नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि रफाल सौदे पर उसके फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल दस्तावेज राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये संवेदनशील हैं और जिन लोगों ने इन दस्तावेजों की फोटोकापी बनाने की साजिश की, उन्होंने इसकी चोरी की और इन्हें लीक करके सुरक्षा को खतरे में डाला है।
रक्षा मंत्रालय ने इस हलफनामे में कहा है कि इन संवेदनशील दस्तावेजों के लीक होने की घटना के संबंध में 28 फरवरी को आंतरिक जांच शुरू हुई जो अभी भी जारी है और यह पता लगाना बेहद जरूरी है कि ये लीक कहां से हुए हैं।
मंत्रालय के इस हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा सलंग्न किए गए दस्तावेज लड़ाकू विमानों की युद्धक क्षमता से संबंधित हैं और इन्हें बड़े स्तर पर वितरित किया गया तथा यह देश के दुश्मन तथा विरोधियों के पास भी उपलब्ध हैं।
बता दें कि इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवन्त सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी तथा कार्यकर्ता व अधिवक्ता प्रशांत भूषण याचिकाकर्ता हैं।
रक्षा सचिव संजय मित्रा द्वारा दाखिल इस हलफनामे में कहा गया है, ‘इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।’
उसमें कहा गया है, ‘केंद्र सरकार की सहमति, अनुमति या सम्मति के बगैर, जिन्होंने इन संवेदनशील दस्तावेजों की फोटो प्रतियां करने और इन्हें पुनर्विचार याचिकाओं के साथ संलग्न करने की साजिश रची है और ऐसा करके ऐसे दस्तावेजों की अनधिकृत तरीके से फोटो प्रति बनाकर चोरी की है… उन्होंने देश की सार्वभौमिकता, सुरक्षा और दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्तों को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित किया है।’
यह हलफनामा इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने छह मार्च को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आरोप लगाया था कि पुनर्विचार याचिका उन दस्तावेजों पर आधारित है जो रक्षा मंत्रालय से चुराए गए हैं।
हालांकि, वेणुगोपाल ने दो दिन बाद दावा किया था कि रफाल दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी नहीं किए गए थे बल्कि शीर्ष अदालत में उनके कहने का तात्पर्य यह था कि याचिकाकर्ताओं ने आवेदन में ‘मूल की फोटोप्रतियां’ इस्तेमाल की हैं जिन्हें सरकार गोपनीय मानती है।
हलफनामे में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि फ्रांस और दूसरों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों के संबंध में हुए केंद्र के विभिन्न समझौतों में गोपनीयता परिकल्पित थी।
इसमें कहा गया है, ‘केंद्र गोपनीयता बना कर रखता है लेकिन सिन्हा, शौरी और भूषण संलग्न किये गये दस्तावेजों को आधार बना रहे हैं और इसलिए वे संवेदनशील जानकारी लीक करने के दोषी हैं, जो समझौते की शर्तों का हनन करते हैं।’
केंद्र ने कहा है कि जिन्होंने इस लीक की साजिश की वे अनधिकृत तरीके से फोटोकापी करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले संवेदनशील सरकारी दस्तावेजों को लीक करने के अपराध सहित भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराधों के दोषी हैं।
हलफनामे में कहा गया है, ‘इन मामलों की अब आंतरिक जांच की जा रही है जो 28 फरवरी को शुरू हुई और इस समय प्रगति पर है। खासकर, केंद्र सरकार के लिए यह पता लगाना बहुत ही जरूरी है कि ये लीक कहां से हुआ ताकि भविष्य में शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया की पवित्रता बनाये रखी जाये।’
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष रफाल मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह हलफनामा भी सामने आएगा।
केंद्र ने न्यायालय में जोर देकर कहा है कि सिन्हा, शौरी और भूषण याचिकाकर्ता राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा से संबधित मामले में आंतरिक गोपनीय वार्ता की चुनिंदा तौर पर और अधूरी तस्वीर पेश करने की मंशा से अनधिकृत रूप से प्राप्त इन दस्तावेजों का इस्तेमाल न्यायालय को गुमराह करने के लिए कर रहे हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश दस्तावेज यह सामने लाने में विफल रहे हैं कि किस तरह से मुद्दों पर विचार किया गया और इन्हें हल किया गया तथा सक्षम प्राधिकारियों से आवश्यक मंजूरी प्राप्त की गई।
याचिकाकर्ताओं द्वारा अधूरे तथ्यों और रिकार्ड को चुनकर पेश करने में उनकी मंशा शीर्ष अदालत को गलत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गुमराह करने की है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित के लिये बहुत ही नुकसानदेह है।
रक्षा मंत्रालय ने हलफनामे में यह भी कहा है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षा (कैग) की 2019 की भारतीय वायु सेना की कार्य निष्पादन आडिट रिपोर्ट संख्या-3 संसद में पेश की जा चुकी है और यह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
हलफनामे में कहा गया है कि याचिका में जिन दस्तावेजों को आधार बनाया गया है वे एक श्रेणी के हैं जिनके लिए भारत सरकार भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 123 और 124 के अंतर्गत विशेषाधिकार दावा करने की हकदार है।
सरकार का यह भी कहना है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अनधिकृत रूप से पेश दस्तावेज सूचना के अधिकार कानून के तहत भी सार्वजनिक नहीं किए जा सकते और याचिकाकर्ताओं को भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय की स्पष्ट अनुमति के बगैर न्यायालय के समक्ष पेश करने का कोई अधिकार नहीं है।
