वैसे तो आज ज्यादातर अखबारों में लीड भारतीय वायु सेना के प्रमुख का बयान है कि हम हमला करते हैं लाशें नहीं गिनते हैं। कल के अखबारों में अमित शाह के हवाले से छपा था कि भारतीय हवाई हमले में 250 लोग मरे। कहने की जरूरत नहीं है कि इसका कोई आधार नहीं है उन्होंने कहा और छप गया। हमले वाले दिन सूत्रों के हवाले से कुछ अखबारों ने अलग-अलग आंकड़े दिए गए थे। मरने वालों की संख्या के बारे में आधिकारिक तौर पर ना तब कुछ कहा गया था और न अभी तक कुछ गया है। वैसे तो हमला किया गया यही पर्याप्त था। लेकिन अमित शाह ने कहा कि 250 लोग मरे हैं तो उनसे पूछा जाना चाहिए था कि उन्होंने किस आधार पर कहा। अगर कोई ठोस आधार था तो उन्हें खुद ही बताना था। और आज के समय में यह मुश्किल भी नहीं है। ट्वीट भर तो करना था। फिर भी, ना अमित शाह ने बताया ना किसी ने पूछा। विपक्ष ने पूछा है उसकी खबर जरूर है। पर गोदी मीडिया?
इसका कारण यही है कि चुनावी लाभ लेने के लिए अखबारों (गोदी मीडिया) में पुलवामा के 40 के बदले, तेरहवीं से पहले, घुसकर मारा जैसी बातों के साथ 300 से 600 का दावा सूत्रों के हवाले से छपवाया गया। और बात बढ़ते हुए कल ऐसी स्थितियां बनी कि सूत्र अमित शाह हैं - यह साफ हो गया। बचाव के लिए कल शाम में नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एनटीआओ) के सर्विलांस से यह खुलासा होने की बात फैलाई गई कि जब बालाकोट में भारतीय वायुसेना ने हवाई हमला किया उस समय वहां पर 280 से ज्यादा मोबाइल फोन एक्टिव थे। इसलिए वहां 250 लोग तो मौजूद होंगे ही और चूंकि वायु सेना अध्यक्ष ने कहा है लक्ष्य पूरा हुआ इसलिए 250 मारे गए। इस तरह मीडिया ने अमित शाह जैसे सूत्र की साख बनाने की कोशिश की।
ज्यादातर अखबारों से अलग, हिन्दुस्तान टाइम्स में आज लीड है, "पाकिस्तान में हवाई हमले के सबूत के लिए विपक्ष का कोरस (एक सुर में मांग) बढ़ा"। अखबार ने इसके साथ कांग्रेस नेता कपिल सिबल और पी चिदंबरम की मांग को फोटो के साथ प्रमुखता से छापा है। सिबल ने कहा है कि मोदी जी को जवाब देना चाहिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट कर रहा है कि आतंकवादियों को नुकसान होने का कोई सबूत नहीं है। चिदंबरम ने कहा है कि मैं सरकार की बात मानने को तैयार हूं पर अगर हम चाहते हैं कि दुनिया हमपर यकीन करे तो सरकार को कोशिश करनी चाहिए न कि विपक्ष की निन्दा करना चाहिए। अखबार ने इस पर प्रधानमंत्री का जवाब भी फोटो के साथ प्रमुखता से छापा है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारतीय राजनेताओं की बातें पाकिस्तानी अखबारों में सुर्खियां बनती हैं और इस पर वहां संसद में चर्चा होती है। क्या आप ऐसी चीजें कहेंगे जिसकी प्रशंसा पाकिस्तान करे। भारत की सेना ने हिम्मत दिखाई। मैं लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकता; मेरा स्वभाव है कि मैं हर खतरे पर प्रतिक्रिया करता हूं (यह शायद चुन-चुन कर बदला लेने वाले बयान की अंग्रेजी है जिसे मैंने अंग्रेजी से हिन्दी कर दिया है)। इसके अलावा, नवभारत टाइम्स के मुताबिक प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि, सेना पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन कुछ लोगों को उससे तकलीफ होती है। और इसके साथ ही यह भी कि, ... आतंक की जड़ पाकिस्तान में है, इसका जड़ से इलाज होगा। .... अगर एक काम पूरा हो जाता है तो हमारी सरकार सोती नहीं है .... अब हम घर में घुसकर मारेंगे।
