अद्भुत सरकार है यह। ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक की कि देश के लोगों का दिमाग घूम गया है। कहां मारा गया, किसे मारा गया और कितने मारे गए। जिस पार्टी की सरकार है उसका मुखिया कह रहा है कि पकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला कर ढाई सौ से ज्यादा आतंकवादी मार गिराए गए। दूसरी तरफ पार्टी अध्यक्ष के इस दावे की हवा खुद सरकार के केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने ही निकाल दी। केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने कहा है कि इस हमले का उद्देश्य मानवीय क्षति पहुंचाना नहीं बल्कि एक संदेश देना था कि भारत दुश्मन के क्षेत्र में अंदर दूर तक घुसकर प्रहार कर सकता है।
अहलूवालिया ने कहा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही किसी सरकारी प्रवक्ता ने हवाई हमले के हताहतों पर कोई आंकड़ा दिया है। बल्कि यह तो भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया ही था जहां मारे गए आतंकवादियों की अपुष्ट संख्या की चर्चा हो रही थी। उन्होंने शनिवार को सिलीगुड़ी में संवाददाताओं से सवाल किया कि हमने भारतीय मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें देखी हैं और यह भी देखा कि मोदी जी ने क्या कहा था। यह कहकर उन्होंने भाजपा के चुनावी गुब्बारे की हवा ही निकाल दी है। हो सकता है वे कल को खंडन कर दें पर जो फजीहत वे सरकार की कर चुके हैं उसकी भरपाई संभव नहीं है। अब सभी सरकार की इस कार्रवाई को शक की नजर से देखने लगे हैं।
इससे पहले विदेश सचिव ने इस मामले पर गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया। दरअसल रायटर्स, बीबीसी और अल जजीरा आदि की रपट के बाद सरकार घिर गई है। सरकार सिर्फ इसलिए घिरी क्योंकि वह सेना के पराक्रम को अपने चुनावी पराक्रम में बदलना चाहती थी। वर्ना हमले के दस बारह घंटे बाद ही यह कह सकती थी कि इस हमले का मकसद सिर्फ पकिस्तान को सांकेतिक चेतावनी देना था, किसी को मारना नहीं। इससे सरकार की प्रतिष्ठा कम नहीं होती।
दरअसल इस हवाई हमले की नाकामी हमारे ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी है दूसरे यह हमारी विदेश नीति की भी नाकामी है। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर में हल्ला नहीं मचाया होता कि भारत पकिस्तान पर कुछ बड़ा करने जा रहा है तो शायद बालाकोट के आतंकी शिविर खाली नहीं मिलते। ट्रंप को इस मामले में डालने का यह बड़ा नुकसान हुआ। दूसरे जिस कश्मीर को हम दो देशों का मुद्दा मानते आएं हैं वह अब पंचायती हुक्का बन चुका है। अब अमेरिका हर बातचीत में दखल भी देगा। यह विदेश नीति में हुए बदलाव का नतीजा है। ओआईसी में बची खुची कसर निकल गई जिसने अपने प्रस्ताव में भारत को कश्मीर में आतंक फैलाने वाला देश घोषित कर दिया। सुषमा स्वराज के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात क्या होगी। चीन किस तरफ है यह सभी को पता है। दरअसल पकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थित के चलते कई देशों की जरुरत बना हुआ है। जिसमें चीन सबसे ऊपर है तो अमेरिका भी उसके बाद ही है। यह बात समझनी चाहिए। ऐसे में बहुत संभल-संभल कर कदम रखने की जरुरत थी।
