में कहा है कि सेना बीजेपी के साथ खड़ी हुई है। भारतीय सेना के स्वयं अंग रह चुके पूर्व ओलंपियन राठौर ने जयपुर में 02 मई को कहा सारी सेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी है।
सेना के पूर्व सैनिक सेना के नाम पर राजनीति करने से नाराज़ हैं। पूर्व सैनिक कर्नल अवतार सिंह कहते हैं, “भारत की सेना मोदी की सेना नहीं है, सेना किसी नेता की नहीं देश की होती है”। कर्नल अवतार कहते हैं कि सेना का जवान हरी, सफ़ेद या नीली वर्दी देश की सुरक्षा के लिए पहनता है, नेताओ को देश की सुरक्षा करने वालों के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
पूर्व सैनिक कर्नल एफ.अहमद (फसीह) कहते है यह कहना बेबुनियाद है कि सेना मोदी की है, सेना लोकतांत्रिक सरकार और भारत के संविधान का कहा मानती है। कर्नल फसीह का कहना है की मोदी और उनकी पार्टी के लोग कुछ वोट के ख़ातिर सेना का इस्तेमाल राजनीति में कर रहे हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के बयान पर उन्होंने कहा सेना भाजपा के साथ नहीं देश के साथ खड़ी है।
उल्लेखनीय है सेना के राजनीतिकारण पर कई बार शिकायत होने के बावजूद चुनाव आयोग ने अभी तक मोदी के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाई नहीं करी है। हर शिकायत पर मोदी को क्लीन चिट देने के लिए चुनाव आयोग की भी निंदा हो रही है।
आम चुनाव 2019 में सत्तारूढ़ भाजपा के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिस पर वो चुनाव लड़ सकती। पिछले चुनाव में जो वादे किये थे, वो भी पूरे नहीं हुए थे। नौजवानों के लिए बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या हो गई है। दो करोड़ रोज़गार प्रति वर्ष का वादा सिर्फ़ एक जुमला साबित हुआ।
विमुद्रीकरण ने ग़रीब मज़दूर वर्ग को बेरोज़गार कर दिया और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने मध्यम और लघु उद्योग को ख़त्म कर दिया। काला धन भी वापस नहीं आया स्मार्ट सिटी बन नहीं सके। ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था इतनी ख़राब हो चुकी है कि रोज़ किसान आत्महत्या को मजबूर है।
पिछले चुनावों में हर रैली में विकास-विकास करने वाले नरेंद्र मोदी के पास जनता को दिखाने और बताने के लिए कुछ नहीं था। लेकिन भाजपा को चुनावों में जाने के लिए कोई मुद्दा तो चाहिए था। इस लिए नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने सेना का सहारा लिया और उसके नाम पर राजनीति शुरू कर दी।
पुलवामा में आतंकवादी हमला हुआ और केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के 40 जवान मारे गए।यह केंद्र सरकार के ख़ुफ़िया तंत्र की असफलता का नतीजा था। जिसकी वजह से भारत के 40 जवान आतंकवाद के शिकार हो गए। लेकिन सरकार ने अपनी सरकार की असफलता को स्वीकार नहीं किया, बल्कि इस हादसे को वोट हासिल करने का ज़रिया बना लिया।
भारतीय वायु सेना ने 26 फ़रवरी की सुबह पाकिस्तान के बलाकोट में आतंकी ठीकानो पर हवाई हमला किया। इसे पहले की इस हवाई हमले के बारे में वायु सेना के अधिकारियों की तरफ़ से कोई बयान आता, भारतीय मीडिया सक्रिय हो गया। सारी कोशिश यह की जाने लगी की सेना की कार्यवाही का श्रय मोदी को दे दिया जाए।
इसी के साथ भारतीय सेना का राजनीतिकरण शुरू हो गया। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मारे गए जवानो और सेना की कार्यवाहीयों के नाम पर वोट माँगने लगे!
पाकिस्तान में भारतीय वायुसेना के द्वारा की गए हवाई हमले के बाद प्रधानमंत्री ने पहली रैली को राजस्थान के चुरु में सम्बोधित किया। रैली के मंच पर पुलवामा में मारे गए जवानो की तस्वीरें थी। यह पहली बार हुआ की राजनीतिक मंच पर सेना के जवानो की तस्वीरें लगाई गई। मोदी ने बलाकोट हवाई हमले की बात करते हुए कहा की देश सुरक्षित हातो में है। इस तरह उन्होंने वायु सेना की कार्यवाही का श्रय लेने की कोशिश करी।
मोदी ने अप्रैल 09 को पहली बार वोट देने जा रहे युवाओं को महाराष्ट्र को सम्बोधित किया और उनसे पुलवामा में मारे गए जवानों के नाम पर वोट माँगे। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ की गई रैली में मोदी ने कहा की युवा अपना पहला वोट यादगार बनाए और अपना वोट सेना के उन जवानो को समर्पित करें जिन्होंने बलाकोट, पाकिस्तान में हवाई हमला किया और उन जवानों के नाम पर वोट करें जो पुलवामा में मारे गए हैं।
इस तरह मोदी ने सेना के बलिदान और आतंक विरोधी कार्यवाही दोनो के नाम पर वोट माँग कर सेना का अपने राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 31 मार्च को राजधानी दिल्ली के पास गाजियाबाद में एक रैली को संबोधित हुए बार-बार 'मोदीजी की सेना' शब्द का इस्तेमाल किया।योगी ने कहाँ “कांग्रेस के लोग आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते हैं और मोदी जी की सेना आतंकवादियों को गोली और गोला देती है”!
केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने अपने एक बयान में कहा है कि सेना बीजेपी के साथ खड़ी हुई है। भारतीय सेना के स्वयं अंग रह चुके पूर्व ओलंपियन राठौर ने जयपुर में 02 मई को कहा सारी सेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी है।
सेना के पूर्व सैनिक सेना के नाम पर राजनीति करने से नाराज़ हैं। पूर्व सैनिक कर्नल अवतार सिंह कहते हैं, “भारत की सेना मोदी की सेना नहीं है, सेना किसी नेता की नहीं देश की होती है”। कर्नल अवतार कहते हैं कि सेना का जवान हरी, सफ़ेद या नीली वर्दी देश की सुरक्षा के लिए पहनता है, नेताओ को देश की सुरक्षा करने वालों के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
पूर्व सैनिक कर्नल एफ.अहमद (फसीह) कहते है यह कहना बेबुनियाद है कि सेना मोदी की है, सेना लोकतांत्रिक सरकार और भारत के संविधान का कहा मानती है। कर्नल फसीह का कहना है की मोदी और उनकी पार्टी के लोग कुछ वोट के ख़ातिर सेना का इस्तेमाल राजनीति में कर रहे हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के बयान पर उन्होंने कहा सेना भाजपा के साथ नहीं देश के साथ खड़ी है।
उल्लेखनीय है सेना के राजनीतिकारण पर कई बार शिकायत होने के बावजूद चुनाव आयोग ने अभी तक मोदी के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाई नहीं करी है। हर शिकायत पर मोदी को क्लीन चिट देने के लिए चुनाव आयोग की भी निंदा हो रही है।