वीर रस से ओतप्रोत एक और शीर्षक नवोदय टाइम्स में है। मोदी बोले चुन-चुन कर हिसाब लेना मेरी फितरत। खबर के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकी पाताल में भी छिपे हों, मैं छोड़ने वाला नहीं हूं। कब तक निर्दोष लोगों को मारने देंगे। इस तरह, आज के अखबारों से साफ है कि प्रधानमंत्री मुद्दा छोड़ने वाले नहीं हैं, देश का मीडिया उनसे या पार्टी से सवाल नहीं करेगा, वे चाहते हैं कि विपक्ष ऐसी बात न करे जो पाकिस्तान के काम आए और वहां के अखबारों में सुर्खियां बने। संक्षेप में वे या सरकार या उनकी पार्टी के अध्यक्ष जो कहें उसे मान लिया जाए और उन्हें चुनाव जीतने दिया जाए। यह सब होगा कि नहीं - भविष्य बताएगा पर फिलहाल सवाल यह है कि विदेशी मीडिया पाकिस्तान के पक्ष में है या भारत के खिलाफ है।
समझने के लिए भारतीय वायु सेना के हमले में कितने मरे या मरे भी कि नहीं के मुद्दे पर आता हूं। मैंने पहले ही दिन कोलकाता के द टेलीग्राफ में रायटर की खबर पढ़ी थी कि हमले में पाकिस्तान का एक नागरिक मारा गया जो अपने घर में सो रहा था। भारत सरकार ने मरने वालों की संख्या बताई नहीं है और चाहती है कि मीडिया की रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया जाए। सेना पर उंगली न उठाई जाए। जबकि उंगली सेना पर उठाई ही नहीं जा रही है। सवाल तो सरकार से पूछा जा रहा है। विपक्ष पूछ रहा है मीडिया तो पूछ ही नहीं रहा है। भारतीय मीडिया और गैर सरकारी सूत्रों के दावों से पाकिस्तान में जो हुआ उसका संतोषजनक सबूत गोदी मीडिया तो नहीं दे रहा है कुछ फर्जी फोटो छापे थे जिसे बीबीसी ने गलत बता दिया। सवाल उठता है कि भारी नुकसान हुआ है तो तस्वीर क्यों नहीं आ रही है? क्या विदेशी मीडिया पाकिस्तान का गोदी मीडिया हो गया है?
साथ की तस्वीर 2 मार्च के नया इंडिया की है। इसमें बताया गया है कि हवाई हमले का नुकसान दिखाने के लिए फर्जी फोटुओं का इस्तेमाल किया गया था और यह दिलचस्प है कि आज ही ये फोटुएं व्हाट्सऐप पर मीडिया वालों के एक समूह में एक साथी मीडिया वाले ने ही भेजी है। दूसरी ओर, गोदी मीडिया तो लाचार है, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ऐसी तस्वीर क्यों नहीं आ रही है और आई होती तो गोदी मीडिया छोड़ता?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और मीडिया समीक्षक हैं)
इसका कारण यही है कि चुनावी लाभ लेने के लिए अखबारों (गोदी मीडिया) में पुलवामा के 40 के बदले, तेरहवीं से पहले, घुसकर मारा जैसी बातों के साथ 300 से 600 का दावा सूत्रों के हवाले से छपवाया गया। और बात बढ़ते हुए कल ऐसी स्थितियां बनी कि सूत्र अमित शाह हैं - यह साफ हो गया। बचाव के लिए कल शाम में नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एनटीआओ) के सर्विलांस से यह खुलासा होने की बात फैलाई गई कि जब बालाकोट में भारतीय वायुसेना ने हवाई हमला किया उस समय वहां पर 280 से ज्यादा मोबाइल फोन एक्टिव थे। इसलिए वहां 250 लोग तो मौजूद होंगे ही और चूंकि वायु सेना अध्यक्ष ने कहा है लक्ष्य पूरा हुआ इसलिए 250 मारे गए। इस तरह मीडिया ने अमित शाह जैसे सूत्र की साख बनाने की कोशिश की।
