रायपुर। छत्तीसगढ़ में सुकमा ज़िले के पोलमपल्ली थानांतर्गत गोदेलगुड़ा गांव में 2 फ़रवरी फरवरी को एक महिला पोड़ियाम सुक्की की सीआरपीएफ के जवानों की गोली से मौत हो गई थी। पुलिस ने इस महिला को नक्सली बताते हुए मुठभेड़ बताया था जबकि ग्रामीणों ने इससे साफ इंकार कर दिया था। अब इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामला दर्ज किया है। पुलिस ने महिला को नक्सली बताया था, परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों और ग्रामीणों ने बताया कि मौत के बाद पुलिस महिला को जबरन नक्सलियों की वर्दी पहना रही थी।
इस मामले पर ग्रामीणों का कहना था कि पोड़ियाम सुक्की अपनी दो पड़ोसी महिलाओं के साथ हर रोज़ की तरह खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गई थी। तीनों आपस में सुर मिलाकर "रे रेले रेला रे" की धुन में लोकगीत गुनगुना रही थीं। गाँव से कोई पाँच-छः सौ मीटर दूर लगभग 30-40 जवानों ने उन्हें घेर लिया। बहुत नज़दीक से जवानों ने उनपर गोलियां दागनी शुरू की। महिलाएं चिल्लाती रहीं कि वे नक्सली नहीं हैं, गाँव में ही रहती हैं और लकड़ियाँ इकठ्ठा करने आई हैं। जांघ में गोली लगने से एक महिला कलमु घायल हुई और पोड़ियाम सुक्की की मृत्यु हो गई। पुलिस ने कहा कि ये सब नक्सलियों के साथ हुई मुटभेड़ के दौरान हुआ है, पर गाँव वालों का कहना है कि यहां कोई मुटभेड़ नहीं हुई, पुलिस ने जानबूझ कर गोलियां चलाई, और फिर मृतक महिला को जबरन वर्दी पहनने की कोशिश कर रहे थे।
प्रदेश के तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इस घटना के बाद घटनास्थल का दौरा किया और गाँव वालों से बातचीत की। समाजसेवी ममता शर्मा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई थी कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करे। ममता शर्मा ने जानकारी दी कि बुधवार 24 अप्रैल को NHRC ने इस मामले को पंजीबद्ध कर संज्ञान में ले लिया है। जिसकी केस संख्या उन्होंने 3038/4/26/2017 बताया है।
चश्मदीद गवाह का बयान
घटना के बाद अखबार दैनिक भास्कर के पत्रकार नीरज भदौरिया ने अपनी ख़बर में इस घटना की चश्मदीद गवाह पोड़ियाम हूँगी का बयान प्रकाशित किया था। अपने बयान में पोड़ियाम हूँगी ने बताया कि:-
“मैं, पोड़ियाम सुक्की और कलमु देवे सुबह 7 बजे गांव के पास के जंगल से लकड़ियाँ लेने एक साथ निकले थे। हम तीनों के हाथ में कुल्हाड़ी थी। हम गांव से पांच या छः सौ मीटर की दूरी पर ही पहुंचे थे कि अचानक हमें जवान नज़र आए, जवानों को देखने के बाद हम वापस गांव की ओर लौटने लगे। हम जैसे ही पीछे मुड़े एक गोली की आवाज़ आई। इसके बाद हम चिल्लाने लगे कि हम लकड़ी लेने आए हैं। मैं सबसे पीछे थी, मेरे आगे पोड़ियाम सुक्की और कलमु थी। इसके बाद एक गोली पोड़ियाम सुक्की को पीछे से ही लगी और वो गिर पड़ी इसके बाद एक गोली कलमु देवे को लगी। कलमु को सहारा देकर मैं उसे गाँव के पास लेकर आई। इस बीच पोड़ियाम सुक्की पानी-पानी चिल्ला रही थी। जब हम पोड़ियाम सुक्की के लिए पानी लेकर वापस गए तो कुछ जवान उसे वर्दी पहनाने की कोशिश कर रहे थे। गाँव वालों ने इसका विरोध किया तो जवानों ने उसे अस्पताल ले जाने की बात कही। इस दौरान भी सुक्की पानी मांग रही थी और हांथ हिला रही थी। फिर जवानों ने उसे झिल्ली (प्लास्टिक बैग) में बांधना शुरू किया तो हमने कहा कि झिल्ली में तो उसकी सांस रुक जाएगी। इस पूरी घटना के दौरान सिर्फ़ तीन गोलियां चली थीं, मुठभेड़ जैसी कोई बात नहीं हुई थी।”