पर मोदी के लिए चुनाव सबसे ऊपर है। जब सीमा पर बम गोला चल रहा था तो भी वे देश में बूथ मजबूत करने में जुटे थे। जब पुलवामा हमला हुआ तो भी वे शूटिंग और चुनाव प्रचार में लगे थे। जब सैनिक का शव पटना आ रहा था तो भी वे रैली में ही थे। कोई मंत्री तक इन शहीदों के घर झांकने नहीं गया। पर चुनाव प्रचार में सैनिक की फोटो ये ढाल बना चुके हैं। इससे न सिर्फ विश्व मंच पर देश की फजीहत हो रही है बल्कि विदेशी मीडिया में भी खिंचाई हो रही है। हमले में मारे गए लोगों की संख्या से यह शुरुआत हुई। सरकार ने जानबूझ कर पहले तीन सौ /चार सौ लोगों के मारे जाने की खबर लीक कराई। ताकि चुनावी प्रचार में माहौल बने और विपक्ष ठंडा पड़ जाए। पर मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को मनोरंजन में बदल दिया।
कोई सैनिक बनकर टीवी पर आ गया तो कोई तोप तमंचा लेकर। जो संख्या ठीक लगी वह चला दी, चार सौ कुछ कम लगी तो छह सौ तक पहुंच गए। पर जब अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने खबर लेनी शुरू की तो मामला गड़बड़ा गया। दरअसल सारा मामला ख़ुफ़िया जानकारी का ही था। इसमें चूक हुई होगी यह माना जा रहा है। ख़ुफ़िया तंत्र हमारा इतना लचर कभी नहीं रहा जितना देसी जेम्स बांड डोवाल के समय में हो गया है। वर्ना अर्ध सैनिक बल के इतने बड़े दस्ते के रास्ते में तीन सौ किलो विस्फोटक न आता। घाटी में रोज अपने जो जवान मारे जा रहे हैं उसके पीछे भी ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता बड़ी वजह है।
पर सरकार तो चुनाव का बूथ मजबूत करने में लगी है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि पचास सैनिक हमारे मारे गए। एक को पकिस्तान ने हमें दिया। नुकसान हमारा ज्यादा हुआ फिर भी ढोल नगाड़ा हम ही बजा रहें हैं। हम क्यों उत्सव मना रहे हैं यह एक सैनिक परिवार ने भी पूछा। पर कौन सुनता है किसी सैनिक की आवाज। सैनिक की फोटो को जीप के बोनट पर डाल कर वोट जो मांगना है। पर इसमें अहलूवालिया ने खलल डाल दिया है । आप दिग्विजय सिंह को क्या घेरेंगे ,मीडिया को क्या घेरेंगे पहले अपने मंत्री से तो निपट लें जिसने सेना के पराक्रम को पार्टी पराक्रम में बदलने की योजना में पलीता लगा दिया है।
(वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार शुक्रवार के संपादक हैं और लंबे समय तक एक्सप्रेस समूह से जुड़े रहे हैं।)
अहलूवालिया ने कहा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही किसी सरकारी प्रवक्ता ने हवाई हमले के हताहतों पर कोई आंकड़ा दिया है। बल्कि यह तो भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया ही था जहां मारे गए आतंकवादियों की अपुष्ट संख्या की चर्चा हो रही थी। उन्होंने शनिवार को सिलीगुड़ी में संवाददाताओं से सवाल किया कि हमने भारतीय मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खबरें देखी हैं और यह भी देखा कि मोदी जी ने क्या कहा था। यह कहकर उन्होंने भाजपा के चुनावी गुब्बारे की हवा ही निकाल दी है। हो सकता है वे कल को खंडन कर दें पर जो फजीहत वे सरकार की कर चुके हैं उसकी भरपाई संभव नहीं है। अब सभी सरकार की इस कार्रवाई को शक की नजर से देखने लगे हैं।
इससे पहले विदेश सचिव ने इस मामले पर गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया। दरअसल रायटर्स, बीबीसी और अल जजीरा आदि की रपट के बाद सरकार घिर गई है। सरकार सिर्फ इसलिए घिरी क्योंकि वह सेना के पराक्रम को अपने चुनावी पराक्रम में बदलना चाहती थी। वर्ना हमले के दस बारह घंटे बाद ही यह कह सकती थी कि इस हमले का मकसद सिर्फ पकिस्तान को सांकेतिक चेतावनी देना था, किसी को मारना नहीं। इससे सरकार की प्रतिष्ठा कम नहीं होती।
