बिलकिस बानो की दरियादिली, कहा- धनराशी का कुछ भाग अन्य पीड़ितों के लिए उपयोग होगा

Written by sabrang india | Published on: April 25, 2019
नई दिल्ली। गुजरात दंगो की पीड़िता बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मिले 50 लाख का निर्णय ले चुकी हैं । सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के दूसरे दिन बिलकिस बानो ने मीडिया से बातचीत की। बिलकिस ने कहा कि वो इस धनराशी के कुछ हिस्से को अपने जैसे अन्य सांप्रदायिक हिंसा और रेप पीड़ितो के उत्थान के लिए उपयोग करेंगी।




बातचीत के दौरान बिलकिस ने कहा  " सुप्रीम कोर्ट से मिले धन के कुछ हिस्से को मैं उन बहनो की मदद और उनकी शिक्षा के लिए देना चाह रही हूँ जो मेरी ही तरह संघर्ष कर रहीं हैं। इस पूंजी का नाम मैं अपनी तीन साल की बेटी "सलेहा" के नाम पर रखूंगी जिसे उस वक्त मार दिया गया था। उस भीड़ ने 2008 के दंगो के दौरान मेरा सामूहिक बलात्कार किया और मेरी तीन साल की बेटी समेत परिवार के छः सदस्यो की हत्या कर दी थी।  

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले में अपना निर्णय सुनाया था। कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये, सरकारी नौकरी और उनकी इच्छा अनुसार आवास स्थान दो सप्ताह के भीतर मुआवजे के तौर पर दिये जाने का आदेश दिया है। 

दिल्ली में रिपोर्टर को बानो ने बताया "हमें सलेहा का देह कभी नहीं मिला और न ही हम कभी उसका अंतिम संस्कार कर पाए। इसके लिए आज तक मुझे अफ़सोस है। उसकी रूह अब भी भटक रही है, मैं उसे सुकून देना चाह रही हूँ। शायद इस निर्णय के बाद उसे सुकून मिल सके। 

बानो ने कहा कि "उनके लिए बहुत बड़ी बात है कि कोर्ट में उनके दर्द को समझा है,  17 साल का बहुत लम्बा संघर्ष रहा है मेरा पर मुझे विश्वास था की मुझे न्याय मिलेगा, मुझे कानून और संविधान पर पूरा भरोसा था।" 

बानो ने अपनी दूसरी बेटी -हज़रा (16) के बारे में कहा - "बानो पाँच माह की गर्भवती थीं जब उनपर हमला हुआ और उनका बलात्कार किया गया। कुछ ही दिन पहले हज़रा ने तय किया की वो वकील बनेगी। मैं उसे पढ़ना चाहती हूँ जिससे वो वकील बन सुप्रीम कोर्ट में अन्य औरतो की मदद कर सके।"

आपको बता दे कि 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद से 250 किलोमीटर के दूरी पर स्थित रंधिकपुर गांव में बानो के परिवार पर एक भीड़ ने हमला कर दिया था। भीड़ ने उनकी 3 वर्ष की बेटी सहित छः सदस्यो की हत्या कर दी थी और उनके साथ दुष्कर्म किया था। जिसके बाद बानो ने 4 मार्च को पंचमहल के लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज करायी थी। 

इस मामले की सुनवाई अहमदाबाद से शुरु हुई थी, जिसके बाद सीबीआई ने अपनी चार्टशीट दाखिल की थी। पर गवाहों को नुकसान पहूँचाने या सीबीआई के सबूतो के साथ छेड़छाड़ की आशंका जताए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2004 को मामला मुंबई में ट्रांसफर कर दिया था।  

इसके बाद 21 जनवरी 2008 को मुंबई की सीजन अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई थी। जिसके खिलाफ आरोपियों ने सूप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जो मई 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने निरस्त करते हुए सज़ा को बरकरार रखा। आरोपियों में सात डॉक्टर और पुलिसकर्मी भी शामिल थे  जिनपर सबूतों से छेड़छाड़ करने का आरोप है। 
बानो ने विशेष याचिका के माध्यम से "अपने संवैधानिक अधिकारो के हनन, राज्य द्वारा संरक्षित होने का अधिकार, शारीरिक अखंडता के अधिकार और  न्याय प्राप्त करने के अधिकारों के बल पर यह लड़ाई लड़ी थी। 

बानो ने 17 साल बाद गुजरात के दाहोद जिले के देवगढ़ बरिया मतदान केंद्र पर  मतदान दिया। सूप्रीम कोर्ट के निर्णय की सूचना मिलने पर बानो वहाँ आई और कहा " सूप्रीम कोर्ट की मैं बहुत आभारी हूँ। अंततः हम भी एक व्यवस्थित जीवन जी सकेंगे। एक स्थान पर बस जीवन में आगे बढ़ पायेंगे। मेरे बच्चो भी आए दिन के स्थान वारिवर्तन से बच गए"।

 

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