दो महीने का राकेश अब अपनी माँ से कभी नहीं मिल पाएगा
सुक्की (मृतक) के पति देवा पोड़ियाम ने बताया कि जब ये घटना हुई तब वे मजदूरी करने आंध्र प्रदेश गए हुए थे। गाँव से फ़ोन पर किसी ने सूचना दी कि तुम्हारी पत्नी को पुलिस ने गोली मार दी है। वे देर शाम घर वापस पहुंचे। देवा ने कहा कि "मेरे चार बच्चे हैं, जिनमें सबसे छोटा सिर्फ़ दो महीने का है। इसे पालने में अब मुझे बहुत दिक्कत आ रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इसे गोद में रखूं या इसके पालन-पोषण के लिए मजदूरी करने जाऊं।"
बड़े उदास स्वर में देवा पोड़ियाम ये बात कहते हैं कि जो हो गया उस पर अब आगे वे कोई कार्यवाही नहीं चाहते क्योंकि ऐसी ढेरों घटनाओं में कभी भी किसी दोषी को सज़ा नहीं दी गई है। वे कहते हैं कि हम आदिवासियों के लिए इस तरह की घटनाएं अब आम बात हो चुकी हैं।
घटना का जायज़ा लेने गाँव पहुँची थीं सोनी सोरी
आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली सामजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी 15 सदस्यीय जाँच दल के साथ घटना के दूसरे रविवार को गोदेलगुड़ा गाँव पहुँची थीं। सोनी सोरी ने ग्रामीणों से बात की। गांव वालों ने उन्हें बताया कि सीआरपीएफ के जवान जिसे मुठभेड़ बता रहे हैं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जवानों ने गांव में पहुंचकर पोड़ियाम सुक्की पर फायरिंग की। उन्होंने तीन गोलियां चलाई, इसके बाद जवानों ने उसे नक्सली वर्दी पहना दी, ग्रामीणों ने इसका विरोध किया लेकिन उन्होंने एक न सुनी। जांच के दौरान सोनी सोरी की टीम को मौके पर तीन कुल्हाड़ियाँ भी मिलीं। उनका कहना है कि ग्रामीणों के बयान और घटना स्थल का हाल पुलिस द्वारा बताई कहानी पर सवालिया निशान लगाता हैं।
साक्ष्यों से हुई छेड़छाड़
गोदेलगुड़ा में गोलीबारी होने के दो दिन बाद तक महिलाओं की कुल्हाड़ी और अन्य सामान घटना स्थल पर ही पड़े हुए थे। मगर घटना स्थल से खून के धब्बे के निशान ग़ायब कर दिए गए। सामजिक कार्यकर्ताओं, आदिवासी समाज व ग्रामीणों का कहना है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ व मामले की जाँच में गड़बड़ी की जा रही है।
जब ये घटना हुई तब सुकमा के एसपी जितेन्द्र शुक्ला थे, उनके निर्देश पर ही इस घटना को नक्सली मुठभेड़ कहा गया था। स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी रहे एसआरपी कल्लूरी के समय से ही बस्तर के कई स्थानों पर पदस्थ रहे उक्त पुलिस अधिकारी पर फ़र्ज़ी मुठभेड़, फ़र्ज़ी आत्मसमर्पण और फ़र्ज़ी गिरफ्तारियों के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि फ़रवरी माह की इस घटना के बाद इनका तबादला दूसरी जगह कर दिया गया परन्तु तबादले की खानापूर्ति वाली कर्रवाई तो अक्सर भाजपा शासन में भी की जाती रही है। दोषियों को सज़ा न भाजपा के शासन में दी गई न अब काँग्रेस के शासन में दी जा रही है। घटना में शामिल जवान पुसवाड़ा सीआरपीएफ कैम्प के थे।
स्थानीय विधायक ने भी माना कि पुलिस ने निर्दोषों पर चलाई गोली