दरअसल इस हवाई हमले की नाकामी हमारे ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी है दूसरे यह हमारी विदेश नीति की भी नाकामी है। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया भर में हल्ला नहीं मचाया होता कि भारत पकिस्तान पर कुछ बड़ा करने जा रहा है तो शायद बालाकोट के आतंकी शिविर खाली नहीं मिलते। ट्रंप को इस मामले में डालने का यह बड़ा नुकसान हुआ। दूसरे जिस कश्मीर को हम दो देशों का मुद्दा मानते आएं हैं वह अब पंचायती हुक्का बन चुका है। अब अमेरिका हर बातचीत में दखल भी देगा। यह विदेश नीति में हुए बदलाव का नतीजा है। ओआईसी में बची खुची कसर निकल गई जिसने अपने प्रस्ताव में भारत को कश्मीर में आतंक फैलाने वाला देश घोषित कर दिया। सुषमा स्वराज के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात क्या होगी। चीन किस तरफ है यह सभी को पता है। दरअसल पकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थित के चलते कई देशों की जरुरत बना हुआ है। जिसमें चीन सबसे ऊपर है तो अमेरिका भी उसके बाद ही है। यह बात समझनी चाहिए। ऐसे में बहुत संभल-संभल कर कदम रखने की जरुरत थी।
पर मोदी के लिए चुनाव सबसे ऊपर है। जब सीमा पर बम गोला चल रहा था तो भी वे देश में बूथ मजबूत करने में जुटे थे। जब पुलवामा हमला हुआ तो भी वे शूटिंग और चुनाव प्रचार में लगे थे। जब सैनिक का शव पटना आ रहा था तो भी वे रैली में ही थे। कोई मंत्री तक इन शहीदों के घर झांकने नहीं गया। पर चुनाव प्रचार में सैनिक की फोटो ये ढाल बना चुके हैं। इससे न सिर्फ विश्व मंच पर देश की फजीहत हो रही है बल्कि विदेशी मीडिया में भी खिंचाई हो रही है। हमले में मारे गए लोगों की संख्या से यह शुरुआत हुई। सरकार ने जानबूझ कर पहले तीन सौ /चार सौ लोगों के मारे जाने की खबर लीक कराई। ताकि चुनावी प्रचार में माहौल बने और विपक्ष ठंडा पड़ जाए। पर मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को मनोरंजन में बदल दिया।
कोई सैनिक बनकर टीवी पर आ गया तो कोई तोप तमंचा लेकर। जो संख्या ठीक लगी वह चला दी, चार सौ कुछ कम लगी तो छह सौ तक पहुंच गए। पर जब अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने खबर लेनी शुरू की तो मामला गड़बड़ा गया। दरअसल सारा मामला ख़ुफ़िया जानकारी का ही था। इसमें चूक हुई होगी यह माना जा रहा है। ख़ुफ़िया तंत्र हमारा इतना लचर कभी नहीं रहा जितना देसी जेम्स बांड डोवाल के समय में हो गया है। वर्ना अर्ध सैनिक बल के इतने बड़े दस्ते के रास्ते में तीन सौ किलो विस्फोटक न आता। घाटी में रोज अपने जो जवान मारे जा रहे हैं उसके पीछे भी ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता बड़ी वजह है।
पर सरकार तो चुनाव का बूथ मजबूत करने में लगी है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि पचास सैनिक हमारे मारे गए। एक को पकिस्तान ने हमें दिया। नुकसान हमारा ज्यादा हुआ फिर भी ढोल नगाड़ा हम ही बजा रहें हैं। हम क्यों उत्सव मना रहे हैं यह एक सैनिक परिवार ने भी पूछा। पर कौन सुनता है किसी सैनिक की आवाज। सैनिक की फोटो को जीप के बोनट पर डाल कर वोट जो मांगना है। पर इसमें अहलूवालिया ने खलल डाल दिया है । आप दिग्विजय सिंह को क्या घेरेंगे ,मीडिया को क्या घेरेंगे पहले अपने मंत्री से तो निपट लें जिसने सेना के पराक्रम को पार्टी पराक्रम में बदलने की योजना में पलीता लगा दिया है।
(वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार शुक्रवार के संपादक हैं और लंबे समय तक एक्सप्रेस समूह से जुड़े रहे हैं।)