मोदी का नमामि गंगे प्रोजेक्ट फेल, 5 साल में सबसे खतरनाक स्तर पर प्रदूषण- शोध

Written by sabrang india | Published on: March 18, 2019
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गंगा नदी के संरक्षण, स्वच्छता और कायाकल्प के लिए बनाया गया 20 हजार करोड़ का नमामि गंगे प्रॉजेक्ट फेल साबित होता नजर आ रहा है। शहर के संकट मोचन फाउंडेशन (एसएमएफ) द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। जो पानी की क्वॉलिटी का मूल्यांकन करने के लिए महत्वपूर्ण पैरामीटर माना जाता है। 

2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना ड्रीम प्रॉजेक्ट लॉन्च किया था तो इसकी डेडलाइन 2019 तय की गई थी। हालांकि पिछले साल केंद्रीय मंत्री ने इसकी डेडलाइन बढ़ाकर मार्च 2020 कर दिया। वाराणसी का एनजीओ एसएमएफ 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा लॉन्च किए गए गंगा ऐक्शन प्लान से गंगाजल की क्वॉलिटी का आकलन कर रहा था। गंगा की निगरानी कर रहे इस एनजीओ ने नियमित रूप से गंगा जल के सैंपल का विश्लेषण करने के लिए अपनी लैब भी बनाई। 

एसएमएफ की गंगा लैब द्वारा इकट्ठा किए गए डेटा में गंगा में बैक्टीरियल प्रदूषण उच्च होने की वजह से इसकी धुंधली तस्वीर सामने आई है। स्टडी के मुताबिक, पीने के पानी में कोलीफॉर्म ऑर्गनिज्म 50 एमपीएन/100 मिली या इससे कम होना चाहिए। वहीं नहाने के पानी में कोलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 मिली होना चाहिए। जबकि बीओडी में यह 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए। 

कोलीफॉर्म खतरनाक स्तर पर 
एसएमएफ के डेटा के अनुसार, गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म जनवरी 2016 में 4.5 लाख (अपस्ट्रीम) और 5.2 करोड़ (डाउनस्ट्रीम) से फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ और 14.4 करोड़ हो गया है। इसी तरह बीओडी लेवल भी जनवरी 2016 से फरवरी 2019 तक 46.8-54mg/l से 66-78mg/l हो गया है। एसएमएफ के अध्यक्ष और आईआईटी बीएचयू प्रफेसर वीएन मिश्रा ने बताया, 'गंगा जल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अधिक संख्या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।' हालांकि, इस अवधि में गंगा में मल के निर्वहन में मामूली सुधार देखा गया। 

गंगा बेसिन में कई समस्याएं हैं - पहला 25mhecta क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित है, इतने सारे नदी उप-बेसिन में कोई DAM STORAGE नहीं है, मानसून के बाद का अधिकांश पानी सिंचाई के लिए डायवर्ट किया जाता है, 200 मीटर से अधिक आबादी के लिए पीने योग्य पानी की आपूर्ति, भूजल निष्कर्षण - गंगा नदी में बहुत कम पानी बहता है।

पिछले 5 वर्षों में ग्राउंड वाटर एक्सट्रैक्शन में वृद्धि हुई है - मानव जनसंख्या में लगभग 10% की वृद्धि हुई है, मवेशियों की सुरक्षा के कारण पशु जनसंख्या में 25% से 30% की वृद्धि हुई है [आंकड़े उपलब्ध नहीं है] - ग्राउंड वाटर एक्सट्रैक्शन में वृद्धि के कारण 5 साल में बिजली की आपूर्ति में 30% की वृद्धि हुई है।

प्रत्येक बस्ती में छोटे पैमाने पर जल निकासी उपचार योजना के बजाय - गड्ढे में पानी ज्यादातर पड़ा सूखता रहता है - सीवेज और गोबर का उत्पादन पर्याप्त रूप से बढ़ जाता है, इसलिए गंगा प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहता है।
 

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