इस घटना को लेकर ग्रामीणों की शिकायत और तहकीकात के आधार पर नई सरकार के उद्योग मंत्री व स्थानीय विधायक कवासी लखमा ने ये स्वीकार किया था कि पुलिस ने निर्दोषों पर गोली चलाई। मंत्री कवासी लखमा ने ख़ुद ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पीड़ितों को मुआवज़ा देने की मांग की थी। मृतक को 5 लाख व घायलों को एक लाख मुआवज़ा देने की घोषणा भी सरकार ने की।सारे सबूत पुलिस के ख़िलाफ़ होने और सरकार के मंत्री द्वारा इतना महत्वपूर्ण बयान दिए जाने के बावजूद भी दोषियों पर कोई कड़ी कार्रवाई अब तक नहीं की गई है।
इस मामले पर ग्रामीणों का कहना था कि पोड़ियाम सुक्की अपनी दो पड़ोसी महिलाओं के साथ हर रोज़ की तरह खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गई थी। तीनों आपस में सुर मिलाकर "रे रेले रेला रे" की धुन में लोकगीत गुनगुना रही थीं। गाँव से कोई पाँच-छः सौ मीटर दूर लगभग 30-40 जवानों ने उन्हें घेर लिया। बहुत नज़दीक से जवानों ने उनपर गोलियां दागनी शुरू की। महिलाएं चिल्लाती रहीं कि वे नक्सली नहीं हैं, गाँव में ही रहती हैं और लकड़ियाँ इकठ्ठा करने आई हैं। जांघ में गोली लगने से एक महिला कलमु घायल हुई और पोड़ियाम सुक्की की मृत्यु हो गई। पुलिस ने कहा कि ये सब नक्सलियों के साथ हुई मुटभेड़ के दौरान हुआ है, पर गाँव वालों का कहना है कि यहां कोई मुटभेड़ नहीं हुई, पुलिस ने जानबूझ कर गोलियां चलाई, और फिर मृतक महिला को जबरन वर्दी पहनने की कोशिश कर रहे थे।
प्रदेश के तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इस घटना के बाद घटनास्थल का दौरा किया और गाँव वालों से बातचीत की। समाजसेवी ममता शर्मा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई थी कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करे। ममता शर्मा ने जानकारी दी कि बुधवार 24 अप्रैल को NHRC ने इस मामले को पंजीबद्ध कर संज्ञान में ले लिया है। जिसकी केस संख्या उन्होंने 3038/4/26/2017 बताया है।
चश्मदीद गवाह का बयान
घटना के बाद अखबार दैनिक भास्कर के पत्रकार नीरज भदौरिया ने अपनी ख़बर में इस घटना की चश्मदीद गवाह पोड़ियाम हूँगी का बयान प्रकाशित किया था। अपने बयान में पोड़ियाम हूँगी ने बताया कि:-
“मैं, पोड़ियाम सुक्की और कलमु देवे सुबह 7 बजे गांव के पास के जंगल से लकड़ियाँ लेने एक साथ निकले थे। हम तीनों के हाथ में कुल्हाड़ी थी। हम गांव से पांच या छः सौ मीटर की दूरी पर ही पहुंचे थे कि अचानक हमें जवान नज़र आए, जवानों को देखने के बाद हम वापस गांव की ओर लौटने लगे। हम जैसे ही पीछे मुड़े एक गोली की आवाज़ आई। इसके बाद हम चिल्लाने लगे कि हम लकड़ी लेने आए हैं। मैं सबसे पीछे थी, मेरे आगे पोड़ियाम सुक्की और कलमु थी। इसके बाद एक गोली पोड़ियाम सुक्की को पीछे से ही लगी और वो गिर पड़ी इसके बाद एक गोली कलमु देवे को लगी। कलमु को सहारा देकर मैं उसे गाँव के पास लेकर आई। इस बीच पोड़ियाम सुक्की पानी-पानी चिल्ला रही थी। जब हम पोड़ियाम सुक्की के लिए पानी लेकर वापस गए तो कुछ जवान उसे वर्दी पहनाने की कोशिश कर रहे थे। गाँव वालों ने इसका विरोध किया तो जवानों ने उसे अस्पताल ले जाने की बात कही। इस दौरान भी सुक्की पानी मांग रही थी और हांथ हिला रही थी। फिर जवानों ने उसे झिल्ली (प्लास्टिक बैग) में बांधना शुरू किया तो हमने कहा कि झिल्ली में तो उसकी सांस रुक जाएगी। इस पूरी घटना के दौरान सिर्फ़ तीन गोलियां चली थीं, मुठभेड़ जैसी कोई बात नहीं हुई थी।”
दो महीने का राकेश अब अपनी माँ से कभी नहीं मिल पाएगा