पुनर्विचार याचिकाओं के समर्थन में लगाए गए दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा करते समय केंद्र ने कहा है कि चूंकि उन्होंने इन दस्तावेजों को अनधिकृत और गैरकानूनी तरीके से पेश किया है, इसलिए केंद्र के लिए इन दस्तावेजों को रिकार्ड से हटाने का अनुरोध करना अनिवार्य हो गया है।
रक्षा मंत्रालय ने इस हलफनामे में कहा है कि इन संवेदनशील दस्तावेजों के लीक होने की घटना के संबंध में 28 फरवरी को आंतरिक जांच शुरू हुई जो अभी भी जारी है और यह पता लगाना बेहद जरूरी है कि ये लीक कहां से हुए हैं।
मंत्रालय के इस हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा सलंग्न किए गए दस्तावेज लड़ाकू विमानों की युद्धक क्षमता से संबंधित हैं और इन्हें बड़े स्तर पर वितरित किया गया तथा यह देश के दुश्मन तथा विरोधियों के पास भी उपलब्ध हैं।
बता दें कि इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवन्त सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी तथा कार्यकर्ता व अधिवक्ता प्रशांत भूषण याचिकाकर्ता हैं।
रक्षा सचिव संजय मित्रा द्वारा दाखिल इस हलफनामे में कहा गया है, ‘इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।’
उसमें कहा गया है, ‘केंद्र सरकार की सहमति, अनुमति या सम्मति के बगैर, जिन्होंने इन संवेदनशील दस्तावेजों की फोटो प्रतियां करने और इन्हें पुनर्विचार याचिकाओं के साथ संलग्न करने की साजिश रची है और ऐसा करके ऐसे दस्तावेजों की अनधिकृत तरीके से फोटो प्रति बनाकर चोरी की है… उन्होंने देश की सार्वभौमिकता, सुरक्षा और दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्तों को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित किया है।’
यह हलफनामा इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने छह मार्च को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आरोप लगाया था कि पुनर्विचार याचिका उन दस्तावेजों पर आधारित है जो रक्षा मंत्रालय से चुराए गए हैं।
हालांकि, वेणुगोपाल ने दो दिन बाद दावा किया था कि रफाल दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी नहीं किए गए थे बल्कि शीर्ष अदालत में उनके कहने का तात्पर्य यह था कि याचिकाकर्ताओं ने आवेदन में ‘मूल की फोटोप्रतियां’ इस्तेमाल की हैं जिन्हें सरकार गोपनीय मानती है।
हलफनामे में रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि फ्रांस और दूसरों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों के संबंध में हुए केंद्र के विभिन्न समझौतों में गोपनीयता परिकल्पित थी।
इसमें कहा गया है, ‘केंद्र गोपनीयता बना कर रखता है लेकिन सिन्हा, शौरी और भूषण संलग्न किये गये दस्तावेजों को आधार बना रहे हैं और इसलिए वे संवेदनशील जानकारी लीक करने के दोषी हैं, जो समझौते की शर्तों का हनन करते हैं।’
केंद्र ने कहा है कि जिन्होंने इस लीक की साजिश की वे अनधिकृत तरीके से फोटोकापी करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले संवेदनशील सरकारी दस्तावेजों को लीक करने के अपराध सहित भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराधों के दोषी हैं।
हलफनामे में कहा गया है, ‘इन मामलों की अब आंतरिक जांच की जा रही है जो 28 फरवरी को शुरू हुई और इस समय प्रगति पर है। खासकर, केंद्र सरकार के लिए यह पता लगाना बहुत ही जरूरी है कि ये लीक कहां से हुआ ताकि भविष्य में शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया की पवित्रता बनाये रखी जाये।’
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष रफाल मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह हलफनामा भी सामने आएगा।
केंद्र ने न्यायालय में जोर देकर कहा है कि सिन्हा, शौरी और भूषण याचिकाकर्ता राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा से संबधित मामले में आंतरिक गोपनीय वार्ता की चुनिंदा तौर पर और अधूरी तस्वीर पेश करने की मंशा से अनधिकृत रूप से प्राप्त इन दस्तावेजों का इस्तेमाल न्यायालय को गुमराह करने के लिए कर रहे हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश दस्तावेज यह सामने लाने में विफल रहे हैं कि किस तरह से मुद्दों पर विचार किया गया और इन्हें हल किया गया तथा सक्षम प्राधिकारियों से आवश्यक मंजूरी प्राप्त की गई।
याचिकाकर्ताओं द्वारा अधूरे तथ्यों और रिकार्ड को चुनकर पेश करने में उनकी मंशा शीर्ष अदालत को गलत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए गुमराह करने की है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित के लिये बहुत ही नुकसानदेह है।
रक्षा मंत्रालय ने हलफनामे में यह भी कहा है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षा (कैग) की 2019 की भारतीय वायु सेना की कार्य निष्पादन आडिट रिपोर्ट संख्या-3 संसद में पेश की जा चुकी है और यह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
हलफनामे में कहा गया है कि याचिका में जिन दस्तावेजों को आधार बनाया गया है वे एक श्रेणी के हैं जिनके लिए भारत सरकार भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 123 और 124 के अंतर्गत विशेषाधिकार दावा करने की हकदार है।
सरकार का यह भी कहना है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अनधिकृत रूप से पेश दस्तावेज सूचना के अधिकार कानून के तहत भी सार्वजनिक नहीं किए जा सकते और याचिकाकर्ताओं को भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय की स्पष्ट अनुमति के बगैर न्यायालय के समक्ष पेश करने का कोई अधिकार नहीं है।
पुनर्विचार याचिकाओं के समर्थन में लगाए गए दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा करते समय केंद्र ने कहा है कि चूंकि उन्होंने इन दस्तावेजों को अनधिकृत और गैरकानूनी तरीके से पेश किया है, इसलिए केंद्र के लिए इन दस्तावेजों को रिकार्ड से हटाने का अनुरोध करना अनिवार्य हो गया है।