ज्यादातर अखबारों से अलग, हिन्दुस्तान टाइम्स में आज लीड है, "पाकिस्तान में हवाई हमले के सबूत के लिए विपक्ष का कोरस (एक सुर में मांग) बढ़ा"। अखबार ने इसके साथ कांग्रेस नेता कपिल सिबल और पी चिदंबरम की मांग को फोटो के साथ प्रमुखता से छापा है। सिबल ने कहा है कि मोदी जी को जवाब देना चाहिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट कर रहा है कि आतंकवादियों को नुकसान होने का कोई सबूत नहीं है। चिदंबरम ने कहा है कि मैं सरकार की बात मानने को तैयार हूं पर अगर हम चाहते हैं कि दुनिया हमपर यकीन करे तो सरकार को कोशिश करनी चाहिए न कि विपक्ष की निन्दा करना चाहिए। अखबार ने इस पर प्रधानमंत्री का जवाब भी फोटो के साथ प्रमुखता से छापा है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारतीय राजनेताओं की बातें पाकिस्तानी अखबारों में सुर्खियां बनती हैं और इस पर वहां संसद में चर्चा होती है। क्या आप ऐसी चीजें कहेंगे जिसकी प्रशंसा पाकिस्तान करे। भारत की सेना ने हिम्मत दिखाई। मैं लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकता; मेरा स्वभाव है कि मैं हर खतरे पर प्रतिक्रिया करता हूं (यह शायद चुन-चुन कर बदला लेने वाले बयान की अंग्रेजी है जिसे मैंने अंग्रेजी से हिन्दी कर दिया है)। इसके अलावा, नवभारत टाइम्स के मुताबिक प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि, सेना पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन कुछ लोगों को उससे तकलीफ होती है। और इसके साथ ही यह भी कि, ... आतंक की जड़ पाकिस्तान में है, इसका जड़ से इलाज होगा। .... अगर एक काम पूरा हो जाता है तो हमारी सरकार सोती नहीं है .... अब हम घर में घुसकर मारेंगे।
वीर रस से ओतप्रोत एक और शीर्षक नवोदय टाइम्स में है। मोदी बोले चुन-चुन कर हिसाब लेना मेरी फितरत। खबर के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकी पाताल में भी छिपे हों, मैं छोड़ने वाला नहीं हूं। कब तक निर्दोष लोगों को मारने देंगे। इस तरह, आज के अखबारों से साफ है कि प्रधानमंत्री मुद्दा छोड़ने वाले नहीं हैं, देश का मीडिया उनसे या पार्टी से सवाल नहीं करेगा, वे चाहते हैं कि विपक्ष ऐसी बात न करे जो पाकिस्तान के काम आए और वहां के अखबारों में सुर्खियां बने। संक्षेप में वे या सरकार या उनकी पार्टी के अध्यक्ष जो कहें उसे मान लिया जाए और उन्हें चुनाव जीतने दिया जाए। यह सब होगा कि नहीं - भविष्य बताएगा पर फिलहाल सवाल यह है कि विदेशी मीडिया पाकिस्तान के पक्ष में है या भारत के खिलाफ है।
समझने के लिए भारतीय वायु सेना के हमले में कितने मरे या मरे भी कि नहीं के मुद्दे पर आता हूं। मैंने पहले ही दिन कोलकाता के द टेलीग्राफ में रायटर की खबर पढ़ी थी कि हमले में पाकिस्तान का एक नागरिक मारा गया जो अपने घर में सो रहा था। भारत सरकार ने मरने वालों की संख्या बताई नहीं है और चाहती है कि मीडिया की रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया जाए। सेना पर उंगली न उठाई जाए। जबकि उंगली सेना पर उठाई ही नहीं जा रही है। सवाल तो सरकार से पूछा जा रहा है। विपक्ष पूछ रहा है मीडिया तो पूछ ही नहीं रहा है। भारतीय मीडिया और गैर सरकारी सूत्रों के दावों से पाकिस्तान में जो हुआ उसका संतोषजनक सबूत गोदी मीडिया तो नहीं दे रहा है कुछ फर्जी फोटो छापे थे जिसे बीबीसी ने गलत बता दिया। सवाल उठता है कि भारी नुकसान हुआ है तो तस्वीर क्यों नहीं आ रही है? क्या विदेशी मीडिया पाकिस्तान का गोदी मीडिया हो गया है?
साथ की तस्वीर 2 मार्च के नया इंडिया की है। इसमें बताया गया है कि हवाई हमले का नुकसान दिखाने के लिए फर्जी फोटुओं का इस्तेमाल किया गया था और यह दिलचस्प है कि आज ही ये फोटुएं व्हाट्सऐप पर मीडिया वालों के एक समूह में एक साथी मीडिया वाले ने ही भेजी है। दूसरी ओर, गोदी मीडिया तो लाचार है, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ऐसी तस्वीर क्यों नहीं आ रही है और आई होती तो गोदी मीडिया छोड़ता?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और मीडिया समीक्षक हैं)