सुक्की (मृतक) के पति देवा पोड़ियाम ने बताया कि जब ये घटना हुई तब वे मजदूरी करने आंध्र प्रदेश गए हुए थे। गाँव से फ़ोन पर किसी ने सूचना दी कि तुम्हारी पत्नी को पुलिस ने गोली मार दी है। वे देर शाम घर वापस पहुंचे। देवा ने कहा कि "मेरे चार बच्चे हैं, जिनमें सबसे छोटा सिर्फ़ दो महीने का है। इसे पालने में अब मुझे बहुत दिक्कत आ रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इसे गोद में रखूं या इसके पालन-पोषण के लिए मजदूरी करने जाऊं।"
बड़े उदास स्वर में देवा पोड़ियाम ये बात कहते हैं कि जो हो गया उस पर अब आगे वे कोई कार्यवाही नहीं चाहते क्योंकि ऐसी ढेरों घटनाओं में कभी भी किसी दोषी को सज़ा नहीं दी गई है। वे कहते हैं कि हम आदिवासियों के लिए इस तरह की घटनाएं अब आम बात हो चुकी हैं।
घटना का जायज़ा लेने गाँव पहुँची थीं सोनी सोरी
आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली सामजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी 15 सदस्यीय जाँच दल के साथ घटना के दूसरे रविवार को गोदेलगुड़ा गाँव पहुँची थीं। सोनी सोरी ने ग्रामीणों से बात की। गांव वालों ने उन्हें बताया कि सीआरपीएफ के जवान जिसे मुठभेड़ बता रहे हैं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जवानों ने गांव में पहुंचकर पोड़ियाम सुक्की पर फायरिंग की। उन्होंने तीन गोलियां चलाई, इसके बाद जवानों ने उसे नक्सली वर्दी पहना दी, ग्रामीणों ने इसका विरोध किया लेकिन उन्होंने एक न सुनी। जांच के दौरान सोनी सोरी की टीम को मौके पर तीन कुल्हाड़ियाँ भी मिलीं। उनका कहना है कि ग्रामीणों के बयान और घटना स्थल का हाल पुलिस द्वारा बताई कहानी पर सवालिया निशान लगाता हैं।
साक्ष्यों से हुई छेड़छाड़
गोदेलगुड़ा में गोलीबारी होने के दो दिन बाद तक महिलाओं की कुल्हाड़ी और अन्य सामान घटना स्थल पर ही पड़े हुए थे। मगर घटना स्थल से खून के धब्बे के निशान ग़ायब कर दिए गए। सामजिक कार्यकर्ताओं, आदिवासी समाज व ग्रामीणों का कहना है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ व मामले की जाँच में गड़बड़ी की जा रही है।
जब ये घटना हुई तब सुकमा के एसपी जितेन्द्र शुक्ला थे, उनके निर्देश पर ही इस घटना को नक्सली मुठभेड़ कहा गया था। स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी रहे एसआरपी कल्लूरी के समय से ही बस्तर के कई स्थानों पर पदस्थ रहे उक्त पुलिस अधिकारी पर फ़र्ज़ी मुठभेड़, फ़र्ज़ी आत्मसमर्पण और फ़र्ज़ी गिरफ्तारियों के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि फ़रवरी माह की इस घटना के बाद इनका तबादला दूसरी जगह कर दिया गया परन्तु तबादले की खानापूर्ति वाली कर्रवाई तो अक्सर भाजपा शासन में भी की जाती रही है। दोषियों को सज़ा न भाजपा के शासन में दी गई न अब काँग्रेस के शासन में दी जा रही है। घटना में शामिल जवान पुसवाड़ा सीआरपीएफ कैम्प के थे।
स्थानीय विधायक ने भी माना कि पुलिस ने निर्दोषों पर चलाई गोली
इस घटना को लेकर ग्रामीणों की शिकायत और तहकीकात के आधार पर नई सरकार के उद्योग मंत्री व स्थानीय विधायक कवासी लखमा ने ये स्वीकार किया था कि पुलिस ने निर्दोषों पर गोली चलाई। मंत्री कवासी लखमा ने ख़ुद ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पीड़ितों को मुआवज़ा देने की मांग की थी। मृतक को 5 लाख व घायलों को एक लाख मुआवज़ा देने की घोषणा भी सरकार ने की।सारे सबूत पुलिस के ख़िलाफ़ होने और सरकार के मंत्री द्वारा इतना महत्वपूर्ण बयान दिए जाने के बावजूद भी दोषियों पर कोई कड़ी कार्रवाई अब तक नहीं की गई है।